Consultation in Corona Period-282 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
Consultation in Corona Period-282
Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"सर जब मैंने आपका लेख फेसबुक पर पढ़ा और जाना कि गाय को भी डायबिटीज हो सकती है और डायबिटीज वाली गाय का दूध कितना हानिकारक हो सकता है तब मैंने पहली बार जाना है कि ऐसा भी होता है। मैंने बहुत सी गीर गाय पाल कर रखी है और उन गाय के दूध को बेचकर ही मैं अपना जीवन चलाता हूं। मैं पहले एक अध्यात्मिक संस्थान के कहने पर गाय को गन्ने खिला रहा था भोजन के रूप में पर आप का लेख पढ़ने के बाद जब मैंने अपने अपनी गायों की जांच करवाई तो पाया कि मेरे पास 10 से अधिक ऐसी गाय हैं जो कि डायबिटीज की समस्या से पीड़ित हैं और जब इन्हें गन्ना खिलाया जाता है तो उनकी समस्या बढ़ जाती है और न केवल गाय को समस्या होती है बल्कि उसके दूध को पीने वाले लोगों को भी नाना प्रकार की समस्याएं होती हैं।
इसके बाद आपने एक और लेख लिखा जिसमें आपने बताया था कि यदि चारागाह में गाजर घास नामक खरपतवार हो तो कैसे गाय के दूध पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। मेरा अपना खुद का चारागाह है और मैंने बिना किसी देरी के लेख पढ़ने के बाद अपनी निगरानी में चारागाह से गाजर घास को पूरी तरह से साफ कर दिया।
हम लोग चाहते हैं कि आप एक बार हमारे फार्म में आ जाए और सारी व्यवस्था को देख ले। अगर इस व्यवस्था में किसी प्रकार की त्रुटि हो तो आप हमें बता दें। अभी हमारे पास 100 से अधिक गीर की गाय हैं और हम अपने व्यापार को बहुत बढ़ा चुके हैं पर हमारा मूल उद्देश्य समाज सेवा है। हम इस व्यापार से धन नहीं कमाना चाहते हैं। हम आपकी फीस देने को तैयार हैं। आप जब भी कहेंगे तो हम आपको लेने आ जाएंगे।
हम चाहते हैं कि आप एक पूरा दिन हमारे साथ बिताए और आवश्यक परामर्श दें।" पास के शहर से जब इस तरह का संदेश आया तो मैंने संदेश भेजने वाले सज्जन से कहा कि मैं जल्दी ही आपके फॉर्म में आऊंगा और आपके द्वारा किए जा रहे हैं समाज सेवा के कार्यों का अवलोकन करूंगा। नियत समय पर मैं उनके फार्म में पहुंच गया।
रास्ते में उन्होंने बताया है कि गीर की गाय के दूध की बहुत मांग है। उन्होंने साधारण दूध से इस दूध की कीमत दोगुनी रखी है फिर भी खरीदने वालों की कतार खत्म ही नहीं होती है। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने दो वेटरनरी डॉक्टर विशेष रूप से रखे हैं ताकि गाय किसी भी तरह से बीमार न हो।
उनके फार्म पहुंचते ही मैंने पहले निश्चय किया कि मैं उन सभी 100 गायों को देखूंगा और उनके स्वास्थ्य की जानकारी लूंगा। वेटनरी डॉक्टर और उन सज्जन के साथ मैंने एक एक गाय का परीक्षण करना शुरू किया तो इस पूरे परीक्षण में 3 से 4 घंटों का समय लग गया। परीक्षण से यह पता चला है कि उनकी 100 में से 80 भी गाय किसी न किसी बीमारी से त्रस्त थी और इन बीमारियों के बारे में वेटरनरी डॉक्टर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे थे क्योंकि इन बीमारियों का गाय के दूध पर किस तरह का असर पड़ता है इस बारे में हमारे देश में पारंपरिक ज्ञान तो है पर आधुनिक विज्ञान ने इस पर अधिक शोध नहीं किया है। यही कारण है कि पशु चिकित्सकों ने अपनी पढ़ाई के दौरान इस तरह की किसी भी प्रकार की जानकारी एकत्र नहीं की है।
