Consultation in Corona Period-270 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया

Consultation in Corona Period-270





Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"मैंने शतावरी के लिए आपसे संपर्क किया है। मैं एक वैद्य हूँ और उत्तर भारत में अपनी सेवाएं देता हूँ। आप मुझे ऐसे स्त्रोत के बारे में बता दीजिए जहां से मुझे लगातार साल भर शतावरी की प्राप्ति हो सके।" उत्तर भारत से आए एक सज्जन ने जब मुझसे संपर्क किया तब मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।  मैंने उनसे पूछा कि आपको खेती से तैयार की गई शतावरी की जरूरत है या प्राकृतिक रूप से जंगल में पाई जाने वाली शतावरी की। उन्होंने कहा कि जंगल में पाई जाने वाली शतावरी का उपयोग ही वे अपने फार्मूले में करते हैं तब मैंने उन्हें एक पारंपरिक चिकित्सक का पता दिया जो कि इस विषय में विस्तार से जानकारी रखते हैं और उन्हें मालूम है कि जंगल के किस हिस्से में उन्हें शतावरी मिल सकती है। मैंने उन वैद्य को एक पत्र भी लिख कर दे दिया जिसमें मैंने पारंपरिक चिकित्सक से कहा कि आप इनकी पूरी तरह से मदद करें।

कुछ समय बाद उन वैद्य ने फिर से संपर्क किया और मुझसे कहा कि उन्हें एक और दूसरे स्रोत से शतावरी की आवश्यकता है तब मैंने उन्हें एक जड़ी बूटियों के व्यापारी के पास भेजा जिनका दुनिया भर में बड़ा नाम है और वे छत्तीसगढ़ से ही है।

तीसरी बार जब उन्होंने फिर से संपर्क किया तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि ये वैद्य हर बार एक नए स्त्रोत से शतावरी प्राप्त करने की बात क्यों कहते हैं फिर भी मैंने उनकी मदद की और उन्हें उत्तर भारत के ही एक व्यापारी का पता दे दिया जिनसे उन्हें लगातार शतावरी की प्राप्ति हो सकती थी।

 अगली बार जब उन्होंने फिर से संपर्क किया तो उनके कुछ कहने से पहले ही मैंने उनसे कहा कि अब आपको किसी नए स्त्रोत से शतावरी की आवश्यकता है क्या तब उन्होंने कहा कि इस बार उन्होंने शतावरी के लिए संपर्क नहीं किया है बल्कि अपनी एक समस्या के लिए संपर्क किया है।

 उन्होंने बताया कि वे शतावरी पर आधारित एक फॉर्मूलेशन का प्रयोग लंबे समय से करते रहे हैं। यह उनका पीढ़ियों पुराना ज्ञान है। इस फॉर्मूलेशन में 22 प्रकार के घटकों का प्रयोग किया जाता है। यह फॉर्मूलेशन महिलाओं की समस्याओं के लिए वरदान के समान है। जन्म से लेकर मृत्यु शैया तक महिलाओं के लिए यह फॉर्मूलेशन प्राण रक्षक की तरह कार्य करता है। ऐसा कहकर उन्होंने मुझे उस फॉर्मूलेशन के बारे में पूरी जानकारी दे दी। फिर आगे कहा कि पिछले कुछ समय से वे देख रहे हैं कि उनके कुछ मरीज जब इस फार्मूलेशन का प्रयोग करते हैं तो उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है। वे अनाप-शनाप बकने लग जाते हैं फिर उन्हें ठीक होने में कई वर्षों का समय लग जाता है और उनके बहुत से मरीज तो अभी भी ठीक नहीं हुए हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा दोषपूर्ण शतावरी के कारण हो रहा है इसलिए वे देश भर मे घूम घूम कर अलग अलग स्रोतों से शतावरी एकत्र करते रहे और अपने फार्मूले में प्रयोग करते रहे पर जब देश के विभिन्न हिस्सों से शतावरी एकत्रित करने के बाद उन्होंने फॉर्मूलेशन में प्रयोग किया तो उनके मरीजों की तबीयत खराब होने की शिकायत वैसी की वैसी रही। उसमें किसी भी तरह का सुधार नहीं हुआ। 

उन्होंने मुझसे मदद की अपेक्षा की तब मैंने उनसे कहा कि आप उन रोगियों के वीडियो बनाकर भेजें जो कि आपकी दवा से प्रभावित हुए हैं और साथ ही एक प्रश्नावली भरकर भेजें जिसे मैंने आपके लिए ही विशेष रूप से तैयार किया है। अगली बार जब वे वीडियो और प्रश्नावली के साथ दोबारा उपस्थित हुए तब मैंने वीडियो को देखने और प्रश्नावली का अध्ययन करने के बाद उनसे कहा कि यह दोष शतावरी का नहीं है। मुझे समस्या का समाधान कुछ हद तक दिखाई पड़ रहा है पर इसकी पुष्टि के लिए जरूरी है कि आप अपने किन्ही दो मरीजों को मेरे पास लेकर आए ताकि मैं जड़ी बूटियों के माध्यम से एक छोटा सा परीक्षण कर सकूं। वे इस बात के लिए तैयार हो गए और उन्होंने अपने 2 मरीजों को अगले ही दिन रायपुर बुलवा लिया। 

