Consultation in Corona Period-59

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"एक छोटे बच्चे की हालत बहुत खराब है इसलिए हम आपको रात को परेशान कर रहे हैं। उसका बचना मुश्किल लग रहा है।


 यह फूड पॉइजनिंग का केस लगता है पर हमें यह नहीं समझ में आ रहा है कि उसकी इस बिगड़ती हालत के लिए कौन सा जहर जिम्मेदार है।


 अगर आप रिपोर्ट देखकर कुछ बता सके तो बहुत मदद होगी।"


एनसीआर के एक बड़े अस्पताल से जब यह संदेश आया तो मैं फोन पर परामर्श में व्यस्त था।


 मैंने उनसे कहा कि आप सारी रिपोर्ट मुझे भेजें और 1 घंटे की प्रतीक्षा करें।


 उसके बाद फिर मुझे फोन करें। हो सकता है मैं आपकी कुछ मदद कर पाऊं।


वे इस बात के लिए तैयार हो गए और उन्होंने सारी रिपोर्ट भेज दी।


 रिपोर्ट एक 5 वर्षीय बच्चे की थी। उसकी किडनी ने काम करना लगभग बंद कर दिया था और उसे सांस लेने में बहुत तकलीफ हो रही थी।


 उस दिन दोपहर को उसका परिवार एक पार्टी में शामिल हुआ था और पार्टी में भोजन करने के बाद से ही सभी की तबीयत बिगड़ गई थी।


यह Food poisoning का मामला है -ऐसा मुझे बताया गया।


बच्चे की सारी रिपोर्ट पढ़ने के बाद मैंने अस्पताल से अनुरोध किया है कि उसका एक वीडियो बनाकर मुझे भेजा जाए ताकि मैं अच्छे से अध्ययन कर सकूं।


 सारी रिपोर्ट और वीडियो देखने के बाद मैंने अस्पताल से कहा कि इसे Clei******** नामक विष की विषाक्तता हुई है और बच्चे की हालत को देखते हुए यह लगता है कि उसका बचना मुश्किल है।


 मेरे पास इसका एक एंटीडोट है जिसकी जानकारी मै आपको भेज रहा हूं।


 यदि आपको यह दिल्ली के आसपास न मिले तो आप मुझसे फिर से संपर्क करिएगा। मैं इसकी व्यवस्था आपके लिए कर दूंगा।


 अस्पताल ने धन्यवाद दिया। फिर उनसे संपर्क नहीं हुआ। 


एक सप्ताह के बाद मुझे एक पुलिस अधिकारी का फोन आया जोकि एक केस पर मुझसे राय लेना चाहते थे।


 उन्होंने बताया कि एक सप्ताह पहले अस्पताल ने आपसे जो सलाह ली थी यह उसी से जुड़ा हुआ मामला है।


 फूड पॉइजनिंग के केस में 18 लोग प्रभावित हुए थे जो एक ही परिवार के थे। इनमें से जिस छोटे बच्चे के बारे में आपसे राय ली गई थी उस पर इसका सबसे बुरा असर पड़ा और उसकी जान नहीं बच पाई।


 आपने जो एंटीडोट सुझाया था उससे सिर्फ 17 लोगों की जान बच पाई और वे अब घर में आराम कर रहे हैं।


 आपने जिस विष का नाम चिकित्सकों को बताया था

उस विष का प्रयोग अधिकतर आत्महत्या करने के लिए किया जाता है और कभी-कभी हत्या करने के लिए भी।


पर परिवार में यह विष कैसे पहुंचा? क्या इनका कोई पारिवारिक दुश्मन पूरे परिवार को समाप्त कर देना चाहता था? क्या यह हत्या का मामला है? इस बारे में हमारा विभाग विस्तार से छानबीन कर रहा है।


क्या आप बता सकते हैं कि उस परिवार में यह विष कैसे पहुंचा होगा?


मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।


 आप मुझे विस्तार से पूरे घटनाक्रम बारे में जानकारी दें। हर पहलू के बारे में। 


उन्होंने बताया है कि यह परिवार एक फार्म हाउस में रहता था और फार्म हाउस में पहली बार स्वीट कॉर्न की फसल लगाई गई थी।


 जब फसल पककर तैयार हुई तो उस अवसर पर एक पार्टी रखी गई थी।


 इस पार्टी में परिवार के 18 सदस्यों और पारिवारिक मित्रों को शामिल होना था। 


पार्टी के दिन परिवारिक मित्रों ने किसी बहाने से पार्टी में आने से इंकार कर दिया। परिवार ने जब स्वीट कार्न से बने हुए व्यंजन खाए तो एक के बाद एक उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। 


उन्होंने पास के थाने में संपर्क किया और जब पुलिस वहां पहुंची तो सब बेसुध हो चुके थे। खाने के सैंपल ले लिए गए हैं और उन्हें फॉरेंसिक जांच के लिए भेज दिया गया है।



 उनमें वही विष मिला जिसकी चर्चा आपने की थी। यह विष जिस वनस्पति से मिलता है उस वनस्पति का न केवल उस फार्महाउस में बल्कि आसपास के दसों किलोमीटर के इलाके में कोई वजूद नहीं मिलता है ऐसा स्थानीय वनस्पति विज्ञानियों ने बताया है। 


पार्टी के दिन अचानक ही पारिवारिक मित्रों का बहाना बनाकर न आना- यह शक पैदा करता है कि कहीं उन्हें यह तो नहीं पता था कि परिवार को विष दिया जाना है। 


उन परिवारिक मित्रों से भी पूछताछ की गई है पर किसी भी तरह का कोई सुराग नहीं मिला है। 


परिवार की पार्टी खत्म होने के बाद फार्म हाउस में रहने वाले मजदूर भी इन व्यंजनों का प्रयोग करने वाले थे पर परिवार की हालत बिगड़ने के बाद ही सब बेहद घबरा गए और किसी ने भी इनका प्रयोग नहीं किया और इस तरह उनकी जान बच गई। 


अभी परिवार की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। परिवार में बेहद दुख का माहौल है। उन्होंने अपने परिवार का सबसे छोटा सदस्य खो दिया है।


मैंने पुलिस अधिकारियों से कहा कि आप मेरे आने जाने की व्यवस्था करें। मैं एक बार परिवार जनों से मिलना चाहता हूं जो इस सदमे से गुजर रहे हैं।


 जब मैं उनसे मिलने पहुंचा तो माहौल बड़ा गमगीन था। मेरे फोरेंसिक विशेषज्ञ मित्र भी साथ थे। फार्म हाउस के मालिक ने मुझे पहचान लिया और कहा कि वे मेरे लेखों को पढ़ते रहते हैं और पिछले 20 वर्षों से इन्हें पढ़ रहे हैं।


 वे छत्तीसगढ़ आते रहते हैं और यहां के पारंपरिक चिकित्सकों से मिलते रहते हैं। उन्होंने मेरे बॉटनिकल डॉट कॉम पर उपलब्ध 10,000 से अधिक लेख सहेज कर रखे थे।


 दूसरे दिन सुबह हम फार्म का भ्रमण करने निकल गए। भ्रमण का उद्देश्य यही था कि कहीं यह वनस्पति जो कि जहर का स्रोत थी फार्म में उग तो नहीं रही थी। 


तीन चार घंटों की मेहनत के बाद भी वह वनस्पति हमें फार्म में नहीं मिली। हमने आसपास के फार्म में भी छानबीन की पर उन्होंने कहा कि उन्होंने ऐसी वनस्पति उस इलाके में कभी देखी ही नहीं है। 


हमने हाल ही में वनस्पतियों के प्रयोग से चावल में होने वाली विषाक्तता और उससे हो चुकी मृत्यु के एक मामले का समाधान किया था इसलिए हमने उसी राह पर चलने का फैसला किया।


 फार्म के मालिक से कहा कि वे बताएं कि वे स्वीट कॉर्न की खेती कैसे करते हैं?


