Consultation in Corona Period-283 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया

Consultation in Corona Period-283 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया "आप पिछले 3 घंटों से लगातार बोल रही है। आप बहुत थक गई होंगी। आपकी जबान अब लड़खड़ाने लगी है और आप सही जानकारी नहीं दे पा रही है। मेरा तो यही कहना है कि आप थोड़ी देर विश्राम कर ले। उसके बाद फिर अपनी समस्या बताना शुरू करें। वैसे आपने सब कुछ तो बता ही दिया है। पहले आपने अपनी तकलीफ के बारे में बताया फिर आपने अपनी दवाओं के बारे में बताया। उसके बाद आपने खानपान के बारे में बताया फिर आपने अपने पूर्व के चिकित्सकों के दोष बताए। फिर अपने परिवार वालों के बारे में बताया। उसके बाद आपने पड़ोसियों के बारे में बताया। उसके बाद आपने उन लोगों के बारे में बताया कि जिन्होंने बचपन से लेकर अभी तक आपको सताया है। आपने अपने स्कूल के बारे में भी बताया और अपने कॉलेज की पढ़ाई के बारे में भी। अब तो मैं आपके सभी प्रोफेसरों को नाम से जान गया हूं और उनके चरित्र के बारे में भी आपसे जानकारी मिल गई है पर आपकी बात तो खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। अब आप राजनीति पर बात कर रही हैं। पहले आपने भारत की राजनीति पर बात की अब वैश्विक राजनीति पर आप अपने विचार व्यक्त कर रही हैं। आप आराम से बैठिये। चाहे तो आप कुछ देर वापस जाकर अपने होटल में विश्राम कर सकती है। मैं आपको अलग से समय दूंगा जिससे आप आकर फिर मुझसे मिल लें और बची खुची जानकारी भी मुझे दे दे।" मेटास्टैटिक ब्रेस्ट कैंसर से प्रभावित एक महिला को मैं यह बात कह रहा था जिन्होंने मुझसे मिलने के लिए 5 घंटों का समय लिया था। मैंने शुरू में तो इंकार कर दिया था पर जब उन्होंने बताया कि उनकी समस्या बहुत गंभीर है तो मैंने उन्हें समय दे दिया और निश्चित समय पर उनका इंतजार करने लगा। जब वे आई तो शुरुआत के आधे घंटे में ही उनकी समस्या के समाधान का उपाय मुझे सूझ गया पर क्योंकि उन्होंने 5 घंटे का समय लिया था इसलिए वे लगातार बोले जा रही थी और रुकने का नाम नहीं ले रही थी। उन्हें सभी चिकित्सकों ने साफ कह दिया था कि इस कैंसर की चिकित्सा बहुत कठिन है। वे इस बात को समझती थी कि अब वापसी बहुत कठिन है। मुझे लगा कि इसी मानसिक तनाव में वे इतना अधिक बोल रही हैं इसलिए मैं धैर्य पूर्वक उनकी बात सुनता रहा पर 3 घंटों के बाद मेरे सब्र का बांध टूट गया तब मैंने उनसे यह अनुरोध किया। इस बीच मैंने एक छोटा सा परीक्षण भी किया और उन्हें कहा कि इस परीक्षण की एक बड़ी शर्त यह है कि इस परीक्षण के दौरान प्रभावित व्यक्ति को चुपचाप रहना होता है। किसी भी प्रकार से बोलने पर परीक्षण के विपरीत परिणाम आ सकते हैं। ऐसा कहने के बावजूद भी उन्होंने बोलना जारी रखा परीक्षण के पहले भी परीक्षण के दौरान भी। परीक्षण के बाद जब उन्होंने वॉशरूम के इस्तेमाल करने की बात कही तो मैंने उन्हें वाशरूम का रास्ता दिखा दिया। जब वे उठी तो सामने की ओर गिरने लगी। मैंने उन्हें कहा कि यह आपको चक्कर आने के कारण हो रहा है तो उन्होंने कहा