Consultation in Corona Period-171

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"सड़क के किनारे पर  बरगद के दस पुराने वृक्ष हैं जिन्हें हमें मशीन की सहायता से उखाड़ना है। इन वृक्षों का बहुत अधिक धार्मिक महत्व है इसलिए स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं। हमें यह भी बताया गया है कि यहां के पारंपरिक चिकित्सक सैकड़ों सालों से इस तरह के वृक्षों का उपयोग दवा बनाने के लिए कर रहे हैं इसलिए वे चाहते हैं कि ये वृक्ष बने रहे। भले ही सड़क को दूसरी ओर से जाना पड़े। 

विरोध बहुत बड़े पैमाने पर हो रहा है इसलिए हम लोगों ने प्रशासन को एक और रास्ता सुझाया है जिसमें हम उन्हें कह रहे हैं कि हम वृक्षों को तो उखाड़ेंगे पर उन्हें उखाड़ कर दूसरे स्थान पर लगा देंगे ताकि ये वृक्ष लोगों के काम आ सके पहले की तरह। यह पूरी तरह से नया प्रयोग होगा पर हम इस दिशा में पूरा प्रयास करेंगे। प्रशासन ने हमारे प्रस्ताव को एक बार में ही मान लिया और हमसे कहा कि अगर 10 परसेंट भी सफलता मिले अर्थात एक वृक्ष भी बच जाए तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होगी और आगे की योजना के लिए रास्ता आसान हो जाएगा। 

हमने इतना बड़ा जोखिम आपके उस लेख के आधार पर लिया है जो आपने कई सालों पहले इंटरनेट पर लिखा था। अब जब हमें इस योजना की मंजूरी मिल गई है इसलिए हम आपसे संपर्क कर रहे हैं कि आप हमारे तकनीकी मार्गदर्शक बने और इन वृक्षों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने में हमारी मदद करें।" विदर्भ की एक कंपनी के डायरेक्टर ने जब मुझसे परामर्श का समय लिया और इस बात की जानकारी दी तो मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा। 

मैंने यह काम देश के दूसरे हिस्सों में पहले कई बार किया है और मुझे उम्मीद है कि इस बार भी हमें अच्छी सफलता मिलेगी। मैंने उनसे यह भी कहा कि हमें वृक्षों को उखाड़ने के 15 दिन पहले से विशेष तरह के औषधि सत्वों से उन वृक्षों को सिंचित करना होगा ताकि वे किसी भी तरह का आघात सहने के लिए तैयार हो जाए और फिर उसके बाद जिस दिन वृक्षों को उखाड़ा जाएगा तब उन उखड़े हुए भागों में भी सत्वों को डालने की जरूरत होगी। उसके बाद जब उन्हें नए स्थान पर लगाया जाएगा तब एक बार फिर से 15 दिनों तक उनकी देखभाल की जरूरत होगी। इसके बाद वे अपने आप ही नई जगह पर फलने फूलने लगेंगे। 

इस कार्य के लिए मुझे उस स्थान पर रोज जाना होगा। बेहतर यही होगा कि मैं वहां पर डेढ़ महीने की कैंपिंग करूं और पूरे समय उन वृक्षों पर निगरानी रखूँ। आपको मेरे रहने की व्यवस्था करनी होगी और मेरी फीस एडवांस के रूप में जमा करनी होगी। मैं अपने द्वारा अपनाई जाने वाली विधि की पूरी तकनीकी जानकारी आपको लिखित में दे दूंगा ताकि उसे आप प्रशासन को दिखा सके और यदि प्रशासन को किसी भी तरह की जिज्ञासा हो तो मैं उसका समाधान करने के लिए उपस्थित रहूंगा।

 मेरी इन शर्तों को विदर्भ की कंपनी ने मान लिया और इस योजना पर काम होना शुरू हो गया। इस पूरी योजना के लिए 100 से भी अधिक प्रकार की वनस्पतियों को एकत्र करना था, उनसे प्रतिदिन ताजा सत्व बनाना था और फिर मजदूरों की सहायता से उन्हें वृक्षों में डालना था। कंपनी ने एक बड़ी टीम तैयार कर दी जो जल्दी ही इस कार्य में दक्ष हो गई। 