 उन्होंने विस्तार से खेती की विधि बताई और बताया कि स्वीट कॉर्न की आसपास के शहरों में बहुत मांग है इसलिए उन्होंने परंपरागत खेती को बंद करके स्वीट कॉर्न की खेती शुरू की है।


 इसमें सबसे बड़ी समस्या आती है कीड़ों की और जब हम इसे ऑर्गेनिक तरीके से उगाते हैं तो यह समस्या और बढ़ जाती है क्योंकि हमारे पास इनसे लड़ने के लिए शक्तिशाली हथियार नहीं होते हैं। 


मैंने उनसे पूछा कि फिर आप कीड़ों का नियंत्रण कैसे करते हैं तो उन्होंने बताया कि वे छत्तीसगढ़ के एक एनजीओ से जड़ी बूटियों का घोल लेते हैं और उसका प्रयोग स्वीट कॉर्न की फसल में करते हैं। 


मैंने उनसे कहा कि क्या यह घोल विशेष है? छत्तीसगढ़ से इसे लाने में तो आपको यह बहुत महंगा पड़ता होगा।


बेहतर होता कि इसे आप अपने फार्म में तैयार करते और इसका प्रयोग स्वीट कॉर्न पर करते। यह आपको सस्ता पड़ता। 


उन्होंने कहा कि हां ऐसा तो है लेकिन जिस एनजीओ से वे इसे खरीदते हैं वहां उन्होंने कई साल बिताए हैं और उस संस्था के प्रमुख सदस्यों में भी है।


 उन्होंने बताया कि इस घोल में जिस वनस्पति का मुख्यता से प्रयोग किया जाता है वह उनके फार्म वाले इलाके में नहीं मिलती है। केवल छत्तीसगढ़ में ही मिलती है इसलिए उनकी मजबूरी है कि वे वहीं से इस घोल को खरीदते हैं।


जब उन्होंने उस वनस्पति का नाम बताया तो सारे राज खुल गए। इसी वनस्पति का विष उनके परिवार के सदस्यों के शरीर में दिख रहा था जब वे अस्पताल में थे।


 मैंने फार्म के मालिक और अपने फॉरेंसिक मित्र को यह बताया कि जिस विष से परिवार प्रभावित हुआ था उस विष का पता अब पूरी तरह से लग गया है। 


तो फार्म के मालिक ने कहा कि यह विष नहीं है। यह एक ऑर्गेनिक इनपुट है जिसका प्रयोग बस्तर के आदिवासी पीढ़ियों से कर रहे हैं और उन्हें किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं हो रहा है।


 मैंने उनसे कहा कि आपकी बात सही है। धान की फसल में कीट नियंत्रण करने के लिए बस्तर के आदिवासी इस वनस्पति की डाल का प्रयोग करते हैं। 


खेत में जहां से पानी आता है वहां पर वे इस वनस्पति की डाल को रख देते हैं और जब पानी धान के पौधों तक पहुंचता है तो इस वनस्पति के प्रभाव से पूरे कीड़े नष्ट हो जाते हैं और इस प्रकार बिना किसी तेज रसायन के धान में बहुत ही प्रभावी तरीके से कीट नियंत्रण हो जाता है।


 यहां मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि बस्तर के आदिवासी इसके बहुत तनु घोल का प्रयोग करते हैं यानी सिंचाई के बहुत सारे पानी में थोड़ी मात्रा में ही डाल का विष पहुंच पाता है और वह कीड़ों को मारने के लिए पर्याप्त होता है। उस पानी से किसी व्यक्ति की जान नहीं जाती है।


