Consultation in Corona Period-125

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"मल सूख कर इतना अधिक कड़ा हो जाता है कि जोर लगाते-लगाते मेरी हालत खराब हो जाती है। आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है। 


चेहरे पर दर्द होने लग जाता है पर फिर भी मल किसी भी तरह से बाहर नहीं निकलता है। आधे में ही लटका रह जाता है। 


उसके बाद मुझे अपने हाथों से उसे बाहर निकालना पड़ता है तब जाकर इत्मीनान होता है। डॉक्टर कहते हैं कि यह भयंकर कब्ज की स्थिति है और उसमें तुरंत ही सुधार की जरूरत है अन्यथा लंबे समय में कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। 


मैं पिछले 10 सालों से इस समस्या से परेशान हूं और मैंने इतने सारे उपाय किए हैं कि इस पर एक एनसाइक्लोपीडिया तैयार हो सकता है। पर समस्या जस की तस है। 


मुझे और कोई स्वास्थ समस्या नहीं है। न डायबिटीज है न ब्लड प्रेशर की समस्या है पर दिन भर मैं इसी तनाव में रहता हूं कि जब मेरा पेट साफ होगा तो मुझे 2 घंटों का समय देना होगा और अपने हाथ से ही सारी सफाई करनी होगी। 


10 साल पहले जब मैं 30 वर्ष का था तब यह समस्या शुरू हुई। मैंने ईसबगोल का प्रयोग किया। 


इससे शुरू में तो मुझे बहुत लाभ हुआ। मैं इसबगोल को मुंह में रखकर पानी पी जाया करता था। फिर धीरे-धीरे इसका असर होना बंद हो गया।


 मुझे बताया गया है कि इसबगोल को पानी में फुलाया जाए और उसके बाद उसे हलवे की तरह खाया जाए उसमें शक्कर डालकर। 


मैंने ऐसे ही किया पर ईसबगोल की लुगदी बनाकर उसे खाना बहुत कठिन काम है फिर भी मैंने यह किया जिससे कुछ समय तक तो पेट साफ होता रहा और फिर कब्जियत की समस्या हो गई। 


मुझे बताया गया है कि ईसबगोल आँतों की नमी को पूरी तरह से समाप्त कर देता है इसलिए बहुत जरूरी है कि ईसबगोल खाने के बाद अगले खाने में घी या तेल का समुचित प्रयोग किया जाना चाहिए अन्यथा आंत पूरी तरह से सूख जाती है और अगली बार पूरी तरह से कब्जियत की समस्या हो जाती है।


 रोज इसबगोल खाना और उसके बाद अगले भोजन में तेल का इतनी अधिक मात्रा में प्रयोग करना स्वास्थ के लिए हानिकारक लगा इसलिए मैंने इसबगोल का प्रयोग पूरी तरह से रोक दिया। 


उसके बाद मैंने सनाय की पत्ती का प्रयोग करना शुरू किया। इससे पेट में बहुत अधिक मरोड़ होती थी और फिर पेट साफ हो जाया करता था पर मेरे चिकित्सकों ने कहा कि यह पेट साफ करने का प्राकृतिक तरीका नहीं है।


 रोज-रोज शरीर में ऐसी मरोड़ पैदा करना शरीर के लिए नुकसानदायक है। पेट अपने आप ही साफ होना चाहिए और उसके लिए नियमित व्यायाम की जरूरत है। 


डॉक्टर ने बताया कि आप हमेशा बैठकर काम करते हैं इसलिए कब्जियत की समस्या होना कोई बड़ी बात नहीं है। आपको हर आधे घंटे बाद कंप्यूटर से उठना चाहिए और हल्का व्यायाम करना चाहिए ताकि आपके पेट में हलचल होती रहे।


 मैंने ऐसा करने का निश्चय किया। भले ही यह ऑफिस में एक कठिन कार्य था और लोग उसका मजाक उड़ाते रहे पर मैंने यह करके देखा। इससे कुछ समय तक मेरा पेट ठीक रहा फिर उसके बाद कब्जियत की समस्या हो गई। 


