Consultation in Corona Period-287 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया

Consultation in Corona Period-287 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया "मैं जिंदगी भर पूरी दुनिया को पार्किंसन की जड़ी बूटियां देता रहा और दुनिया उससे दवा बनाकर पार्किंसन के रोगियों को राहत पहुंचाती रही। अब जब मेरे अपने बड़े भाई पार्किंसन से प्रभावित है तो मैं उनके लिए कुछ नहीं कर पा रहा हूं। मैं जिन जड़ी बूटियों की खेती कर रहा हूं उनका मेरे भाई पर किसी तरह से असर नहीं हो रहा है। मेरे संपर्क में दुनिया भर के बड़े पार्किंसन विशेषज्ञ हैं पर वे भी कुछ नहीं कह पा रहे हैं। उनका बस यही कहना है कि ऐसा उम्र के कारण हो रहा है और अब इन पर किसी भी तरह से किसी भी दवा का बिल्कुल असर नहीं होगा। मैंने सभी जगह संभावित उपायों की खोज की। बस सभी दवा देने को तो तैयार है पर कोई यह कहने को तैयार नहीं है कि उनकी दवा से मेरे भाई की समस्या का शत-प्रतिशत समाधान हो जाएगा। आखिर कितनी तरह की दवा मैं अपने भाई को दूं। उनके परिजन भी अपनी तरफ से दवा दे रहे हैं। अब तो लगता है कि उन्हें भोजन के स्थान पर दवा ही देनी होगी क्योंकि इतनी सारी दवाएं उनके लिए अनुमोदित की गई हैं। आपने शायद मुझे पहचाना होगा। आज से 15 साल पहले मैंने आपसे जड़ी बूटियों की खेती के लिए संपर्क किया था। मैं सफेद मूसली की खेती करना चाहता था पर आपने कहा कि आपको सही मायने में हर्बल फार्मिंग से आय प्राप्त करनी है तो आप पार्किंसन के लिए जड़ी बूटियों की खेती करें। आपने मुझे 10 प्रकार की औषधीय फसलों के बारे में बताया था और साथ में मुझे उत्तरी अमेरिका की पार्किंसन इंडस्ट्री से जोड़ दिया था। उस इंडस्ट्री ने जिस भी तरह की जड़ी बूटी की मांग की मैंने अपने खेतों में उगाई और लगातार उनकी आपूर्ति करता रहा। मैंने शुरुआत 50 एकड़ से की थी। अब तो हमारा समूह सैकड़ों एकड़ में जड़ी-बूटियों की खेती कर रहा है और उस इंडस्ट्री की मांग की लगातार पूर्ति कर रहा है। उसके बाद आप से लंबे समय तक संपर्क नहीं हो पाया। कनाडा के एक विशेषज्ञ ने जब आपका नाम सुझाया तो मैंने उनसे कहा कि मैं तो उन्हें पहले से जानता हूं और मेरी सफलता के पीछे उन्हीं का हाथ है। आपका नाम सुनते ही मैंने फिर से आपसे संपर्क करने का फैसला किया है।" दक्षिण भारत से जब इस तरह का संदेश मेरे पास आया तो मैंने उन्हें झट से पहचान लिया। वह सही कह रहे थे कि बहुत साल पहले मैंने उन्हें 50 एकड़ में पार्किंसन के लिए हर्बल फार्मिंग करने के लिए कहा था। यह कांसेप्ट उस समय नया था और किसान किसी भी तरह का जोखिम लेने को तैयार नहीं थे पर जब मैंने उन्हें कंपनी से सीधा जोड़ दिया और उनके बीच आपस में समझौता हो गया तो वे निश्चिंत होकर जड़ी बूटियों की खेती करने लगे। मैंने उन्हें साफ शब्दों में कहा कि आप प्रचार में बिल्कुल न ध्यान दें। चुपचाप अपना व्यापार करें और अपनी सफलता की कहानी किसी को न बताएं। अधिकतर अपनी सफलता की कहानी बताने वाले या दावा करने वाले कि उन्होंने सफेद मूसली से करोड़ों रुपए कमाए हैं इसके पीछे एक अलग ही तरह का उद्देश रखते हैं। आमतौर पर कोई व्यापारी अपनी कमाई के बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं देता है पर इस तरह की हर्बल फार्मिंग करने वाले किसान हर्बल फार्मिंग की आड़ में प्लांटिंग मटेरियल बेचना चाहते हैं इसलिए वे बताते हैं दुनिया को कि उन्होंने इस फसल से करोड़ों कमाए हैं और इसी चक्कर में साधारण किसान फंस जाते हैं और वे उनसे प्लांटिंग मटेरियल लेने लग जाते हैं। अंतिम उत्पाद की मार्केटिंग के बारे में उन्हें बिल्कुल भी जानकारी नहीं होती है। ऐसे किसान अधिकतर बड़ी गाड़ी लेते हैं और अखबारनवीसों को खरीद कर अपने बारे में समाचार छपवाते रहते हैं। छत्तीसगढ़ में किसानों ने ऐसे ही एक मूसली माफिया को लंबे समय तक सहन किया है। माफिया तो अभी भी है पर उसने अपना भेष बदल लिया है। दक्षिण भारत के सज्जन ने मेरी बात मानी और कंपनी ने जो कठोर सुझाव दिए उनका भी पालन किया ।