Consultation in Corona Period-170

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"सर, आपको याद होगा 10 साल पहले मैं अपने मुंह के कैंसर की चिकित्सा के लिए आपके पास आया था। उस समय मुझे अंतिम स्टेज का ओरल कैंसर था। मेरे मुंह का ट्यूमर इतना अधिक बढ़ गया था कि वह दूर से ही दिखाई देता था। उसका आकार क्रिकेट की बॉल की तरह था और वह इतनी तेजी से फैल रहा था कि मेरा मुंह पूरी तरह से बंद हो चुका था और मुझे नाक की सहायता से भोजन दिया जाता था।

 मुंबई से मुझे लौटा दिया गया था और मेरे परिजनों को कहा गया था कि मेरी जितनी अच्छे से देखभाल हो सके वह घर पर ही रहकर की जाए। अब इस ट्यूमर की चिकित्सा की किसी भी तरह की कोई संभावना नहीं है। मुझे असहनीय दर्द हो रहा था और मैं मार्फिन के सहारे ही जिंदा था। जब मेरे परिचत मुझे आपके पास लेकर आए तो आपने मेरे पैरों में जड़ी बूटियों का लेप लगाकर कोई परीक्षण किया और उसके बाद बताया कि वैसे तो यह केस लाइलाज है पर फिर भी कोशिश की जा सकती है। आपने कई तरह की भोजन सामग्रियाँ मुझे सुझाई। इन्हें नाक की सहायता से दिया जा सकता था।

 फिर आपने मेरे पिताजी को एक पारंपरिक चिकित्सक के पास भेजा। मेरे पिताजी पारंपरिक चिकित्सक से मिलकर बहुत तरह के मेडिसिनल राइस लेकर आए। अपने पिताजी को कहा कि बहुत धैर्य से उपचार करने की आवश्यकता है और इस तरह आपने उन मेडिसिनल राईस का मांड निकाल कर मुझे नाक के रास्ते से देना शुरू किया। लंबे समय तक इसका प्रयोग करने से ट्यूमर अपने आप ही टूटने लगा और मेरा मुंह धीरे धीरे खुलता गया। हर बार जब भी ट्यूमर टूटता था तब बहुत अधिक मात्रा में रक्तस्राव होता था। इसके लिए मुझे आधुनिक चिकित्सा का सहारा लेना पड़ता था। चिकित्सक एक विशेष तरह का इंजेक्शन लगाते थे जिससे यह रक्त स्राव धीरे-धीरे पूरी तरह से बंद हो जाता था। इस रक्तस्राव के बाद मेरी हालत बहुत खराब हो जाती थी और मुझे खून चढ़ाना पड़ता था। हम लोगों ने आप पर विश्वास किया और लंबे समय तक केवल इन्हीं देसी चावल का उपयोग किया। 

आपके निर्देशानुसार 2 साल के बाद जब हम फिर से मुंबई गए तो वहां के अस्पताल ने आश्चर्य व्यक्त किया और कहा कि अब इस स्थिति में वे फिर से चिकित्सा शुरू कर सकते हैं। इस तरह फिर से रेडिएशन और कीमोथेरेपी का दौर शुरू हो गया और धीरे-धीरे करके मेरा कैंसर पूरी तरह से नियंत्रण में आ गया। 

देसी चावल के लगातार प्रयोग से ट्यूमर फिर से बढ़ा नहीं और जब भी उसने सिर उठाने की कोशिश की आधुनिक चिकित्सा ने उसे अपने रसायनों और रेडिएशन के माध्यम से नष्ट कर दिया। इस समन्वित चिकित्सा पद्धति से मेरा जीवन बहुत बढ़ गया और अभी भी मुझे कैंसर की किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं है। 

इस बार मैंने आपसे इसीलिए संपर्क किया है कि मुझे एक विशेष तरह की समस्या आ रही है। मेरे शरीर में ऐसे लक्षण आ रहे हैं जिनका परीक्षण करने के बाद चिकित्सकों ने कहा है कि यह आर्सेनिक के कारण आ रहे हैं। मुझे आश्चर्य हो रहा है कि यह आर्सेनिक मेरे शरीर में कहां से आ रहा है? 

