Consultation in Corona Period-117

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"इस आग ने तो मेरा जीना हराम कर दिया है। चारों तरफ आग दिखाई देती है। 


सोते उठते आग देखते-देखते में पागल हो गया हूँ। हर कोई व्यक्ति मुझे जलता हुआ नजर आता है। 


हर वस्तु को देखकर ऐसा लगता है जैसे की आग से घिरी हुई है। रात को सारे सपने आग के आते हैं और मैं हड़बड़ा कर उठ जाता हूँ।"


 उत्तर भारत से जब मेरे वनस्पति विज्ञानी मित्र का फोन आया तो मुझे उनकी स्थिति को देखकर बड़ा ही दुख हुआ। उनकी स्थिति सचमुच पागलों की तरह थी और वे जब मुझसे फोन पर बात कर रहे थे तब भी वे बार-बार कह रहे थे कि उन्हें आग दिखाई दे रही है। 


दरअसल वे कुछ सालों पहले अपने शोध के सिलसिले में उत्तर भारत के एक जंगल में गए थे जहां आग लगी हुई थी। वे उस आग में फंस गए और 3 दिनों तक आग से घिरे रहे। 


उनके बचने की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। वन विभाग के लोग उन्हें दूर से देख रहे थे पर कुछ भी न कर पाने के लिए मजबूर थे। 


आखिर उस रात बहुत बारिश हुई। धीरे-धीरे कुछ दिनों में आग पूरी तरह से बुझ गई और वे सुरक्षित निकाल लिए गए।


 उन्हें खरोच तक नहीं आई थी। हां, खाने की कमी से वे बहुत अधिक कमजोर हो गए थे और इस कमजोरी से उबरने में उन्हें कई महीनों का समय लगा। 


कमजोरी से अधिक विकट समस्या उनकी मानसिक स्थिति की थी। उन्हें उस घटना के बाद से चारों तरफ आग ही आग दिखाई देने लगी। 


आधुनिक चिकित्सकों से जब संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि उन्हें गहरा मानसिक आघात लगा है और समय के साथ यह ठीक हो जाएगा। 


उनके परिवारजनों को यह राय दी गई कि मित्र को हमेशा अच्छे माहौल में रखा जाए और किसी भी हालत में परेशान न होने दिया जाए। परिवार वालों ने अपना फर्ज बड़े अच्छे से निभाया पर मित्र की हालत में जरा भी सुधार नहीं हुआ।


 उनकी इस हालत के कारण उन्हें नौकरी से छुट्टी लेनी पड़ी और घर में बैठकर इस बात का इंतजार करना पड़ा कि उनका मर्ज कब पूरी तरह से ठीक हो। 


इसके बाद तरह-तरह की चिकित्सा पद्धतियों को आजमाने का क्रम शुरू हुआ। यह अंतहीन क्रम था जो आज तक जारी है। 


आधुनिक चिकित्सा के साथ उन्होंने होम्योपैथी का प्रयोग करना शुरू किया और उसके बाद फिर आयुर्वेदिक दवाओं का फिर उन्होंने यूनानी पद्धति का सहारा लिया। 


उन्होंने मुझे बताया कि सारी दवाएं कारगर थी और वे सब उन्हें गहरी नींद में ले जाती थी पर गहरी नींद में भी जब आग दिखती थी तो ये सारी दवाएं बेअसर साबित होती थी और मैं रात को उठ बैठता था। 


घर वालों ने उन्हें बताया कि वे रात भर बहुत बेचैन रहते हैं। नींद में बड़बड़ाते रहते हैं। 


घरवालों की स्थिति देखकर उन्होंने यह निश्चय किया कि वे अकेले ही सोएंगे और अपनी समस्या के कारण बढ़ते हुए बच्चों को परेशान नहीं करेंगे पर उनका परिवार इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था।


 सारी पद्धतियों के असफल हो जाने के बाद उन्होंने पारंपरिक चिकित्सा का सहारा लिया। पारम्परिक चिकित्सकों ने उन्हें कई प्रकार के लेप दिए जिन्हें कि पैरों के तलवों पर लगाना होता था पर इससे भी बात नहीं बनी। 


