Consultation in Corona Period-17

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"दुनिया यह समझती है कि कोरोना से केवल फेफड़े ही प्रभावित होते हैं पर यहां हम इटली में देख रहे हैं कि हजारों लोग कोरोना जनित किडनी रोगों से परेशान है। 


हमारे अस्पताल में हजारों लोग डायलिसिस की लाइन में खड़े हुए हैं और हमारे पास पर्याप्त मात्रा में उपकरण नहीं है। स्थिति बहुत ही भयावह है। 


हमने क्रॉनिक किडनी डिजीज पर आपकी 600 घंटों की फिल्में देखी हैं और भारत के पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान पर अभिभूत हैं। 


क्या यह पारंपरिक ज्ञान यहां हमारे मरीजों की मदद कर सकता है? यह जानने के लिए हमने आपसे संपर्क किया है। हमने आपके बहुत सारे शोध आलेख भी पढ़े हैं और उसके बाद ही हम आपसे संपर्क कर रहे हैं।" इटली के एक जाने-माने अस्पताल के डायरेक्टर का यह संदेश चौका देने वाला है। 


कोरोना जनित स्वास्थ्य समस्याओं की बढ़ती सूची चिंता में डाल देने वाली है। 


मैंने उन्हें लिखा कि निश्चित ही हमारा पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान आपकी मदद कर सकता है पर इसके लिए आप भारत सरकार से मदद मांगे। उनके माध्यम से मैं आपकी मदद कर पाऊंगा।


 जहां तक यहां रायपुर में बैठे-बैठे आपके अस्पताल में भर्ती मरीजों को सलाह देने की बात है, सभी मरीजों को एक तरह की सलाह देने की बजाय मैं चाहूंगा कि आप हर मरीज की रिपोर्ट मुझे भेजें। उसका विस्तार से अध्ययन करके फिर मैं अपने अनुमोदन आपको भेजता जाऊं। इस तरह सारी प्रक्रियाएं हो। 


इस बात के लिए वे तैयार हो गए और एक एक करके वे सारी रिपोर्ट भेज रहे हैं। 


इन रिपोर्टों का अध्ययन करने से यह पता चलता है कि कोरोना कैसे बुरी तरह से किडनी को प्रभावित करता है और लोगों का जीवन खतरे में डाल देता है। 


दुनिया भर के वैज्ञानिक इस बात का पता लगा रहे हैं कि कोरोनावायरस संक्रमण से किडनी कैसे प्रभावित होती है। क्या शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने से किडनी के ऊपर विपरीत प्रभाव पड़ता है या फिर क्या शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अति सक्रिय हो जाने के कारण किडनी को नुकसान पहुंचाती है या फिर कोरोनावायरस किडनी पर सीधे आक्रमण करता है और उसे खत्म करने की कोशिश करता है? ऐसे अनगिनत प्रश्न है जिनके उत्तर अभी खोजे जाने हैं पर यह बात तो तय है कि सभी प्रकार के रोगियों में किडनी पर असर देखा जा रहा है।


 दुनिया भर के वैज्ञानिकों में इस बात की भी चर्चा है कि कोरोनावायरस से होने वाले किडनी के नुकसान के मामलों में यदि मरीज हाइपरटेंशन से प्रभावित है तो क्या हाइपरटेंशन की रूटीन दवाएं उसे देनी चाहिए या नहीं? 


बहुत से वैज्ञानिक मानते हैं कि क्योंकि किडनी को बहुत नुकसान हुआ है इसलिए ये दवाएं नहीं दी जानी चाहिए। इससे कोरोनावायरस को मदद मिलेगी पर बहुत से वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि हाईपरटेंशन की दवा को बंद नहीं करना चाहिए।


 मेरा अपना मानना है कि क्षतिग्रस्त किडनी में हाइपरटेंशन की दवाओं का प्रयोग बहुत सोच समझ कर करना चाहिए या नहीं करना चाहिए।


 5 वर्षों पहले मैंने मुंबई में एक व्याख्यान दिया था जड़ी बूटियों की खेती के बारे में। व्याख्यान का विषय था किडनी रोगों में काम आने वाली जड़ी बूटियां और उनकी खेती। 


मेरे व्याख्यान से प्रभावित होकर महाराष्ट्र और गुजरात के बहुत सारे किसानों ने एक ग्रुप बनाया और मिलकर किडनी रोगों के विश्व बाजार के लिए खेती करनी शुरू की। 


उन्होंने 46 प्रकार की जड़ी बूटियों की खेती की जिनकी किडनी रोगों में अहम भूमिका थी। इन सभी जड़ी बूटियों का बाजार था इसलिए उन्हें पहले ही साल से लाभ होने लगा और वे धीरे-धीरे अपना व्यापार फैलाने लगे। 


अभी वे नए प्रयोग भी कर रहे हैं पर सारे प्रयोग किडनी पर ही केंद्रित है। 


जड़ी बूटियों को बाजार में बेचने की बजाय वे इससे उत्पाद बना रहे हैं और एक दवा कंपनी के रूप में स्थापित होने का प्रयास कर रहे हैं।


 मैंने इटली के डायरेक्टर को इन किसानों का पता दिया है और कहा है कि यदि आपको किडनी रोगों के लिए जड़ी बूटियां चाहिए तो आप इनके पास से खरीद सकते हैं। 


