Consultation in Corona Period-294 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
Consultation in Corona Period-294
Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"है तो यह एनाप्लास्टिक थायराइड कैंसर पर यह अंतिम अवस्था है और मुंबई से अब वापसी हो गई है। किसी भी तरह की कोई उम्मीद नहीं है इसलिए मैंने आपसे संपर्क करने की कोशिश नहीं की। मेरे बेटे ने फेसबुक पर आपकी एनाप्लास्टिक थायराइड कैंसर की रिपोर्ट के बारे में जानकारी देखी तो मुझसे कहा कि यदि संभव हो तो इनको एक बार बुला कर मरीज को दिखा लिया जाए। हो सकता है कि कुछ हो सके तब मैंने अपने बेटे को खुलासा करते हुए बताया कि जिस विशेषज्ञ की बात तुम कर रहे हो वह तो मेरे स्कूल के दोस्त हैं और मैं आज ही उनसे संपर्क करके उन्हें बुलाने की कोशिश करता हूं। पंकज तुमने मुझे पहचान लिया होगा। इससे पहले भी मैंने तुमसे संपर्क किया है। मैं बिलासपुर में चिकित्सक हूं और मेरे चाचा जी का यह केस है जो कि अब लाइलाज हो चुका है।
मुझे नहीं लगता कि इतनी दूर अमरकंटक आने से किसी भी प्रकार का कोई लाभ होगा पर फिर भी मेरे घर वाले कहते हैं कि एक बार आप अगर आ सके तो उन्हें तसल्ली हो जाएगी।" बिलासपुर से जब मेरे मित्र का संदेश आया तो मैंने तुरंत ही कहा कि मैं आने को तैयार हूं। भले ही यह कैंसर के अंतिम अवस्था है पर हमें किसी भी हालत में अंतिम दम तक प्रयास करने चाहिए। हो सकता है कि हम किसी हद तक मरीज के अपार कष्टों को कम कर सकें।
मैंने दिन भर के सारे अपॉइंटमेंट पुनर्नियोजित किए और फिर अपना बैग उठाकर आधे घंटे के अंदर बिलासपुर की ओर चल पड़ा। बैग में दर्जनभर मेडिसिनल राइस पड़े हुए थे। मुझे विश्वास था कि इनकी मदद से मरीज को कुछ हद तक राहत पहुंचाई जा सकती है। फिर यह स्थान अमरकंटक के करीब है इसलिए जड़ी बूटियों की किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं होगी।
बिलासपुर से मित्र को लेते हुए जब अमरकंटक पहुंचा तो मैंने साफ शब्दों में परिवार के लोगों से कहा कि मैं किसी भी तरह का चिकित्सक नहीं हूं बल्कि एक वैज्ञानिक हूं जो कि कैंसर पर शोध कर रहा है और मैंने देश के पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान का डॉक्यूमेंटेशन किया है जिसकी रिपोर्ट आप सब ने फेसबुक पर पढ़ी है इसीलिए मैं सीधे चिकित्सा करने की बजाय चिकित्सा कर रहे चिकित्सक को निर्देश दे सकता हूं। फिर वे अपने अनुभव के आधार पर निर्णय ले सकते हैं कि वे मेरे द्वारा सुझाए गए उपायों को मरीज पर अपनाएं या नहीं।
मित्र ने कहा कि इसमें किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं है क्योंकि मैं भी डॉक्टर हूं और साथ में मेरा बेटा भी डॉक्टर है। आप जो भी उपाय बताएंगे हम उसे अपनाने के लिए तैयार हैं।
फिर हम आपस में चर्चा होने लगी जो कि 8 घंटे तक चलती रही।
हम सब ने यही फैसला किया कि हम अंतिम दम तक प्रयास करेंगे और भले ही इसे टर्मिनल कैंसर कहा जा रहा है पर हम इस ओर पूरा ध्यान देंगे और मरीज की हर समस्या को दूर करने की कोशिश करेंगे।
मरीज के खाने में बहुत तरह के दोष थे। उन दोषों को मैंने दूर किया और बहुत सारे फंक्शनल फूड उन्हें समझाए। फिर रात को ही वापस रायपुर आ गया।
ऐसे मामले अक्सर मेरे सामने आते रहते हैं जिसमें अस्पताल टर्मिनल कैंसर का नाम देकर मरीज को घर भेज देते हैं और फिर कोई भी चिकित्सक उनकी चिकित्सा करने के लिए तैयार नहीं होते हैं जबकि ऐसे समय में मरीज को सबसे ज्यादा तकलीफ होती है और सबसे अधिक चिकित्सक की आवश्यकता होती है। यथासंभव मैं ऐसे स्थान पर पहुंचने की कोशिश करता हूं और उनकी हर संभव मदद करने की कोशिश करता हूं।
दूसरे दिन सुबह मित्र का फोन आया कि उनके चाचा जी बहुत उत्साहित है और फिर से उन्हें लग रहा है कि वह एक नया जीवन प्राप्त कर सकते हैं। बस इसी उत्साह की आवश्यकता थी। अब उनका शरीर कैंसर से लड़ने के लिए फिर से तैयार हो गया था।
हम सबको इस मामले में बहुत अधिक उम्मीद है और इसीलिए हम सब पूरी शक्ति से इस केस में लगे हुए हैं।
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