Consultation in Corona Period-53

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया



"जब उसने नंगेपन और अश्लीलता की सारी हदें पार कर दी तो हमने मजबूर होकर उसे पागलखाने में भर्ती कर दिया।" 


एक 30 वर्षीय युवक के पिता मुझसे फोन पर बात कर रहे थे।


 वे सज्जन उस युवक की बात बता रहे थे जो कि बहुत ही बुरी स्थिति में था। 


युवक को कैंसर था और लाइलाज हो चुका था। एक स्थानीय वैद्य से उसकी दवा चल रही थी। 


अचानक ही उसके स्वभाव में बहुत अधिक परिवर्तन आ गया और वह अश्लील हरकतें करने लगा। 


दिनभर शरीर में एक भी कपड़े का उपयोग नहीं करना। उल्टी पुल्टी बातें करना। अश्लील हरकतें करना जैसे कि कोई मनोरोगी हो।


 अपनी पत्नी के सामने भी। और उसके लाख समझाने के बाद भी युवक यह सब करता रहा तो मोहल्ले के लोगों ने आपत्ति की।


हमने पहले उसे मनोचिकित्सक को दिखाया और घर में उसकी दवा चलती रही पर जब स्थिति बेकाबू हो गई तो हमने मजबूरी में उसे पागलखाने में भर्ती करा दिया। 


वहां भी उसकी स्थिति में किसी भी प्रकार का सुधार नहीं है। उसे बहुत तेज दवाई दी जा रही है पर फिर भी जैसे ही वह होश में आता है फिर से वैसी ही हरकत करने लग जाता है।


 मनोचिकित्सक कहते हैं कि लाइलाज कैंसर होने के कारण उस युवक की मानसिक स्थिति बिगड़ गई है।


 उसे अच्छी नींद की आवश्यकता है इसलिए वे नींद की तरह तरह की दवाओं का प्रयोग कर रहे हैं पर अभी तक उनको सफलता नहीं मिली है।


 मैंने युवक के पिता को समझाया कि वे पागलखाने शब्द का प्रयोग नहीं करें बल्कि मनो चिकित्सालय शब्द का प्रयोग करें और अपने लड़के की पूरी रिपोर्ट मुझे भेजें। मैं मदद करने की कोशिश करूंगा। 


जब मुझे रिपोर्ट मिल गई और मैंने उनका अध्ययन कर लिया तब मैंने उन सज्जन से कहा कि मेरी बात वैद्य जी से करवाएं ताकि पता चल सके कि वे किन किन दवाओं का प्रयोग कर रहे हैं और कहीं इन दवाओं के कारण ही तो उसी युवक की स्थिति ऐसी नहीं हो रही है।


 वैद्य जी ने बताया कि वे पांच जड़ी बूटियों वाला एक साधारण सा नुस्खा उपयोग कर रहे हैं जो कि कैंसर को फैलने से रोकता है।


 उन्होंने जड़ी बूटियों के नाम बताए तो उनमे किसी भी प्रकार का कोई दोष नजर नहीं आया। 


उन्होंने यह भी बताया कि इन जड़ी-बूटियों को गुड़हल के फूल से तैयार किये गए गुलकंद के साथ दिया जाता है क्योंकि तासीर में ये जड़ी बूटियां बहुत गर्म है।


 वैद्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि युवक को आ रहे लक्षण उनकी दवाओं के कारण नहीं हैं। संभवत: वह कैंसर के कारण अपना दिमागी संतुलन खो बैठा है। 


उसके कारण ही इतने विचित्र लक्षण आ रहे हैं। 


युवक के पिता ने बताया कि इसके अलावा और किसी भी प्रकार की दवा उस युवक को नहीं दी जा रही है। 


उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने झाड़-फूंक का सहारा लिया और इससे भी किसी तरह का कोई लाभ नहीं हुआ। 


मनो चिकित्सालय में भी युवक बहुत गंदी तरह से रहता है और उसका पूरा शरीर मूत्र और मल से सना हुआ रहता है। 


अस्पताल में उसकी दो बार सफाई होती है पर फिर से वह अपने शरीर को गंदा कर लेता है और उसी में पड़ा रहता है।


