Consultation in Corona Period-67

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"मेरी पत्नी का शरीर पूरे दिन बुरी तरह से कांपता रहता है। 


हमने कोलकाता के एक होम्योपैथी डॉक्टर की सेवाएं ली तब उन्होंने कहा कि आप रायपुर में पंकज अवधिया से संपर्क करें। वह इस बारे में कुछ मदद कर सकते हैं इसलिए हमने आपसे संपर्क किया है। 


क्या हमें रायपुर आना होगा या आप हमें फोन पर ही पूरी जानकारी देंगे?"


 असम से एक सज्जन का ऐसा फोन आया तो मैंने उनसे कहा कि आप पहले पूरी रिपोर्ट भेजिए। फिर अपॉइंटमेंट लेकर मुझसे बात करिए। 


अभी सीधे रायपुर आने की जरूरत नहीं है।


 उन्होंने जल्दी ही रिपोर्ट भेज दी और फिर फोन पर समय लेकर मुझे बताया कि उनकी पत्नी को  Trigeminal Neuralgia की समस्या थी जो कि बहुत अधिक उग्र हो गई थी।


 उन्होंने पहले आधुनिक दवाओं को आज़माया पर किसी भी प्रकार की सफलता नहीं मिलने पर उन्होंने पारंपरिक चिकित्सा का सहारा लिया और उड़ीसा के एक पारंपरिक चिकित्सक से दवाई लेनी शुरू की। 


पारंपरिक चिकित्सक ने 6 महीने की दवाई दी और 15 दिन में ही उससे लाभ होने लगा। 


दर्द पूरी तरह से समाप्त हो गया लेकिन एक नई समस्या शुरू हो गई।


 अब मेरी पत्नी को पूरे शरीर में कंपन होती रहती है जिसके कारण वह सदा बिस्तर में पड़ी रहती है।


 जब हमने दिल्ली के एक अस्पताल में उसकी जांच कराई तो हमें बताया गया कि यह पार्किंसन रोग का एक रूप है और इसकी कोई चिकित्सा नहीं है।


 उन्होंने बहुत सारी दवायें दी जिन्हें उनकी पत्नी ले रही थी। इन दवाओं से अधिक लाभ न होता देखकर उन्होंने होम्योपैथी दवा शुरू की। 


कोलकाता के डॉक्टर बैनर्जी से दवा लेनी शुरू की। जब उस दवा से भी फायदा नहीं हुआ तो डॉक्टर बैनर्जी ने सुझाया कि रायपुर में वह मुझसे मिले।


 मैंने असम के सज्जन को बताया कि मैं चिकित्सक नहीं हूं पर अपने अनुभव के आधार पर मैं उनकी मदद कर सकता हूं।


 मैंने उनसे यह भी कहा कि वह चाहे तो मुझे अपने पारंपरिक चिकित्सक से बात करा सकते हैं ताकि मैं यह जान सकूँ कि कहीं कंपन की समस्या पारंपरिक चिकित्सक की दवा के कारण तो नहीं हो रही है।


जब मैंने उनसे बात की तो वे पहचान के निकले। 


उनकी दवाओं के बारे में मैं पिछले 30 वर्षों से जानता हूं और कभी भी ऐसा नहीं सुना कि उनकी दवाओं से किसी को किसी प्रकार का नुकसान हुआ हो।


 मैंने असम के सज्जन को रोग के लक्षण के अनुसार उपयोगी मेडिसिनल राइस सुझाया जो कि उन्हें असम में आसानी से मिल गया।


इस तरह कई महीने बीत गए पर उनकी समस्या पूरी तरह से ठीक नहीं हुई।


उन्होंने निश्चय किया कि वह अपनी पत्नी को लेकर रायपुर आयेंगे और मुझसे मुलाकात करेंगे।


 मैंने उन्हें समय दे दिया।


उनकी पत्नी से पूछा कि कंपन किस समय अधिक होती है सुबह या शाम को या किसी विशेष समय में?