उन्होंने अपने फार्म को सर्टिफाइड करवाया और वैदिक तरीके से उन्होंने खेती आरंभ की। इस खेती से जड़ी बूटियों में प्राकृतिक तत्वों की उपस्थिति अच्छी खासी बढ़ गई जो कि प्रयोगशाला के परीक्षणों में भी दिखने लगी। इन परीक्षणों के आधार पर ही उत्तरी अमेरिका में जड़ी बूटियों की खरीदी की जाती है इसलिए वहां के क्रेताओं ने उन्हें हाथों-हाथ ले लिया। अधिकतर ऐसा ही होता है कि एक बार परामर्श लेने के बाद किसान दोबारा संपर्क तभी करते हैं जब उन्हें फिर से किसी तरह की आवश्यकता होती है। इस बीच लंबे समय तक उनसे किसी भी प्रकार का संपर्क नहीं होता है। मैं पहले ही उनसे सीख ले लेता हूं इसलिए मैं भी अपनी ओर से किसी भी तरह की पहल नहीं करता क्योंकि इस पूरे व्यापार को गोपनीय रखना होता है इसीलिए मैं अपने नए किसानों को भी इस प्रोजेक्ट के बारे में नहीं बताता हूं। न ही उनकी विजिट न ही उनके लिए उस फार्म की यात्रा का प्रबंध करता हूं। इस हर्बल फार्मिंग में सबसे बड़ा नियम यही है कि हमें किसी से भी अपनी सफलता की कहानी नहीं बतानी है और सब को बताना है कि हम असफल रहे हैं अन्यथा कृषि विभाग ही अपने अधिकारियों और किसानों को लेकर फार्म में आ जाते हैं और बताने लग जाते हैं कि कैसे इस किसान ने सफलता हासिल की। इस तरह बहुत से किसान इस तरह की फसल उगाने लग जाते हैं जिससे मांग कम हो जाती है और धीरे-धीरे यह धंधा पूरी तरह से ठप हो जाता है। भले ही लोग सिरफिरा कहें पर किसी भी हालत में अपने किसी भी तरह के राज के बारे में आसपास के लोगों और किसी विभाग के अधिकारियों को नहीं बताना है। दक्षिण भारत के इस किसान ने एक बड़ा समूह तैयार किया पर कभी भी अपनी प्रसिद्धि के बारे में किसी से नहीं कहा। न किसी अखबार में अपना इंटरव्यू दिया न ही सरकार से ईनाम लेने के लिए राष्ट्रीय सम्मेलनों में गए। यही कारण है कि वे एक सफल किसान रहे और अभी भी उसी तरह की खेती में लगे हुए हैं। मैंने उनके द्वारा भेजी गई सभी रिपोर्टों का अध्ययन किया। मैंने उनके द्वारा प्रयोग की जा रही खानपान की सामग्रियों की भी सूची बनाई। मुझे बताया गया कि वह दक्षिण भारत के एक पारंपरिक चिकित्सक से पार्किंसन के लिए दवा ले रहे हैं। जब उन चिकित्सक का नाम मुझे पता चला तो मैंने उन्हें पहचान लिया। उनका फार्मूला बेहद कारगर था पर पता नहीं क्यों इन किसान के बड़े भाई के ऊपर उसका असर नहीं हो रहा था। जब मैंने उन पारंपरिक चिकित्सक से बात की तो 90 की उम्र में पहुंच चुके उन पारंपरिक चिकित्सक ने मुझे पहचाना और बताया कि कैसे उन्होंने 90 के दशक में छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी और मेरे किसानों से मुलाकात की थी। उस समय उन्हें मेषासिंगी की अधिक मात्रा में आवश्यकता थी और यहां के किसान उनके लिए खेती करने के लिए तैयार थे। उन पारंपरिक चिकित्सक ने बताया कि उनका फार्मूला आजकल कम असर करता है। पहले यह बड़ा कारगर हुआ करता था। उन्होंने यह भी बताया कि किसान के बड़े भाई को पार्किंसन नहीं है। उन्हें