जब मैंने एक छोटा सा परीक्षण किया जिसमें कि तरह तरह की वनस्पतियों को चखकर उन मरीजों को बताना था कि उन वनस्पतियों का कैसा स्वाद आ रहा है। अब मेरे संदेह की पुष्टि हो गई। मैंने वैद्य जी को परामर्श दिया कि आप इन दोनों मरीजों को अपने पास रखें और अपनी निगरानी में ही इनके खान-पान पर ध्यान दें। इन्हें बाहर की कोई भी चीज या उनके अपने घर की कोई चीज खाने को न दें। इन 15 दिनों तक आप अपना शतावरी का फार्मूलेशन उन्हें न दें। 15 दिनों के बाद जब उनके लक्षण थोड़े कम हो जाए तब आप अपने फॉर्मूलेशन का प्रयोग शुरू करें। मुझे उम्मीद है कि आपका फॉर्मूलेशन बिल्कुल भी विपरीत ढंग से काम नहीं करेगा। 

वे मेरी बात मानने को तैयार हो गए और वापस लौट गए। वे लगातार संपर्क में रहे और दसवें दिन उन्होंने फोन करके बताया कि अब मरीजों की मानसिक दशा में तेजी से सुधार हो रहा है। मैंने उनसे पूछा कि क्या अभी भी मरीजों की जीभ में कड़वा स्वाद आ रहा है तब उन्होंने कहा कि कड़वा स्वाद भी काफी हद तक के ठीक हो गया है केवल कुछ अंश में ही बाकी है। उन्होंने यह भी बताया कि पहले मरीजों के मुंह से बहुत अधिक मात्रा में लार निकलती थी। अब लार का निकलना भी कम हो गया है। 15 दिनों के बाद उन्होंने डरते डरते अपने फॉर्मूलेशन का प्रयोग उन मरीजों पर किया और कुछ दिनों का इंतजार किया। उन्होंने पाया कि अब उनका फॉर्मूलेशन उन मरीजों पर विपरीत असर नहीं कर रहा है। एक महीने बाद सारी समस्या का पूरी तरह से अंत हो गया। 

उन्होंने बिल्कुल भी देर नहीं की और तुरंत ही मुझसे मिलने रायपुर आ गए। उन्हें इस समस्या के कारण को जानना था। मैंने उनकी जिज्ञासा को और बढ़ाना उचित नहीं समझा और कहा कि आपके मरीज जिस तरह की खान-पान की सामग्री का उपयोग कर रहे थे उसमें एग्रोकेमिकल की पर्याप्त मात्रा में उपस्थिति थी। यह समस्या आजकल भारत में आम हो गई है और इसकी किसी भी तरह से जांच नहीं होती है इसलिए किसी को यह अंदाज नहीं होता है कि हम कितनी अधिक मात्रा में कृषि रसायनों का सेवन अपने भोजन के साथ कर रहे हैं। आपके मरीजों के भोजन में ग्लाइफोसेट नामक एक कृषि रसायन बहुत अधिक मात्रा में था जिसकी आपकी शतावरी पर आधारित दवा से विपरीत प्रतिक्रिया हो रही थी। इसी के कारण मरीजों की मानसिक दशा बिगड़ रही थी और वे स्थाई रूप से बीमार होते जा रहे थे। आप जिस इलाके से आते हैं उस इलाके में इस कृषि रसायन का उपयोग भरपूर मात्रा में होता है और यह न केवल मिट्टी बल्कि पानी और भोजन में भी पर्याप्त मात्रा में उपस्थित है। इसकी तरह-तरह की दवाओं के साथ विपरीत प्रतिक्रिया होती है। चाहे वह आधुनिक दवा हो या पारंपरिक दवा। इसके बारे में अभी अनुसंधान नहीं हुए हैं पर मैंने ऐसे मामले पहले भी देखे हैं और उस आधार पर ही मैंने यह अंदाज लगाया और आप से अनुरोध किया कि आप उन मरीजों को अपने घर में रख कर अपनी निगरानी में खानपान की व्यवस्था करें ताकि वह रसायन किसी भी हालत में उनके शरीर में न जा सके और विपरीत प्रतिक्रिया को रोका जा सके।

 वैद्य जी के लिए यह नई जानकारी थी। उन्होंने बताया कि उनके मरीज मध्यम वर्ग से संबंध रखते हैं और उनके लिए संभव नहीं है कि वे इस तरह के खानपान से बच सकें। ऑर्गेनिक उत्पाद अमीरों तक ही सीमित है क्योंकि इनकी कीमत बहुत अधिक होती है। ऐसे में क्या किया जाए?

 उनकी समस्या को देखते हुए मैंने उन्हें सुझाव दिया कि आप अपने फॉर्मूलेशन में थोड़ा सा परिवर्तन करेंगे और जिन घटकों को आप चतुर्थक घटक के रूप में डाल रहे हैं यदि आप उनका प्रयोग पंचम घटक के रूप में करेंगे तो इस तरह के लक्षण नहीं आएंगे। मैंने उन्हें अपने परीक्षण के बारे में भी जानकारी दी और बताया कि आपको अपनी दवा देने से पहले इस तरह का परीक्षण अपने मरीजों पर करना पड़ेगा ताकि आप पता लगा सके कि उनके शरीर में कृषि रसायन का विष तो नहीं है। यदि उनमें विष है तब आप फार्मूले को बदलकर प्रयोग करिएगा और यदि उनमें विष नहीं है तब आप अपने मूल फार्मूले का प्रयोग कर सकते हैं। इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए उन्होंने धन्यवाद दिया।

 वे अपने साथ 15 प्रकार के मेडिसिनल राइस लेकर आए थे। उन्होंने विस्तार से इन राइस के प्रयोग के बारे में बताया और इन सभी चावल को मुझे उपहार स्वरूप दिया।

 मैंने उन्हें धन्यवाद दिया और साथ में शुभकामनाएं भी।


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