आम जनो के पारम्परिक ज्ञान की सुध कब लेंगे हम?

आम जनो के पारम्परिक ज्ञान की सुध कब लेंगे हम?

- पंकज अवधिया

कुछ दिनो पहले जब पास के हेल्थ क्लब मे मै व्याख्यान देने पहुँचा तो एक सज्जन अपनी समस्या लेकर आ गये। उनके पैरो मे विशेषकर तलवो मे बहुत जलन होती थी। बिस्तर मे लेटने पर वो ठंडा कोना खोज़ते रहते थे ताकि तलवो को कुछ आराम मिले। जब किसी चिकित्सक के पास गये तो उसने मधुमेह की आशंका जता दी। फिर क्या था हेल्थ क्लब के चक्कर लगने शुरू हो गये। मैने उन्हे अनुभवो के आधार पर बबूल की नयी पत्तियो का लेप लगाने की सलाह दी। चर्चा चल ही रही थी कि क्लब के प्रशिक्षक बोल पडे कि मेरे पास ज्यादा अच्छा उपाय है। वे छत्तीसगढी मे बोले कोढा ला पानी मे फिजो के तिल्ली तेल के साथ तलवा मे लगा और फेर जलवा देख अर्थात धान की भूसी को पानी मे भिगोकर तिल के तेल के साथ मिलाकर तलवो पर लगाये। पर सज्जन मुझसे ज्यादा प्रभावित थे सो उन्होने इस नुस्खे को अनदेखा कर दिया। मैने उनसे दोनो अपनाने की बात कही। वापस आकर मैने अपने डेटाबेस मे देखा तो मुझे इस ज्ञान के बारे मे कुछ नही मिला। प्राचीन ग्रंथो को खंगाला तो भी यही परिणाम मिला। मै झट से प्रशिक्षक महोदय के पास फिर जा पहुँचा। उनके पास यह जानकारी दादी के पास से आयी थी। मैने बिना विलम्ब उनके नाम से पूरी जानकारी डेटाबेस मे डाल दी। वे भी आश्चर्य चकित दिखे। उन्हे पता ही नही था कि इस अलिखे ज्ञान का कितना अधिक महत्व है। कुछ दिनो बाद सज्जन का भी फोन आ गया। सकुचाते हुये बोले धान की भूसी से अधिक लाभ मिला। मैने उनके हवाले से यह बात भी डेटाबेस मे डाल दी। अब मै जहाँ भी जाऊँगा पारम्परिक चिकित्सको को इस बारे मे बताऊँगा। वे भी इसमे अपने अनुभव जोडेंगे और इस तरह काफी जानकारी एकत्र हो जायेगी। आमतौर पर यह देखा जाता है कि आम भारतीयो विशेषकर उम्र के अंतिम पडाव पर खडे लोगो के पास ढेरो जानकारियाँ होती है। कभी किसी ने इसका दस्तावेजीकरण नही किया। उन्होने भी इसके महत्व को नही जाना। उनके बच्चो को तो आधुनिक शिक्षा ने कभी परम्पराओ का आदर करना नही सीखाया। वे तो पूर्वजो को निरा गवार और उनकी वैज्ञानिक बातो को अन्ध-विश्वास मानते है। इन्ही कारणो से जन साधारण का पारम्परिक ज्ञान धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है।

हमारे देश मे पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण के नाम पर अरबो रूपए पानी मे बहाए जा चुके है पर नतीजा सिफर ही रहा है। विशेषज्ञ आमतौर पर प्राचीन ग्रंथो को खंगालते है या फिर किसी बडे क्षेत्र मे जाकर सेम्पल सर्वे के नाम पर चुनिन्दा लोगो के ज्ञान को लिख लाते है। वे इसे वैज्ञानिक विधि बताते है। पर जिस देश मे प्रत्येक जन के पास कुछ न कुछ हो देने के लिये तब सेम्पल सर्वे से बात नही बनेगी। मै सदा से ही इसके खिलाफ रहा हूँ। परिणाम सामने है, बिना आर्थिक सहायता से अपने दम पर सब कुछ करना पडता है।

