Consultation in Corona Period-278 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया

Consultation in Corona Period-278




Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"Purulent conjunctivitis के एक पेचीदा मामले के लिए हमने आपसे संपर्क किया है। यद्यपि यह केस महीनों पुराना है। पहले हमें शक था कि यह एक तरह का बैक्टीरियल इनफेक्शन है और उस आधार पर हम लोग एंटीबायोटिक से उपचार करने की कोशिश करते रहे पर जब किसी भी तरह से लाभ नहीं हुआ तो हमने इसे वायरल इनफेक्शन मानते हुए हर संभव कोशिश की इस इंफेक्शन को कम करने के लिए। आंखों से शुरू हुआ यह इंफेक्शन अब चेहरे तक पहुंच चुका है और जल्दी ही यह गले तक पहुंच जाएगा। ऐसा गंभीर मामला मैंने अपने 40 साल के कैरियर में नहीं देखा। हमने अपने शोध संस्थान में पहले इस केस को मैनेज करने की कोशिश की और जब असफल रहे तो दुनिया भर के चिकित्सकों से बात की और उनके अनुमोदनो को अपनाया। आप तो जानते हैं कि नेत्र चिकित्सा में भारत के विशेषज्ञ जितने दक्ष है उतनी दक्षता दुनिया भर के किसी विशेषज्ञ में नहीं है। 

हमने आपके यूट्यूब चैनल पर बहुत सारे वीडियो देखें जिसमें कि इस बीमारी के बारे में आपने प्रयोग की जाने वाली पारंपरिक दवाओं के बारे में जानकारी दी है। हमें लगा कि हो सकता है कि इन दवाओं का कोई वैज्ञानिक आधार हो जिसे समझ कर हम अपने इस मरीज पर इन दवाओं का प्रयोग कर सकें। वीडियो को देखने के बाद हमने आपके बारे में पढ़ा और आपके कैंसर ड्रग इंटरेक्शन के शोध कार्य को जाना। हम सभी ने यह निर्णय किया कि हमें आपसे एक बार सलाह लेनी चाहिए। सारी टेस्ट रिपोर्ट हम आपको भेज रहे हैं और आपके कहे अनुसार एक छोटा सा वीडियो भी बना कर भेज रहे हैं जिसे कि मरीज के ऊपर फिल्माया गया है। इसके अलावा दुनिया भर के एक्सपर्ट्स ने जो राय दी है उसे भी एक रिपोर्ट के रूप में हम आपको भेज रहे हैं। हमें मालूम है कि आप रोग का कारण जाने बिना किसी तरह की सलाह नहीं देते हैं इसलिए आपको पूरी तरह से स्वतंत्रता है कि आप किसी तरह का परीक्षण करना चाहे तो कर सकते हैं। प्रभावित व्यक्ति की हालत अभी ऐसी नहीं है कि उन्हें रायपुर लाया जा सके। हां, यदि आप दिल्ली आना चाहे तो आपका स्वागत है। हम आपके आने जाने का प्रबंध और आपकी फीस का प्रबंध कर देंगे।" दिल्ली से एक विशेषज्ञ का जब इस तरह का संदेश आया तो मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।

जब मैंने प्रभावित व्यक्ति का वीडियो देखा तो मैं चौक पड़ा क्योंकि यह बीमारी अब नियंत्रण से बाहर हो चुकी थी ऐसा लग रहा था और इन्फेक्शन पूरे चेहरे में फैल गया था और गले की ओर बढ़ रहा था। यदि समय रहते चिकित्सा नहीं की जाती है तो हालात बिगड़ सकते थे और स्थाई रूप से अंधेपन की समस्या हो सकती थी। मैंने फोन पर उन प्रभावित व्यक्ति और उनके परिजनों से लंबी चर्चा की। उनके खान-पान के बारे में विस्तार से जानकारी ली और यह भी जाना कि इसके अलावा उन्हें और कौन-कौन से स्वास्थ समस्याएं हैं और उनके लिए किस तरह की दवाई चल रही है। इस आधार पर मैंने एक किट तैयार किया और कोरियर के माध्यम से उसको दिल्ली भेजा।

 इस किट में 25 प्रकार की जड़ी बूटियों का चूर्ण था। किट में इसके दो सेट थे। इन जड़ी-बूटियों को जीभ के अगले सिरे में रखकर इनका स्वाद बताना था एक-एक करके। एक सेट प्रभावित व्यक्ति के लिए था जबकि दूसरा सेट संस्थान के दूसरे विशेषज्ञ के लिए था जो कि अपनी सेवा देने के लिए तैयार थे।

 जिन विशेषज्ञ ने मुझसे संपर्क किया था वे इस बात के लिए तैयार हो गए कि दूसरे सेट का उपयोग वे स्वयं करेंगे और परिणामों को वीडियो के माध्यम से मेरे पास भेजेंगे।

