Consultation in Corona Period-169

 Consultation in Corona Period-169

Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"अभी उसे सांस लेने में बहुत तकलीफ हो रही है। डॉक्टर कहते हैं कि जल्दी ही उसे वेंटिलेटर पर रखना होगा। उसके गले में सूजन है और जीभ भी पूरी तरह से सूजी हुई है जिसके कारण वह किसी भी प्रकार का भोजन नहीं ग्रहण कर पा रहा है और बोल भी नहीं पा रहा है। उसे पूरे शरीर में Urticaria जैसे चकत्ते हो गए हैं और पूरा शरीर असहनीय खुजली से भरा हुआ है। उसे बार-बार दस्त हो रहे हैं। उसका कोविड टेस्ट हो चुका है और यह पूरी तरह से नेगेटिव आया है। 

डॉक्टर तरह-तरह के परीक्षण कर रहे हैं पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। उन्होंने निर्णय लिया है कि वे लक्षणों के आधार पर चिकित्सा करेंगे और जब तक रोग का कारण नहीं पता चल जाता तब तक कोई दूसरी तरह की चिकित्सा नहीं करेंगे। 

यह मामला मेरे बेटे का है जो कि इस साल दिसंबर में 8 साल का होगा। जब भी वह किसी बर्थडे पार्टी में जाता है तो उसके बाद उसकी हालत ऐसी ही हो जाती है पर इस बार उसकी हालत बहुत ज्यादा बिगड़ी और उसे घर में इलाज देने की बजाय अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। डॉक्टरों ने कहा कि यदि थोड़ी भी देर हो जाती तो उसकी जान पर बन आती और उसका बचना मुश्किल था। बहुत छोटी उम्र से उसे यह समस्या हो रही है इसलिए हम लोगों ने फैसला किया था कि उसे किसी भी मित्र की बर्थडे पार्टी में नहीं जाने देंगे और हमने उसका बाहर का खाना पीना भी बिल्कुल बंद कर दिया था। यह बच्चे पर बहुत अधिक ज्यादती थी पर हम मजबूर थे। 

इस बार उसने बहुत जिद की तब हमने उसे इस शर्त पर जाने दिया कि वह वहां पर ज्यादा देर नहीं रुकेगा और शोर-शराबे से बिल्कुल दूर रहेगा। वह इसके लिए तैयार हो गया। उसके जाने के कुछ ही घंटों बाद हमें फोन आया कि उसकी हालत बहुत बिगड़ गई है और आप तुरंत आ जाइए।

 हमने आपसे परामर्श का समय इसलिए मांगा है कि हम चाहते हैं कि आप उसकी चिकित्सा कर रहे डॉक्टर से सीधी बात करें और यह जानने की कोशिश करें कि उसकी समस्या का कारण क्या है और कुछ दवाएं भी दें जिससे उसकी हालत में सुधार हो सके।" मुंबई से जब एक सज्जन का यह फोन आया तो मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा। मैं आपको समय देता हूं

 आप मुझे अपने डॉक्टर महोदय से बात करवा दें ताकि मैं पूरी स्थिति को अच्छे से जान सकूं।

 समय पर मैं डॉक्टर से बात करने का इंतजार करने लगा पर मुझे बताया गया कि डॉक्टर मुझसे बात नहीं करना चाहते हैं। वे किसी से भी बात नहीं करते हैं। ज्यादा जोर देने पर उन्होंने कहा कि यह अस्पताल के नियम के विरुद्ध है कि बाहर से बिना अस्पताल के डायरेक्टर की अनुमति के बात की जाए।

 वे सज्जन बड़े निराश हुए और उन्होंने कहा कि वे और कोशिश करेंगे और एक बार फिर से बात कराने का प्रयत्न करेंगे। वे उस अस्पताल के डायरेक्टर से मिलने गए और मेरे बारे में बताते हुए उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि एक बार वह मुझसे बात कर ले।

 अगली बार जब मैं डॉक्टर से बात करने का इंतजार कर रहा था उस समय उन डायरेक्टर महोदय का फोन आया। उन्होंने बताया कि वह मुझे जानते हैं। वह मुझसे कई सालों पहले मैसूर में गाजर घास के एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में मिल चुके हैं जहां हम दोनों को ही गाजर घास से होने वाले नुकसान और उसके समाधान के लिए व्याख्यान देने के लिए बतौर अतिथि बुलाया गया था। 

