Consultation in Corona Period-20

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया



"नन्द, उपनन्द, सुबाहु, चित्रबाण, चित्रवर्मा, भीमवेग, भीमबल आदि आदि ये उन औषधीय धानों के नाम हैं जो पिता जी ने आपके लिए भिजवाए हैं। ये कुल 100 प्रकार के धान हैं और उन्होंने बताया था कि आप इनके विषय में विस्तार से जानते हैं।"


कुछ महीने पहले झारखंड से पधारे एक शख्स ने मुझसे यह कहा। वह लंबी यात्रा करके झारखंड से आया था और एक चिरपरिचित वैद्य का लड़का था। 


उसने बड़ी दुख भरी खबर दी और बताया कि कुछ दिनों पहले वैद्य जी का निधन हो गया है। 


जब वे बहुत बीमार थे तो उन्होंने कहा था कि ये 100 किस्म के धान के बीजों को अवधिया जी के पास पहुंचा देना ताकि ये सदा के लिए बच जाएं और इनका सदुपयोग मानव कल्याण के लिए होता रहे।


 मुझे याद आता है बहुत वर्षों पहले मुझे रांची से एक फोन आया था जिसमें कहा गया था कि आपको तुरंत रांची पहुंचना है एक रोगी को देखने के लिए और आपका जो भी खर्चा होगा वह हम देने के लिए तैयार हैं। आप कैसे भी जल्दी से जल्दी रांची आ जाए। 


मैं फ्लाइट से दिल्ली गया। दिल्ली से फिर रांची। वहां एयरपोर्ट पर एक धनाढ्य सज्जन मेरे स्वागत के लिए खड़े हुए थे।


 मैं रात भर रांची के एक महंगे होटल में रुका और फिर अल सुबह हम लोग रांची से कुछ घंटों की दूरी पर बीमार व्यक्ति को देखने निकल पड़े। 


खराब रास्तों से होते हुए जब हम एक गांव में रुके तो हमें एक झोपड़ी के अंदर ले जाया गया जहां एक बहुत कमजोर व्यक्ति खाट पर लेटा हुआ था। 


उसकी आंखों की शून्यता से लगता था कि उसने जीने की सारी उम्मीदें छोड़ दी है। मुझे बताया गया कि वे इस क्षेत्र के जाने-माने वैद्य हैं और किसी अनजानी बीमारी से लंबे समय से परेशान हैं और इस अवस्था तक आ पहुंचे हैं। 


वैद्य का नाम सुनते ही मैंने उनके परिजनों से कहा कि मैं ऐसे ही चला आता। आपको इतना खर्च करने की क्या आवश्यकता थी?


 बहरहाल मैं उन वैद्य के पास कुछ समय तक बैठा रहा, परीक्षण के लिए पैरों के तलवों में लेप लगाया। फिर मुझे लगा कि वे स्वयं ही इतने विद्वान हैं तो उन्हें कैसे जड़ी बूटियां सुझाई जाए।


 मैं उनकी तकलीफ के बारे में उनसे विस्तार से बात करता रहा और फिर अपनी समझ के अनुसार उनकी तकलीफ का मूल कारण बताया और उन से अनुरोध किया कि दवा का चुनाव में स्वयं करें क्योंकि अब वे रोग की जड़ को पूरी तरह से जान चुके हैं।


 अधिकतर ऐसा होता है कि दक्ष जानकार अपने आप की चिकित्सा नहीं कर पाता है। उसका अपार ज्ञान उसे भ्रमित करता रहता है और वह किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंचता है। ऐसे में एक जानकार को दूसरा जानकार ही बचा सकता है।


 ऐसा यहां पर भी हो रहा था। वैद्य जी ने खुद अपनी दवा का चुनाव किया। शाम तक उनकी आंखों में चमक लौट आयी क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि अब उनकी जान बच जाएगी।


 मैं उनसे विदा लेकर वापस रायपुर आ गया। अगले कुछ महीनों में कई बार रांची जाना हुआ और धीरे-धीरे उनकी तबीयत में काफी सुधार होने लगा और वे पहले जैसी हालत में आ गए। 


देशभर के रोगियों की भीड़ उनके पास फिर से लगने लगी और वे सेवा के इस कार्य में जुट गए। 


उन्होंने खुलासा किया था कि उन्होंने एक परिवार में मुखिया की जान कैंसर से बचाई थी और बहुत सारे लोगों को सोरायसिस की बीमारी से बचाया था इसीलिए परिवार ने मेरे कहने पर आपके लिए सारे इंतजाम किए और आपकी महंगी फीस भी दी। 


मैंने उनसे कहा कि नाई से न नाई लेत, धोबी से न धोबी- इस बात को चरितार्थ करते हुए मुझे आपसे फीस नहीं लेनी चाहिए। आप मेरे आने जाने का उत्तम प्रबंध कर रहे हैं। यही पर्याप्त है।


 इस पर उन्होंने कहा कि मेरे द्वारा आपको फीस दिए जाने पर मुझे पुण्य मिलता है। क्या यह पुण्य आप मुझसे छीन लेना चाहते हैं। यह आपकी आजीविका है। आपको फीस अवश्य लेनी चाहिए।


 उनके तर्क सुनकर मैंने और अधिक जोर न डालने का निर्णय किया।


 उस समय में एक शोध रपट पर काम कर रहा था जिसका शीर्षक था कि क्या 1000 वर्षों तक जिया जा सकता है? 


