Consultation in Corona Period-55

Consultation in Corona Period-55



Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"डायबिटीज से लिवर और किडनी खराब हो रहे हैं या मेटफॉर्मिन (Metformin) से। जब हमने इस पर गहनता से रिसर्च किया तो हमें पता चला कि मेटफॉर्मिन से लिवर और किडनी पर बुरा असर पड़ रहा है।


 पर अगर मेटफॉर्मिन में बुराई है तो इसका पहले से ही पता चलना चाहिए था क्योंकि दुनिया भर में इसका प्रयोग कई दशकों से हो रहा है और अभी भी जब मेटफॉर्मिन के बुरे प्रभाव सामने आ रहे हैं तो यह केवल भारत और उसके आसपास के देशों तक ही सीमित है।


 अगर मेटफार्मिन से सचमुच किडनी और लिवर को नुकसान होता है तो पूरी दुनिया में ऐसे परिणाम दिखने चाहिए थे। 


हम बड़े असमंजस में है और इस बारे में आपकी मदद चाहते हैं।


 हम आपको ऐसे 100 लक्षण भेज रहे हैं जोकि मेटफॉर्मिन पर आश्रित रहने वाले एशियाई लोगों में साफ-साफ दिख रहे हैं। ये मेटफॉर्मिन के वे लक्षण नहीं है जिन्हें कि वास्तव में आने चाहिए। 


आप इस पर गहनता से अध्ययन करिए और अपने अनुभव के बारे में हमें बताइए।"


 मेटफॉर्मिन पर शोध करने वाले मेरे एक वैज्ञानिक मित्र ने जब यह संदेश भेजा तो मुझे अधिक आश्चर्य नहीं हुआ।


 मैंने उन्हें कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।


 उन्होंने कर्नाटक के एक किसान का केस मुझे दिया। 


इस किसान को डायबिटीज की समस्या थी और इसके लिए वे लंबे समय से मेटफॉर्मिन का प्रयोग कर रहे थे।


 वे एक प्रतिष्ठित किसान थे जिनका खुद का बहुत बड़ा फार्म हाउस था और दसों एकड़ में उस फॉर्म में खेती की जाती थी।


 किसान वहीं रहते थे और डायबिटीज के लिए दूसरी प्रकार की दवाओं का प्रयोग नहीं कर रहे थे। न देसी दवाई न विदेशी दवाई पर उन्हें मेटफॉर्मिन से नुकसान हो रहा था और यह नुकसान किडनी और लिवर को हो रहा था।


 इसके लक्षण साफ दिखाई दे रहे थे।


 मेरे वैज्ञानिक मित्र इस किसान पर अपना अध्ययन फोकस किये हुए थे और उन्होंने इस किसान को ही केंद्र में रखकर मेटफॉर्मिन के प्रभाव का अध्ययन करने का अनुरोध मुझसे किया।


 मैंने किसान द्वारा ली जा रही खाद्य सामग्रियों पर अपना ध्यान केंद्रित किया और 100 लक्षणों के आधार पर यह जानने की कोशिश की कि किस तरह की खाद्य सामग्रियों की मेटफॉर्मिन के साथ विपरीत प्रतिक्रिया होती है जिसके कारण ऐसे लक्षण आते हैं। 


मैंने 20 तरह की खाद्य सामग्रियों को चुना और फिर किसान से पूछा कि क्या वे इसका प्रयोग कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि वे इनमें से किसी भी खाद्य सामग्री का प्रयोग अपने दैनिक जीवन में नहीं कर रहे हैं।


 अब समस्या और गंभीर हो गई थी।


 मैंने एक लंबी प्रश्नावली तैयार की और उसे किसान के पास भेजा जब किसान ने उस प्रश्नावली को पूरी तरह से भर कर मेरे पास भेजा तो उससे भी किसी भी प्रकार का सूत्र नहीं मिला।


 और अधिक गहराई में जाते हुए मैंने किसान से पूछा कि इन सब लक्षणों के अलावा क्या शाम के समय आपका एक पैर ठंडा और एक पैर गर्म रहता है?


