Consultation in Corona Period-220

Consultation in Corona Period-220 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया "मित्र मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ। गाजर घास मामले में तुम्हारी भूमिका मुझे आज तक याद है। फिर भी मैं तुम्हारी मदद करूंगा और कैंसर की अंतिम अवस्था में पहुंचे तुम्हारे बेटे के लिए जो भी मदद संभव होगी वह करूंगा।" मैं अपने कॉलेज के मित्र से बात कर रहा था जिसके बेटे को पेट का कैंसर हुआ था और अब यह लाइलाज हो चुका था। कुछ वर्षों पहले मुझे उत्तर भारत की एक कंपनी ने अपने फार्म में गाजर घास के नियंत्रण के लिए आमंत्रित किया था। उनके 300 एकड़ से भी अधिक बड़े फॉर्म में गाजर घास का कब्जा था और उसके कारण किसी भी तरह की वनस्पति अच्छे से नहीं उग पा रही थी। वे इसका प्रभावी प्रबंधन करना चाहते थे ताकि समस्या का पूरी तरह से अंत हो जाए। गाजर घास पर मेरे शोध कार्यों को देखकर उन्होंने मुझे आमंत्रित किया था। जब मैंने उनके फॉर्म का सर्वेक्षण किया तो मुझे यह समस्या बहुत ही भयावह नजर आई क्योंकि गाजर घास बहुत ज्यादा फैली हुई थी और उसे नियंत्रित करना बहुत कठिन था। उनके फॉर्म से लौटते वक्त जब मैं एक होटल में रुका तो वहां मेरी मुलाकात मेरे बचपन के मित्र से हो गई जो कि कॉलेज में मेरे साथ पढ़ता था। बातों ही बातों में मैंने उसके शहर में आने का कारण उसे बताया। शायद उसे पहले से मेरे आने की खबर थी और मेरे आने के उद्देश्य के बारे में भी और वह होटल में जानबूझकर मुझसे मिलने आया था। उसने बताया कि 300 एकड़ में गाजर घास का नियंत्रण मतलब करोड़ों का प्रोजेक्ट है और वह चाहता है कि उसकी कंपनी के बने एग्रो केमिकल का उपयोग इस फार्म में किया जाए। इसके लिए जितना भी कमीशन मुझे चाहिए वह देने के लिए तैयार था पर वह चाहता था कि उसके केमिकल के द्वारा ही गाजर घास का नियंत्रण हो। मैंने उससे साफ शब्दों में कहा कि मैं गाजर घास के रासायनिक नियंत्रण के पक्ष में नहीं हूं और जिस एग्रोकेमिकल की बात वह कर रहा है वह तो पर्यावरण के लिए बहुत खतरनाक है। न केवल भूमिगत जल के लिए बल्कि उस स्थान पर काम करने वाले लोगों के लिए भी इसलिए मैं इस केमिकल का उपयोग करने के पक्ष में नहीं हूं। उसने मुझे याद दिलाते हुए कहा कि यह मत भूलना कि हम बचपन के मित्र हैं और मित्र को मित्र की हमेशा मदद करनी चाहिए। मैंने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपने कार्य में जुट गया। कुछ दिनों बाद स्थानीय अखबारों ने यह खबर छापी कि छत्तीसगढ़ के एक वैज्ञानिक आए हैं जो कि ऐसे रसायन का प्रयोग कर रहे हैं 300 एकड़ में जिससे कि तरह तरह के कैंसर हो सकते हैं। जब इसकी पतासाजी की गई तो पता चला कि मेरे उस मित्र ने यह खबर छपवाई थी क्योंकि उसे डर था कि इतने बड़े क्षेत्र में मैं किसी और कंपनी की सहायता से एग्रोकेमिकल का छिड़काव करना चाहता हूं इसलिए मुझे बदनाम करने के लिए उसने ये खबरें छपवाई थी। मैंने अपने लीगल एडवाइजर से सलाह ली और फिर सभी अखबारों को एक नोटिस भेजा जिन्होंने जल्दी ही क्षमा मांग ली और सारे राज खोल दिए। उसके बाद उस मित्र से किसी भी प्रकार का संबंध नहीं रहा और न ही किसी तरह का संपर्क रहा। जिस कंपनी के फार्म में मैंने गाजर घास प्रबंधन का काम किया मैंने उन्हें समझाया कि आप गाजर घास को रसायनों से नियंत्रित करने की बजाय गाजर घास के उपयोग की ओर ध्यान दें। इससे आपको अतिरिक्त आय होगी और मेरी फीस का खर्च भी उसी में से निकल जाएगा। मैंने उन्हें गाजर घास के बहुत सारे उपयोग बताए। न केवल खाद बनाना सिखाया बल्कि बहुत सी ऐसी कंपनियों के पते दिए जो कि गाजर घास पर शोध कर रही है