Consultation in Corona Period-280 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया

Consultation in Corona Period-280 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया "एक 30 वर्षीय युवती का केस हम आपके पास भेज रहे हैं। इस युवती को अभी तो मिर्गी जैसे लक्षण आ रहे हैं। यह लक्षण साल भर नहीं आते हैं। विशेष मौसम में बढ़ जाते हैं पर अभी इसी समस्या के लिए उसे हमारे अस्पताल में भर्ती किया गया है। जब हमने उस युवती की पूरी तरह से जांच की तो हमें पता चला कि उसके लीवर और किडनी में खराबी है और खराबी का स्तर इतना अधिक बुरा है कि अब इन दोनों अंगों को बदलने की आवश्यकता है। उसे इस तरह की समस्या पिछले कई सालों से हो रही है और जिसके लिए उसने सभी तरह की चिकित्सा पद्धतियों का इस्तेमाल किया है। बहुत सारी दवाओं का प्रयोग किया है। चिकित्सकों के कहने पर अपनी जीवन पद्धति में भी सुधार किया है। जब वह अस्पताल में भर्ती हुई तो उस दिन उसकी स्थिति बहुत खराब थी। जब उसकी स्थिति स्थिर हुई तब हमने यह जानने की कोशिश की कि उसके ये महत्वपूर्ण अंग क्यों काम करना बंद कर रहे हैं। लंबे अध्ययन के बाद भी हम किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सके तब हमने आपकी सेवाएं लेने का निश्चय किया। हम आपसे किसी तरह की दवा की उम्मीद नहीं करते हैं। आप एक बार नियत समय पर हमसे मिलने आ जाएं और इस केस पर चर्चा कर ले। आपकी राय हमारे लिए महत्वपूर्ण होगी। हमने आपकी टिकट की व्यवस्था कर दी है और दिल्ली में रुकने का प्रबंध भी कर दिया है। इसके साथ ही हमने संदेश के द्वारा उस युवती की सारी रिपोर्ट भेज दी है और एक छोटा सा वीडियो भी बना कर भेज दिया है। आप मुश्किल से हमें 2 घंटों का समय दीजिए। उसके बाद आप अगली फ्लाइट से वापस लौट सकते हैं। इसमें अधिक समय नहीं लगेगा।" दिल्ली के एक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल से जब इस तरह का संदेश आया तो मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा। मैं नियत समय पर फ्लाइट पकड़कर दिल्ली पहुंच गया और उन विशेषज्ञों के सामने प्रस्तुत हो गया जो कि इस केस पर मुझसे चर्चा करना चाहते थे। मैंने पहले उस युवती से बात की और उसकी समस्या के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश की। उसने मुझे 10 और ऐसे महत्वपूर्ण लक्षणों के बारे में बताया जिसके आधार पर मैंने चर्चा के दौरान विशेषज्ञों से पूछा कि क्या यह युवती किसी रूप में अग्निशिखा नामक वनस्पति का प्रयोग कर रही है तब उनके चिकित्सकों ने कहा कि पहले उसने अपनी गाउट की समस्या के लिए इस वनस्पति का प्रयोग किया था लंबे समय तक पर अभी पिछले कुछ सालों से वह इसका प्रयोग नहीं कर रही है। मैंने कहा एक संभावना तो यह हो सकती है कि उस वनस्पति का कुछ भाग शरीर के किसी महत्वपूर्ण अंग विशेषकर किडनी और लीवर में रह गया हो जिसके कारण उसे इस तरह के लक्षण आ रहे हैं। फिर मैंने पूछा कि क्या वह किसी रूप में कसावा का प्रयोग करती है तब मुझे बताया गया कि वह कसावा की बहुत शौकीन है और इसके तरह-तरह के व्यंजन बनाकर खाती