 जब परीक्षण के परिणाम सामने आए और प्रभावित व्यक्ति का वीडियो मुझे भेजा गया तो उससे यह स्पष्ट हो रहा था कि उन महोदय ने 25 में से 18 प्रकार की जड़ी बूटियों को स्वाद विहीन बताया था जबकि शेष जड़ी बूटियों को उन्होंने मीठा बताया था। विशेषज्ञ महोदय ने जो अपना वीडियो भेजा था उसमें उन्होंने कहा था कि सभी 25 प्रकार की जड़ी बूटियां बेहद कड़वी है। इन दोनों में विशेषज्ञ की बात ही सही थी। सभी जड़ी बूटियां बेहद कड़वी थी पर प्रभावित व्यक्ति को इन जड़ी-बूटियों के कड़वेपन का एहसास नहीं हो रहा था। इस आधार पर मैंने एक और परीक्षण करने की योजना बनाई और एक और किट प्रभावित व्यक्ति के लिए भेजा। इसमें दो प्रकार की जड़ी बूटियों का लेप था जिन्हें एक के बाद एक प्रभावित व्यक्ति के पैरों के तलवों में लगाना था और फिर सूखने के बाद उनकी जीभ में आने वाली प्रतिक्रिया का वीडियो बनाकर भेजना था। विशेषज्ञ महोदय ने दक्षतापूर्वक यह कार्य किया और जल्दी ही वह वीडियो मुझे प्राप्त हो गया। इस परीक्षण से बहुत सारी बातें स्पष्ट हो रही थी। यह भी स्पष्ट हो रहा था कि प्रभावित व्यक्ति को लीवर में किसी प्रकार का ट्यूमर था। इसके बारे में मुझे नहीं बताया गया था। जब मैंने यह बात उन विशेषज्ञ को बताई तो उन्होंने कहा कि इस ट्यूमर की बात इसलिए नहीं बताई गई क्योंकि यह benign tumor है अर्थात कैंसर के कारण यह ट्यूमर नहीं था और इससे किसी भी प्रकार से प्रभावित व्यक्ति को नुकसान नहीं हो रहा था।

 उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि कैसे एक सरल से परीक्षण के माध्यम से इस ट्यूमर की उपस्थिति का पता चल गया जबकि प्रभावित व्यक्ति में इस ट्यूमर का पता लगाने के लिए उन्हें कई तरह के परीक्षण करने पड़े थे। उन्होंने पूछा कि क्या इस ट्यूमर के कारण कंजेक्टिवाइटिस की यह गंभीर समस्या हो रही है तब मैंने कहा कि इस ट्यूमर के कारण नहीं हो रही है। हो सकता है कि इस ट्यूमर के कारण ली जा रही किसी प्रकार की दवा के कारण यह समस्या हो रही हो तब उन विशेषज्ञ ने कहा कि इस ट्यूमर के लिए किसी भी तरह की दवा प्रभावित व्यक्ति द्वारा नहीं ली जा रही है। मैंने उनसे कहा कि वे एक बार फिर से पूछताछ करें। मुझे लगता है कि प्रभावित व्यक्ति किसी प्रकार की दवा का प्रयोग कर रहे हैं विशेषकर किसी पारंपरिक दवा का। जब उन्होंने फिर से पूछताछ की और थोड़ी कड़ाई से पेश आए तो प्रभावित व्यक्ति ने बताया कि वे एक वैद्य से दवा ले रहे हैं अपने इस ट्यूमर के लिए ताकि यह ट्यूमर पूरी तरह से खत्म हो जाए। यह जानकारी उन्होंने विशेषज्ञ से छुपाई थी। 

