Consultation in Corona Period-225

Consultation in Corona Period-225 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया "मुंबई एयरपोर्ट पर हमारा ड्राइवर आपको ले लेगा। आप गाड़ी से पुणे आ जाइएगा फिर वहां से हम सब एक बड़ी गाड़ी में फार्म हाउस की तरफ चलेंगे जहां परिवार के सभी सदस्य मौजूद रहेंगे। आपके रुकने की व्यवस्था फार्म हाउस में ही की है। कल सुबह हम आपको वापस मुंबई एयरपोर्ट पर छोड़ देंगे जहां से आप अपनी वापसी की यात्रा कर सकेंगे।" पुणे के एक सज्जन ने जब मुझे सारी व्यवस्था के बारे में बताया तो मैं पुणे जाने की तैयारी करने लगा। इन सज्जन के बड़े परिवार में 18 से अधिक सदस्य थे जिन्हें अलग-अलग स्वास्थ समस्याएं थी और वे चाहते थे कि मैं एक बार पुणे आ जाऊं और सभी की स्वास्थ समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त करूं और उनकी जांच के बाद यह बता सकूं कि उनके लिए कौन सा फंक्शनल फूड सही रहेगा। नियत समय पर सब कुछ योजना के अनुसार हुआ और मैं सुबह दस बजे तक उनके फार्महाउस पहुंच गया। वहां नाश्ते की व्यवस्था थी पर उन्हें मालूम था कि यह मेरे भोजन का समय है इसीलिए उन्होंने भोजन की व्यवस्था की थी। भोजन बड़ा ही स्वादिष्ट था। मैंने इतने स्वादिष्ट भोजन के लिए उन्हें धन्यवाद दिया और फिर उनसे कहा कि मुझे आधे घंटे का समय दीजिए। उसके बाद फिर मैं परिवार के बीच उपस्थित हो जाऊंगा। भोजन करने के कुछ देर बाद ही मेरी तबीयत बिगड़ने लगी और मुझे बदहवासी होने लगी। मैंने पहले हस्त मुद्राओं का सहारा लिया पर बात बनती न देख कर मैंने फॉर्म में टहलने का विचार बनाया और बाहर निकल पड़ा। बाहर निकलने का एक और उद्देश्य था। मुझे एक वनस्पति की तलाश थी जिसकी पत्तियां चबाने से मुझे यह पता चल जाता कि शरीर के किस अंग में गड़बड़ी होने के कारण इस तरह के लक्षण आ रहे हैं। थोड़ी दूर चलने पर ही खेत में एक वनस्पति दिख गई जिसे कि छत्तीसगढ़ में मीठी पत्ती के नाम से जाना जाता है और कड़वे काढ़ो को मीठा बनाने के लिए पारंपरिक चिकित्सक इस वनस्पति को अपने दैनिक जीवन में काम में लाते हैं। जब मैंने मीठी पत्ती की कुछ पत्तियों को चबाया तो उनका स्वाद मीठा न लगकर कड़वा लगा और मुझे समझ में आ गया है कि लीवर की समस्या के कारण मुझे इस तरह के लक्षण आ रहे हैं। मुझे लीवर की पहले से किसी भी तरह की समस्या नहीं थी इसीलिए इस बात का यकीन हुआ कि खाने में ही कुछ गड़बड़ थी जिसका अचानक से इतनी तेजी से प्रभाव हुआ कि शरीर की व्यवस्था बिगड़ गई। मैं अपने कमरे में वापस आया और मैंने आवश्यक दवाई ली और फिर परिवार के पास पहुंच गया। मैं अपने साथ बहुत सी पत्तियां लेकर आया था और फिर मैंने परिवार के सदस्यों से कहा कि वे मेरी तरह ही इन पत्तियों को चबाकर देखें और मुझे बताएं कि इनका स्वाद कैसा लग रहा है। 18 में से 10 सदस्यों को यह पत्ती कड़वी लगी अर्थात वे सभी लीवर की किसी समस्या से परेशान थे। जब मैंने इसका राज खोला तो उन्होंने कहा कि हमने आपको इसीलिए तो बुलाया है कि 18 लोगों के परिवार में हम 10 लोगों को लीवर की समस्या है। डॉक्टर कहते हैं कि अनुवांशिक समस्या है और इसकी किसी भी तरह से चिकित्सा नहीं की जा सकती है। हमें पहले से ही पता है कि हम लीवर के रोगों से परेशान हैं। मैंने जड़ी बूटियों के माध्यम से उन सभी का परीक्षण किया और पाया कि उनकी बात सही है। उन सभी को लीवर की समस्या है। उन सभी को हेपिटाइटिस जैसे लक्षण आते हैं पर रोग का कारण उन्हें नहीं पता चल पाता है। उस समय