Consultation in Corona Period-158

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"जब मेरा बेटा 8 साल का था तब उसकी आंखों के सामने उसकी मां की हत्या हो गई और वह कुछ नहीं कर पाया। उसे गहरा सदमा लगा। मैं उसकी देखभाल में पूरी तरह से लगा रहा। लंबे समय तक उसकी काउंसलिंग चलती रही।

 मैंने विवाह नहीं किया ताकि मैं उसकी अच्छे से देखभाल कर सकूं। धीरे-धीरे वह इस घटना को भूलने लगा पर घटना के पहले जिस तरह से वह सक्रिय था उसकी सक्रियता पूरी तरह से खत्म हो गई और वह गुमसुम रहने लगा।

 यह अच्छी बात है कि वह किसी से बात भले न करे पर मुझसे अपने मन की बात जरूर बताता है। एक पिता को इससे अधिक तसल्ली और किस बात की हो सकती है। वह घर पर ही रहकर पढ़ा और मेरा एक अच्छा दोस्त बन गया।

 जब वह बड़ा हुआ तब हम परिवार के लोगों ने सोचा कि अब उसका विवाह कर दिया जाए ताकि उसका अकेलापन दूर हो और उसे मनचाहा जीवनसाथी मिलने से उसके मन में चल रही सारी उथल-पुथल ठीक हो जाए पर वह विवाह के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं था। उसने साफ शब्दों में इंकार कर दिया। हम भी उसके पीछे अधिक नहीं पड़े। फिर उसने इच्छा जताई कि वह ऑस्ट्रेलिया में जाकर एक कोर्स करना चाहता है। उस कोर्स को करने के लिए 6 महीनों का समय लगने वाला था।

 मैंने अपना व्यापार छोड़कर उसके साथ ऑस्ट्रेलिया जाने का मन बनाया और वहां पर उसकी पढ़ाई शुरू हो गई। उसे जीवन साथी के रूप में एक भारतीय दोस्त मिल गई और उसने एक दिन फैसला सुनाया कि वह उससे विवाह करना चाहता है।

 हम लोगों के लिए इससे बढ़कर और क्या बात हो सकती थी। हम लोगों ने बिना किसी देरी के उन दोनों का विवाह कर दिया और वे हमारे साथ ही रहने लगे। धीरे-धीरे साल बीता फिर 2 साल फिर 3 साल पर किसी भी तरह की कोई खुशखबरी नहीं आई।

 मैंने बहु से इस बारे में बात की तो उसने चौंकाने वाली बात बताई कि पहले दिन से ही उनके संबंध पति-पत्नी वाले नहीं रहे। उन्हें सेक्स से पूरी तरह से अनिच्छा है और यही कारण है कि हमारा किसी भी तरह से किसी भी प्रकार का मिलन नहीं हो पाया है। 

मैंने अपने बेटे से इस बारे में खुलकर बात की पर वह गुमसुम बैठा रहा। मेरे कहने पर वह डॉक्टर से भी मिला और डॉक्टर ने उसकी जांच कर बताया कि वह शारीरिक रूप से तो पूरी तरह से सक्षम है और मानसिक रूप से शायद उसे इस प्रक्रिया से चिढ़ है। इसके बाद कई तरह के मनोचिकित्सकों और वैद्यों से मिलने का अनवरत क्रम जारी हो गया और हम इसी कोशिश में लगे रहे कि कैसे उसकी इच्छा इस प्रक्रिया में हो और वह अपने परिवार को आगे बढ़ा सके।

 सभी तरह के चिकित्सकों ने उसे ढेर सारी दवाएं दी। वह उन दवाओं को लेता रहा फिर एक दिन उसने उन सभी दवाओं को कूड़ेदान में फेंक दिया और कहा कि मैं बिल्कुल ठीक हूं। मुझे किसी भी प्रकार की दवा की जरूरत नहीं है। उसके बाद उसने किसी भी तरह की दवा को हाथ भी नहीं लगाया। 