ये जैविक खेती करते हैं और फसलों की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए वैदिक विधियों को अपनाते हैं। मैं इनकी ओर से आपको गारंटी देता हूं कि आपको सही जड़ी बूटियां सही दाम पर मिलेंगी।


 हाल ही में इन किसानों से हुई चर्चा के दौरान मुझे पता चला कि कोरोनावायरस काल मे उनकी जड़ी बूटियों की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई है और वे सोच रहे हैं कि इस बार नए किसानों को जोड़कर बड़े क्षेत्र में इन जड़ी-बूटियों की खेती की जाए। मैंने उन्हें 12 नई जड़ी बूटियों के नाम सुझाए हैं और उनकी खेती के बारे में विस्तार से उन्हें बताया है।


 इटली से संदेश आने के बाद मैंने अपने टीम के सदस्यों से कहा है कि वे किडनी रोगों पर फिर से फिल्म बनाने के लिए तैयार हो जाए क्योंकि आने वाला समय ऐसी फिल्मों के लिए बहुत उपयुक्त है।


 मेरे डेटाबेस में किडनी रोगों पर 1000 घंटों की फ़िल्में पड़ी हुई है। इन्हें भी ऑनलाइन करने की कोशिश हम करेंगे ताकि सारी दुनिया को भारतीय पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान से लाभ हो सके।


 भारतीय पारंपरिक चिकित्सक सदा से यह कहते रहें हैं कि किडनी शरीर का महत्वपूर्ण अंग है और उसकी रक्षा के लिए हमें उस समय भी प्रयास करने चाहिए जब हमें किडनी का कोई रोग न हो। 


मैंने पिछले 30 वर्षों में असंख्य Renoprotective जड़ी बूटियों के बारे में और उनसे संबंधित फॉर्मूलेशंस के बारे में पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण किया है। 


पारम्परिक चिकित्सक आम लोगों को कहते हैं कि वे हफ्ते में एक दिन Renoprotective functional food का प्रयोग करें जिससे कि वे जिंदगी भर किडनी रोगों से बचे रहें। 


इस कोरोना काल में यह पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।


 मुझे लगता है कि हमारे योजनाकारों को इन दिनों Renoprotective functional foods के बारे में आम लोगों को जागरूक करना चाहिए ताकि कोरोनावायरस का संक्रमण होने पर उनकी किडनी कम से कम प्रभावित हो और वे लंबा जीवन जी सकें। 


हाल के महीनों में यूट्यूब में Renoprotective herbs पर मेरी फिल्मों को देखने वालों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ गई है। ऐसा लगता है कि दुनिया भर के वैज्ञानिकों का ध्यान अब इस ओर जा रहा है और वे अब इस पर अनुसंधान करने की सोच रहे हैं।


 मुझे याद आता है कि 20 वर्षों पहले कैसे हम कई दिनों तक पारंपरिक चिकित्सकों के पास पड़े रहते थे। इस उम्मीद में कि कब मानसून की पहली वर्षा हो और हम पारंपरिक चिकित्सकों के साथ जंगलों से पुराने वृक्षों की कोटरों से संजीवनी जल एकत्र कर सके। इस जल का प्रयोग साल भर किडनी रोगों की चिकित्सा में भारत के पारंपरिक चिकित्सक करते हैं। 


इस बारे में छत्तीसगढ़ का पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान बहुत अधिक समृद्ध है। 


इस बार पारंपरिक चिकित्सकों ने बताया कि उन्होंने बहुत अधिक मात्रा में संजीवनी जल एकत्रित किया है क्योंकि उनके पास कोरोनावायरस जनित किडनी रोग वाले बहुत से लोग संपर्क कर रहे हैं। 


मैंने इस अनूठे पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान पर बहुत लिखा है पर बहुत कुछ लिखना अभी बाकी है।


 गुजरात के बहुत से वैज्ञानिकों ने Renoprotective herbs के ऊपर अपना ध्यान केंद्रित किया है और उन्होंने मुझसे संपर्क किया है। इस उम्मीद में कि मैं उन्हें छत्तीसगढ़ की जड़ी बूटियों के बारे में विस्तार से जानकारी दूंगा। 


मैंने सीधी जानकारी देने की बजाय उनसे अनुरोध किया है कि वे पारंपरिक चिकित्सकों के पास जाएं और उनकी अनुमति के बाद ही प्रयोग शुरू करें।


 मैंने उन्हें गुजरात के भी दक्ष पारंपरिक चिकित्सकों की सूची दी है जिनके पास इस विषय में समृद्ध पारम्परिक ज्ञान है।


 ब्रिटेन के वैज्ञानिक मित्र चाहते हैं कि मैं सब काम छोड़ कर कम से कम 15 से 16 घंटे उन्हें दूँ ताकि वे दिन भर मुझसे कोरोना के कारण प्रभावित होने वाले किडनी के रोगियों के बारे में सलाह मशवरा करते रहें। यानी एक तरह से मुझे अपने घर को कंट्रोल रूम बनाना होगा और यहां से उन मरीजों की मदद करनी होगी। 


मैंने उन्हें विनम्रतापूर्वक इंकार किया है और कहा है कि मैं प्रतिदिन 1 से 2 घंटे इस काम के लिए दे सकता हूं।


उनके उत्तर की प्रतीक्षा है।


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