मैंने उनसे कहा कि मैंने आपको पहचान लिया है और मुझे आपसे बात करके खुशी होगी। उन्होंने केस को पूरे विस्तार के साथ समझाया और बताया कि उन्हें अभी इस बात का पता नहीं चल पा रहा है कि इस तरह के लक्षण क्यों आ रहे हैं? उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यह फूड प्वाइजनिंग का केस नहीं लगता है। बच्चे के पेट में किसी भी तरह की खाद्य सामग्री नहीं है। 

मैंने उनसे कहा कि अधिकतर मेरे पास ऐसे मामले तभी आते हैं जब डॉक्टर सभी तरह के प्रयास करके हार चुके होते हैं इसलिए मुझे लगता है कि आपने भी सभी तरह के प्रयास कर लिए होंगे और आप केवल लक्षणों के आधार पर ही उपचार करने के लिए मजबूर होंगे। डायरेक्टर साहब ने पूछा कि क्या आप किसी तरह की दवा देना चाहेंगे तब मैंने उनसे कहा कि किसी तरह की दवा देना वह भी दूसरे अस्पताल में मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर है। वह पहले से ही इतनी सारी दवाईयाँ ले रहा है। इन दवाओं के जखीरे में एक और दवा का प्रवेश करवाना ठीक नहीं होगा। अगर आप अनुमति दें तो मैं एक विशेष प्रकार के फंक्शनल फूड का प्रयोग करना चाहता हूं। इसका उद्देश्य समस्या का समाधान नहीं है बल्कि समस्या के कारण का पता लगाना है।

 उन्होंने पूछा कि कितनी मात्रा में वह फंक्शनल फूड देना होगा क्योंकि वह अभी खाने पीने की स्थिति में नहीं है। मैंने उन्हें खुलासा किया कि एक विशेष तरह के मेडिसिनल राइस से तैयार मांड मात्र 50 ml ही उसके शरीर में पहुंचाना है। यदि उसे किसी भी तरह से इसके प्रयोग से लाभ होता है तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि इस समस्या का मूल कारण क्या है। 

उन्होंने कहा कि मैं जानता हूं कि आपने भारत ही नहीं बल्कि विश्व के बहुत से देशों में उगने वाले चावल पर विशेष अनुसंधान किया है। चावल का मांड देने से उसकी सेहत में सुधार होगा। उसे किसी तरह का कोई नुकसान नही होगा ऐसा मैं भी मानता हूं इसलिए आप इस तरह के प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं। 

मैंने उन्हें धन्यवाद दिया। फिर उन सज्जन से कहा कि मेरे एक मित्र मुंबई में ही रहते हैं जो कि दो ढाई घंटे में उस मेडिसिनल राइस का मांड निकाल कर अस्पताल पहुंचेंगे। डॉक्टरों की निगरानी में उस मांड को बच्चे को देना है। उन्होंने धन्यवाद दिया और फिर वे मेरे मित्र का इंतजार करने लगे। 

जब बहुत अल्प मात्रा में मांड को दिया गया तो 2 घंटों तक उसका किसी भी तरह का कोई असर नहीं दिखाई दिया। देर रात डायरेक्टर साहब का फोन आया कि अब बच्चे के शरीर में सुधार के लक्षण दिख रहे हैं। उसकी असहनीय खुजली अब कम होती जा रही है। अगले घंटे उन्होंने बताया कि Urticaria जैसे लक्षण पूरी तरह से खत्म हो गए हैं। इसके 3 घंटे बाद उन्होंने बताया कि अब सांस लेने में किसी भी तरह की समस्या नहीं हो रही है। 2 घंटे बाद जब फिर से उनका फोन आया तो उन्होंने बताया कि जीभ की सूजन पूरी तरह से खत्म हो गई है।

 उन्होंने यह पूछा कि क्या मांड को फिर उतनी ही मात्रा में दोबारा देने की आवश्यकता है तब मैंने उनसे कहा कि यह किसी प्रकार की दवा नहीं है बल्कि एक तरह का परीक्षण ही है। उन्होंने पूछा कि यह परीक्षण तो दवा की तरह काम कर रहा है। आप हमें उस चावल का नाम बताएं ताकि हम अपने मरीजों को इसी तरह दे सके जब अच्छी से अच्छी दवाई पूरी तरह से असफल साबित हो। हम इस पर क्लिनिकल ट्रायल भी करना चाहेंगे।