है। कसावा का प्रयोग उसके परिवार में अधिकतर होता है। जब मैंने उस युवती के परिवार वालों से बात की और उनसे पूछा कि वे कसावा को किस तरह से पकाते हैं तो मुझे उनके पकाने की विधि में दोष नजर आया और इस आधार पर मैंने विशेषज्ञों से कहा कि युवती को आने वाले लक्षण के लिए कसावा भी काफी हद तक उत्तरदाई हो सकता है। मुझे बताया गया कि उत्तर भारत में इस युवती का घर है और जब सेव में बहार आती है अर्थात बागानों में सेव फलना शुरू होते हैं तब उसकी समस्या विशेष रूप से बढ़ जाती है। यह एक महत्वपूर्ण जानकारी थी। हम लंबे समय तक इस केस पर चर्चा करते रहे और यह निश्चय किया कि मुझे दिल्ली में दो-तीन दिन रुकना होगा ताकि और अधिक जानकारी एकत्र की जा सके। मेरी टिकट कैंसिल कर दी गई। दूसरे दिन जब मैं उस युवती से मिलने अस्पताल गया तो वहां उसका छोटा भाई भी मौजूद था। जब उससे बात होने लगी तो उसने एक विचित्र सी बात बताई। उसने बताया कि दीदी को आम लोगों के विपरीत विभिन्न फलों के बीजों को खाने का शौक है यानी वह ऐसे बीजों का प्रयोग भी करती हैं जिसका प्रयोग मनुष्य अधिकतर नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए उसने बताया कि दीदी को नींबू के बीज बहुत अधिक पसंद है और वह इन बीजों को देखते ही तुरंत खा जाती है। उसने यह भी बताया कि जब बागीचों में सेव मिलने लग जाते हैं तो उसे सेव में कम रुचि होती है और उसके बीजों में अधिक रुचि रहती है। वह बड़े चाव से बीजों का प्रयोग करती है और उसे हमेशा इस मौसम का इंतजार रहता है। मुझे पहले यह भी बताया गया था कि इस मौसम में उसकी समस्या बढ़ जाती है पर फिर भी बीजों के कारण उस युवती को इस मौसम का इंतजार रहता था। अब समस्या का कारण दिखने लगा था। दूसरे दिन जब हम चर्चा के लिए बैठे तो मैंने चिकित्सकों को यह बात बताई और कहा कि अग्निशिखा, कसावा और सेव के बीज में थोड़ी मात्रा में सायनाइड पाया जाता है। सायनाइड के कारण ही शरीर को कई तरह से नुकसान होता है और मिर्गी जैसे लक्षण भी आते हैं विशेषकर जब साइनाइड युक्त खाद्य पदार्थों का लंबे समय तक प्रयोग किया जाता है। सेव के बीज में बहुत अधिक मात्रा में सायनाइड नहीं होता है। यदि कोई व्यक्ति सेव के बीजों को 150 से 220 की मात्रा में प्रतिदिन खाए तब कुछ तो लक्षण दिखाई देते हैं और अधिक मात्रा में खाए तो यह जानलेवा भी हो सकता है पर अधिकतर लोग सेव के बीजों का प्रयोग नहीं करते हैं इसलिए सेव से होने वाली सायनाइड प्वाइजनिंग के बारे में आम लोगों में जानकारी नहीं है। मैंने उन चिकित्सकों से यह भी खुलासा किया कि पहले मुझे बताया गया था कि यह युवती सेव के बीजों को बहुत पसंद करती है तब मैंने सोचा था कि वह कम मात्रा में इसका प्रयोग करती होगी पर बाद में मुझे बताया गया कि जितने लोग भी घर में और आसपास में सेव का प्रयोग करते हैं उन सब से वह बीजों को एकत्र कर लेती है फिर उसे चाव से खा जाती है। निश्चित ही बीजों की इतनी अधिक मात्रा से उसे सायनाइड प्वाइजनिंग की समस्या हो रही होगी। पहले मेरा शक कसावा और अग्निशिखा पर था पर क्योंकि वह अग्निशिखा का प्रयोग बंद कर चुकी है और