नियत समय पर जब इन वृक्षों को उखाड़ा गया तब वहां स्थानीय लोग भी उपस्थित थे और पारंपरिक चिकित्सक भी। वे इस नई योजना से विशेष रूप से प्रभावित थे और उन्हें उम्मीद थी कि अब उनके पुराने वृक्ष पूरी तरह से बचे रहेंगे। योजना यह थी कि एक वृक्ष को उखाड़ कर उसे नए स्थान पर उसी दिन ले जाए और फिर उसके बाद उसी दिन या दूसरे दिन सुबह उसे नए स्थान पर लगा दिया जाए पर योजना में थोड़ी सी गड़बड़ हो गई और वृक्षों को उखाड़ने के बाद उन्हें 3 दिनों तक वैसे ही पड़ा रहने दिया गया फिर उसके बाद ट्रकों की उपलब्धता के आधार पर उन्हें नए स्थान पर लगाया गया। अब सफलता की उम्मीद बहुत कम हो गई थी। जब यह अभियान पूरी तरह से समाप्त हुआ तो 10 में से केवल 3 वृक्ष ही बच पाए और शेष ने अपना जीवन त्याग दिया। मैं बड़ा निराश था। मुझे अधिक सफलता की उम्मीद थी। उनकी कंपनी के लोग बहुत मेहनत से काम कर रहे थे और हमने किसी भी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ी थी पर कंपनी के डायरेक्टर बहुत प्रसन्न थे क्योंकि उन्हें कॉन्ट्रैक्ट दस पर्सेंट सफलता के आधार पर मिला था जबकि उन्हें 30 पर्सेंट की सफलता मिल गई थी। 

इस तरह मेरा काम समाप्त हुआ और मैं वापस आ गया। फिर बहुत दिनों तक उस कंपनी से किसी भी प्रकार का कोई संपर्क नहीं हुआ।

एक दिन अचानक ही कंपनी के डायरेक्टर ने फिर से मुझसे संपर्क किया और कहा कि वह एक बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गए हैं और इस मुसीबत में मैं ही उनकी रक्षा कर सकता हूं। जब मैंने विस्तार से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उस प्रोजेक्ट की सफलता के बाद उन्होंने पीपल के वृक्षों को इसी तरह उखाड़ कर नए स्थान पर लगाने का प्रोजेक्ट ले लिया था और प्रोजेक्ट में इस बात की गारंटी दी थी कि उन्हें 80 पर्सेंट तक सफलता मिलेगी। उन्होंने वही विधि अपनाई जो कि उन्होंने मुझसे सीखी थी बरगद के वृक्षों के लिए। 

पहले चरण में जब उन्होंने 10 वृक्षों को उखाड़कर नए स्थान पर लगाया तो एक भी वृक्ष नहीं बचा। उनका 80 परसेंट वाला दावा पूरी तरह से असफल साबित हुआ जब दूसरे चरण में उन्होंने 10 वृक्षों को फिर से ट्रांसप्लांट किया तो एक बार फिर से सारे वृक्ष मारे गए। अब उनका ब्लड प्रेशर बढ़ने लगा था और वह बुरी तरह से घबरा गए क्योंकि उनके लाखों रुपए इस प्रोजेक्ट में लगे हुए थे। उन्होंने दावा करके बहुत बड़ी गलती कर दी थी।

 अब इस चरण के बाद के चरणों के लिए वह मेरी सेवाएं लेना चाहते थे। मैंने कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा। 

इस बात का मुझे थोड़ा सा आवेश भी था कि उन्होंने एक बार में ही सब कुछ सीख कर मुझे एक किनारे पर कर दिया और खुद ही नेतृत्व संभाल लिया पर विशेषज्ञ की जरूरत हर कदम पर होती है विशेषकर इस तरह के नए प्रोजेक्ट में। जरा से पैसे बचाने के लिए उन्होंने यह सब किया था। 