 उसके वैद्य जी का कहना है कि इससे उसका कैंसर कम होने की बजाय और तेजी से फैलेगा क्योंकि भीगे रहने के कारण उसे दिनभर तेज सर्दी रहती है और ऐसे में वैद्य जी की दवाएं इतनी प्रभावशाली तरीके से काम नहीं करती है।


 मैंने उन सज्जन से कहा कि युवक को दी जा रही दवाओं में तो किसी प्रकार का दोष नहीं दिखता है और रिपोर्ट से भी कुछ समझ में नहीं आता है कि युवक ऐसी हरकतें क्यों कर रहा है। 


उन सज्जन ने कहा कि हम लोग बुरी तरह से निराश हो चुके हैं। हम तो चाहते हैं कि वह कैसे भी जल्दी से मर जाए और यह पिंड छूटे।


 मैंने उन्हें कड़े शब्दों में कहा कि वे अपने बेटे के लिए ऐसे शब्दों का प्रयोग न करें। 


आप अगर मेरे आने जाने की व्यवस्था करें तो मैं एक बार मनो चिकित्सालय आकर उस युवक को देखना चाहूंगा। 


हो सकता है कि इससे कोई समाधान निकले। वे तैयार हो गए और उन्होंने आने जाने का प्रबंध कर दिया।


 जब मैं मनो चिकित्सालय पहुंचा तो मैंने चिकित्सक से अनुमति मांगी कि मैं उस युवक के कमरे के अंदर जाना चाहता हूं तो चिकित्सक ने साफ मना कर दिया। 


उनका कहना था कि वह बहुत उग्र स्वभाव का हो गया है और किसी पर भी हमला कर सकता है। 


मेरे बार-बार अनुरोध करने पर वे अपने सहायकों के साथ मुझे अंदर भेजने के लिए तैयार हो गए।


 जब मैं अंदर पहुंचा तो उसने किसी भी प्रकार का आक्रमण नहीं किया बल्कि चुपचाप बैठे बैठे रोता रहा और कातर निगाहों से मुझे देखता रहा। 


शायद कह रहा हो कि यह सब वह जानबूझकर नहीं कर रहा है बल्कि अपने आप हो रहा है और वह जल्दी से जल्दी इस पीड़ा से मुक्त होना चाहता है। 


मैंने उसके कमरे का मुआयना किया। उससे बातचीत करने की कोशिश की पर उसने बातचीत नहीं की।


 मैंने देखा कि वह बार-बार अपने गुप्तांगों के ऊपर ठंडा जल डालता था और बार-बार उन्हें अपने हाथों से ढक लेता था।


 मुझे सालों पहले मध्य प्रदेश के पारंपरिक चिकित्सकों द्वारा बताए गए लक्षणों की याद आ गई। 


मैंने उसी वक्त उससे कहा कि वह चिंता न करें। उसे जल्दी ही कष्टों से मुक्ति मिलेगी क्योंकि मुझे सूत्र मिल गया है। 


कमरे से बाहर आकर मैंने उसके पिताजी से कहा कि मुझे इस तकलीफ का कारण पता चल गया है और इस तकलीफ का कारण है गुड़हल से बने हुए गुलकंद का प्रयोग।


 आप यह बताइए कि यह गुलकंद क्या वैद्य जी ने आपको दिया है तो उन्होंने कहा कि वैद्य जी ने नहीं दिया। उन्होंने विधि बताई है। हम बाजार से गुड़हल के फूल ले आते हैं फिर घर में ही गुलकन्द तैयार करते हैं। 


मैंने उनसे कहा कि आप तुरंत ही इस गुलकन्द का प्रयोग बंद कर दें और फिर देखें कि किसी प्रकार का लाभ होता है या नहीं।


 उन्होंने अपने वैद्य जी से बात की तो उन्होंने कहा कि अगर गुलकंद के बिना उनकी दवाओं को देंगे तो दवाओं का बुरा असर होगा इसलिए गुलकंद का प्रयोग किसी भी हालत में बंद नहीं करना है।