किसान ने कहा कि उन्होंने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया पर अब वे इस पर ध्यान देंगे। 


कुछ दिनों बाद जब किसान का फोन आया तो उन्होंने बताया कि रोज शाम को एक पैर ठंडा और एक पैर गर्म रहता है और यह 1 से 2 घंटे तक रहता है।


 फिर मैंने किसान से अनुरोध किया कि वे अपने नाखूनों की फोटो खींचकर मुझे भेजें।


 उसके बाद मैंने उससे अनुरोध किया कि वे अपनी जीभ की फोटो मेरे पास भेजें।


 इस पूरी प्रक्रिया में वैज्ञानिक मित्र किसान और मेरे बीच सेतु का काम करते रहे।


 इसके बाद मैंने किसान से कहा कि वे अपने तलवों को अच्छे से साफ कर ले फिर उसकी तस्वीर मेरे पास भेजें।


 फिर मैंने किसान से पूछा कि क्या मेटफॉर्मिन लेने के बाद सिर में भारीपन लगता है तो उन्होंने कहा कि हां भारीपन लगता है दो-तीन घंटे तक। 


"ऐसा सुबह मेटफॉर्मिन लेने के बाद होता है या शाम को?" यह मेरा अगला प्रश्न था।


 उन्होंने कहा कि शाम को।


 फिर मैंने सवाल किया कि मेटफॉर्मिन लेने के 5 घंटे पहले तक सुबह क्या क्या खाते हैं और शाम को  मेटफॉर्मिन लेने से 5 घंटे पहले तक किस तरह की भोजन सामग्री का प्रयोग करते हैं?


उन्होंने बताया कि वे शाम को मेटफॉर्मिन के 3 घंटे पहले गाय के दूध का प्रयोग करते है जबकि सुबह मेटफॉर्मिन लेने से पहले गाय के दूध का प्रयोग नहीं किया जाता है। 


अब गुत्थी सुलझने लगी थी।


 मैंने वैज्ञानिक मित्र से कहा कि आप एक महीने तक दूध का प्रयोग बंद करवायें।


 वैज्ञानिक मित्र ने जब दूध का प्रयोग बंद किया तो किसान को वैसे लक्षण आने बंद हो गए।


 अब समय था दूध का परीक्षण करने का।


 मुझे बताया गया है कि किसान के पास देसी गाय हैं और वेटेनरी डॉक्टर नियमित रूप से आकर उनके स्वास्थ की जांच करते हैं।


 उन्हें किसी भी प्रकार की स्वास्थ समस्याएं नहीं है। गाय चरने के लिए बाहर नहीं जाती बल्कि फार्म के अंदर ही चारागाह है।


 इसका मतलब था कि उन्हें स्वस्थ गाय का शुद्ध दूध मिल रहा था।


 जब उनके लक्षण पूरी तरह से समाप्त हो गए तो उनसे कहा गया कि वे अपने फार्म के दूध का प्रयोग न करें। 


बल्कि दूसरे स्त्रोत से दूध का प्रयोग करें। वे इसके लिए तैयार हो गए।


 जब उन्होंने पहले की तरह मेटफॉर्मिन से 3 घंटे पहले शाम को दूध लेना शुरू किया तो वैसे लक्षण नहीं आए जैसे कि पहले आ रहे थे। 


यह बड़ा चौंकाने वाला तथ्य था।


 यदि दूध से मेटफॉर्मिन की प्रतिक्रिया हो रही थी तो अभी भी होनी चाहिए थी।


 अब गहरी छानबीन की जरूरत थी।


मैंने किसान से अनुरोध किया कि वे अपने चारागाह की तस्वीर खींचकर मुझे भेजें ताकि मैं पता लगा सकूं कि किस तरह की वनस्पतियों पर उनकी गाय आश्रित रहती हैं। 


उन्होंने बताया कि वे बहुत सारी चारा की फसलों को चारागाह में उगाते हैं और फिर क्रमवार गायों को चारागाह में छोड़ते हैं। 


चारे की फसलों के बारे में सुनकर मैंने उनसे पूछा कि क्या आप चारा की फसलों में रासायनिक खादों का प्रयोग भी करते हैं और कीटनाशकों का भी?