अब सारा ध्यान उस दवा पर केंद्रित हो गया और वैद्य से संपर्क करने की योजना बनने लगी। जब वैद्य से संपर्क किया तो उन्होंने अपने गुप्त फार्मूले के बारे में जानकारी देने से मना कर दिया। हमेशा की तरह मैंने हार न मानते हुए उनसे उल्टे प्रश्न करने शुरू किए जिसके बाद यह स्पष्ट हो गया कि वह अपने फार्मूले में गुंजा के बीजों का प्रयोग कर रहे हैं। जब उनसे पूछा गया कि वह किस तरह से इन बीजों का शोधन करते हैं तो समस्या की जड़ का पता लगने लगा। उनकी शोधन विधि में बहुत अधिक दोष था। इस शोधन को लगातार एक महीने तक करना था। आलसवश केवल 1 हफ्ते तक ही वे शोधन कर रहे थे और इसी तरह जिन 50 प्रकार की वनस्पतियों का प्रयोग शोधन के लिए करना था उनमें से केवल वे 15 प्रकार की वनस्पतियों का ही प्रयोग कर रहे थे। गुंजा के बीजों को जब ठीक तरह से शोधन नहीं किया जाता और उसका प्रयोग किसी फार्मूले में सप्तम घटक के रूप में किया जाता है तो बहुत ही घातक लक्षण आते हैं। इन घातक लक्षणों में वे वे लक्षण शामिल है जो कि इन प्रभावित व्यक्ति के शरीर में दिख रहे थे। पुरूलेंट कंजेक्टिवाइटिस भी इसी के कारण इतना उग्र हो गया था। यह सब बातें मुझे अपने डेटाबेस की सहायता से पता चली। इस डेटाबेस में पारंपरिक चिकित्सकों से की गई बातें और जानकारियां दर्ज हैं और समय-समय पर इसकी सहायता से नए मामलों को सुलझाने में आसानी होती है। मैंने पूरी जानकारी उन विशेषज्ञ महोदय को दी तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने कभी न यह पढ़ा था न ही इस बारे में सोचा था कि किसी वनस्पति की विषाक्तता के कारण ऐसी समस्या हो सकती है। उन्होंने आधुनिक संदर्भ साहित्यों की खोज की और उसमें भी इस तरह की किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं मिली। पहले के शोधकर्ताओं ने इस ओर ध्यान नहीं दिया होगा। और जिन्होंने पारंपरिक ज्ञान का डॉक्यूमेंटेशन किया होगा उन्होंने भी इस जानकारी को महत्वपूर्ण नहीं समझा होगा। यही कारण है कि पीढ़ियों से इस तरह का ज्ञान होते हुए भी यह ज्ञान डॉक्यूमेंट के रूप में वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के पास उपलब्ध नहीं है। मैंने उन विशेषज्ञ से कहा कि यदि प्रभावित व्यक्ति इस फार्मूले का प्रयोग तब तक पूरी तरह से रोक दें जब तक इस फार्मूले में पूरी तरह से सुधार नहीं हो जाता तो मुझे लगता है कि धीरे-धीरे करके उनकी समस्या का समाधान हो जाएगा और उन्हें इस जटिल समस्या से पूरी तरह से मुक्ति मिल जाएगी।

 जब प्रभावित व्यक्ति को इस बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने तुरंत यह निश्चय किया कि वे अब इसका प्रयोग नहीं करेंगे। दवा को बंद करने के बाद लक्षणों को कम होने में 3 हफ्तों का समय लगा और उसके बाद फिर तेजी से समस्या का समाधान होने लगा। 

इस बीच मैंने उन वैद्य महोदय से फिर से संपर्क किया और उन्हें दोषपूर्ण फार्मूले के बारे में बताया। उनसे यह भी अनुरोध किया कि वे पता करें कि उनके दूसरे मरीज इस फॉर्मूलेशन का जब प्रयोग करते हैं तो क्या उन्हें भी इस तरह के लक्षण आते हैं तब उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि वे जल्दी ही इस बारे में जानकारी लेकर मुझे सूचित करेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि लंबे समय तक गुंजा का शोधन करना उनके बस की बात नहीं है। उनकी समस्या सुनकर मैंने उन्हें एक पारंपरिक चिकित्सक से मिलवाया जो कि छत्तीसगढ़ में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इन पारंपरिक चिकित्सक ने गुंजा के शोधन की एक सरल विधि बताई जिससे कि फार्मूले के दोष को सुधारा जा सकता था। अब वैद्य जी की राह आसान हो गई थी।

 1 हफ्ते के अंदर उन्होंने बताया कि उनके 200 से अधिक मरीजों को इस तरह की समस्या हुई थी। ये सभी मरीज ट्यूमर से प्रभावित थे और उनके फार्मूले का प्रयोग कर रहे थे। उन्हें अब गलती का एहसास हो रहा था। उन्होंने क्षमा मांगी और फार्मूले में सुधार के बाद ही उसके प्रयोग की ठान ली। 

यह मामला विशेषज्ञों के बीच लंबे समय तक चर्चा में रहा। मैंने उन विशेषज्ञ महोदय से कहा कि न केवल गुंजा बल्कि बहुत सी वनस्पतियां हैं जिनका यदि सही ढंग से उपयोग नहीं किया गया किसी फार्मूले में तो इस तरह के लक्षण आ सकते हैं इसलिए अगली बार जब भी आपके पास ऐसा कोई मामला आये जो उपलब्ध उपायों से ठीक न हो तब आप मेरी सेवाएं ले सकते हैं। मैं आपकी मदद करने की पूरी कोशिश करूंगा। उन्होंने धन्यवाद दिया।

 मैंने शुभकामनाएं दी।


 सर्वाधिकार सुरक्षित




Comments

Popular posts from this blog

कैंसर में कामराज, भोजराज और तेजराज, Paclitaxel के साथ प्रयोग करने से आयें बाज

गुलसकरी के साथ प्रयोग की जाने वाली अमरकंटक की जड़ी-बूटियाँ:कुछ उपयोगी कड़ियाँ

भटवास का प्रयोग - किडनी के रोगों (Diseases of Kidneys) की पारम्परिक चिकित्सा (Traditional Healing)