जब मैं उन वृक्षों तक पहुंचा तो मैंने देखा कि उनमें से बहुत से वृक्ष कई तरह की बीमारियों के शिकार थे अर्थात उनकी हालत अच्छी नहीं थी। पहले यह जरूरी था कि इन पीपल के वृक्षों को बीमारियों से मुक्त कराया जाए फिर मनुष्यों की तरह ही उनकी सेहत बनाई जाए फिर उन्हें इस आघात के लिए पूरी तरह से तैयार किया जाए। डायरेक्टर साहब ने कहा कि समय का किसी भी प्रकार का अभाव नहीं है और जिन वनस्पतियों का प्रयोग आप सत्व के रूप में करना चाहते हैं उसके लिए भारत के किसी भी कोने में हमें जाना पड़ा तो हम जाएंगे पर हमें कैसे भी इस प्रोजेक्ट को सफल बनाना है। 

उनकी पुरानी टीम ने मेरा साथ पहले की तरह दिया और हम सब इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट में भिड़ गए। इस प्रोजेक्ट के लिए हमने 55 प्रकार की वनस्पतियों का प्रयोग किया और जब पुराने वृक्षों को उखाड़ कर नए स्थान पर लगाया गया तो हमें साठ पर्सेंट की सफलता मिली। 80 पर्सेंट की सफलता के लिए सब ने बहुत जोर लगाया पर किसी भी तरह से यह संभव नहीं हुआ। प्रशासन ने इस बात को माना और साठ पर्सेंट की सफलता को भी एक बड़ी सफलता माना और उनके रुके हुए पैसे उन्हें दे दिए।

 डायरेक्टर साहब ने मुझे धन्यवाद दिया और मुझसे कहा कि अगली बार से वह मेरी ही सहायता लेंगे ऐसे किसी प्रोजेक्ट में। अपने आप ही किसी भी प्रकार का बड़ा दावा नहीं करेंगे। उन्होंने ऐसा कहा तो जरूर पर जब उन्हें अर्जुन के 25 वृक्षों को सड़क के किनारे से उखाड़ कर नए उद्यान में लगाने का एक नया प्रोजेक्ट मिला तो उन्होंने एक बार फिर से वही गलती की। उन्होंने कुछ सत्व तो बरगद वाले उपयोग किए और कुछ सत्व पीपल वाले। हां, इस बार उन्होंने बड़े दावे नहीं किए पर उन्हें लगा कि इन दोनों प्रकार के सत्वों का उपयोग करके वे अर्जुन के वृक्षों को बचा लेंगे और उन्हें मेरी सेवाओं की आवश्यकता नहीं होगी। आखिरकार उन्होंने मुझसे फिर से संपर्क किया और प्रोजेक्ट से जुड़ने के लिए कहा। मैंने कहा कि इस बार मैं आपकी मदद करूंगा पर सत्वों का निर्माण मेरी टीम करेगी और इसमें आपकी टीम का कोई भी सदस्य शामिल नहीं होगा। 

मैं दरअसल में पूरी जानकारी को गोपनीय रखना चाहता था ताकि आगे से वे इस तरह की गलती न कर पाए। वे इस बात के लिए तैयार नहीं हुए और उन्होंने फिर कुछ समय तक संपर्क नहीं किया।

 जब उन्हें लगातार असफलता मिलने लगी तो उन्होंने मेरी शर्त मानने का निर्णय लिया और यह भी प्रस्ताव दिया कि यदि आप सब प्रकार के वृक्षों के लिए उपयोग किए जाने वाले सत्वों की जानकारी एक बार में ही दे दे तो वे इसके लिए एक बड़ा भुगतान करने को तैयार हैं। मैंने उनका प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया और कहा कि आपको जब भी मेरी आवश्यकता हो आप फीस जमा कर दें, मैं आपकी मदद कर दूंगा जैसा कि मैंने पहले भी किया है।

 इस तरह भारतीय पारंपरिक ज्ञान के माध्यम से यह प्रोजेक्ट भी काफी हद तक सफल रहा और मुझे हर प्रोजेक्ट की तरह कुछ नया सीखने को मिला। 


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