Consultation in Corona Period-266 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"हमने अभी-अभी कृषि की शिक्षा पूरी की है और हम 15 लोग आपसे मिलने आना चाहते हैं 6 महीने के बाद। अभी हम पारंपरिक धानों की खोज में निकल रहे हैं। हमारा लक्ष्य है कि हम 50 प्रकार के पारंपरिक धान को लेकर आपके पास में आएं। ऐसे धान जिनके बारे में उपलब्ध वैज्ञानिक साहित्य में किसी भी प्रकार की जानकारी उपलब्ध नहीं है। हम आपसे मिलकर इन पारंपरिक धान के बारे में जानना चाहेंगे विशेषकर इनके औषधीय उपयोगों के बारे में फिर वैज्ञानिकों के साथ मिलकर इन पर शोध करेंगे और उनके औषधीय गुणों को आधुनिक विज्ञान की कसौटी में कसने का प्रयास करेंगे।" युवा शोधार्थियों की टीम ने जब मुझसे संपर्क करने की कोशिश की तो मैंने उनका स्वागत किया और उन्हें विशेष तौर पर निर्देशित किया कि जब वे मुझसे मिलने आए तो औषधीय चावल के साथ में उस विशेष धान के पौधे भी लेकर आएं यदि संभव हो तो ताकि उन्हें न केवल चावल बल्कि दूसरे भागों के औषधीय गुणों के बारे में भी जानकारी दी जा सके।

 6 महीनों के बाद जब उनकी टीम मुझसे मिलने आई तो उन्होंने पारंपरिक धान के स्थानीय नाम मेरे सामने रख दिए और कहा कि आप अपने डेटाबेस में खोज कर बताएं कि इन धान के कैसे औषधीय गुण है और इनको किन किन बीमारियों में प्रयोग किया जा सकता है। 

मैंने उनसे कहा यह तो एक सरल रास्ता होगा। बेहतर यह होगा कि कौन सा पारंपरिक धान किस तरह की बीमारी में काम आता है और उसमे किस तरह के गुण होते हैं इसे विशेष तरह की पारंपरिक विधि से जाना जाये बिना किसी आधुनिक साहित्य की मदद से। मैं चाहता हूँ कि आप लोग इन पारंपरिक विधि को सीखे ताकि किसी भी तरह का धान आपके सामने प्रस्तुत कर देने पर आप बता सके कि इसे किस तरह उपयोग करना है और कैसे यह जटिल से जटिल बीमारियों को ठीक कर सकता है। एक बार जब इन सभी धान के बारे में आप लोग जानकारी एकत्र कर लेंगे उसके बाद मैं अपने डेटाबेस से सारी जानकारियां उपलब्ध करा दूंगा। मुझे उम्मीद है कि सारी जानकारियां मिलती जुलती होंगी क्योंकि मेरे डेटाबेस में जानकारियों का आधार यही पारंपरिक कसौटी है।

 मैंने उन्हें 50 तरह के पारंपरिक धान के औषधीय गुणों को जानने की पारंपरिक विधि सिखाई। इस प्रक्रिया में कई घंटों का समय लग गया पर उनका उत्साह देखते ही बनता था। उन्होंने सारी बातें ध्यान से सुनी और आवश्यक बातें नोट की। जब मैंने उनकी परीक्षा ली तो वे सभी उत्तीर्ण हो गए। 

मैंने यह ज्ञान पारंपरिक चिकित्सकों से एकत्र किया है और इसके बारे में विस्तार से अपने डेटाबेस में लिखा है। डेटाबेस को ऑनलाइन करने की तैयारी है पर निकट भविष्य में यह संभव नहीं दिखता है। मुझे इस बात की खुशी है कि कम से कम इन युवा शोधार्थियों के पास यह ज्ञान पहुंच गया है। अब यह अपने आप पूरी दुनिया में फैल जाएगा और हमारे पारंपरिक धान पूरी तरह से बचे रहेंगे।

 इसके बाद हम सभी ने नाश्ता किया और आपस में चर्चा करने लगे। उन्होंने एक विशेष प्रकार के ब्लैक राइस के बारे में बताया जिसे कि मुंबई की एक कंपनी किसानों से उगवा रही है और फिर इंटरनेट के माध्यम से इसे इम्युनिटी बढ़ाने वाले चावल के रूप में बेच रही है। जब मैंने उस ब्लैक राइस का परीक्षण किया तो मैंने कहा कि इससे उम्मीद यूनिटी बढ़ती है कि नहीं यह तो बताना मुश्किल है पर यदि थायराइड के कैंसर की किसी भी अवस्था में इस चावल का प्रयोग किया गया तो कैंसर तेजी से फैल सकता है विशेषकर जब मरीजों का कीमोथेरेपी का उपचार किया जा रहा हो। पारंपरिक चिकित्सा में इस ब्लैक राइस का उपयोग नहीं किया जाता है। संभवत: मुंबई की कंपनी को इस बारे में सही जानकारी नहीं है इसलिए वह किसी भी ब्लैक राइस को अच्छा बता कर बेचने का प्रयास कर रही है। सभी ब्लैक राइस वरदान नहीं होते हैं। इसी तरह सभी ब्लैक राइस अभिशाप भी नहीं होते हैं।

 उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि वे उस कंपनी से बात करेंगे और उनके डायरेक्टर को बताएंगे कि उनके द्वारा बेचा जा रहा ब्लैक राइस जन स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है विशेषकर थायराइड के कैंसर से प्रभावित लोगों के लिए। उन्हें इस बात का विशेष उल्लेख अपने उत्पाद में करना चाहिए और वैज्ञानिक परीक्षण के बाद ही इस ब्लैक राइस की मार्केटिंग करनी चाहिए।

