Consultation in Corona Period-11

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया



"आप पीने का पानी उबालकर ठंडा कर उपयोग करें।" जनवरी में जब चीन में और चीन के बाहर कोरोनावायरस का फैलाव शुरू  हुआ तो श्रीलंका से आए एक फोन के जवाब मे मैंने कहा। 


उधर से जवाब आया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो ऐसी कोई सिफारिश नहीं की है। वे तो बस साबुन से अच्छे से हाथ धोने की सिफारिश कर रहे हैं।


मैंने उनसे कहा कि अभी इस बीमारी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है इसलिए ऐतिहातन आप उबला हुआ पानी पी सकते हैं।


उसके बाद जब कोरोनावायरस स्पेन पहुंचा तब भी मैंने लोगों को यह सलाह दी कि आप उबला हुआ पानी पीजिए। उन्होंने भी वही सवाल दोहराया कि विश्व स्वास्थ संगठन ने ऐसा क्यों नहीं कहा है।


 इसके बाद मैंने विश्व स्वास्थ्य संगठन को ट्वीट किया कि वह अपने अनुमोदनों  में उबले हुए पीने के पानी के प्रयोग की सलाह भी  दें पर यह सुझाव अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है।


 चीन से जो पहले पहल वीडियो आ रहे थे उनमें बताया और दिखाया जा रहा था कि वे अपने जल स्रोतों को साफ कर रहे हैं और साथ ही पानी के पाइप को सैनिटाइज कर रहे हैं। 


उस समय विशेषज्ञों ने यह आशंका प्रकट की थी कि यह पानी से भी फैल सकता है। मेरी अनुशंसा का आधार यही था।


उसी समय एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने विदेशी मीडिया में एक लेख लिखा था जिसमें चेताया गया था कि विकासशील और गरीब देशों में जहां स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है वहां कोरोनावायरस पानी से भी फैल सकता है। 


उन्होंने तर्क दिया था कि कोरोना के मरीज को दस्त होते हैं और दस्त में बड़ी संख्या में कोरोनावायरस निकलते हैं। इस मल के पानी में मिल जाने से पानी प्रदूषित हो जाता है और आम लोगों को तरह-तरह की बीमारियां हो सकती हैं जिनमें कोरोना एक है।


उन्होंने बहुत सारे उपाय सुझाए थे। उनमें से एक उबालकर ठंडा किए गए पानी का उपयोग था।


 उस समय कोरोना ने भारत में कदम नहीं रखा था। मुझे पूरी उम्मीद थी कि इस लेख को पढ़कर हमारे योजनाकार भारत में आम लोगों को सचेत करेंगे कि वे स्वच्छ जल का इस्तेमाल करें और संभव हो तो पानी को उबाल कर पीयें। 


बाद में अचानक ही यह लेख इंटरनेट से गायब हो गया।


 हमारे देश में जो गर्म पानी पीने की बात कही गई उसका असर पूरी दुनिया में हुआ और न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में लोग गर्म पानी का प्रयोग करने लगे।


 इसके पीछे उद्देश्य साफ़ था कि गर्म पानी के प्रयोग करने से शरीर का तापक्रम इतना बढ़ जाता है कि कोरोनावायरस जैसे वायरस शरीर को नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं और शरीर उनसे सफलतापूर्वक लड़ लेता है पर जब कोई अनुमोदन बड़े स्तर पर किया जाता है तो लोग अपनी विचार शक्ति के हिसाब से या कहे कि कल्पना के हिसाब से उसे अलग-अलग कोण से समझते हैं।


गर्म पानी तो ठीक है पर इस कितना गर्म पानी? इसका हिसाब लोगों ने अलग-अलग लगाया।


 मुझे नेपाल से एक महिला का फोन आया कि उनके पति को गले का कैंसर है और वे जब कोरोनावायरस से लड़ने के लिए गर्म पानी का प्रयोग करते हैं तो उनके गले का दर्द बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।


उन्होंने कहा कि उन्हें कैंसर से भी लड़ना है और कोरोनावायरस से भी। 


जब मैंने पूछा कि वह कितना गर्म पानी पी रही है तो उन्होंने बताया कि बहुत गर्म, चाय से भी गरम और वह भी एक घूंट में।


 मैंने उन्हें सलाह दी कि आप गर्म पानी के स्थान पर गुनगुना पानी पीजिए और फूंक-फूंक कर पीजिए न कि एक सांस में और ऐसे ही अपने पति को भी सलाह दीजिए।