 मैंने वैद्य जी को लाख समझाने की कोशिश की। पर वे इस बात के लिए तैयार नहीं हुए कि केवल कुछ दिनों के लिए ही गुलकन्द का प्रयोग रोक दिया जाए।


 वे सज्जन मुझसे ज्यादा वैद्य जी की बातों को वजन दे रहे थे और गुलकंद को बंद करने के लिए तैयार नहीं थे।


 मैं वापस लौटने की तैयारी करने लगा। तभी एक उपाय मुझे सूझा। 


मैंने उन सज्जन से अनुरोध किया है कि क्योंकि यह गुलकंद नुकसानदायक नहीं है इसलिए क्यों न आप इस गुलकंद की थोड़ी मात्रा का प्रयोग आज करें और कल मुझे बताएं कि आपको कैसा लग रहा है।


 वे इस बात के लिए तैयार हो गए और उन्होंने झट से गुलकंद को मुंह में रख लिया। मैं अपने होटल की तरफ लौट गया और वे अपने घर की तरफ। 


एक घंटे के अंदर उनकी पत्नी का फोन आया कि उनके पतिदेव की हालत भी उनके बेटे जैसी हो गई है और वे भी वैसी ही हरकत कर रहे हैं।


 मैंने उनसे कहा कि उन्हें जल्दी से एक कप ठंडा दूध पिला दें।  धीरे-धीरे उनकी तबीयत में सुधार हो जाएगा। 


करीब तीन घंटे बाद उन सज्जन का फोन आया और उन्होंने अपनी गलती मानते हुए कहा कि अब मैं समझ गया कि इस गुलकन्द में ही दोष है।


 मुझे पहले ही यह मान लेना चाहिए था।


 फिर जब हम मिले तो मैंने उन्हें विस्तार से समझाया कि वास्तव में इस गुलकंद का कोई दोष नहीं है। 


इस गुलकंद को बनाने के लिए बाजार से जो गुड़हल के फूल एकत्र किए गए उन फूलों में ब्लिस्टर बीटल नामक एक कीड़े का आक्रमण होता है।


 जब घर में हम गुलकन्द तैयार करते हैं तो साफ फूलों का प्रयोग करते हैं।


 पर जब ऐसे फूलों को बाजार से खरीदा जाता है जहां इसे बड़ी मात्रा में एकत्र किया जाता है तो इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता है कि फूल में कहीं गलती से ब्लिस्टर बीटल के रसायन तो नहीं आ गए हैं।


 इस तरह ऐसे फूलों का प्रयोग करने से घातक रसायन भी गुलकंद में पहुंच जाते हैं और वे जब पेट में पहुंचते हैं तो ऐसे ही लक्षण उत्पन्न करते हैं जैसे कि आपके बालक को महसूस हो रहे हैं। 


इसका समाधान यही है कि आप घर में तैयार किया हुआ गुलकंद प्रयोग करें और गुलकन्द तैयार करते समय ध्यान रखें कि फूलों में किसी प्रकार के कीड़ों का आक्रमण तो नहीं है या कीटों की उपस्थिति तो नहीं है। 


मनो चिकित्सालय से भी अगले ही दिन खुशखबरी आ गई कि अब युवक की हालत में तेजी से सुधार हो रहा है। 


पहले तो युवक लंबे समय तक गहरी नींद में रहा फिर उठकर उसने अच्छे से भोजन किया। 


उसके बाद स्नान किया और अब साफ-सुथरे कपड़ों की मांग कर रहा है क्योंकि उसे बिना कपड़ों के रहना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा है।


 वैद्य जी को यह सब बात पता चली तो उन्होंने मुझे धन्यवाद दिया और आश्वस्त किया कि आगे से जब भी किसी को गुड़हल का गुलकंद बनाने के लिए कहेंगे तो विशेष तौर पर कहेंगे कि वे इस बात का ध्यान रखें अन्यथा लाभ के स्थान पर बहुत अधिक हानि हो सकती है।


 इस तरह हमारे देश का पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान एक बार फिर से जटिल समस्या को सुलझाने में सफल रहा।


 सर्वाधिकार सुरक्षित

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