छत्तीसगढ़ के एक वैद्य ने मुझसे कहा कि मैं अमीरों की जुलाब यानी कि खीर का प्रयोग करूँ। रात को सोते समय अधिक मात्रा में दूध से बनी खीर खा लूँ तो दूसरे दिन सुबह अपने आप पेट साफ हो जाएगा। 


इसने जादू की तरह काम किया पर यह जादू ज्यादा दिन तक नहीं काम आया। कभी कभार के लिए यह ठीक है पर इसके प्रयोग से जब पेट साफ होता है तो बहुत अधिक कमजोरी आ जाती है और चिकित्सकों ने बताया कि इस पद्धति से मल के साथ में शरीर की बहुत सी काम की सामग्री भी निकल जाती है इसलिए इतनी अधिक कमजोरी आती है। 


इसे जिंदगी भर तो नहीं किया जा सकता था। फिर रोज खीर खाना सेहत के लिए भी बहुत नुकसानदायक था। मुझे कहा गया कि तरह-तरह के योगाभ्यास करने से पेट साफ हो सकता है। योगाभ्यास तो मैं पहले से ही कर रहा था उसके बाद भी मुझे कब्जियत की शिकायत हुई। 


मैं महीनों तक ताड़ासन करता रहा और कौवा चाल चलता रहा जब तक कि पैरों में गोखरू नही हो गए। एक बार गोखरू होने के बाद इन आसनों को करना बहुत मुश्किल हो गया और ये पूरी तरह से बंद हो गए। 


मुझे बताया गया कि सुबह-सुबह गर्म पानी पीने से पेट साफ होता है पर यह भी अस्थाई उपाय हैं। बहुत अधिक पानी पीने से पेट और अधिक कड़ा हो जाता है और मेरे चिकित्सकों ने बताया कि अधिक मात्रा में पानी पीने से किडनी को अधिक काम करना पड़ता है और लंबे समय पर उन पर बुरा प्रभाव पड़ता है इसलिए जितनी प्यास लगे उतना ही पानी पीना चाहिए। 


अधिक पानी पीना लंबी आयु के लिए खतरनाक है। उसके बाद मैंने नेचुरोपैथी का सहारा लिया जहां मुझे बताया गया है कि अधिक फाइबर वाली भोजन सामग्री का प्रयोग करने से पेट साफ कैसे होता है।


 मैंने उनके द्वारा बताई गई भोजन सामग्रियों का नियमित प्रयोग किया। यह दैनिक जीवन में एक कठिन काम था और एक तपस्या की तरह था। फिर भी मैंने इसे किया पर स्थाई तौर पर इससे भी लाभ नही हुआ। 


मेरे चिकित्सक ने बताया कि बहुत अधिक फाइबर होने से मल एक बड़े बॉल के रूप में परिवर्तित हो जाता है जिसे बाहर निकलने में बहुत दिक्कत होती है इसलिए भोजन में बहुत अधिक फाइबर का होना भी नुकसानदायक है। 


नेचुरोपैथी वालों ने मेरे मुझे एनिमा की आदत डलवा दी जिससे कुछ समय तक तो ठीक से फायदा होता रहा पर फिर दिन में दो-तीन बार भी एनिमा लेने से मल की शुद्धि नहीं होती रही। 


जो तीन-चार दिनों में पेट साफ होता था उसका अंतराल बढ़ता गया और फिर 10 दिनों में एक बार पेट साफ होने लगा। रोज पेट साफ न होने के कारण त्वचा के बहुत सारे विकार हो गए। 


मुझे दिन भर सुस्ती लगने लगी। बवासीर की समस्या पैदा हो गई। हृदय रोग उत्पन्न हो गया। 


खाना खाने की इच्छा पूरी तरह से समाप्त होने लगी। मुंह में लगातार छाले होने लगे।


 मुझे हर 10-15 दिन के बाद डॉक्टरों का सहारा लेना पड़ता था जो कि हाथ में दस्ताने पहनकर उंगली की सहायता से मल को तोड़कर बाहर निकालते थे। 


इसकी वे बहुत अधिक फीस लेते थे और मुझे अस्पताल में भर्ती होना पड़ता था।


 मैंने सोचा कि यह उपाय तो मैं खुद ही कर सकता हूं। अपने बाथरूम में पूरी निश्चिंतता के साथ इसलिए मैंने घर में ही इसे करने का प्रयास किया और अभी तक यह प्रयास जारी है।


 कब्जियत के लिए मैंने लगभग सभी पद्धतियों की दवाओं का उपयोग किया पर इनसे स्थाई लाभ नहीं मिला। अब मैं जब भी समय मिलता हूं तब नए लोगों से मिलता हूं जो कि जड़ी बूटियों के क्षेत्र में अनुसंधान कर रहे हैं और उनसे पूछता हूं कि क्या मेरी कब्जियत का कोई स्थाई समाधान है?


