Consultation in Corona Period-1

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया 


"मेरी मां बहुत बीमार है. उन्हें अंतिम अवस्था का ब्लड कैंसर है. राजस्थान के एक वैद्य ने उन्हें चुना कंद देने की सलाह दी है पर यह कंद हमारे यहां नहीं मिलता है. मध्य प्रदेश के एक जड़ी-बूटी विक्रेता ने इसकी कीमत ₹500000 बताई है. यह हमारी क्षमता से बाहर है इसलिए इंटरनेट पर सर्च करने के बाद हमें आपका व्हाट्सएप नंबर मिला और हमने आपसे संपर्क किया है. कृपया हमारी मदद करें."


जब यह संदेश मुझे मिला तो मैंने उन से अपॉइंटमेंट लेकर और फीस जमा करने के बाद फोन पर बात करने की सलाह दी। उन्होंने ऐसा ही किया।


फोन पर चर्चा के दौरान मैंने उनसे इस कंद की तस्वीर भेजने को कहा। उन्होंने झट से तस्वीर भेज दी।


 मुझे याद आया कि एक स्थान पर मैंने इस कंद के बहुत सारे पौधे देखे थे। पर वह स्थान रायपुर से 200 किलोमीटर की दूरी पर था और इस कोरोना काल में इतनी लंबी यात्रा करके जंगल से कन्दों को एकत्र करना टेढ़ी खीर थी।


 फिर अभी बारिश का मौसम है। जंगल में सभी स्थानों पर पानी भरा हुआ होता है। ऐसे में जंगल जाना किसी जोखिम से कम नहीं है।


 मैंने अपने परिचित पारंपरिक चिकित्सकों और जड़ी बूटी संग्रहकर्ताओं से संपर्क किया पर उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए।


 फोन पर बात करने वाले व्यक्ति ने बार-बार मुझसे कहा कि उसे किसी भी कीमत पर यह कन्द चाहिए।


 मैंने उनसे कहा कि ब्लड कैंसर की इस अवस्था में यह कंद काम नहीं करेगा पर उन्होंने मेरी बात नहीं मानी और कंद की मांग करते रहे।


मैंने उन्हें सलाह दी कि वे रायपुर आ जाएं और यहां से मैं उस स्थान तक उनकी यात्रा का प्रबंध कर दूंगा।


वहां जाकर वे सीधे पारंपरिक चिकित्सक से बात करें और उन्हें मनाए कि वे जंगल में जाकर उस कंद को एकत्र करें। वे तैयार हो गए और दूसरे ही दिन रायपुर पहुंच गए।


आते ही उन्होंने पूछा कि इस कंद का पारंपरिक चिकित्सक कितना पैसा लेंगे?


मैंने उन्हें बताया कि मैं एक पत्र लिखकर दे रहा हूं आप उन्हें दिखा दीजिएगा। आपसे वे एक भी पैसा नहीं लेंगे यानी कि कंद आपको मुफ्त में देंगे पर इस बात का ध्यान रखें कि वह आपको उतना ही कंद देंगे जितनी कि आपको आवश्यकता है।


मैंने यह भी कहा कि भले ही पारंपरिक चिकित्सक कुछ भी नहीं लेंगे पर फिर भी आप अपनी इच्छा से उन्हें कुछ पैसे दे दीजिएगा।


कुछ दिनों बाद जब वे लौटे तो उनके चेहरे में प्रसन्नता के भाव थे। उन्होंने धन्यवाद दिया और उसी समय अपनी मां की दवा लेकर वापस चले गए।


उन्हें उम्मीद नहीं थी कि कोरोना काल में उन्हें यह दुर्लभ जड़ी बूटी मिल पाएगी। वह भी मुफ्त में।


सर्वाधिकार सुरक्षित



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