पहले मुझे कीमोथेरेपी की दवाओं पर शक हुआ पर जब मैंने इस बारे में पता किया तो चिकित्सकों ने कहा कि उनकी कीमोथेरेपी की दवा में किसी भी प्रकार से आर्सेनिक का उपयोग नहीं किया जा रहा है। मैंने फिर पीने के पानी की जांच कराई और उसके बाद जिस स्थान पर मैं रहता हूं वहां की मिट्टी की जांच कराई फिर भी मेरे शरीर में आर्सेनिक के लक्षण दिख रहे हैं। मैं आपसे परामर्श लेना चाहता हूं कि इस आर्सेनिक से बचने के लिए मैं क्या करूं और अगर शरीर में यह अधिक मात्रा में है तो कैसे इसके प्रभाव को खत्म किया जा सकता है? क्या इसके लिए भी आप किसी तरह का मेडिसिनल राइस सुझा सकते हैं?" झारखंड से आए इस युवक को मैंने तुरंत ही पहचान लिया और मुझे भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पर गर्व हुआ कि उसकी सहायता से मरणासन्न स्थिति में फंसे हुए इस युवक को नया जीवन मिल गया और उसका क्रिकेट की बॉल की तरह बड़ा ट्यूमर अब पूरी तरह से खत्म हो गया। मैंने उस युवक से कहा कि मैं तुम्हारी मदद करूंगा। 

मैंने उससे उसके खान पान के बारे में विस्तार से जानकारी ली और जब उसने खान पान के बारे में सब कुछ बताया, कुछ भी नहीं छुपाया तो स्थिति साफ होने लगी। 

मैंने उसे याद दिलाया कि जब उसकी स्थिति में सुधार हो गया था और मुंबई के चिकित्सकों ने कहा था कि अब फिर से चिकित्सा शुरू की जा सकती है तब मैंने उसे साफ शब्दों में कहा था कि वह मेरे द्वारा दिए गए मेडिसिनल राइस का प्रयोग अब पूरी तरह से रोक दें। अब उसकी जरूरत नहीं है। जब भी ट्यूमर बढ़ना शुरू करें तब वह केवल 15 दिनों के लिए इसका प्रयोग करे। उसके बाद फिर इसका प्रयोग पूरी तरह से रोक दे। युवक ने स्वीकार किया कि मैंने उसे इस तरह का परामर्श दिया था पर उसने कहा कि जिस मेडिसनल राइस से मेरा लाइलाज कैंसर ठीक हो गया मैं उसका प्रयोग भला कैसे रोक सकता था? मैं उस दिन से लेकर आज तक उस चावल का प्रयोग कर रहा हूं और अधिक से अधिक मात्रा में प्रयोग कर रहा हूं ताकि मुझे दोबारा कैंसर की समस्या न हो और मुझे इससे लाभ भी हो रहा है। आप देखिए मुझे अभी तक के दोबारा ट्यूमर नहीं हुआ। 

मैं न केवल भोजन के रूप में इन चावल का प्रयोग करता हूं बल्कि चावल के पापड़ और चावल के मांड का उपयोग भी लगातार करता हूं। जब आपने चावल देने से मना कर दिया तो मैं उन पारंपरिक चिकित्सक से मिलकर उनसे झूठ बोलकर फिर से उन चावल को प्राप्त कर लिया और तब से आज तक मैं उसका प्रयोग कर रहा हूं।