 आपने वही प्रयोग यहां दोहराने की कोशिश की। पर विधि वही नहीं अपनाई जो कि बस्तर के आदिवासी अपनाते हैं। 


खेत में जहां से पानी आता है वहां इस वनस्पति की डाल को रखने की बजाय आपने इस वनस्पति का काढ़ा तैयार किया और इसे खड़ी फसल में स्प्रे किया। 


बस यही बात गड़बड़ हो गई। 


मैंने आपके स्वीट कॉर्न के पौधे देखे हैं। घोल से जरूर कीड़ों का नियंत्रण हुआ होगा पर पौधों का स्वास्थ बिल्कुल ठीक नहीं है। इन्ही पौधों से तैयार उत्पाद का प्रयोग आपने अपनी पार्टी में किया और सारी स्थिति बिगड़ गई। 


मैंने अपने फोरेंसिक विशेषज्ञ मित्र से कहा कि आप पौधों का सैंपल इकट्ठा करें। मुझे पूरा विश्वास है कि इसमें भी उस विष का अंश है। 


फार्म के मालिक से कहा कि यह तो गनीमत रही कि आपके परिवार ने इसका उपयोग किया। अगर आप इसका व्यवसायिक उत्पादन करते और शहर तक यह बड़ी मात्रा में पहुंचता तो पूरे शहर में हाहाकार मच जाता और कोई यह नहीं समझ पाता कि यह स्वीट कार्न खाने से हो रहा है। 


मैंने उन्हें बताया कि यह बहुत ही विषाक्त पौधा है और प्राचीन काल में जहर बुझे तीर बनाने के लिए इस वनस्पति का उपयोग किया जाता था। 


दुश्मन पक्ष के जिस व्यक्ति को यह तीर लगता था और शरीर में जब विष फैलता था तो वैसे ही खतरनाक लक्षण आते थे जैसे आपके परिवार वालों को अस्पताल में आ रहे थे।


सांस लेने में बहुत तकलीफ होती है। लिवर और किडनी काम करना बंद कर देती है। बहुत कम समय रह जाता है मृत्यु और जीवन के बीच में। 


अगर सही समय पर एंटीडोट न दिया जाए तो मृत्यु तय होती है। पहले के जमाने में आत्महत्या के लिए दक्षिण भारत में इस विष को उपयोग में लाया जाता था। 


छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिकित्सक तो साफ शब्दों में कह देते हैं कि इस वनस्पति से बिल्कुल दूरी बनाकर रखनी चाहिए और किसी भी हालत में इसे घर के पास नहीं लगाना चाहिए।


 मैंने ऐसे बहुत से पारंपरिक चिकित्सकों से मुलाकात की है जो कि इस विषयुक्त वनस्पति का दवा के रूप में प्रयोग करते हैं पर ऐसा करने के लिए वे इस वनस्पति को 1 साल तक शोधित करते हैं ताकि उसका विष पूरी तरह से समाप्त हो जाए और उसके अच्छे गुणों को रोगों की चिकित्सा में प्रयोग किया जा सके।


 मैंने इस बारे में पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान का दस्तावेजीकरण किया है पर इसे प्रकाशित नहीं किया है क्योंकि शोधन में जरा भी चूक हो जाने पर इसका प्रयोग करने वाला व्यक्ति बेमौत मारा जा सकता है।


 फॉरेंसिक विशेषज्ञ मित्र ने पूरी घटना पुलिस अधिकारी को बताई। मैंने पुलिस अधिकारी से कहा कि आप इसे जिस रूप में देखना चाहे उस रूप में देखें। मैंने अपना कार्य पूरा कर दिया है।


 अगर आप कोशिश करेंगे कि वह एनजीओ इस तरह के खतरनाक घोल को देशभर में बेचने का काम बंद कर दे तो यह मानवता की एक बहुत बड़ी सेवा होगी।


सर्वाधिकार सुरक्षित




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