Consultation in Corona Period-152
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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"मेरे दो भांजे कल आपसे मिलने आएंगे। उनकी समस्या के लिए ही मैंने आपसे अपॉइंटमेंट लिया है। मैं उनके साथ नहीं आ पाऊंगा क्योंकि मेरे सामने वे अपनी समस्याओं को नहीं बता पाएंगे। मैंने आपकी फीस जमा कर दी है। आप जब समय देंगे तो ये दोनों आपसे मिलने आ जाएंगे।" एक स्थानीय व्यक्ति ने मुझसे फोन पर संपर्क कर यह कहा।
फीस जमा हो जाने के बाद मैंने उन्हें समय बता दिया और नियत समय पर ही उनके दोनों भांजे मुझसे मिलने के लिए आ गए। जब मैंने उनको देखा तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। दोनों ही किशोर थे और बहुत अधिक परेशान दिख रहे थे। उनके हाथों में रिपोर्टों का एक बड़ा सा पुलिंदा था। वे मुझसे कुछ नहीं बोले और एक पत्र उन्होंने मुझे थमा दिया और अनुरोध किया कि मैं उस पत्र को ध्यान से पढूँ।
पत्र में लिखा हुआ था कि दोनों भाइयों में 2 साल का अंतर है। उनका जीवन बहुत अधिक व्यवधानो से भरा हुआ है। वे अपने दूसरे मित्रों की तरह नहीं है। अपने दूसरे मित्रों की तरह उनकी सेक्स में किसी भी प्रकार की रुचि नहीं है और यदि जब भी रुचि होती है तो उनके यौन अंग शिथिल होते हैं और उनमें किसी भी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है।
उन्होंने आगे लिखा था कि इसके लिए उन्होंने अपने जेब खर्च से पैसे बचाकर देशभर के डॉक्टरों से मुलाकात की। उन्हें लगता है कि उन्हें कोई गंभीर समस्या है जो कि अनुवांशिक भी हो सकती है।
उन्होंने यह बात अपने माता-पिता को नहीं बताई न ही अपने किसी रिश्तेदार को। वे मुझसे मदद चाहते थे। उन्होंने इंटरनेट पर मेरे बारे में पढ़ा था। पत्र बहुत लंबा था पर इसी समस्या पर केंद्रित था और पत्र को पढ़कर लगता था कि वे बहुत अधिक परेशान है। पत्र को पढ़ने के बाद मैंने उनकी रिपोर्ट देखी।
सचमुच उन्होंने बहुत मेहनत की थी और देश भर के बड़े-बड़े चिकित्सकों से मिले थे पर सभी ने उन्हें कहा था कि इस उम्र में इस बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है। उम्र के साथ-साथ इस समस्या का समाधान हो जाएगा।
बहुत से चिकित्सकों ने कई तरह की दवाएं लिखी थी जिनका प्रयोग ये किशोर कर चुके थे पर उन्हें किसी भी तरह का लाभ नहीं हुआ था। स्वास्थ के दृष्टिकोण से वे पूरी तरह स्वस्थ थे।
उन्होंने पत्र में लिखा था कि वे कक्षा में अव्वल आते हैं और पूरे स्कूल में आदर्श छात्र के रूप में जाने जाते हैं पर मन ही मन में बहुत ज्यादा चिंतित थे अपने भविष्य को लेकर। इस शारीरिक दोष के कारण वे अपने आप को बहुत घुटा हुआ महसूस कर रहे थे।
पहले छोटे भाई ने बड़े भाई को अपनी समस्या बताई तब दोनों को पता चला कि यह समस्या उन दोनों को है और फिर वे इसके समाधान के लिए एकजुट हो गए। जब मैंने पत्र में पढ़ा कि वे अपने जेब खर्च से पैसे बचाकर डॉक्टरों की फीस दे रहे हैं तो मैंने उनसे पूछा कि क्या मेरी फीस भी उन्होंने अपने जेब खर्च से दी है तो उन्होंने कहा कि हां, हमने मामा को भी इस बारे में कुछ नहीं बताया और आपकी फीस हमने ही जमा की है।
सबसे पहले तो मैंने फीस वापस कर दी और कहा कि जब पढ़ लिखकर इस योग्य हो जाओ कि फीस दे सको तब मुझे दे देना। अभी इसको वापस रख लो।
मैंने उनसे सामान्य जानकारियां ली। उनके खान पान के बारे में पूछा और फिर उनसे कहा कि एक छोटा सा परीक्षण जड़ी बूटियों के लेप का मैं करना चाहूंगा अगर उनकी अनुमति हो तो उन्होंने कहा कि इसी के लिए वे इतनी दूर से आए हैं।