तक मेरी तबीयत में सुधार होने लगा था और मैंने निश्चय किया कि शाम का भोजन मैं यहां नहीं करूंगा और हो सकेगा तो एक समय उपवास रखने की कोशिश करूंगा। उनके लक्षणों के आधार पर मैंने उन्हें कई तरह के फंक्शनल फूड के बारे में जानकारी दी। इसके बाद उनके खाने का समय हो गया और पूरा परिवार खाने के लिए बैठ गया। मेरा भोजन तो पहले ही हो चुका था इसलिए मैंने उनका साथ देने का निर्णय किया और उनके साथ ही उसी कक्ष में बैठ गया। परिवार के मुखिया ने बातों ही बातों में बताया कि उन्होंने मेरे द्वारा एग्रोहोम्योपैथी पर लिखी एक पुस्तक कुछ साल पहले खरीदी थी। उस पुस्तक में हजारों पन्ने थे और विस्तार से एग्रोहोम्योपैथी के मेरे प्रयोगों के बारे में लिखा हुआ था। उन सज्जन ने आगे बताया कि इस पुस्तक के आधार पर उन्होंने अपने फॉर्म में कई तरह के प्रयोग आरंभ किए। पहले होम्योपैथी की दवाओं का प्रयोग कीट नियंत्रण के लिए किया फिर उसके बाद रोगों के नियंत्रण के लिए। उसके बाद जब उन्हें होम्योपैथी दवाओं के असर पर पूरी तरह से विश्वास हो गया तो उन्होंने ऐसी होम्योपैथी दवाओं का प्रयोग करना शुरू किया जिससे कि फसल के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। उनके प्रयोग गमलों तक सीमित थे पर सफलता मिलती देखकर उन्होंने खेतों में बड़ी मात्रा में इन दवाओं का प्रयोग करना शुरू किया। उन्होंने बड़े पैमाने पर टमाटर की खेती शुरू की और टमाटर की फसल में वृद्धि के लिए एग्रोहोम्योपैथी का सहारा लिया। 1 एकड़ से शुरुआत करके वे कई एकड़ तक पहुंच गए और अब 10 एकड़ में टमाटर की खेती हो रही थी जिसमें कि होम्योपैथिक दवाओं का प्रयोग किया जा रहा था। उन्होंने खुलासा किया कि आज भोजन में आपने जिस चटनी का प्रयोग किया उसमें इसी तकनीक से उगाए गए टमाटर का प्रयोग किया गया था। हम परिवार वाले और हमारे आसपास के लोग अब हमारे फॉर्म से ही टमाटर खरीदते हैं और उसका उपयोग करते हैं। मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने इन प्रयोगों के माध्यम से उगाए गए टमाटरों की कहीं जांच करवाई है क्योंकि जब भी नए प्रयोग किए जाते हैं तो बाहर से तो सब सही दिखाई पड़ता है यानी फसल में वृद्धि हो जाती है। अधिक उत्पादन होने लग जाता है पर वास्तव में उपयोग किये जा रहे आदानों का फसल पर क्या प्रभाव पड़ता है यह जांचना भी जरूरी है। मैंने एग्रोहोम्योपैथी की उस पुस्तक में यह साफ-साफ लिखा है कि इस पद्धति से उगाई गई फसल की गुणवत्ता की जांच करना जरूरी है और यह भी जानना जरूरी है कि क्या ऐसी फसल की दूसरी दवाओं और खानपान की सामग्रियों के साथ किसी प्रकार की सकारात्मक या नकारात्मक प्रतिक्रिया होती है या नहीं? क्या आप ने यह कदम उठाया? मेरे प्रश्न पर उन सज्जन ने कहा कि होम्योपैथिक दवाओं से तो किसी तरह का नुकसान नहीं होता ऐसा सब लोग जानते हैं इसीलिए हम लोगों ने सब कुछ जानते हुए भी इस तरह का परीक्षण नहीं कराया और पिछले कुछ सालों से हम टमाटर का लगातार प्रयोग कर रहे हैं चटनी के रूप में भी और साल भर सॉस के रूप में भी पर हमें किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं हुई। मैंने उनसे पूछा कि आपने उन्हीं होम्योपैथिक दवाओं का प्रयोग किया जिसके बारे में मेरी पुस्तक में लिखा हुआ है तब उन्होंने कहा कि उन्होंने मेरी पुस्तक से 3 दवाओं को चुना। उसमें 7 प्रकार की दूसरी दवायें मिलाई और फिर उनका प्रयोग टमाटर की फसल पर किया। इस पर मैंने उनसे प्रश्न किया कि क्या वे इसमें ब्रायोनिया का प्रयोग कर