 इससे आपके दोनों काम हो जायेंगे।


लंबे समय तक बहुत ज्यादा गर्म पानी पीने से हड्डियां कमजोर होती है और नर्वस सिस्टम पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ऐसा भारत के पारंपरिक चिकित्सक मानते हैं।


 जहां तक मेरा अनुमान है कि हमारी सरकार ने इतना अधिक गर्म पानी पीने की सलाह नहीं दी होगी।


इन लोगों ने अपने आप से सोच लिया और मुंह को जलाने लायक गर्म पानी का सेवन करने लगे।


 मैंने अपनी सोशल मीडिया की पोस्ट में बार-बार यह लिखा कि जिस उद्देश्य से गर्म पानी का सेवन किया जा रहा है वह उद्देश्य गुनगुने पानी से भी पूरा हो सकता है पर दुनिया भर से मिलने वाले दसों संदेशों में यह कहा गया कि उन्हें गर्म पानी पीने से दिक्कत हो रही है विशेषकर छोटे बच्चों को। 


क्या इसका कोई विकल्प है?


 मैंने उनसे यही कहा कि इसका विकल्प नहीं है पर इतना गरम पानी न पीएं।


 दुनिया की सभी चिकित्सा पद्धतियों में बहुत सी ऐसी दवाएं हैं जिन्हें गर्म पानी के साथ देने से उनका प्रभाव विपरीत हो जाता है।


 ऐसी दवाओं के प्रयोग के समय रोगियों को विशेष तौर पर सलाह दी जाती है कि वे दिन भर में किसी भी रूप में गरम पानी न पीये अन्यथा विपरीत प्रभाव पड़ सकते हैं। 


मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि दुनिया भर के चिकित्सकों ने ऐसी दवाओं के प्रयोग के समय अपने मरीजों को साफ साफ शब्दों में इस बारे में विस्तार से बताया होगा विशेषकर इस कोरोना काल मे।


इसी तरह अणु तेल के प्रयोग के अनुमोदन ने भी दुनिया भर में लोकप्रियता अर्जित की। 


कनाडा के एक युवक ने मुझसे संपर्क कर कहा कि जब वह अणु तेल का प्रयोग करता है तो उसको बहुत अधिक तकलीफ होती है और इसलिए उसने इसका प्रयोग बंद कर दिया है।


 अणु तेल का प्रयोग बेहद संभलकर करने की जरूरत है और मेरा मानना है कि इसका प्रयोग दक्ष चिकित्सकों के बिना नहीं करना चाहिए।


इसमें बकरी का दूध घटक के रूप में रहता है और बहुत से लोगों को इससे एलर्जी हो जाती है।


 अणु तेल में बहुत तरह के विकार भी हो सकते हैं जो कि उसके निर्माण में प्रयोग किए गए घटकों के कारण होते हैं।


उदाहरण के लिए अणु तेल में वायविंडग का प्रयोग किया जाता है और अणु तेल बनाने वाली बहुत सारी कंपनियां छत्तीसगढ़ से वायविंडग का एकत्रण करती हैं।


आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि छत्तीसगढ़ में वह वायविंडग नहीं मिलता है जो कि शास्त्रों में वर्णित है बल्कि उसकी दूसरी प्रजाति मिलती है जिसका प्रयोग अणु तेल में नहीं किया जाता है।


 फिर भी छत्तीसगढ़ से होने वाली आपूर्ति से आप अंदाज लगा सकते हैं कि कैसे भारतीय बाजार में अणु तेल में इस कम गुण वाली प्रजाति का प्रयोग हो रहा है।


असली वायविंडग में कई प्रकार के रोगों का आक्रमण होता है। अगर ऐसी वायविंडग जंगल से एकत्र की गई और उसका प्रयोग अणु तेल में किया गया तो तेल से फायदे की जगह नुकसान होने लगता है।


जंगल से इसे जो एकत्रित करते हैं उन्हें इस बात का अंदाज होना चाहिए क्योंकि दवा निर्माण करने वालों के पास जब यह पहुंचता है तो उस समय उसको देखकर यह बताना मुश्किल होता है कि जब यह पौधे के रूप में था तो उसमें किसी प्रकार के रोग का आक्रमण हुआ था या नहीं।


 इस महामारी के काल में हमारे आयुर्वेद चिकित्सक इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते थे।


वे अगर आम जनता को सही जानकारी देते तो अणु तेल से होने वाली स्वास्थ समस्याओं से आम लोग बच जाते और उन्हें सही मायने में कोरोना से बचने में मदद मिलती पर ऐसा नहीं हो पाया।