जब हम सब एक जगह बैठे तो मैंने उन्हें बताना शुरू किया है कि 15 नंबर की गाय को हर्पिस नामक बीमारी है और यदि इस गाय के दूध का प्रयोग ऐसा व्यक्ति करे जो कि मिर्गी की दवा ले रहा हो विशेषकर आधुनिक दवा ले रहा हो तो उसे विपरीत लक्षण आ सकते हैं और उसकी जान पर भी बना सकती है।
इसी प्रकार तेरह नंबर की गाय को फंगल इंफेक्शन है। इस गाय के दूध का प्रयोग यदि ऐसा व्यक्ति करे जो कि डायबिटीज के लिए लंबे समय से मैटफार्मिन नामक दवा का प्रयोग कर रहा है तो उसे नाना प्रकार के विकार झेलने पड़ सकते हैं। इसी तरह 25 नंबर की गाय को कैंसर जैसे लक्षण आ रहे हैं जिसकी ठीक तरह से चिकित्सा नहीं की जा रही है। इस गाय का दूध यदि ऐसा मनुष्य प्रयोग करें जिसे कि अनिद्रा की शिकायत है तो वह शिकायत और अधिक उग्र हो जाएगी और किसी भी दवा से फिर उसे लाभ नहीं होगा।
इसी तरह 58 नंबर की गाय के शरीर में पुराना जख्म है जिसकी ठीक से देखभाल नहीं की जा रही है। यदि इस गाय के दूध का प्रयोग ऐसे व्यक्ति ने किया जिसे कि पेट का कैंसर है और उसकी कीमोथेरेपी के लिए सिस्प्लैटिन का उपयोग किया जा रहा है तो उसकी समस्या कई गुना अधिक बढ़ सकती है और सरल कैंसर भी जटिल कैंसर में बदल सकता है।
मैंने उन्हें आगे बताया कि 5 गाय ऐसी है जो कि बहुत सुस्त है और पिछले कुछ समय से खाना नहीं खा रही है। इस पर उन सज्जन ने कहा कि ऐसा अक्सर उनके फॉर्म में होता है जब गाय 2 से 3 दिन तक के भूखी रहती हैं। सुस्त बैठी रहती है और किसी तरह का भोजन नहीं ग्रहण करती हैं। इस अवधि के बीत जाने पर वे अपने आप भोजन ग्रहण करने लग जाती हैं और सामान्य हो जाती हैं।
मैंने उन सज्जन से कहा कि यदि आप एक ट्रैक्टर की व्यवस्था करें तो हम सब ट्रॉली में बैठकर आपके चारागाह का एक चक्कर मार सकते हैं। मुझे लगता है कि आपके चारागाह में अभी भी समस्या है। जब हम चारागाह पहुंचे तो मैंने ऐसे पौधे दिखाएं जिन्हें दूर से देख कर लगता था कि जैसे किसी ने उन पौधों पर थूका है। मैंने उन्हें कहा कि जो झाग की तरह द्रव दिखाई दे रहा है उसके अंदर एक कीट है जिसने अपनी रक्षा के लिए इस तरह का झाग बनाया है। यह झाग उसे मरने से बचाता है और तेज गर्मी से भी। इसे वैज्ञानिक भाषा में स्पिटल बग कहा जाता है यानी थूकने वाला कीड़ा।
चारे को खाते वक्त जानवर अक्सर इस कीड़े को भी खा लेते हैं। इससे उनकी वैसी स्थिति हो जाती है जैसे कि अभी इन 5 गायों को हो रही है।
मैंने उन्हें सलाह दी कि आप के फॉर्म में ज्यादातर कर्मचारी युवा है और उन्हें ज्यादा अनुभव नहीं है। मैं तो यही कहूंगा कि आप अपने फॉर्म में बुजुर्गों को रखें। ऐसे बुजुर्गों को जिन्होंने आजीवन पशुओं की सेवा की है। उनके पास जानकारियों का अंबार होता है और वह अपने पारंपरिक ज्ञान की सहायता से बहुत से जटिल रोगों को सरलता से ठीक कर देते हैं। उन्हें पीढ़ियों से यह अनुभव होता है कि कैसे गाय की देखभाल की जाए। यदि ऐसे बुजुर्ग आपके सामने होते तो वे आपको एक सरल सा उपाय बता दे जिससे कि स्पिटलबग की समस्या का समाधान हो सकता था।