इंटरनेट पर अपनी समस्या का समाधान खंगालते हुए जब वे मेरे लेखों तक पहुंचे तो उन्हें लगा कि उन्हें बचपन के मित्र से परामर्श लेना चाहिए। पर संकोचवश जब उन्होंने परामर्श का समय लिया तो यह नहीं बताया कि वे मेरे बचपन के मित्र हैं। 


वे एक आम आदमी की तरह मुझसे मिले पर मैंने झट से उन्हें पहचान लिया। उनकी ढेर सारी रिपोर्ट देखने के बाद और उनके द्वारा ली जा रही दवाओं के अध्ययन के बाद मैंने उनसे कहा कि उनकी दवाएं बिल्कुल सही दिशा में है। 


बस एक काम उनको करना है कि वे जिस भी पद्धति पर विश्वास करते हैं उस पद्धति की दवा लेना है न कि सभी पद्धतियों की दवा एक साथ। 


मेरे मित्र चाहते थे कि मैं उन्हें कुछ दवा बताऊँ जो कि इन दवाओं से अधिक कारगर हो। वे इस बात के लिए तैयार थे कि यदि मैं उन्हें किसी तरह की दवा देता हूँ तो वे बाकी दवाओं का प्रयोग तुरंत रोक देंगे। 


मैंने उनसे कहा कि वे मुझसे दवा की उम्मीद न करें। हां समाधान की उम्मीद वे कर सकते हैं। 


मैंने उन्हें परामर्श दिया कि वे किसी अच्छे योगाचार्य के पास जाएं और उनसे कहे कि उनके ब्रह्मसार चक्र में समस्या है। 


योगाचार्य उन्हें कई तरह की हस्त मुद्राएं बताएंगे जिससे कि इस दोष को दूर किया जा सकता है। 


जब आप लंबे समय तक योगाभ्यास करेंगे तो धीरे-धीरे आपका दिमाग फिर से स्वाभाविक स्थिति में आ जाएगा और आपकी बहुत सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा। 


उन्हें इस बात पर एकाएक विश्वास नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने पहले योग का अभ्यास किया था पर उन्हें किसी ने नहीं बताया था कि यह समस्या ब्रह्मसार चक्र की है। 


मैंने अपने परिचित के एक योगाचार्य के पास उन्हें भेजा जो कि ब्रह्मसार चक्र को नियमित करने में पारंगत थे। 


मित्र उनके पास लगातार छह महीनों तक जाते रहे और उसके बाद उन्होंने मुझे बताया कि उनकी समस्या का कुछ हद तक समाधान हुआ है। उनकी दवाएं पूरी तरह से बंद हो चुकी हैं। 


दिन में अब उन्हें आग नहीं दिखाई दिखाई देती है पर रात में आग का दिखना और बेचैन रहना वैसे ही जारी है।


 मैंने उन्हें फिर से रायपुर बुलाया और जड़ी बूटियों का लेप उनके तलवों पर लगाकर कुछ आरंभिक परीक्षण किए फिर उनसे कहा कि भारत की पारंपरिक चिकित्सा में ब्रह्म मूसली नामक एक वनस्पति का प्रयोग इस कार्य के लिए किया जाता है। 


उन्होंने झट से अपना मोबाइल निकाला और इंटरनेट पर ब्रह्म मूसली खोजने लगे। उन्हें इस बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं मिली। 


उन्होंने व्यग्र होकर कहा कि मैं इतने सालों से वनस्पति विज्ञान का अध्ययन कर रहा हूँ पर पहले मैंने इस वनस्पति का नाम नहीं सुना। 


उन्होंने अनुरोध किया है कि मैं उन्हें वैज्ञानिक नाम बताऊं।


 मैंने उनसे कहा कि आप को वैज्ञानिक नाम से क्या करना है? अगर मैं आपको वैज्ञानिक नाम बताऊँ तो आप फिर इंटरनेट का सहारा लेंगे जो कि आपको बताएगा कि देश के मैदानी भागों में यह वनस्पति नहीं मिलती है। 


फिर आप उस आधार पर मुझसे बहस करने लगेंगे इसलिए बेहतर यही होगा कि आप अपनी चिकित्सा पर ध्यान दें। 


उन्होंने इस बात को मान लिया और मुझसे पूछा कि यह वनस्पति कहां मिलेगी?