लगता है कि पार्किंसन जैसे लक्षण आ रहे हैं और इन लक्षणों को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है पर पता नहीं क्यों उनका फार्मूला इस बार काम नहीं कर रहा था। अगले दिन फिर से बात करने की बात कह कर मैंने उन पारंपरिक चिकित्सक से विदा ली और इस केस का विस्तार से अध्ययन करने लगा। जल्दी ही मुझे समस्या के मूल कारण का पता लग गया। दक्षिण भारत के पारंपरिक चिकित्सक अपने इस कारगर फॉर्मूलेशन में मुख्य घटक के रूप में केले के छिलके का प्रयोग करते हैं। केले के छिलके में बहुत से ऐसे घटक पाए जाते हैं जो कि दूसरी जड़ी बूटियों के साथ मिलकर पार्किंसन की चिकित्सा में अहम भूमिका निभाते हैं। आधुनिक विज्ञान इसके बारे में कम ही जानकारी रखता है। फॉर्मूलेशन को देखने से यह बिल्कुल भी नहीं पता चलता है कि इसमें किसी भी रूप में केले के छिलके का प्रयोग किया गया है। ये पारंपरिक चिकित्सक बड़े क्षेत्र में केले की खेती करते हैं अपनी निगरानी में और इससे दवा का निर्माण करते हैं। दूसरे दिन जब उन पारंपरिक चिकित्सक से बात हुई तो मैंने उन्हें खुलासा करते हुए बताया कि आप के मरीज डायबिटीज से प्रभावित है और उसके लिए वे metformin नामक दवा का प्रयोग कर रहे हैं। इस दवा की केले के छिलके के साथ विपरीत प्रतिक्रिया होती है जिसके कारण आप की दवा पार्किंसन में असर नहीं कर रही है। इस बारे में पारंपरिक चिकित्सक कम ही जानते हैं और पहले जब इस दवा का प्रयोग इतना सामान्य नहीं था तब इस तरह का इंटरेक्शन ज्यादा ध्यान में नहीं आता था। मैंने उन्हें और विस्तार से बताया कि आधुनिक विज्ञान भी इस बात को मानता है और उन्होंने अपने नवीनतम शोधों के माध्यम से यह सिद्ध किया है कि जब मेटफॉर्मिन का प्रयोग डायबिटीज की चिकित्सा के लिए किया जाता है तो बहुत से मामलों में विटामिन B12 का अवशोषण रुक जाता है अर्थात शरीर में विटामिन B12 की कमी हो जाती है। मैं आपको बताना चाहता हूं कि केले के छिलके में बहुत अधिक मात्रा में विटामिन B12 होता है। हो सकता है कि आपके फॉर्मूलेशन की कारगरता के पीछे भी इसी विटामिन का किसी तरह से योगदान हो। यही कारण है कि मैं metformin का प्रयोग करने वाले रोगियों पर आप जब इस फार्मूले का प्रयोग करते हैं तो यह फार्मूला असरहीन साबित होता है। मैंने इस ओर विशेष ध्यान देने की बात कही विशेषकर भविष्य में और फिर उनसे कहा कि आप अपने मरीज से कहें कि वह मेटफॉर्मिन का प्रयोग पूरी तरह से रोक दें जिससे कि यह फार्मूला फिर से कारगर हो जाए और मेटफार्मिन के स्थान पर डायबिटीज की दूसरी आधुनिक दवा का प्रयोग किया जा सकता है। इसकी केले के छिलके वाले फॉर्मूलेशन से किसी भी तरह की विपरीत प्रतिक्रिया नहीं होगी। पारंपरिक चिकित्सक ने मेरी बातों के आधार पर उन मरीज से बात की और जल्दी ही उनकी दवा बदल दी। इस तरह उनका फार्मूला फिर से काम करने लगा और किसान के भाई को इस पार्किंसन जैसे लक्षण वाली बीमारी से मुक्त होने में 3 महीनों का समय लगा। जब वे पूरी तरह से ठीक हो गए तो किसान महोदय ने मुझसे संपर्क किया और धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि एक बार काम निकल जाने के बाद पिछली बार मैं आपको भूल गया था पर अब मैं आपको भूलना नहीं चाहता हूं और लगातार आप के संपर्क में रहना चाहता हूं। मुझे अभी तक जो भी सफलता मिली है वह आप के कारण ही मिली है। हृदय से इस स्वीकारोक्ति को सुनकर मैंने उन्हें धन्यवाद दिया। सर्वाधिकार सुरक्षित

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