वे एक विशेष तरह की औषधि का प्रयोग करते हैं जिसे गुड़ के साथ खिलाने से इस बग के कारण आ रहे हैं घातक लक्षण 1 घंटे के अंदर ही ठीक हो जाते हैं। उन सज्जन ने और उनके चिकित्सकों ने धन्यवाद दिया।
मैंने उन सज्जन से कहा कि आपने बताया है कि आप समाज सेवा के लिए यह कार्य कर रहे हैं, आपका व्यापारिक उद्देश्य नहीं है इसलिए यह जरूरी है कि जब आप दूध की दुगनी कीमत लेते हैं तो यह जरूरी है कि गायों को पूरी तरह से स्वस्थ रखा जाए ताकि उनके दूध में किसी भी प्रकार का विकार न आए।
इस पर उन सज्जन ने कहा कि हम हर गाय का दूध अलग से नहीं बेचते हैं बल्कि सभी गायों के दूध को मिला देते हैं तब मैंने उन्हें कहा कि यह तो और भी खतरनाक बात है। इतने तरह के दोष युक्त दूध जब आपस में मिलते होंगे तो पता नहीं कैसी भयानक प्रतिक्रिया होती होगी प्रयोगकर्ताओं के ऊपर और वे कभी इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा पाते होंगे कि वे जिस महंगे दूध का प्रयोग कर रहे हैं उसके कारण उन्हें इतनी जटिल स्वास्थ्य समस्याएं हो रही है।
मैंने आगे कहना शुरू किया कि आपकी कुछ गाय बहुत अधिक मानसिक तनाव में दिखती हैं। मनुष्यों की तरह ही सारी सुख सुविधाओं के बावजूद पशुओं में भी तनाव के लक्षण दिखाई देते हैं। यह शारीरिक तनाव भी हो सकते हैं और मानसिक भी। आखिर हमने उन पशुओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध बांध कर रखा है। ऐसे में यह भला तनाव क्यों नहीं हो सकता हैं।
मैंने उन्हें बताया कि जब पशु तनाव में रहते हैं तो उनके शरीर में स्ट्रेस हार्मोन निकलता है जो कि दूध की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है।
मैंने अनुमोदन किया कि यदि खुरेरा जैसे पारंपरिक उपाय अपनाए जाएं तो पशुओं को विशेषकर पालतू पशुओं को काफी हद तक नियंत्रण में रखा जा सकता है। एक तरह से उन्हें खुश रखा जा सकता है। पारंपरिक डेयरी फार्मिंग में खुरेरा को विशेष रूप से महत्व दिया जाता है पर आजकल तो कोई इस ओर ध्यान ही नहीं देता है। सभी का ध्यान दूध को निकालने में ही लगा रहता है।
मैंने उन्हें कई प्रकार के शोधों का हवाला देते हुए यह भी कहा कि वह चाहे तो दिन में कुछ घंटों के लिए बहुत धीमे स्वर में बांसुरी पर आधारित संगीत का प्रयोग अपनी गौशाला में कर सकते हैं। इससे भी पशुओं का मानसिक तनाव काफी हद तक कम होता है। मेरे इस अनुमोदन को मानने के लिए वे झट से तैयार हो गए और उन्होंने पूछा कि क्या पंडित हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी ठीक रहेगी? मैंने उनकी बात पर मुहर लगाते हुए कहा कि आपकी पसंद बेहतरीन है। इससे निश्चित ही लाभ होगा।
गायों के बारे में चर्चा होती रही। मैंने उनसे कहा कि कुछ गायें मुझे आवश्यकता से अधिक कमजोर दिखाई दे रही है विशेषकर 90 से 95 नंबर की गाय। तब उन सज्जन ने बताया कि वह एक छोटा सा प्रयोग कर रहे हैं कि कैसे जड़ी बूटियों की सहायता से गाय के दूध के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वह आधुनिक दवा का प्रयोग नहीं करना चाहते हैं क्योंकि उससे बहुत अधिक नुकसान होता है और गाय की किडनी खराब होने लग जाती है इसलिए वे एक वैद्य की सहायता से इस तरह का प्रयोग कर रहे हैं। उन्होंने जब वैद्य के फार्मूले के बारे में बताया तो मैंने कहा यह फार्मूला कारगर तो है पर इस फार्मूले के प्रयोग से गायों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है इसलिए जरूरी है कि इस फार्मूले में 3-4 और ऐसे घटक मिलाया जाए ताकि अधिक दुग्ध उत्पादन होने के बाद गाय के स्वास्थ्य पर किसी तरह का विपरीत प्रभाव न पड़े।