विशेषकर उसकी जड़ों पर ताकि उनका उपयोग भविष्य में जीवनदायिनी औषधियों के रूप में किया जा सके। इन कंपनियों को लगातार गाजर घास की जड़ों की आवश्यकता होती है। जब गाजर घास से प्रभावित कंपनी के लोगों ने गाजर घास की जड़ों की आपूर्ति आरंभ की तो गाजर घास अपने आप ही उस क्षेत्र से खत्म होने लगी। जहां उन्होंने इसके लिए करोड़ों रुपए का बजट रखा था वहां कुछ लाख में ही पूरा प्रोजेक्ट निपट गया और उन्हें गाजर घास से पूरी तरह से मुक्ति मिल गई। उन्होंने एक हिस्से में गाजर घास को बचा कर रखा ताकि वे उससे धन अर्जन करना जारी रख सकें अर्थात जिस वनस्पति को नष्ट करने के लिए वे करोड़ों रुपए खर्च करने के लिए तैयार थे अब वे उसी वनस्पति की खेती कर रहे थे और उससे आमदनी अर्जित कर रहे थे। प्रोजेक्ट खत्म होने के बाद मैं वापस रायपुर आ गया और अपने कार्यों में जुट गया। कुछ सालों के बाद उस मित्र ने फिर से संपर्क किया और गिड़गिड़ाते हुए कहा कि उसका बेटा कैंसर से प्रभावित है और किसी भी तरह से उसे लाभ नहीं हो रहा है इसलिए वह एक बार मुझसे परामर्श लेना चाहता है। मैंने तुरंत ही उसे बुलवा लिया और जब जड़ी बूटियों की सहायता से उसके बेटे का परीक्षण किया तो समस्या का कारण पता चलने लगा। मैंने उससे पूछा कि क्या जिस एग्रोकेमिकल का निर्माण उसकी कंपनी करती है उसका गोडाउन उसके निवास स्थान के आसपास है तब उसने बताया कि गोडाउन के ऊपर ही उसने अपना घर बनाया है ताकि पूरी तरह से निगरानी रखी जा सके। मैंने उसे बताया कि गाजर घास के लिए जिस एग्रोकेमिकल की बात वह कर रहा था वह एग्रो केमिकल लंबे समय में कई तरह के कैंसर रोग के लिए उत्तरदाई है इसलिए इसका प्रयोग बहुत कम किया जाता है और बड़े क्षेत्र में नहीं किया जाता है। इससे बराबर दूरी बनाकर रखनी होती है और इसके प्रयोग के बाद अपने शरीर को पूरी तरह से साफ करना होता है। मैंने उससे पूछा कि क्या तुम्हारा बेटा भी इसी उद्योग में है तब उसने कहा कि हां अब मेरे बाद मेरा बेटा ही पूरे कारोबार को संभालता है और इस एग्रोकेमिकल के कारोबार को भी। मैंने उसे खुलासा करते हुए बताया कि तुम्हारे बेटे के कैंसर का कारण इसी एग्रोकेमिकल का अधिक मात्रा में तुम्हारे बेटे के शरीर में उपस्थित होना है। शरीर अशुद्ध हो चुका है इसलिए कैंसर जैसे घातक रोगों से लड़ने के लिए सक्षम नहीं है। पहले इस अशुद्धि को शरीर से बाहर निकालना होगा। उसके बाद ही शरीर कैंसर से लड़ पाएगा और हो सकता है कि वह कैंसर पर जल्दी ही विजय पा ले। मैंने उसे यह भी बताया कि भारत के पारंपरिक चिकित्सक 3 साल के एक schedule का प्रयोग करते हैं। इसमें इस तरह के कैंसर जो कि किसी रसायन के कारण होते हैं, के लिए उपयोगी फंक्शनल फूड्स का प्रयोग किया जाता है। इनका लगातार प्रयोग करने से शरीर शुद्ध हो जाता है और सभी तरह के रसायन शरीर से बाहर निकल जाते हैं। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे बढ़ती जाती है और वह कैंसर जैसे रोगों को समाप्त करने में सक्षम हो जाता है। यदि वह चाहे तो मैं 3 साल का वह schedule उसे दे सकता हूं। अब जब सभी ओर से रास्ते बंद हो चुके हैं और उसके पास एक भी दवा नहीं है तब मुझे लगता है कि बिना किसी ड्रग इंटरेक्शन के वह इस schedule को बड़े अच्छे से अपना पाएगा और उसे जल्दी ही लाभ होगा। उसने धन्यवाद दिया और कहा कि वह जिंदगी भर आभारी रहेगा। उसने जोर दिया कि मैं उससे फीस लूं या फंक्शनल फूड्स के लिए किसी तरह का खर्च लूँ पर मैंने उसे याद दिलाया कि यह मत भूलना कि हम बचपन के मित्र हैं और मित्र को मित्र की हमेशा मदद करनी चाहिए। सर्वाधिकार सुरक्षित

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