रहे हैं सबसे अधिक मात्रा में तब उन्होंने कहा कि हां, पर यह बात आपको कहां से पता चली क्योंकि यह हमारा सीक्रेट फार्मूला है। हमने इसके बारे में किसी को भी जानकारी नहीं दी और इस बारे में कहीं उल्लेख भी नहीं किया। मैंने उन्हें खुलासा करते हुए बताया कि जब ब्रायोनिया का प्रयोग दूसरी दवाओं के साथ या अकेले ही किसी फसल पर किया जाता है विशेषकर सब्जियों की फसलों में तब उत्पाद में कई तरह के विकार आ जाते हैं। मैंने इस बारे में उन पुस्तकों में लिखा है जो कि इन पर आधारित है। मुझे लगता है कि आप सभी को जो लीवर की समस्या हो रही है उसका मूल कारण यही है। मैंने उन्हें यह भी बताया कि सुबह का भोजन करने के बाद मुझे भी लीवर की समस्या हुई पर वह थोड़े से उपाय के बाद ठीक हो गई इसलिए मैंने निश्चय किया है कि मैं शाम का भोजन आपके यहां नहीं करूंगा। मेरी बात सुनकर वे सभी आश्चर्य में पड़ गए। मैंने उनसे कहा कि आप यह बताएं कि आपके परिवार के 18 सदस्यों में से केवल 10 सदस्य ही फॉर्म में उगे हुए टमाटर का प्रयोग करते हैं और शेष सदस्य इसका उपयोग नहीं करते हैं? क्या यह बात सही है तब उन्होंने पुष्टि की कि हां, हम 10 लोग ही फार्म के टमाटर का उपयोग करते हैं। मैंने उनसे कहा कि आप टमाटर का उपयोग करना पूरी तरह से रोक दें तो आपके परिवार में जो लीवर की समस्या है उसका पूरी तरह से समाधान हो जाएगा। इसके लिए किसी प्रकार की कोई दवा देने की जरूरत नहीं है न ही किसी प्रकार के फंक्शनल फूड की। अगर आपको विश्वास न हो तो आज रात को ही आप इसका प्रयोग न करें तो आपको सुबह तक कुछ असर दिखना शुरू हो जाएगा। आप यह भी पता कर सकते हैं कि जिन लोगों को आप फार्म का टमाटर देते हैं उन्हें भी लीवर की समस्या है कि नहीं। मुझे विश्वास है कि उनमें से ज्यादातर लोग इसी तरह के लक्षणों से प्रभावित होंगे। यह बात कह कर मैं अपने कमरे में वापस आ गया। उनका परिवार आपस में चर्चा करने लगा। फिर शाम को जब चाय के वक्त परिवार फिर से एकत्र हुआ तो उन्होंने अपना फैसला सुनाया कि वे अब टमाटर का प्रयोग नहीं करेंगे पर मैंने उन्हें कहा कि आप सुबह तक का इंतजार करिए। आपको जब असर दिखने लगेगा तब आपको टमाटर का त्याग करने में ज्यादा आसानी होगी। दूसरे दिन सुबह की मेरी वापसी की यात्रा टल गई और यह निश्चय हुआ कि 2 दिनों के बाद मेरी वहां से रवानगी होगी। जब दूसरे दिन सुबह उन्हें लीवर के लक्षण नहीं आए तो उन्हें विश्वास होने लगा कि टमाटर के कारण ही ऐसा हो रहा था। उन्होंने कहा कि अभी 10 एकड़ में टमाटर की नई फसल लगी हुई है। क्या इसमें किसी तरह के दूसरे छिड़काव का प्रयोग करने से इस दोषपूर्ण फसल को बचाया जा सकता है तब मैंने उनसे कहा कि मेरे पास ऐसा कोई उपाय नहीं है जिनका प्रयोग करने से होम्योपैथिक दवा का असर इन फसल से हट जाए। बेहतर उपाय यही है कि इस 10 एकड़ की फसल को नष्ट कर दिया जाए और अगली बार जब फसल लगाई जाए तो इस तरह के मनमाने प्रयोग न किये जाएं। 2 दिनों के बाद जब मैं वापस लौटने लगा तब तक परिवार के सभी सदस्यों की स्थिति सामान्य हो गई थी। सभी प्रसन्न थे। मैंने उन्हें धन्यवाद किया जो उन्होंने मुझे आमंत्रित किया और समस्या की जड़ का पता चल गया। यदि वे मुझसे फोन पर परामर्श लेते तो शायद ही मैं जान पाता कि उन्हें इस तरह की समस्या क्यों हो रही है। एक बार किसी समस्या कारण मिल जाने पर उसका समाधान बहुत आसान हो जाता है जैसा कि इस मामले में हुआ। सर्वाधिकार सुरक्षित

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