मैंने उनसे स्पष्ट शब्दों में कहा कि वैसे तो जिस गाय की जितनी क्षमता है उससे उतना ही दूध निकालना चाहिए। अनावश्यक की पारंपरिक या आधुनिक उपायों से उन पर दबाव नहीं बनाना चाहिए विशेषकर जब कि आपका उद्देश्य समाज सेवा हो तो ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
उसी समय उनका एक कर्मचारी आया और उसने ताजे दूध से बनी एक मिठाई हमें परोसी। उस मिठाई को कुछ समय पहले ही बनाया गया था। उसमें एक विशेष तरह की गंध आ रही थी जिसे सूँघने के बाद मैंने उस मिठाई को खाने से इंकार कर दिया और उनसे पूछा कि क्या आपकी गाय अधिक मात्रा में एंटीबायोटिक्स का प्रयोग कर रही है। उन्होंने इसकी पतासाजी की और बताया कि जिन गायों के दूध से मिठाई को तैयार किया गया है उन गायों की तबीयत ठीक नहीं है। उन्हें बैक्टीरियल इंफेक्शन हुआ है इसलिए उन्हें एंटीबायोटिक दिया जा रहा है लंबे समय से।
मैंने उन्हें सलाह दी कि जब गायों को एंटीबायोटिक दिया जाए तब उन्हें आराम करने दिया जाए और उनके दूध का प्रयोग न किया जाए। यदि ऐसे दूध का लंबे समय तक प्रयोग किया जाए तो उससे मनुष्यों के शरीर में इस प्रकार के एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है और जब वे बीमार पड़ते हैं और उनको इस तरह की एंटीबायोटिक दी जाती है तो उन्हें उच्च मात्रा की जरूरत होती है और कालांतर में एंटीबायोटिक उन पर असर करना बंद कर देती है और छोटी सी भी बीमारी होने पर उनकी जान पर बन आती है।
उनके पशु चिकित्सक बड़े धैर्य से मेरी बात सुनते रहे और मुझसे उन्होंने पूछा कि आप जो बातें कह रहे हैं वह क्या किसी किताब में मिलती है? हम इन बातों से बहुत प्रभावित है। हम इतने लंबे समय से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं पर इस तरह की जानकारी हमें कभी नहीं मिली है। मैंने उन्हें कहा कि किताब के रूप में यह जानकारी उपलब्ध नहीं है। हां मेरे लेखों के रूप में यह जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध है। यह जानकारी मैंने अनुभव के आधार पर एकत्र की है। मैं लंबे समय से पारंपरिक ज्ञान विशेषज्ञों के साथ काम कर रहा हूं जिससे कि मेरा ज्ञान थोड़ा सा बढ़ गया है।
मैंने उन चिकित्सकों से कहा कि वे अपने विश्वविद्यालयों को अनुमोदित करें कि इस तरह के ज्ञान के बारे में भी पाठ्यक्रम में बताया जाए ताकि इस तरह के ज्ञान को मान्यता मिल सके और पशुओं को लाभ हो सके।
वे सज्जन अपने डेयरी फार्म से बहुत ज्यादा मंत्रमुग्ध थे जब उन्हें इतने सारे दोष बताए गए तो वे परेशान हो गए। मैंने उनसे कहा कि परेशान होने की बात नहीं है फिर धीरे-धीरे करके इन दोषों को दूर करते जाएं।
यदि एक बार ये दोष दूर हो जाए तो सही मायने में उनकी समाज सेवा सफल हो जाएगी।
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