कि हां मुझे ऐसे ही चक्कर आते हैं और इसके कारण मैं सामने की ओर गिरने लग जाती हूं। वॉशरूम में थोड़े लंबे समय तक बैठने के बाद उन्होंने बताया कि मैं एक बात तो आपको बताना भूल ही गई हूं। मुझे लगातार कब्ज की शिकायत रहती है और जैसे ही कब्ज की शिकायत ठीक होती है मुझे दस्त हो जाते हैं। जब दस्त ठीक होते हैं तो फिर से कब्ज हो जाता है। हमेशा एक जैसी स्थिति नहीं रहती है। चाहे मैं एक ही तरह का भोजन क्यों न करूं। बड़ी देर के बाद उन्होंने एक महत्वपूर्ण जानकारी दी थी। जब वापस आई तो मैंने अपने कमरे के पंखे को बंद कर दिया। वह कमरा अच्छा खासा गर्म होने लगा था। उसके बाद फिर मैं उनकी बातों पर ध्यान देने लगा तो मुझे लगा कि कमरा गर्म होने के बाद उनकी बात करने की क्षमता बहुत बढ़ जाती है और वह संतुलित तरीके से बात नहीं कर पाती हैं। उनके साथ आए उनके परिजन से मैंने पूछा कि क्या ये सुबह के समय अधिक लंबी देर तक बात करती हैं या शाम के समय? क्या ऐसा कुछ आपने देखा है तो उन्होंने बताया कि वह सुबह ही ज्यादा बोलती है। शाम को तो गंभीर हो जाती है। यह भी एक महत्वपूर्ण जानकारी थी। उनके परिजनों ने भी इस बात की पुष्टि की कि उन्हें कंधों में लगातार दर्द होता है और उसके लिए वह तरह तरह के उपायों को करती हैं। उन्हें लगता है कि ब्रेस्ट कैंसर के कारण ऐसा हो रहा है। साढ़े 4 घंटे बाद जब वे थक कर निढाल हो गई और उनके परिजन और मैं भी सुनते सुनते थक गए तब मैंने उन से अनुरोध किया कि आप मेरी बात उन वैद्य से कराएं जिनसे आप लंबे समय से अपने कैंसर की चिकित्सा के लिए दवा ले रही हैं। वह हिमालय के वैद्य थे। फोन पर आते ही जब मैंने उनके इस मरीज के बारे में उन्हें बताया तो वह झट से पहचान गए। मैंने उन्हें बताया है कि आपका मरीज मुझसे मिलने आया है और पिछले साढे 4 घंटों से लगातार बोल रहा है बिना रुके तब वैद्य महोदय ने कहा कि मैं उन मरीज को बड़े अच्छे से जानता हूं और उनकी लगातार बात करने की आदत को भी। जब वे मेरे पास आती है तो उस दिन में कोई काम नहीं करता हूं। बस बैठे बैठे उनकी बात सुनता रहता हूं। मेरी परेशानी को देखते हुए वैद्य जी ने कहा कि आपके पास तो ऐसे एक ही व्यक्ति ने संपर्क किया है मेरे पास तो ऐसे दसों लोग आते हैं और मुझे अपनी समस्या बताते रहते हैं। मैंने उनसे उनके फार्मूले के बारे में विस्तार से जानकारी ली और फिर उन्हें खुलासा करते हुए बताया कि यह आग आपकी ही लगाई हुई है। वह मेरे मतलब को नहीं समझे तब मैंने उन्हें बताया कि आप अपने फॉर्मूलेशन में वन काकरा नामक हिमालयी वनस्पति का प्रयोग बहुत अधिक मात्रा में कर रहे हैं जिसके कारण इस तरह के ज्यादा बोलने के लक्षण आ रहे हैं। जैसा कि आपने बताया है कि आप इसका प्रयोग सप्तम घटक के रूप में करते हैं यदि आप अपने फॉर्मूलेशन में इसका प्रयोग पंचम या तृतीयक घटक के रूप में करेंगे तो आप के मरीजों को अधिक बोलने की समस्या से पूरी तरह से छुटकारा मिल जाएगा। उन वैद्य जी को मेरी बातों पर एकाएक यकीन नहीं हुआ। मैंने उनसे कहा कि यदि आप चाहें तो इस वनस्पति को आप अपने फॉर्मूलेशन से पूरी तरह से हटा भी