 मैंने उसे विस्तार से समझाया कि अन्य अन्नों की तुलना में चावल में स्वाभाविक रूप से आर्सेनिक उपस्थित रहता है। जिन देसी चावल की सहायता से ट्यूमर की चिकित्सा की जाती है उसमें स्वाभाविक रूप से अधिक मात्रा में आर्सेनिक होता है। भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में यह माना जाता है कि यह आर्सेनिक ट्यूमर को तोड़ने में अहम भूमिका निभाता है। आर्सेनिक का प्रयोग न केवल आधुनिक चिकित्सा में होता है बल्कि आयुर्वेद में भी आर्सेनिक के प्रयोग से ट्यूमर की चिकित्सा की जाती है। ज्यादातर इसे आर्सेनिक ट्राईसल्फाइड के रूप में उपयोग किया जाता है उस समय जबकि सारे उपचार पूरी तरह से असफल साबित होते हैं और ट्यूमर का आकार उसी तरह बढ़ जाता है जैसे कि उसके ट्यूमर का आकार बढ़ गया था और ऑपरेशन की किसी भी तरह की संभावना नहीं रहती है। 

जब आर्सेनिक युक्त देसी चावल का उपयोग उपचार के लिए किया जाता है तो पारंपरिक चिकित्सा में उसके साथ 5-6 प्रकार के ऐसे चावल उपयोग किए जाते हैं जो कि इस आर्सेनिक के प्रभाव को या कहें कि आर्सेनिक के बुरे प्रभाव को पूरी तरह से समाप्त कर दे इसलिए तुमने देखा होगा कि मैंने 8 तरह के चावल का प्रयोग करने की सलाह दी थी या शायद तुम्हें इस बात की जानकारी नहीं थी क्योंकि उन चावल को मैंने तुम्हें देने से पहले ही आपस में मिला दिया था।  तुमने समझा कि यह एक ही प्रकार का चावल है या ज्यादा से ज्यादा दो या तीन प्रकार का।

 मैंने जिस पारंपरिक चिकित्सक के पास तुम्हारे पिताजी को भेजा था वे वहां से तीन प्रकार के चावल लेकर आए थे जबकि शेष किस्म के चावल मेरे पास पहले से ही थे जो कि दूसरे पारंपरिक चिकित्सकों से एकत्र किए गए थे। मुझे मालूम था कि ऐसी समस्या हो जाती है जब आर्सेनिक युक्त देसी चावल का उपयोग लंबे समय तक अधिक मात्रा में किया जाता है इसीलिए मैंने ट्यूमर के टूटने के तुरंत बाद ही साफ शब्दों में कह दिया था कि इसका प्रयोग अब बिल्कुल पूरी तरह से बंद कर दिया जाए और तुमने मेरी बात नहीं मानी और यही कारण है कि अब आर्सेनिक प्वाइजनिंग के माइल्ड सिम्टम्स तुम्हें आ रहे हैं।

 मैंने उसे कहा कि यदि वह मेरी बात माने तो मैं यही सलाह दूंगा कि वह इस चावल का प्रयोग अब पूरी तरह से बंद कर दे। उसे अब इनकी जरूरत नहीं है। इससे उसकी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाएगा। उसने अपनी भूल स्वीकार की और कहा कि उसे इस बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी कि चावल में भी प्राकृतिक रूप से आर्सेनिक पाया जाता है और दवाई वाले बहुत से चावल में विशेष कर ट्यूमर को तोड़ने वाले चावल में आर्सेनिक की विशेष मात्रा पाई जाती है और उसका हमेशा कुशल विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही उपयोग करना चाहिए अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि होनी शुरू हो जाती है।

 इस तरह भारतीय पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान की सहायता से एक और मामला सुलझ गया और यह बात भी सिद्ध हो गई कि किसी भी पद्धति की दवा का उपयोग करते समय दिए गए निर्देशों का शब्दशः पालन करना चाहिए और दवाओं का प्रयोग मनमाने ढंग से अपनी मर्जी से कभी भी नहीं करना चाहिए।

 यह बात खाद्य सामग्रियों पर भी लागू होती है। 


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