कसावा से इतनी अधिक मात्रा में सायनाइड प्वाइजनिंग नहीं होती है इसलिए मैं थोड़ा असमंजस में था पर एक बार सेव वाली बात सामने आने से अब समस्या का कारण पता चल रहा है। मैंने चिकित्सकों से अनुरोध किया कि वे अपनी पद्धति के अनुसार इस बात की जांच करे कि क्या सायनाइड अधिक मात्रा में लिवर और किडनी में उपस्थित है या शरीर के दूसरे हिस्से में जिसके कारण इस तरह के लक्षण आ रहे हैं और साथ ही मैंने उनसे अनुमति मांगी कि मैं एक छोटा सा परीक्षण करना चाहता हूं जिससे कि मैं पता लगा सकूं पारंपरिक विधियों की सहायता से कि युवती के शरीर में क्या सायनाइड की पर्याप्त मात्रा उपस्थित है। उन्होंने परीक्षण की अनुमति दे दी और फिर जब मैंने युवती को कई तरह की वनस्पतियों के चूर्ण को चखने को कहा और उसने आशा के अनुरूप उन वनस्पतियों का स्वाद दूसरा बताया तो मुझे पता चल गया है कि मेरा अनुमान सही था। चिकित्सकों ने उन विशेषज्ञ की राय ली जो कि सायनाइड प्वाइजनिंग पर वर्षों से शोध कर रहे थे। उन्होंने अपने विज्ञान के अनुसार युवती की जांच की और इस बात की पुष्टि की कि सायनाइड की पर्याप्त मात्रा युवती के शरीर में उपस्थित है पर वह दूसरे रूप में उपस्थित है। मैंने अंतिम रूप से यही अनुमोदन दिया कि यदि सायनाइड की मात्रा कम कर दी जाए और उस युवती से कहा जाए कि वह सेव के बीजों का इस तरह से अधिक मात्रा में प्रयोग न करें तो धीरे-धीरे उसकी समस्या का समाधान हो जाएगा अर्थात लीवर ठीक से काम करने लगेगा और किडनी भी और उसे मिर्गी जैसे लक्षण आने भी पूरी तरह से रुक जाएंगे। उसे किसी भी तरह की दवा की आवश्यकता नहीं है पर यदि उसकी जीवनी शक्ति अच्छी है और आयुर्वेद के कोई चिकित्सक इसे उपयुक्त मानते हैं तो वह पंचकर्म के माध्यम से अपने शरीर की शुद्धि करवा सकती है। पंचकर्म में विशेष तरह की वनस्पतियों का प्रयोग करने से सायनाइड की विषाक्तता को कम किया जा सकता है पर इसके लिए यह बहुत जरूरी है कि युवती की जीवनी शक्ति अच्छी होनी चाहिए। इस कार्य को बाद में भी किया जा सकता है अर्थात जब उसकी जीवनी शक्ति ठीक हो जाए और शरीर में सायनाइड की आपूर्ति बंद हो जाए। उसके बाद इस पद्धति को अपनाने से उसे इस विष से उबरने में अधिक समय नहीं लगेगा। चिकित्सकों ने मुझे धन्यवाद दिया और पूछा कि क्या आपके पास पारंपरिक चिकित्सा में ऐसे मेडिसिनल राइस है जिनका प्रयोग करने से इस विषाक्तता को कम समय में दूर किया जा सकता है तब मैंने कहा कि ऐसे मेडिसनल राइस तो है पर अभी इन मेडिसिन राइस की खेती कोई नहीं कर रहा है। इसकी उपलब्धता नहीं है इसलिए हम चाह कर भी इन मेडिसिनल राइस का प्रयोग नहीं कर सकते हैं। मेरी बात से वे संतुष्ट दिखाई दिए। मैं वापस लौट आया। उस युवती को पूरी तरह से सायनाइड की विषाक्तता से मुक्त होने में कई महीनों का समय लगा पर यह अच्छा रहा कि समय रहते उसकी समस्या के कारण का पता चल गया और उस बीज की आपूर्ति पूरी तरह से रोक दी गई। इससे बेवजह ही वह बड़ी परेशानी में पड़ने से बच गई। सब ने राहत की सांस ली। सर्वाधिकार सुरक्षित

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