अब तक के अनुभवो से मैने लाखो कारगर नुस्खे आम जनो से एकत्र किये है। इस वर्ष बरसात के आरम्भ मे मुझे मैनपुर के वनो मे जाने का मौका मिला फोटोग्राफी के लिये। छत्तीसगढ मे मैंनपुर और देवभोग का इलाका हीरे के लिये जाना जाता है। पर मेरी नजर हरे हीरे अर्थात वनस्पतियो पर थी। वनो मे घूमते हुये हमे देखकर पास से गुजर रहे स्थानीय निवासी से नही रहा गया। बडी देर तक विस्मित सा देखता रहा फिर जब मैने उसे सरफोंक नामक वनस्पति के कुछ चमत्कारिक पर वैज्ञानिक आधार वाले प्रयोग दिखाये तो उसने सब कुछ ताड लिया। झट से एक पौधा ले आया और कहा इसकी पत्तियो को चबाइये। मै झिझका। अपने ड्राइवर को इशारा किया। उसने पत्तियाँ चबाई। फिर निवासी ने उसे पत्थर का टुक़डा चबाने को दिया। जब उसने हिम्मत करके यह किया तो दाँतो से पत्थर चूर-चूर हो गया। फिर मैने भी आजमाया। आश्चर्य का ठिकाना नही रहा। उसने खुलासा किया कि यह वनस्पति दाँतो को मजबूत तो बनाती ही है साथ ही पथरी की भी कारगर दवा है। बाद मे उडीसा के नियमगिरि पर्वत के पारम्परिक चिकित्सको ने इस चमत्कारिक प्रभाव को एक बार फिर सही ठहराया और खुलासा किया कि कैसर की जटिल अवस्था मे वे इसका प्रयोग करते है। मैने पूरी जानकारी का उसी रूप मे उन्ही नामो के साथ दस्तावेजीकरण कर दिया।

मेरे साथ चलने वाले फिल्मकार किसी भी जानकारी पर सहज विश्वास के मेरे स्वभाव का मजाक उडाते है पर मेरा अनुभव है कि किसी भी जानकारी को उसके मूल रूप मे दस्तावेजीकरण होना चाहिये। आप चाहे तो नीचे अपनी टिप्पणी दे सकते है पर चन्द किताबे पढकर और सात-आठ वर्ष की डिग्री लेकर आप सदियो पुराने पारम्परिक ज्ञान को गलत ठहराने की चेष्टा करते है तो यह आपकी नादानी है।

ऊपर वर्णित दोनो ही उदाहरण आँखे खोलने वाले है। विशेषकर उन लोगो के लिये जिन्होने कभी इस पर नही सोचा। आप भी देर न करे। दस्तावेजीकरण के इस अभियान मे ज़ुट जाये और पूर्वजो को कोसना अब बन्द भी करे अन्यथा कुछ पीढी बाद नयी पीढी हमे भी उसी श्रेणी मे डाल देगी।

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

प्रकाशन अनुमति के लिये सम्पर्क करे pankajoudhia@gmail.com

Comments

"सात-आठ वर्ष की डिग्री लेकर आप सदियो पुराने पारम्परिक ज्ञान को गलत ठहराने की चेष्टा करते है तो यह आपकी नादानी है।"


बहुत अर्थपूर्ण विचार किया है आपने। साधुवाद !

Popular posts from this blog

कैंसर में कामराज, भोजराज और तेजराज, Paclitaxel के साथ प्रयोग करने से आयें बाज

गुलसकरी के साथ प्रयोग की जाने वाली अमरकंटक की जड़ी-बूटियाँ:कुछ उपयोगी कड़ियाँ

भटवास का प्रयोग - किडनी के रोगों (Diseases of Kidneys) की पारम्परिक चिकित्सा (Traditional Healing)