जब मैंने जड़ी बूटियों का लेप लगाया और उनके शरीर ने प्रतिक्रिया व्यक्त की तो सारी स्थिति स्पष्ट होने लगी। मैंने उनसे कहा कि एक छोटा सा परीक्षण और करना चाहूंगा। वे इस बात के लिए तैयार हो गए। उस परीक्षण के पूरा होने के बाद मैंने उनसे कहा कि वे वापस लौट जाएं। दूसरे दिन मुझसे फिर से मिले और मुझे बताएं कि उनकी समस्या का किसी तरह से समाधान हुआ कि नहीं।
मैंने उनको यह भी बताया कि उन्हें बहुत अधिक मात्रा में पेशाब होगी। इससे चिंता करने की जरूरत नहीं है। 24 घंटे के बाद यह समस्या पूरी तरह से ठीक हो जाएगी।
वे वापस लौट गए और दूसरे दिन जब वे मुझसे मिलने आए तो उनका चेहरा खिला हुआ था। उन्होंने बताया कि उनकी समस्या का समाधान हो गया ऐसा लगता है। उन्होंने बताया कि शिथिलता अब पूरी तरह से दूर हो गई है और वे सुबह से बहुत ही अधिक उत्साहित हैं। मैंने उनसे कहा कि अभी प्रसन्न होने की आवश्यकता नहीं है। यह तो मात्र परीक्षण था। किसी तरह की दवा नहीं थी। इससे समस्या के मूल कारण का पता लग गया है। इस आधार पर अब दवाओं का चयन किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि उन्हें कुछ और नहीं चाहिए बस यही लेप चाहिए जिससे कि उनकी सारी शिथिलता दूर हो गई और वे अपने मित्रों की तरह ही सक्रिय हो गए।
मैंने कहा कि इस लेप का प्रभाव अस्थाई है। कुछ दिनों तक ही यह लाभप्रद रहेगा। उसके बाद इसका असर होना बंद हो जाएगा। मैंने एक बार फिर से दोहराया कि यह केवल परीक्षण के लिए था।
मैंने उनसे कहा कि वे जब अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी कर लेंगे तब उनकी समस्या अपने आप ठीक हो जाएगी। उनको यह जवाब बहुत अटपटा लगा और उन्होंने कहा कि वे बड़ी उम्मीद से किसी दवा के लिए मेरे पास आए हैं।
मैंने उनसे कहा कि तुम लोगों की इस समस्या का समाधान तुम्हारे माता-पिता के पास है। भले ही शर्म के कारण तुम लोग अपने माता पिता से इस समस्या की बात नहीं कर पा रहे हो पर मैं तो यही कहूंगा कि तुम लोग खुलकर अपने माता-पिता से इस बारे में बात करो। वही इसका उचित समाधान बता सकेंगे। इससे अतिरिक्त मैं तुम लोगों की और कोई मदद नहीं कर पाऊंगा। हां, अगर तुम्हारे माता-पिता मुझसे मिलना चाहे तो मैं उन्हें मार्गदर्शन दे सकता हूं।
अनमने ढंग से वे वापस लौट गए। फिर एक-दो महीने तक उनका कोई फोन नहीं आया। 2 महीने के बाद उन्होंने फोन किया कि उन्होंने अपने माता-पिता से इस समस्या के बारे में आखिर बात की। माता-पिता ने भी वही बात दोहराई जो कि आप कह रहे थे।
उन्होंने कहा कि जब तुम लोगों की पढ़ाई लिखाई पूरी हो जाएगी तब यह समस्या अपने आप ठीक हो जाएगी। जब उन्होंने ऐसा कहा तो हमने उन्हें बताया कि आपने भी ऐसा ही कहा था तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। हमने अपने माता-पिता से अनुरोध किया कि वे एक बार आपसे जाकर मिले। माता-पिता इस बात के लिए तैयार हो गए और अगले हफ्ते वे आपसे मिलने आने वाले हैं। जब उन किशोरों के माता-पिता मुझसे मिलने आए तो मैंने उनसे कहा कि आप बच्चों को कड़े अनुशासन में रखना चाहते हैं यह अच्छी बात है पर इस कड़े अनुशासन से उनका स्वाभाविक स्वास्थ किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
उनके पिता ने हाथ जोड़ते हुए कहा कि आप तो सारी बात जानते हैं। आजकल बच्चे कितने अधिक बिगड़ रहे हैं। हम चाहते हैं कि वे कड़े अनुशासन में रहें और सेक्स के बारे में बिल्कुल भी न सोचें। एक बार उनकी शिक्षा पूरी हो जाए तो फिर उन्हें छूट दी जा सकती है कि वे अपने जीवन का फैसला खुद करें।
