Consultation in Corona Period-56

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"यह अभिशप्त बागीचा है। यहाँ अमरूद तो खूब होते हैं पर कोई उन्हें खाता नहीं है। 


यह सेठ जी का ही बागीचा है पर इस बागीचे ने उनको बहुत अधिक नुकसान पहुंचाया। उसके बाद से सेठ जी इस ओर का रुख करते ही नहीं हैं।"


 सेठ जी के मैनेजर ने कहा। 


मैं मैनेजर के साथ सेठ जी के फार्म हाउस जा रहा था जहां मुझे अमरूद की व्यवसायिक खेती के लिए उन्हें सलाह देनी थी।


 मिट्टी का परीक्षण उन्होंने पहले से करवा लिया था और मुझे रिपोर्ट दिखा दी थी। मेरी ओर से हरी झंडी मिलने पर उन्होंने अपने मैनेजर को भेजा था मुझे लेने के लिए ताकि मैं फार्म में आकर उनको खेती की पूरी विधि समझा दूं। 


सेठ जी के फार्म की तरफ जाते हुए मुझे रास्ते में बहुत अच्छे अमरूद के बागीचे दिखे तो अनायास ही मैंने मैनेजर से पूछ लिया कि ये बागीचे किनके हैं? तो उन्होंने बताया कि यह बागीचे सेठ जी के ही है पर यह अभिशप्त बागीचे हैं।


 मैंने गाड़ी रुकवा कर बागीचे का मुआयना किया। 


मुझे तो वह किसी भी प्रकार से अभिशप्त नहीं लगा। जब मैं सेठ जी से मिलने उनके नए फार्म हाउस पर पहुंचा तो मैंने गाड़ी से उतरते ही उनसे कहा कि रास्ते में जो आपके बागीचे हैं वे ऐसे ही क्यों पड़े हुए हैं? आप उनसे कुछ व्यवसायिक लाभ क्यों नहीं लेते हैं?


 उन्होंने बताया कि इन बगीचों ने मेरी जिंदगी भर की कमाई को लुटा दिया। आप अंदर आइए। मैं इस बारे में आपको विस्तार से बताता हूं।


 जब अंदर बैठकर हम बात करने लगे तो उन्होंने बताया कि अमरूद की उन्नत किस्म की खेती उन्होंने 10 साल पहले शुरू की थी और जब फल आने लगे तो उन्होंने एक छोटी सी इंडस्ट्री की स्थापना की ताकि अमरूद के विभिन्न उत्पादों को फार्म पर ही बनाया जा सके और उनकी मार्केटिंग की जा सके। 


उन्होंने छोटी सी औद्योगिक इकाई वहां पर शुरू कर ली और फिर एक बार उत्पाद बन जाने के बाद उसकी मार्केटिंग शुरू कर दी। कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक चलता रहा। 


उन्हें आर्थिक लाभ होना शुरू ही हुआ था कि यह शिकायत आने लगी कि उत्पाद में कुछ दोष है।


 उत्पाद के प्रयोग से लोगों की तबीयत बिगड़ती जा रही है।


 पहले तो उन्होंने समझा कि यह विरोधियों की करामात है पर बाद में जब बीमार होने वाले लोगों की संख्या बढ़ती गई तो उन्होंने इसका वैज्ञानिक परीक्षण कराया।


 परीक्षण से यह तो नहीं पता चला कि किस कारण से उत्पाद के प्रयोग से नाना प्रकार के रोग हो रहे हैं पर वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की कि उत्पाद में कुछ गड़बड़ है जिसके कारण लोगों की तबीयत बिगड़ रही है। 


पहले उन्होंने उत्पाद की विश्व स्तर पर जांच कराई पर उसका कोई भी नतीजा नहीं निकला फिर उसके बाद कृषि वैज्ञानिकों का सहारा लिया।


  कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि हो सकता है कि मिट्टी में किसी प्रकार का दोष हो जिसके कारण उत्पाद के प्रयोग से नाना प्रकार की समस्याएं हो रही है पर वे यह नहीं बता पाए कि मिट्टी में किस तरह की गड़बड़ी के कारण ऐसा हो रहा है।


अंततः उन्होंने निश्चय किया कि अब वे इस बागीचे के फलों का उपयोग नहीं करेंगे।


इस तरह उनकी सारी पूंजी डूब गई। 


उन्होंने अमरूद के बगीचों को वैसे ही छोड़ दिया और अब नए सिरे से अमरूद की खेती की तैयारी कर रहे थे।


 पिछली बार की तरह कहीं कोई चूक न हो जाए इसलिए उन्होंने मेरी सेवाएं ली थी और वे पूरी तरह से जैविक विधि से या कहें कि वैदिक विधि से अमरूद की खेती करना चाहते थे।


नए फार्म हाउस में अमरूद की खेती की पूरी जानकारी मैंने उन्हें दे दी। 


उसके बाद मैंने उनसे अनुरोध किया कि यदि आप चाहें तो मैं आपके तथाकथित अभिशप्त बागीचे को फिर से दुरुस्त कर सकता हूं पर इसके लिए आपको सारी बातें विस्तार से बतानी होंगी और उन लोगों से बात करानी होगी जिन लोगों को आपके उत्पाद के प्रयोग से नाना प्रकार की स्वास्थ समस्याएं हो रही थी।


 थोड़ा हिचकते हुए वे इस बात के लिए तैयार हो गए। जब मैंने प्रभावित लोगों से बात की तो मुझे यही लगा कि वे सभी किसी प्रकार के वायरस रोग से प्रभावित थे।


