Consultation in Corona Period-137

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"इंटरकोर्स के आधे घंटे के अंदर बहुत अधिक हिचकी आनी शुरू होती है जो कि 24 घंटे तक लगातार आती रहती है। 

किसी भी तरह की दवा से इस हिचकी को नहीं रोका जा सकता है।

 24 से 36 घंटे के बाद हिचकी अपने आप बंद हो जाती है और फिर जब अगली बार इंटरकोर्स किया जाता है तो फिर से शुरू हो जाती है।

 सारे लक्षण इंटरकोर्स के आधे घंटे बाद ही शुरू होते हैं। ऐसा केस हमने अपने जीवन में कभी नहीं देखा। वह भी 28 वर्षीय युवती के संदर्भ में जिसकी हाल ही में शादी हुई है। 

शादी से पहले उसे इस तरह की कोई समस्या नहीं थी। पहली रात से ही इस समस्या का पता चला और शादी के दूसरे दिन ही उसे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा पर अस्पताल में भर्ती होने का कोई लाभ नहीं हुआ क्योंकि हिचकी किसी भी तरह से नहीं रुक रही थी। 

जब हमारे पास यह केस आया और हमारी टीम ने अपने आप को असमर्थ महसूस किया तो हमारे सहायक ने हमें सुझाव दिया कि हम आपसे संपर्क करें।

 आप ड्रग इंटरेक्शन पर काम कर रहे हैं। हो सकता है कि यह किसी तरह का ड्रग इंटरेक्शन हो। 

वैसे हमने अपने स्तर पर सभी दवाओं की जांच कर ली है और उपलब्ध साहित्य में देख लिया है कि यह किसी तरह का इंटरेक्शन तो नहीं है। 

हमारा अध्ययन कहता है कि यह किसी भी प्रकार का ड्रग इंटरेक्शन नहीं है।" 

दिल्ली के प्रसिद्ध शोध संस्थान के डायरेक्टर ने मुझसे संपर्क किया और इस अजीब से केस के बारे में बताया। मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा। 

मैंने उनसे यह भी कहा कि ऐसे मामले मेरे लिए नए नहीं है। मैंने ऐसे बहुत से मामले पहले देखे हैं और आपका कहना सही है कि यह ड्रग इंटरेक्शन के कारण हो सकता है। 

मुझे पूरी तरह से जांच कर लेने दीजिए। उसके बाद ही मैं आपको कुछ जानकारी दे पाऊंगा।

 सारी रिपोर्टों को पढ़ने के बाद और उस युवती से फोन पर बात करने के पश्चात मैंने एक लंबी प्रश्नावली तैयार की और उसे उस युवती के पास भेजा। 

उससे अनुरोध किया कि वह बहुत सावधानीपूर्वक सोच समझकर उस प्रश्नावली में पूछे गए प्रश्नों का जवाब दे। 

उसने मेरी बात मानी और जल्दी ही सारे जवाब मुझे मिल गए। 

इस आधार पर मैंने संस्थान के डायरेक्टर से कहा कि आप यदि संभव हो तो मेरी दिल्ली यात्रा का प्रबंध करें ताकि मैं इस युवती के पैरों में जड़ी बूटियों का लेप लगाकर यह सुनिश्चित कर सकूं किस कारण से ऐसे लक्षण आ रहे हैं।

 उन्होंने पूछा कि क्या इस कोरोना काल में आप दिल्ली आ सकते हैं। मैंने उनसे कहा कि मैं इस समय यात्रा को प्राथमिकता नहीं दे रहा हूं।

 यदि संभव है तो आप उस युवती को लेकर रायपुर आ सकते हैं। इससे मुझे बहुत अधिक मदद हो जाएगी। 

वे इस बात के लिए तैयार हो गए और 2 दिनों के अंदर रायपुर आ गए। युवती को देखकर यह बिल्कुल भी एहसास नहीं होता था कि उसे इस तरह की कोई भयानक समस्या हो रही होगी। उसका स्वास्थ्य अच्छा था और वह किसी भी प्रकार के गंभीर रोग से पीड़ित नहीं थी। 

मैंने जड़ी बूटियों का लेप तैयार किया और उसके दोनों तलवों में लगा दिया। प्रतिक्रिया को प्रकट होने में आधे घंटे का समय लगा। मेरे आरंभिक परीक्षण इस बात की ओर इशारा कर रहे थे कि यह किसी वनस्पति के दुष्प्रभाव के कारण हो रहा है।

 मैंने उस वनस्पति का नाम डायरेक्टर साहब को बता दिया और उनसे यह जानना चाहा कि यह वनस्पति उस युवती के शरीर में कैसे पहुंच रही है क्योंकि जिन दवाओं की सूची उन्होंने मुझे दी है उसमें इस वनस्पति के बारे में किसी भी प्रकार का जिक्र नहीं है। 

जब मैंने अपने डेटाबेस को खंगाला तो छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिकित्सकों द्वारा बताया गया एक अनूठा मामला पढ़ने को मिला। 

उस आधार पर मैंने संस्थान के डायरेक्टर साहब को कहा कि मुझे इस बात की जानकारी चाहिए कि उस युवती के पति किस तरह की दवाओं का सेवन कर रहे हैं? 

उन्होंने कहा कि वे इस बात की जानकारी जल्दी ही उपलब्ध करा देंगे पर उन्होंने यह प्रश्न पूछा कि युवती की समस्या के लिए वह युवक यानी उसका पति किस तरह से जिम्मेदार हो सकता है?