मैंने उनसे कहा कि यदि प्रकृति को यह पसंद नहीं होता कि इस उम्र में किशोर किसी तरह की सेक्सुअल एक्टिविटी में भाग ले तो प्रकृति ने ऐसी व्यवस्था की होती पर उनमें किसी भी तरह की प्रतिक्रिया हो रही है तो वह स्वाभाविक है और प्रकृति के विरुद्ध कुछ भी काम करना अपने बच्चों के जीवन के भविष्य से खिलवाड़ करना है ऐसा मेरा मानना है।
मुझे इस बात का आभास है कि आपके गुरु महाराज ने ही ऐसी बूटी आपको दी होगी जिससे कि आपके बच्चों के यौन अंग पूरी तरह से शिथिल रहें और पढ़ाई में किसी भी तरह से बाधक न बने पर मैं आपको बताना चाहता हूं कि यह बच्चों पर ज्यादती है।
इस समय वे तरह-तरह के तनाव से ग्रस्त रहते हैं और इस तनाव से बचने के लिए उनके शरीर के सभी अंगो का ठीक से काम करना जरूरी है। यह विकास का समय है।
इस समय किसी भी तरह का अवरोध उत्पन्न करना उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ के लिए अभिशाप बन सकता है इसलिए मैं आप लोगों को यही सलाह दूंगा कि आप उन्हें जिस भी रूप में इस बूटी को दे रहे हैं वह देना बंद करें और उन्हें स्वाभाविक रूप से बढ़ने दें।
उनकी माता रोने लगी और उन्होंने कहा कि हम प्रसाद के रूप में रोजाना उन्हें एक व्यंजन देते हैं और उन्हें बताते हैं कि इससे उनका दिमाग बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा और पढ़ाई में मन लगेगा। इसी व्यंजन में हम गुरु महाराज की दी हुई बूटी को मिला देते हैं। इससे बच्चों के काम शक्ति पूरी तरह से समाप्त हो जाती है। गुरु महाराज ने कहा है कि जब उनके शिक्षा पूरी हो जाए तब इसी व्यंजन का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर देना ताकि वे सुखी जीवन जी सकें। यह कहकर उन्होंने अपनी बात पूरी की।
पर यह बात अच्छी रही कि उनके माता-पिता मेरी बात से प्रभावित हो रहे थे और उन्होंने निर्णय किया कि वे अब इस बूटी का प्रयोग नहीं करेंगे और किशोरों को स्वाभाविक रूप से बढ़ने देंगे। उन्होंने मेरा धन्यवाद किया और वे वापस लौट गए।
कुछ समय बाद दोनों किशोरों का धन्यवाद भरा फोन आया कि उनकी स्वभाविक शक्ति पूरी तरह से लौट आई है और इस मूलभूत समस्या का पूरी तरह से समाधान हो गया है। उन्हें अभी भी नहीं मालूम था कि किस कारण से उन्हें यह समस्या हो रही थी।
मैंने उनसे पूछा कि क्या तुम्हारे दिमाग को बढ़ाने के लिए दिया जा रहा व्यंजन अब तुम प्रयोग नहीं कर रहे हो तो उन्होंने कहा कि नहीं, अब हम उसका प्रयोग बिल्कुल भी नहीं कर रहे हैं। लंबे समय तक उसका प्रयोग करते हुए हम उकता गए थे।
यह घटना वर्ष 2009 की है।
पिछले हफ्ते बैंक से यह अलर्ट आया कि किसी ने फीस जमा की है जब मैंने फीस की राशि देखी तो वह बहुत अधिक थी।
मुझे लगा कि कई लोग एक साथ मिलकर मुझसे परामर्श लेने आना चाहते हैं। मैं इस बात का इंतजार करता रहा कि फीस जमा करने वाला मुझसे संपर्क करेगा और बताएगा कि उसने इतनी अधिक फीस क्यों जमा की है?
उसके बाद एक फोन आया। यह फोन उन्हीं दो भाइयों का था।
उन्होंने कहा कि वे अब बिल्कुल ठीक है और अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी करके एक बड़े प्रतिष्ठान में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
उन्होंने कहा कि हमे किसी भी तरह के परामर्श की जरूरत नहीं है। हमने जो अंशदान जमा किया है वह आपकी फीस है जो आपने सालों पहले लेने से इनकार कर दी थी। यह हमारी मेहनत की कमाई है।
आशा है कि इस बार आप मना नहीं करेंगे।
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