 इसी क्रम में मैंने आपसे परामर्श लेने का समय लिया और अब आपसे बात कर रहा हूं।" 


मुंबई से आए एक युवक ने मुझे अपनी व्यथा बताई। मैंने उससे कहा कि मैं तुम्हारी मदद करूंगा।


 मैंने उससे उसके द्वारा प्रयोग की जा रही भोजन सामग्रियों के बारे में पूरी जानकारी ली और फिर उससे पूछा कि वह नाश्ते में चाय के साथ कौन-कौन सी खाद्य सामग्री लेता है? 


उसने कहा कि चाय के साथ वह हमेशा बिस्किट ही लेता है और किसी तरह का नाश्ता नहीं लेता है। उसने यह भी बताया कि वह दिन में कई बार चाय पीता है और हर बार बिस्किट का प्रयोग करता है।


 उसे चाय में बिस्किट डुबोकर खाने में बहुत मजा आता है। उसे बताया गया है कि मैदा वाले बिस्किट खाने से लीवर को नुकसान होता है और कब्जियत की समस्या होती है इसलिए वह आटे के बिस्किट का प्रयोग करता है। 


उसे मीठे बिस्किट पसंद है पर बिस्किट के माध्यम से उसके शरीर में मीठा बहुत अधिक मात्रा में चला जाता है इसलिए उसने ऐसे बिस्किट का प्रयोग करना शुरू किया है जिसमें कि बिल्कुल भी शक्कर नहीं होती है या बहुत कम मात्रा में होती है।


वह पहले स्टीविया का प्रयोग कर रहा था पर जब उसने इंटरनेट पर पढ़ा कि स्टीविया विशेषकर पूरी तरह से शोधित न किया हुआ स्टीविया शरीर को कई तरह से नुकसान पहुंचाता है तो उसने स्टीविया का प्रयोग पूरी तरह से रोक दिया। 


उसकी बात सुनकर मैंने उससे प्रश्न पूछा कि क्या जिस बिस्किट का वह प्रयोग करता है उसमें पाम ऑयल का प्रयोग किया जाता है तो उसने बताया कि हां, वह जितने भी प्रकार के बिस्किट लेता है सब में पाम आयल का उपयोग किया जाता है।


 मैंने उसे परामर्श दिया कि वह ऐसे बिस्किट का प्रयोग करें जिसमें पाम आयल का उपयोग न किया गया हो। वह मेरी बात मानने को तैयार हो गया पर जब उसने भारतीय बाजार का सर्वेक्षण किया तो उसे पता चला कि ज्यादातर बिस्किट में पाम ऑयल का प्रयोग किया जाता है। 


कुछ समय बाद उसने मुझे बताया कि वह विदेश से बिस्किट मंगा रहा है जिसमें पाम आयल का किसी भी प्रकार से प्रयोग नहीं किया गया है। यह महंगा पड़ता है पर उसकी समस्या के सामने इतना खर्च कुछ भी नहीं है। 


विदेशों से बिस्किट मंगाने से अब उसने बिस्किटों का प्रयोग भी काफी हद तक कम कर दिया है। 


पाम ऑयल वाले बिस्किट का प्रयोग बंद करने के बाद उसने मुझे फिर से संपर्क किया लगभग 1 महीने बाद और उसने खुशखबरी दी कि अब उसे हर 8 दिन के बाद पेट साफ होने लगा है।


 15 दिनों के बाद उसने फिर से संपर्क किया और बताया कि अब हर दूसरे दिन उसका पेट साफ होने लगा है।


 इसके बाद कुछ ही दिनों में उसकी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो गया।


 उसने धन्यवाद ज्ञापित किया।


मैंने उसे शुभकामनाएं दी।


 सर्वाधिकार सुरक्षित


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