 कुछ चिकित्सकों से भी मैंने बात की तो उन्होंने कहा कि इन उत्पादों के प्रयोग से हिपेटाइटिस जैसे लक्षण आ रहे थे।


 मैंने सेठ जी से कहा कि वे बागीचे से मिट्टी का सैंपल लें और उसे जांच के लिए भेजें ताकि यह पता चल सके कि कहीं मिट्टी में ही तो दोष नहीं है।


 जब रिपोर्ट आई तो मिट्टी में किसी भी प्रकार का दोष नहीं मिला। अमरुद के पौधे भी उन्नत किस्म के थे इसलिए उनमें भी किसी प्रकार के दोष होने की संभावना नहीं थी।


 बहुत वर्षों पहले जब मैं पारंपरिक चिकित्सकों के साथ जंगली फलों पर काम कर रहा था तब उन्होंने मुझे बताया था कि जंगल में किसी भी जंगली फल को बिना किसी जांच-पड़ताल के खाना घातक हो सकता है।


 उन्होंने मुझे बहुत से ऐसे मरीजों से मिलाया जिन्होंने बिना जांच पड़ताल जंगल में फलों को खाया और फिर हिपेटाइटिस जैसे लक्षण वाली बीमारी के शिकार हो गए।


 ऐसे लोगों की चिकित्सा करना बड़ा मुश्किल काम होता है और शहरों में तो चिकित्सक इस बात को समझ ही नहीं पाते कि इस तरह के लक्षण किसी जंगली फल को खाने से भी आ सकते हैं।


 उसी आधार पर मैंने तथाकथित अभिशप्त अमरूद के बागीचे की भी पड़ताल की और जल्दी ही मुझे सूत्र मिल गया।


 मैंने सेठ जी से पूछा कि क्या आपके बागीचे में हनुमान लंगूर आते थे?


तो उन्होंने कहा कि मत पूछिए! वे इतना अधिक परेशान करते थे कि उनसे अमरूद को बचाने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती थी।


 अब स्थिति और स्पष्ट होने लगी थी।


 मैंने सेठ जी से पूछा कि आप जब अमरूद के फलों को उत्पाद के लिए चुनते थे तब क्या आप यह देखते थे कि सभी फल सलामत है या कुछ फल हनुमान लंगूर द्वारा खाए गए हैं।


 उन्होंने कहा कि हम तो यह नहीं देखते थे। 


जितने भी फल हमें वृक्षों पर और नीचे जमीन पर पड़े मिलते थे हम उन सभी को अच्छे से साफ करके उत्पाद के लिए प्रयोग करते थे।


 मैंने उन्हें विस्तार से समझाया कि हनुमान लंगूर फलों के बहुत शौकीन होते हैं और कई बार तो वे फलों को पूरी तरह से खाते हैं जबकि कई बार उन्हें जूठा करके छोड़ देते हैं। 


उनके जूठे फल मनुष्यों के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। 


इनके माध्यम से कई तरह के वायरस मनुष्य के शरीर में पहुंच जाते हैं जिनकी चिकित्सा के बारे में आधुनिक और पारंपरिक विज्ञान को ज्यादा जानकारी नहीं है।


 इनमें ही हिपेटाइटिस पैदा करने वाले वायरस भी होते हैं और रैबीज के वायरस भी। 


इन फलों का सेवन करने वाले गंभीर रूप से बीमार पड़ जाते हैं और कभी-कभी तो इनकी मृत्यु भी हो जाती है।


 जरूरी नहीं है कि बंदरों के लार में उपस्थित वाइरस तुरंत असर करें। 


कई बार यह कई सालों में असर करता है और प्रभावित व्यक्ति को यह पता भी नहीं चलता कि यह कुछ साल पहले खाए गए फलों के कारण हो रहा है। 


इसलिए अमरूद की खेती में या किसी और फल की खेती में यह सुनिश्चित किया जाना बहुत आवश्यक है कि किसी भी हालत में हनुमान लंगूर या दूसरे किस्म के बंदर बागीचे पर आक्रमण ही न करें।


 भले ही इसमें थोड़ा अधिक खर्च होता है पर इन बंदरों के कारण होने वाली स्वास्थ समस्याओं से पूरी तरह से बचा जा सकता है। 


मैंने उन्हें सलाह दी कि आप बागीचे की फिर से साफ सफाई कराइए और बंदरों को दूर रखने का पुख्ता प्रबंध प्रबंध करिए।


 ये अभिशप्त बागीचे नहीं है। 


आप इनमें फलों का उत्पादन करें और लाभ कमाएं। आपको किसी भी तरह का नुकसान नहीं होगा।


 मैंने उनको बहुत सारे ऐसे जंगली पौधों के बारे में बताया जोकि हनुमान लंगूर को बागीचे से दूर रखने में सक्षम है।


 उन्हें यह भी बताया कि वे चाहें तो सोलर फेंसिंग भी कर सकते हैं।


 सोलर फेंसिंग न केवल प्रभावी है बल्कि लंगूरों को दूर रखने में बहुत अधिक प्रभावी भी है।


 उन्होंने मुझे धन्यवाद दिया।


 उनकी आंखों में चमक आ चुकी थी।


 उन्होंने कहा कि जितना पैसा मैं नए फार्म के विकास में लगा रहा हूं उतना पैसा अगर मैं पुराने बागीचे में लगाऊं तो इसका कायाकल्प हो सकता है और जैसा कि आपने कहा कि बागीचे में किसी प्रकार का दोष नहीं है। इससे मैं संतुष्ट हूं। 


आपकी सलाह के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।


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