 मैंने उनसे कहा कि आपको इसके लिए विशेष मेहनत करनी होगी। यह एक दुर्लभ वनस्पति है। 


मैं आपको एक पारंपरिक चिकित्सक के पास भेजूंगा जो आप को लेकर जंगल में जाएंगे। 


जहां पर ब्रह्म मूसली पाई जाती है वहां तक पहुंचने में आपको सात रातों का समय लगेगा। आपके साथ पारंपरिक चिकित्सक के अलावा दस और लोग जाएंगे जो कि आपकी मदद करेंगे। 


अगर आप चलने में सक्षम नहीं होंगे तो वे आपके लिए कहार के रूप में उपस्थित रहेंगे। ब्रह्ममूसली जहां पर पाई जाती है वहां तक पहुंचने के लिए ये सात रातें आपको या तो गुफाओं में गुजारनी होगी या बीच में पड़ने वाले किसी गांव में। आप पूरी तैयारी से जाएं। 


पारंपरिक चिकित्सक मेरे विश्वास के हैं। वे आपको किसी भी तरह की तकलीफ नहीं होने देंगे। 


इससे पहले भी बहुत सारे लोगों को उस स्थान तक ले जा चुके हैं विशेषकर ऐसे लोगों को जो कि मानसिक रोगों से बुरी तरह से परेशान थे। 


मैंने उनसे यह भी कहा कि यदि मैं यहां व्यस्त नहीं होता तो मैं भी आपके साथ चलता। 


उन्होंने बिना वक्त गवाएं पारंपरिक चिकित्सक से मिलने का मन बनाया और उनसे पूरी योजना विस्तार से पूछी।


 उस आधार पर अपना सामान तैयार किया और कुछ ही दिनों में उस स्थान की ओर निकल पड़े जहां पर ब्रह्म मूसली प्राकृतिक रूप से उगती है। 


उन्हें आने जाने में 15 दिनों का समय लगा। जिस स्थान पर ब्रह्म मूसली थी उस स्थान पर पहुंचने के बाद पारंपरिक चिकित्सक ने उन्हें ब्रह्म मूसली की पहली खुराक दे दी और लौटते हुए हर दिन वे एक-एक खुराक लेते रहे। 


वापस आते-आते तक उनकी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो गया। जब वे मुझसे मिलने आए तो बड़े प्रसन्न थे।


 मैंने उनसे पूछा कि आपने ब्रह्ममूसली के दर्शन कर लिए अब तो आपने उस वनस्पति का वैज्ञानिक नाम भी जान लिया होगा।


 क्या अब आप एक शोधपत्र प्रकाशित करने की तैयारी में है जिसमें आप इस बात का दावा करेंगे कि दुनिया में सबसे पहले आपने ही ब्रह्म मूसली की खोज की और इसके लिए आपको एक बड़ा इनाम मिलना चाहिए? 


आशा के विपरीत उन्होंने कहा कि उन्हें शोध पत्र में किसी भी प्रकार की रुचि नहीं है। यह भारत का पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान है और इसे गोपनीय रहने देना ही उचित है। 


उन्होंने खुलासा किया कि ब्रह्ममूसली के ये पौधे बहुत ही कम संख्या में उस स्थान पर है। यदि इस स्थान के बारे में और ब्रह्म मूसली की महत्ता के बारे में दुनिया को पता चला तो कुछ ही समय में यह स्थान पूरी तरह से खाली हो जाएगा और उनके जैसे कठिन रोगों से जूझ रहे लोगों को किसी भी प्रकार की चिकित्सा नहीं मिल सकेगी। 


मैंने उन्हें धन्यवाद दिया और पूछा कि क्या आप ने पारंपरिक चिकित्सकों को यात्रा का व्यय दिया? 


उन्होंने बताया कि यात्रा का पूरा व्यय उन्होंने स्वयं वहन किया। वापस लौटते ही उन्होंने बहुत सारे रुपए पारंपरिक चिकित्सक चिकित्सक को दिए और उनसे कहा कि यदि भविष्य में उन्हें ऐसा कोई रोगी मिले जो कि आर्थिक रूप से सक्षम न हो तो वे उनसे संपर्क कर सकते हैं। 


मित्र ने कहा कि वे इस यात्रा को प्रायोजित करने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे। 


उनकी सहृदयता से सभी बहुत प्रसन्न थे।


 मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी। 


सर्वाधिकार सुरक्षित


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