 बहुत से लोगों ने मुझसे शिकायत की कि उन्होंने दिन में दो बार अणु तेल का प्रयोग किया। उसके बाद भी उन्हें कोरोनावायरस ने पकड़ लिया और उनकी तबीयत बहुत बिगड़ गई इसीलिए अणु तेल को अनुमोदन से हटा देना चाहिए।


 कोरोना पर क्लीनिकल ट्रायल कर रहे हैं बहुत सारे वैज्ञानिकों को मैंने यह तथ्य बताया और उन्हें सलाह दी कि वे शास्त्रीय अणु तेल में पांच और घटकों को शामिल करें जिससे वह सही मायने में कोविड जैसी घातक बीमारी के लिए एक सशक्त हथियार बन जाए।


 वैज्ञानिक इस पर क्लिनिकल ट्रायल कर रहे हैं और मुझे उम्मीद है कि बहुत जल्दी हम बहुत शक्तिशाली अणु तेल प्राप्त कर सकेंगे जो कि हमें सही मायने में संक्रमण से बचने में मदद करेगा।


 अभी अणु तेल के प्रयोग के समय बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में आम जनता को विस्तार से बताने की जरूरत है। 


बादल वाले दिनों में अणु तेल का प्रयोग नहीं करना है। ऐसे में जनता को यह बताने की जरूरत है कि उन दिनों में इसके विकल्प के रूप में किसका प्रयोग किया जा सकता है?


 रात में इसके प्रयोग की मनाही है।


साथ ही बहुत अधिक प्यास और बहुत अधिक भूख लगने पर इस तेल का प्रयोग नाक में नहीं करना चाहिए।


 यदि नाक के रोग हो तो चिकित्सकों के परामर्श से ही अणु तेल का प्रयोग करना चाहिए।


 यदि इसके प्रयोग से आपके सिर में तेज दर्द हो रहा है या आप को सांस लेने में तकलीफ हो रही है तो इसका मतलब है आप इसका सही प्रयोग नहीं कर रहे हैं।


अगर इसके प्रयोग से आपको उल्टी आ रही है तो इसका मतलब है कि यह मुंह से बाहर न निकल कर पेट में जा रहा है जहां इसे नहीं जाना चाहिए।


एक और प्रश्न महत्वपूर्ण है।


 क्या करोना का संक्रमण मुंह और नाक के अलावा आंखों से भी हो सकता है?


इंटरनेट पर आप इस प्रश्न का उत्तर खोजेंगे तो आपको पता चलेगा कि हां आंखों से भी संक्रमण हो सकता है।


 यह बात दुनिया भर के वैज्ञानिक जानते हैं और अपनी आंखों की सुरक्षा के लिए लगातार उपाय करते रहते हैं। 


जब मैं अपना मोबाइल फोन लगाता हूं तो मुझे बार-बार सूचना मिलती है कि आप नाक और मुंह ढँक कर रखें विशेषकर जब आप सार्वजनिक स्थान पर जाएं ताकि आप भी करोना से बचे रहें और जिनसे आप मिल रहे हैं वे भी कोरोना से बचे रहें।


 मुझे आश्चर्य होता है कि इस संदेश में आंखों की सुरक्षा की बात क्यों नहीं की जाती है?


 आंखों को चश्मे के माध्यम से कुछ हद तक बचाया जा सकता है. 


हम कह सकते हैं कि आप मास्क के साथ में चश्मा लगा कर भी बाहर निकले पर पता नहीं क्यों दुनिया के बहुत से देशों के स्वास्थ विशेषज्ञ इस तरह का अनुमोदन नहीं कर रहे हैं।


 थाईलैंड में मेरे वैज्ञानिक मित्र कहते हैं कि उनके देश में कोरोनावायरस के प्रभावितों को आंख का इन्फेक्शन होना एक सामान्य सी घटना है और उन्होंने ऐसे सैकड़ों मामले देखे हैं जिनमें कोरोनावायरस ने आंखों के माध्यम से शरीर में प्रवेश किया है।


चूंकि यह बीमारी दुनिया के लिए नयी है इसलिए शायद ऐसी गड़बड़ियां हो रही है। धीरे-धीरे जब हम कोरोना के साथ जीना सीख जाएंगे तब हम उसे बेहतर ढंग से काबू में ला सकेंगे। तब ऐसी गड़बड़ियां नही होंगी।


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