 मैंने शोधार्थियों को बताया कि प्रोग्रेसिव सुप्रान्यूक्लियर पाल्सी की कोई प्रभावी चिकित्सा उपलब्ध नहीं है पर हमारे देश के पारंपरिक चिकित्सक पीढ़ियों से इस जटिल रोग की चिकित्सा कर रहे हैं भले ही वे यह नहीं जानते कि इस रोग का नाम क्या है। वे लक्षणों के आधार पर चिकित्सा करते हैं और उन्हें अच्छी सफलता मिलती है। 

"आप लोग जो पांच प्रकार के पारंपरिक धान लेकर आए हैं उनकी जड़ों का उपयोग पारंपरिक चिकित्सक करते हैं। इनकी फॉर्मूलेशन में अहम भूमिका होती है और इनके बिना यह फार्मूलेशन अधूरा माना जाता है। इन पांच तरह की जड़ों का उपयोग करने से प्रभावितों को बहुत जल्दी राहत मिलती है और वे सामान्य अवस्था की ओर लौटने लग जाते हैं।" मैंने उन्हें यह भी बताया कि बहुत से वैज्ञानिक अब इन चावल पर विशेष अनुसंधान कर रहे हैं और जल्दी ही उनके परिणाम आने वाले हैं। अभी तक जो परिणाम मिले हैं वे उसी क्रम में है जिसके बारे में पारंपरिक चिकित्सक अधिकतर चर्चा करते रहते हैं।

 जब उन्होंने 5 तरह के रेड राइस के नमूने मुझे दिखाए तो मैंने उनसे कहा कि इन रेड राइस को रात भर पानी में भिगो दिया जाता है और सुबह फिर उस पानी को पी लिया जाता है। यह डायबिटीज के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए पेनक्रियाज को फिर से सक्रिय कर देता है और डायबिटीज को जड़ से ठीक करने में सक्षम है। डायबिटीज को लाइलाज माना जाता है और यह माना जाता है कि केवल इसे मैनेज किया जा सकता है। इसका कोई पूरी तरह से उपचार नहीं किया जा सकता है। भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में इस बात को नहीं माना जाता है। वे रक्त में शुगर की मात्रा को कम करने की बजाय कोशिश करते हैं कि डायबिटीज के लिए जिम्मेदार अंग पैंक्रियास को फिर से सक्रिय किया जाए ताकि इस रोग का जड़ से इलाज हो सके। कुछ शोधार्थियों ने कहा कि उनके माता-पिता डायबिटीज से प्रभावित है। क्या वे इस रेड राइस का प्रयोग इस सरल विधि से कर सकते हैं तब मैंने उन्हें अनुमति दी और कहा कि इसका प्रयोग साल में कुछ महीनों तक ही करना है। इसके बाद समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाता है। 

शोधार्थी अपने साथ दो ऐसे किस्म के चावल लेकर आए थे जिन्हें कि पकाने पर उनका रंग हरा हो जाता है। यह ग्रीन राइस के रूप में जाना जाता है और इसके बारे में आधुनिक विज्ञान अच्छे से जानता है पर इसके औषधीय गुणों के बारे में कम लोगों को ही जानकारी है। मैंने अपने डेटाबेस में उपलब्ध 25,000 से अधिक फॉर्मूलेशंस की जानकारी उन शोधार्थियों को दी जिनमें कि इस तरह के चावल का प्रयोग अहम घटक के रूप में किया जाता है। आजकल इस तरह के चावल की खेती नहीं होती है इसलिए ये फॉर्मूलेशंस बेकार हो गए हैं अन्यथा कोविड-19 जैसी बीमारियों में ये फॉर्मूलेशन अहम भूमिका निभा सकते हैं और पूरी दुनिया को इस महामारी से मुक्ति दिला सकते हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि ग्रीन राइस की खेती को बढ़ावा दिया जाए और इसके दिव्य औषधि गुणों के बारे में जन जागरण किया जाए।

जब मैंने शोधार्थियों को बताया कि धान की पत्तियों का उपयोग भी पारंपरिक नुस्खों में अहम घटक के रूप में किया जाता है तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। मैंने उन्हें 75000 से भी अधिक फॉर्मूलेशंस के बारे में जानकारी दी और उस पर आधारित कई फिल्में दिखाई जिसमें केवल धान की पत्तियों का ही उपयोग किया जाता है मुख्य घटक के रूप में है।

 सुबह से लेकर शाम हो गई पर चर्चा ने रुकने का नाम नहीं लिया। यह तय किया गया कि हम आगे 2 दिनों तक भी इस पर चर्चा करेंगे और शोधार्थियों की शंकाओं का समाधान करेंगे।

चर्चा पूरी तरह से समाप्त होने के बाद वे संतुष्ट दिखाई दिए और उन्होंने कहा कि जब 50 तरह के पारंपरिक धान के बारे में इतनी सारी जानकारियां एकत्र हो गई तो हमारे देश में लाखों किस्म के पारंपरिक धान हैं उनके बारे में जब इस तरह की जानकारी एकत्र की जाएगी तो ज्ञान का अकूत भंडार हमारे सामने उपस्थित हो जाएगा।

 उन्होंने सूचित किया कि 6 महीने बाद वे मुझसे फिर से संपर्क करेंगे नई किस्मों के साथ और इसी तरह की सार्थक चर्चा करेंगे। उन्होंने मुझे धन्यवाद दिया।


 मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी। 


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