जब मैंने इसका जिक्र वैद्य जी से किया तो उन्होंने मुझे 100 प्रकार के विशेष औषधीय धानों के बारे में बताया। इनके प्रयोग से लंबी आयु संभव थी। 


उन्होंने इन किस्मों के नाम बताएं पर मजबूरी बताई कि उनके पास ये धान अधिक मात्रा में नहीं है इसलिए इन्हें दे नहीं सकते। 


मैंने उन प्रकारों के नाम लिखे, उनके बारे में जानकारी एकत्र की और अपनी शोध रिपोर्ट में विशेष तौर पर इसका उल्लेख किया।


 इन धान की किस्मों के नाम बड़े चौंकाने वाले थे। दुनिया भर के धान के डाटा बेसों में इन नामों का जिक्र नहीं मिलता।


 वैद्य ने बताया कि इन धानों को हर महीने एक धान के हिसाब से 100 महीनों तक प्रयोग करना है। इससे सारे रोग धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं और शरीर स्वस्थ होने लग जाता है। एक तरह से खोया हुआ यौवन फिर से मिल जाता है। 


उन्होंने बताया था कि उनके चेले इसकी खेती करते हैं और  उगाया गया पूरा धान चिकित्सा में ही खप जाता है।


" इस बार भी हम आप को बुलाना चाहते थे पर पिताजी ने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि अब ज्ञान मठ जाने का समय हो गया है और इस दुनिया के मेरे सारे काम खत्म हो चुके हैं इसलिए मुझे चैन से जाने दो और कुछ ही समय में उन्होंने प्राण त्याग दिए। 


उन्होंने जाने से पहले मुझसे वचन लिया था कि मैं इन 100 प्रकार के धान के बीजों को अवधिया जी के पास छोड़कर आऊंगा इसीलिए मैं उनके सारे संस्कार पूरे करने के बाद सीधे आपके पास आया हूं।" उनके पुत्र ने खुलासा किया।


मैंने उनके पुत्र को धन्यवाद दिया और उनके रुकने का प्रबंध किया।


 इस बीच मैंने अपने किसानों से संपर्क किया जो कि औषधीय धान की खेती कर रहे थे और उन्हें बताया कि इस बार उन्हें अपने खेत में इन विशेष धानों को उगाने के लिए जगह रखनी है। 


बाद में जब मैं इन धान के प्रकारों के विशेष गुणों का अध्ययन कर रहा था तो मुझे लगा कि इनमें से कम से कम 15 किस्म के धान ऐसे हैं जिनका प्रयोग इस कोरोनावायरस काल में किया जा सकता है। 


उसी समय संयोग से बेंगलुरु के कुछ वैज्ञानिकों ने कोरोना की दवा के लिए मुझसे संपर्क किया और कोई नई जड़ी बूटी सुझाने का अनुरोध किया। मुझे उपयुक्त पात्र मिल गए थे। 


मैंने पांच किस्म के धान के बीज उन्हें दिए और कहा कि ये इस वायरस के विरुद्ध प्रभावी ढंग से काम करेंगे क्योंकि इनमें एंटीवायरल प्रॉपर्टीज है।



वे प्रसन्नतापूर्वक इसे लेकर गए और इस पर गहन अनुसंधान किया। हाल ही में उन्होंने बताया है कि इस वायरस के कारण जो लीवर को हानि होती है उसके लिए ये धान रामबाण हैं। 


इनमें Hepatoprotective properties हैं और लीवर से संबंधित अन्य रोगों में भी इनकी अहम भूमिका हो सकती है। 


मुझे याद आया कि वैद्य जी ने बताया था कि वे हेपेटाइटिस की चिकित्सा में इसका प्रयोग करते हैं और उन्हें अच्छे परिणाम मिले हैं। 


उन दिनों मैं रांची में हफ्ते में दो से तीन बार छपा करता था और जड़ी बूटियों से संबंधित मेरे लेख वहां के लोग बडी रूचि से पढ़ते रहते थे।


 इसी से वैद्य जी को मेरे बारे में पता चला और जब वे बीमार पड़े तो उन्होंने मुझे बुलाने को कहा। 


इन धान के प्रकारों के नाम अजीब से इसलिए लगते हैं क्योंकि ये जो 100 नाम है ये वास्तव में कौरवों के नाम है जिनके नाम पर इनका नामकरण किया गया है।


 भारत में जितने भी पारम्परिक धान मिलते हैं उनमें से बहुतों के नाम देवी-देवताओं पर है। खलनायक, असुर और राक्षस पर कोई धान का नाम नहीं रखता है पर पता नहीं क्यों इन धानों के नाम कौरवों के नाम पर रखे गए हैं।


 वैद्य जी ने कभी इसका स्पष्ट कारण नहीं बताया पर यह जरूर कहा कि असुर को असुर ही जान सकता है इसलिए शायद इनका नाम नेगेटिव एनर्जी के लोगों के नाम पर रखा गया है।


 इस हिसाब से देखा जाए तो लाखों मासूम लोगों को बेमौत मारने वाले कोरोना के विरुद्ध कौरवों के नाम वाले ये धान जरूर संजीवनी का काम करेंगे- ऐसी उम्मीद रखने में कोई हर्ज नही है।


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