 मैंने उनके विचार का स्वागत किया और कहा कि पहले हम इस बच्चे के केस को ठीक कर लेते हैं उसके बाद ही हम इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे। 

मैंने उनसे यह भी कहा कि यदि आप चाहें तो लक्षणों के आधार पर दी जा रही दवाओं को आप बंद कर सकते हैं। अब वह खतरे से बाहर है कम से कम 24 घंटे तक। उसके बाद मांड का असर कम होने लगेगा और हो सकता है कि उसको कम तीव्रता के वैसे ही लक्षण आने लगे। 

जब उस बच्चे के दस्त भी पूरी तरह से रुक गए तब मैंने डायरेक्टर साहब को खुलासा किया कि मुझे लगता है कि यह कोकोआ टॉक्सिसिटी के कारण उत्पन्न हुए लक्षण थे। बच्चे ने बर्थडे पार्टी में चॉकलेट केक खाया होगा और उसे पहले से ही चॉकलेट्स से एलर्जी हो गई होगी। इसके बारे में उसे पता नहीं होगा। 

चॉकलेट से होने वाली एलर्जी में ऐसे ही भयानक लक्षण आते हैं पर किसी को इस बात का विश्वास ही नहीं होता है कि चॉकलेट के कारण भी ऐसा हो सकता है।

 मैंने उनसे अनुरोध किया कि वे एलर्जी स्पेशलिस्ट को बुलाएं और चॉकलेट से होने वाली एलर्जी का वैज्ञानिक परीक्षण कराएं। मुझे विश्वास है कि इससे उस बालक की समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाएगा और फिर उसे इस तरह के लक्षण कभी नहीं आएंगे। 

उन्होंने मेरी बात पर आश्चर्य प्रकट किया और कहा कि हमारा ध्यान इस ओर बिल्कुल भी नहीं गया। बर्थडे पार्टी और चॉकलेट का गहरा संबंध है। यह तो हम भूल ही गए थे और हमने अपने जीवन में चॉकलेट एलर्जी का एक भी केस नहीं देखा है न ही इसके बारे में किसी तरह का अध्ययन किया है इसलिए हमसे यह चूक हो गई।

 उन्होंने तुरंत ही विशेषज्ञ की सेवाएं ली और उन्होंने कई तरह के परीक्षणों के बाद इस बात की पुष्टि कर दी कि बच्चे को कोकोआ एलर्जी के कारण ही ऐसे खतरनाक लक्ष्ण आ रहे थे।

 2 दिनों के अंदर ही अस्पताल से उसकी छुट्टी हो गई इस हिदायत के साथ कि वह बच्चा अब इस जीवन में चॉकलेट का प्रयोग बहुत संभलकर करें और अगर करें तो डॉक्टर की निगरानी में करें।

 डायरेक्टर साहब और उनकी टीम ने मुझे धन्यवाद ज्ञापित किया और आमंत्रित किया कि मैं उनके अस्पताल में क्लीनिकल ट्रायल को डिजाइन करने में उनकी मदद करूं। मैंने उनका आमंत्रण स्वीकार कर लिया। 

जिन सज्जन ने मुझसे संपर्क किया था उन्होंने भी धन्यवाद दिया। मैंने उन्हें बताया कि भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में बहुत से ऐसे फंक्शनल फूड हैं जिनका प्रयोग यदि आपका बालक कुछ सालों तक करता रहेगा तो वह किसी भी तरह से बीमार नहीं पड़ेगा। उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत बढ़ जाएगी और साथ ही धीरे-धीरे चॉकलेट को सहन करने की क्षमता भी शरीर में विकसित हो जाएगी। 

अगर आप चाहे तो मैं आपको ऐसे पारंपरिक चिकित्सक के पास भेज सकता हूं जो इस तरह के फंक्शनल फूड का सुझाव आपको दे सकते हैं। उन्होंने एक बार फिर से मुझे धन्यवाद दिया।

 मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी। 


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