 मैंने उन्हें धैर्य रखने को कहा। जब उसके पति के द्वारा ली जा रही दवाओं के बारे में मुझे विस्तार से जानकारी दी गई तो पता चला कि वह कई किस्म की बलवर्धक दवाओं का प्रयोग कर रहा है। ये बलवर्धक दवाएं वह उत्तर प्रदेश के एक वैद्य से ले रहा है। 

मैंने उस वैद्य से बात करने की इच्छा जताई। जब वैद्य से बात हुई तो मैंने अपना परिचय दिया और उनसे कहा कि क्या आप अपने द्वारा प्रयोग की जा रही दवा के घटकों के बारे में विस्तार से जानकारी दे सकते हैं तो उन्होंने कहा कि एक वैज्ञानिक को इस बारे में जानकारी देने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।

 उनके द्वारा दी जा रही है एक दवा में वही वनस्पति थी जिस पर मेरा शक था। मैंने वैद्य जी से पूछा कि इस दवा का प्रयोग करते समय आपने क्या उस युवक को कुछ विशेष निर्देश दिए थे तो उन्होंने कहा कि मैं जब भी इस दवा का प्रयोग करता हूं तो यह साफ शब्दों में कह देता हूं कि विवाह के एक हफ्ते पूर्व इस दवा का प्रयोग पूरी तरह से रोक दिया जाए और एक हफ्ते के बाद ही फिर किसी भी प्रकार का इंटरकोर्स किया जाए। 

जब मैंने युवती के पति से इस बारे में जानकारी मांगी तो उसने इस बात को स्वीकारा कि वह अभी भी इस दवा का प्रयोग कर रहा है और उसने वैद्य जी की बात पर ध्यान नहीं दिया।

 उससे लंबी बातचीत करने पर यह भी स्पष्ट हुआ कि वह अनुमोदित मात्रा से अधिक मात्रा में दवा का प्रयोग कर रहा है। इस उम्मीद में कि उसकी मर्दाना शक्ति बहुत अधिक बढ़ जाएगी और वह अच्छे से परफॉर्म कर सकेगा।

 अब सारी समस्या का समाधान दिखने लगा था।

 मैंने वैद्य जी को धन्यवाद दिया और उस युवक से कहा कि वह एक हफ्ते तक इस दवा का प्रयोग नहीं करें। 

उसके बाद इंटरकोर्स करें और मुझे बताए कि क्या अब भी इस तरह के लक्षण आ रहे हैं। वह इस बात के लिए तैयार हो गया।

 एक हफ्ते तो नहीं पर 10 दिनों के बाद उसने इंटरकोर्स किया तब डॉक्टरों की पूरी टीम उनके साथ थी। आधे घंटे के बाद सब सतर्क हो गए पर किसी भी तरह के लक्षण नहीं आए।

 डॉक्टरों की टीम ने 6 घंटे तक इंतजार किया। जब उन्हें इस बात की तसल्ली हो गई कि अब उस तरह के बिल्कुल भी लक्षण नहीं आ रहे हैं तो उन्होंने मुझे फोन कर बताया कि समस्या का पूरी तरह से समाधान हो गया है।

 बाद में डायरेक्टर साहब ने मुझसे पूछा कि क्या आप इस पूरे मामले को वैज्ञानिक तरीके से समझा सकते हैं तो मैंने उन्हें बताया कि उत्तर प्रदेश के वैद्य इस फार्मूले में द्रोण मूसली नामक एक वनस्पति का प्रयोग कर रहे थे। इस वनस्पति का यह एक विशेष गुण है कि जब इसे शरीर के अंदर लिया जाता है तो अच्छी मात्रा में यह प्रयोग करने वाले व्यक्ति के सीमेन में भी उपस्थित रहती है। 

जब वह व्यक्ति इंटरकोर्स करता है तो सीमेन के माध्यम से यह फीमेल जेनिटल ऑर्गन में पहुंच जाती है और वजाइना से सीधे ही अवशोषित हो जाता है और यही कारण है कि पुरुष साथी द्वारा इस्तेमाल की गई दवा से महिला साथी की तबीयत बिगड़ जाती है। 

मैंने यह भी बताया कि भारत के पारंपरिक चिकित्सक ऐसी बहुत सारी दवाओं के बारे में जानते हैं और वे पहले से ही प्रयोग करने वाले को कह देते हैं कि इंटरकोर्स करने से पहले ऐसी दवाओं का प्रयोग पूरी तरह से रोक दिया जाए ताकि इस बात की बिल्कुल भी संभावना न रहे कि वह महिला साथी के शरीर में प्रवेश कर सके। 

डायरेक्टर साहब बड़ी रुचि से पूरी बात सुनते रहे फिर उन्होंने बताया कि उन्होंने ऐसे बहुत से मामलों के बारे में सुना है और अपने मेडिकल साहित्य में पढ़ा है पर उनके सामने कभी ऐसा कोई मामला नहीं आया। 

उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि बहुत-सी आधुनिक दवाएं भी इस माध्यम से महिला साथी के शरीर में पहुंच जाती हैं और विभिन्न तरह के लक्षण उत्पन्न करती है। 

इस पर ज्यादा अनुसंधान नहीं हुए हैं इसलिए आधुनिक विज्ञान के पास इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है पर ऐसा होता जरूर है।

 मैंने युवती के पति को साफ शब्दों में निर्देश दिया कि वह विधि अनुसार ही इस दवा का प्रयोग करे। 

अगर वह विधि अनुसार इस दवा का प्रयोग नहीं करेगा तो फिर से वैसे ही लक्षण आएंगे और उसकी पत्नी को अनावश्यक की गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। 

उसने मुझे आश्वस्त किया कि वह इस बात का हमेशा ध्यान रखेगा। 

इस तरह भारतीय पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान की सहायता से एक और जटिल मामले का समाधान हो गया। 


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