एक रात मैंने उसे दूसरे तरीके से समझाया और उससे अनुरोध किया कि उसे परिवार बढ़ाने की चिंता भले न हो पर मरने से पहले मैं एक बार उसके बच्चे का मुंह देखना चाहता हूं। 

उस रात जब वह अपनी पत्नी के कमरे में गया तो सब कुछ शांत था पर कुछ देर बाद चीखने-चिल्लाने की आवाज आने लगी। यह आवाज मेरे बेटे की थी जो चीजों को इधर से उधर फेंक रहा था। पागलों की तरह अपने आप को मार रहा था और उसकी पत्नी घबरा कर इधर-उधर भाग रही थी। जब हम कमरे में पहुंचे तो उसे शांत करना बहुत मुश्किल हो गया। 

उसकी पत्नी ने बताया कि पहली बार उसने इस प्रक्रिया में भाग लिया और वह सफल भी रहा पर उसके कुछ समय बाद उसकी हालत पागलों की तरह हो गई।

 हमने आनन-फानन में उसे अस्पताल में भर्ती कराया जहां कई घंटों के बाद वह शांत हुआ फिर गहरे डिप्रेशन में चला गया। डॉक्टरों ने हमें चेताया कि अगर उसकी इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की इच्छा नहीं है तो उस पर जबरदस्ती जोर न डाला जाए। हमने भी सोच लिया कि अब हम उससे कुछ भी नहीं कहेंगे।

 हमने आपके बारे में इंटरनेट पर पढ़ा और फैसला किया कि एक बार आपसे मिलकर इस समस्या के बारे में बताएंगे। हमें मालूम है कि आप चिकित्सक नहीं है और आपने भारतीय पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान का डाक्यूमेंटेशन किया है। हमें लगता है कि हो सकता है कि आपके पास कोई ऐसा समाधान हो जिससे मेरा बेटा इस प्रक्रिया में भाग भी ले सके और किसी तरह से मानसिक रूप से प्रभावित भी न हो।"

 उत्तर भारत से आए एक परेशान सज्जन ने अपनी बात कही तो मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।

मैंने उस युवक के खान पान के बारे में विस्तार से जानकारी मांगी और फिर उन दवाओं के बारे में भी जानकारी मांगी जिनका प्रयोग वह पहले कर रहा था। मैंने देखा कि इनमें से ज्यादातर दवाएं सही दिशा में थी। शायद बहुत अधिक दवा होने के कारण परेशान होकर उस युवक ने इन्हें लेने से मना कर दिया हो। अगर वह इन दवाओं को कुछ और समय तक लेता रहता तो उसकी स्थिति में कुछ सुधार हो सकता था। किसी तरह से उसे कोई समाधान सुझाने से पहले यह जरूरी था कि उसकी समस्या के मूल को जाना जाए।

 मैंने उन सज्जन से कहा कि आप अपने बेटे को मेरे पास भेज दें। उसके साथ में आप बिल्कुल न आयें। अपने बेटे को मेरे बारे में पूरी जानकारी दें। वे इस बात के लिए तैयार हो गए और जल्दी ही उनका बेटा मेरे सामने बैठा हुआ था। 

उसके आते ही मैंने उससे पूछा कि उसे किसी प्रकार की जल्दी तो नहीं है तो उसने कहा कि नहीं, उसके पास दिन भर का समय है।

 मैंने कहा कि मैं बाहर का खाना कम खाना पसंद करता हूं पर मुझे इंडियन कॉफी हाउस के डोसे बहुत पसंद है। अगर उसके पास समय हो तो हम ओला से पास के कॉफी हाउस में चल सकते हैं और वहां साथ बैठकर कॉफी हाउस का आनंद ले सकते हैं। 

उसे मेरी बात सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने कहा कि मैं अभी तक जिन भी चिकित्सक या विशेषज्ञ से मिला वे तो मेरी पहली लाइन सुनकर ही दवा लिखना शुरु कर देते थे पर आपने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया।