सकते हैं क्योंकि इसकी बेस्ट कैंसर की चिकित्सा में सीधी भूमिका नहीं है बल्कि प्राथमिक घटक के रूप में आप जिन वनस्पतियों का प्रयोग करते हैं उनके प्रभाव को बढ़ाने के लिए इस वनस्पति का प्रयोग फॉर्मूलेशन में किया जाता है। मैंने उनसे यह भी कहा कि आपका फॉर्मूलेशन बेहद सटीक है पर इसकी एक सीमा है। यदि आप चाहे तो मैं आपको कुछ ऐसे घटकों के बारे में बता सकता हूं जिन्हें आप नवम घटक के रूप में अपने फॉर्मूलेशन में प्रयोग करेंगे तो फार्मूलेशन का प्रभाव कई गुना बढ़ जाएगा और हो सकता है कि लंबे समय तक इसका उपयोग करने से इन महिला को ब्रेस्ट कैंसर से पूरी तरह से छुटकारा मिल जाए। मैंने उन्हें कई तरह के केस बताएं जिन्हें पहले मैंने इस तरह के फार्मूलेशन को मजबूत बनाकर ठीक किए थे। वह इन सब जानकारियों को पाकर बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि वह 15 दिनों के बाद मुझसे संपर्क करेंगे और अब अपने मरीजों को इस वनस्पति से रहित फॉर्मूलेशन का प्रयोग करने को कहेंगे। जल्दी ही उन्होंने फोन करके इस बात की पुष्टि की कि इस वनस्पति को फॉर्मूलेशन से पूरी तरह हटा देने के बाद फॉर्मूलेशन पर तो वह ज्यादा असर नहीं पड़ा पर इसके प्रयोग के बाद जो अचानक ही उनके मरीज बहुत ज्यादा बोलने लग जाते थे वह लक्षण पूरी तरह से खत्म हो गया। वह इसका कारण जानना चाहते थे। मैंने उनसे कहा कि यदि आयुर्वेद के दृष्टिकोण से आप देखें तो इस वनस्पति का प्रयोग फॉर्मूलेशन में सप्तम घटक के रूप में करने से शरीर में वात का प्रकोप बहुत बढ़ जाता है और जब वात का प्रकोप बहुत बढ़ता है तो रोगी अनावश्यक रूप से बहुत ज्यादा बड़बड़ाने लग जाता है और यदि आप आधुनिक दृष्टिकोण से देखें तो इस वनस्पति में एक विशेष तरह का रसायन पाया जाता है जिस कि अधिकता शरीर में इस तरह के लक्षण उत्पन्न करती है। इस समस्या को सभी चिकित्सा पद्धतियों की सहायता से आसानी से समझा जा सकता है। उन्होंने धन्यवाद दिया। जब अगली बार उन महिला ने मुझसे संपर्क किया तो मैंने उनसे कहा कि अब आपको ज्यादा बोलने की समस्या से छुटकारा मिल गया होगा। उन्होंने कहा कि कम बोल कर उन्हें बहुत अच्छा लग रहा है और मानसिक तनाव बहुत कम हो गया है। उनके कैंसर के दर्द में भी कमी आई है। मैंने उन्हें यही सलाह दी कि आप अपने वैद्य जी की दवा जारी रखें इससे आपको लाभ होगा। आपको मुझसे किसी भी तरह की दवा की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। मुझे उम्मीद है कि यदि आप लगातार वैद्य जी की दवा लेती रहेंगी तो आपको अपनी इस जानलेवा समस्या से पूरी तरह से मुक्ति मिल जाएगी। उन्होंने मुझे धन्यवाद दिया। मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी। सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

Popular posts from this blog

गुलसकरी के साथ प्रयोग की जाने वाली अमरकंटक की जड़ी-बूटियाँ:कुछ उपयोगी कड़ियाँ

कैंसर में कामराज, भोजराज और तेजराज, Paclitaxel के साथ प्रयोग करने से आयें बाज

भटवास का प्रयोग - किडनी के रोगों (Diseases of Kidneys) की पारम्परिक चिकित्सा (Traditional Healing)