 उन्होंने बताया कि सुबह और शाम को कंपन अधिक होती है और जब वे पारंपरिक चिकित्सक की दवा लेती हैं उस समय यह कंपन बढ़ जाती है।


मैंने उन्हें सलाह दी कि वे पारंपरिक चिकित्सक की दवा को कुछ समय तक बंद करके देखे।


 हो सकता है कि इससे कंपन होना बंद हो जाए।


 उन्होंने बताया कि उन्होंने ऐसा करके देखा है पर दवा बंद करते ही उनका Trigeminal Neuralgia बहुत अधिक बढ़ जाता है और इस दर्द को वह सहन नहीं कर पाती हैं।


 मैंने उन्हें रायपुर में ही दो-तीन दिन तक रुकने को कहा। शाम को उनके पतिदेव को अपने पास बुलाया और विस्तार से सारी बातें पूछनी शुरू की।


 मैंने उनसे पूछा कि क्या पारंपरिक चिकित्सक ने दवा तैयार करके दी थी या उन्होंने जड़ी बूटियाँ दी थी जिससे आपने दवा तैयार की?


 उन्होंने बताया कि पारंपरिक चिकित्सक ने दवा तैयार करके दी थी 6 महीनों की और कहा था कि उसमे मंथा नामक एक बूटी नहीं है। उस समय वह उनके पास उपलब्ध नहीं थी।


 उन्होंने कहा था कि भुवनेश्वर की एक दुकान में जाकर इस बूटी को खरीद ले और फिर उसे फार्मूले में मिला लें।


 पतिदेव ने उनकी बात मानी पर भुवनेश्वर में उनकी ट्रेन का समय हो गया था इसीलिए उन्होंने असम में अपनी पहचान के जड़ी बूटी वाले को फोन किया और पूछा कि क्या उसके पास मंथा नामक बूटी उपलब्ध है?


 जब असम के उस जड़ी बूटी वाले ने कहा कि हाँ मंथा उसके पास उपलब्ध है तो उन्होंने भुनेश्वर से इसे न लेने का निश्चय किया और सीधे ट्रेन में बैठ गए।


 असम पहुंचकर उन्होंने स्थानीय दुकान से मंथा नामक बूटी ली और उसको विधिपूर्वक फार्मूले में मिला लिया। 


अब मुझे कुछ सूत्र मिलना शुरू हो गया था।


 मैंने उनसे कहा कि आप वापस असम जाएं और वहां से मुझे असम से ली गई मंथा बूटी का सैंपल भेजें।


 शायद इससे कुछ समस्या का समाधान हो सके। उन्होंने वापस जाते ही मंथा बूटी का सैंपल मुझे भेजा।


 जब मैंने उस बूटी को मुंह में रखा तो सारी चीजें स्पष्ट हो गई।


 जब पतिदेव ने मुझसे फोन पर संपर्क किया तो मैंने उन्हें विस्तार से बताया कि उड़ीसा में मिलने वाली मंथा बूटी असम में मिलने वाली मंथा बूटी से पूरी तरह से अलग है।


 उड़ीसा में मिलने वाली मंथा बूटी एक पौधे के रूप में होती है जो कि पहाड़ों में मिलती है जबकि असम में जिसे मंथा कहा जाता है वह वास्तव में एक वृक्ष है जिस की छाल का प्रयोग किया जाता है।


 यह छाल बहुत जहरीली होती है और असम के लोग इसका प्रयोग जहरीले तीर बनाने के लिए करते हैं।


 जब यह जहरीला तीर किसी को लगता है तो उसके शरीर में उसी तरह कंपन होने लग जाती है जैसी कि आपकी पत्नी को हो रही है।


 मैंने उन्हें सलाह दी कि वह अभी वाला फार्मूला फेंक दें और फिर पारंपरिक चिकित्सक के पास जाकर नया फार्मूला ले। 


उसका प्रयोग करें और पारंपरिक चिकित्सक से कहे कि वे उड़ीसा की मंथा का ही प्रयोग उस फार्मूले में करें।


 मुझे यकीन है कि इससे आपकी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाएगा।


 यह उनके लिए कठिन कार्य था पर उन्होंने इसे करने का निश्चय किया।


 वे फिर से उड़ीसा के पारंपरिक चिकित्सक के पास गए और नया फार्मूला लेकर आए। 


जब इस फार्मूले को उन्होंने अपनी पत्नी को दिया तो पत्नी का Trigeminal Neuralgia का दर्द जाता रहा और किसी तरह के कंपन की शिकायत नहीं रही।


 उन्होंने धन्यवाद दिया।


 मैंने उनसे कहा कि अब उन्हें दिल्ली की दवाओं की जरूरत नहीं है क्योंकि पार्किंसन जैसे लक्षण जिसके कारण आ रहे थे अब उसे नहीं लिया जा रहा है।


 जड़ी बूटियों के स्थानीय नाम में इसी तरह की समस्याएं आती है और कई बार तो जान पर भी बन आती है।


 सर्वाधिकार सुरक्षित


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