 तो उन्होंने कहा कि नहीं हम पूरी तरह से ग्रामीण विधि से चारे की खेती करते हैं और केवल गोबर के घोल का ही प्रयोग करते हैं।


 मैंने उनसे पूछा कि क्या वे गोबर के घोल का प्रयोग केवल फसल पर करते हैं या पूरी जमीन पर करते हैं?


 उन्होंने कहा कि पूरी जमीन पर करते हैं क्योंकि चारागाह में दूसरे भी उपयोगी पौधे होते हैं।


 फिर मैंने उनसे अनुरोध किया कि चारागाह में जितनी भी तरह की वनस्पतियां हैं यदि संभव हो तो उन सब की तस्वीरें भेजें। 


जब उन्होंने तस्वीरें भेजी तो सब कुछ स्पष्ट हो गया।


 चारागाह में बहुत अधिक मात्रा में गाजर घास (Parthenium) का प्रकोप था। उनकी गायें जाने अनजाने चारे के साथ में गाजर घास भी खा रही थी। 


जब गायें गाजर घास खा जाती हैं तो न केवल उनके मांस बल्कि उनके दूध तक गाजर घास का खतरनाक रसायन पार्थेनिन पहुंच जाता है और वह दूध में दोष उत्पन्न कर देता है।


मैंने किसान को विस्तार से समझाया कि जब वे चारागाह में गोबर के घोल का प्रयोग करते हैं तो यह घोल गाजर घास पर भी पड़ता है।


 गोबर का घोल पड़ने से गाजर घास स्वादिष्ट हो जाती है और पशु उसे चाव से खाने लग जाते हैं। 


प्राकृतिक रूप से उगने वाली गाजर घास को पशु गलती से खा लेते हैं पर जानबूझकर नहीं खाते हैं। 


अब सारी समस्या का समाधान हो गया था। सारी बातें स्पष्ट हो गई थी।


 मैंने वैज्ञानिक मित्र से कहा कि आप दूध का रासायनिक विश्लेषण करें और पता करें कि क्या उसमें पार्थेनिन का अंश है?



 दरअसल पार्थेनिन और मेटफॉर्मिन की आपस में नकारात्मक प्रतिक्रिया हो रही थी जिसके कारण ऐसे लक्षण उत्पन्न हो रहे थे और किडनी व लिवर को नुकसान हो रहा था। 


इसमें मेटफॉर्मिन का कोई दोष नहीं है और न ही दूध का अर्थात मेटफार्मिन के आसपास दूध का प्रयोग किया जा सकता है पर इस बात की गारंटी होनी चाहिए कि दूध में किसी भी प्रकार से पार्थेनिन का असर न हो।


 मैंने उन्हें यह भी बताया कि गाजर घास न केवल भारत बल्कि उसके आसपास के देशों में भी बहुत ज्यादा मात्रा में है और चारागाहों में इनकी उपस्थिति सामान्य बात है। 


पार्थनियम टाक्सीसिटी की बात वैज्ञानिक जानते हैं और उस पर बहुत सारे अनुसंधान भी हुए हैं।


 ऐसे पशु जिनका मांस खाया जाता है वे जब गाजर घास को गलती से खा जाते हैं तो उनका माँस भी विषाक्त हो जाता हैं-ऐसा आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है।


मैंने किसान से कहा कि वे जैविक विधियों से जल्दी से जल्दी अपने चारागाह में गाजर घास का नियंत्रण करें ताकि वे अपने गायों का दूध बिना किसी डर के पी सके।


 वैज्ञानिक मित्र ने मुझे धन्यवाद दिया और जल्दी ही इस पर गहनता से शोध करके तथ्यपूर्वक शोध पत्र प्रकाशित करने का आश्वासन दिया और कहा कि आप भी इस शोध पत्र का हिस्सा रहेंगे क्योंकि आपने ही इस गंभीर समस्या का समाधान किया। 


सर्वाधिकार सुरक्षित


Comments

Popular posts from this blog

कैंसर में कामराज, भोजराज और तेजराज, Paclitaxel के साथ प्रयोग करने से आयें बाज

गुलसकरी के साथ प्रयोग की जाने वाली अमरकंटक की जड़ी-बूटियाँ:कुछ उपयोगी कड़ियाँ

भटवास का प्रयोग - किडनी के रोगों (Diseases of Kidneys) की पारम्परिक चिकित्सा (Traditional Healing)