 मैंने उससे मजाक के लहजे में कहा कि यही तो अंतर है चिकित्सक और वैज्ञानिक में।

 कॉफी हाउस में बैठकर हम लंबे समय तक बात करते रहे। मैंने उसकी समस्या के बारे में एक बार भी चर्चा नहीं की। मैंने उसके कई दोषों के बारे में उसको बताया जो कि मुझे उसके सामने बैठने पर दिखाई दे रहे थे। इस पर उसने कहा कि मुझसे सब अच्छे से ही बात करते हैं। मुझे मानसिक रोगी समझते हैं। वे सोचते हैं कि अगर कोई भी उल्टी बात मुझसे की जाएगी तो मैं क्रोधित हो जाऊंगा या मुझे गहरा मानसिक आघात लगेगा पर आपने मेरे दोषों के बारे में बताया इससे मैं प्रसन्न हूं और आप को इस बात के लिए आश्वस्त करता हूं कि जल्दी ही मैं इन दोषों को दूर करूंगा।

 जब हमारी बात मूल समस्या तक पहुंची तो उसने बताया कि उसे सेक्स करने में किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होती पर सेक्स करने के तुरंत बाद उसका मन बेहद उदास हो जाता है और फिर उसे वही दृश्य दिखाई देने लग जाते हैं जो कि उसकी मां के साथ बचपन में हुए थे। इससे उसकी स्थिति पागलों की तरह हो जाती है इसलिए हर बार वह सेक्स करने से बचता रहा है।

 उसने मुझसे पूछा कि क्या इसके लिए कोई जड़ी बूटी आप दे सकते हैं तो मैंने तुरंत सिर हिलाया और कहा कि मेरे पास एक बहुत अच्छी बूटी है जिसका प्रयोग तुम सेक्स के पहले करोगे तो सेक्स के बाद इस तरह की समस्या बिल्कुल भी नहीं होगी।

 वापस घर लौट कर मैंने एक बूटी उस युवक को दे दी और कहा कि रात को सोने से पहले एक बार दूध के साथ वह इसे ले ले तो उसकी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो सकता है। इसे केवल जिंदगी में तीन दिन तक ही लेना होगा। उसके बाद आजीवन किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं होगी।

 उसने मेरा धन्यवाद किया और फिर वापस लौट गया। उसके वापस लौटते ही उन सज्जन का फिर से फोन आया तो मैंने कहा कि आप बिना किसी देरी के उसकी पत्नी के साथ मुझसे मिलने आ जाए। अभी काम पूरा नहीं हुआ है। 

जब वे मेरे सामने आए तो मैंने उन्हें बताया कि आपके बेटे को पोस्ट कॉइटल डिस्फोरिया (postcoital tristesse) नामक रोग है। यह समस्या सभी लोगों को होती है पर लंबे समय तक नहीं होती है और इतनी अधिक उग्रता भी उसमें नहीं होती है। 

चूँकि इसे बचपन में गहरा आघात लगा है इसलिए इस समस्या के कारण उसकी पुरानी यादें ताजी हो जाती है और उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है।

 मैंने उन्हें बताया कि मैंने एक बूटी आपके बेटे को दी है पर वह बूटी बिल्कुल भी असरकारक नहीं है यानी वह एक तरह से प्लेसिबो है। असली भूमिका तो उसकी पत्नी को निभानी है।

 ऐसा कहकर मैंने उसकी पत्नी को एक डब्बा दिया और उससे कहा कि सारी प्रक्रिया खत्म हो जाने के 10 मिनट के बाद वह इस डब्बे को खोल कर अपने कमरे में रख दे। इसमें कई तरह के जंगली फूलों को सुखाकर रखा गया है। इस डब्बे को खोलते ही पूरे कमरे में एक विशेष तरह की सुगंध फैल जाएगी। इसका असर उस युवक पर होगा और उसकी मानसिक स्थिति बिल्कुल भी नहीं बिगड़ेगी।

 इस डब्बे के बारे में उस युवक को बिल्कुल भी न बताया जाए। आज वह युवक मुझसे बूटी लेकर गया है। संभवत: आज वह इस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेगा इसलिए उसकी पत्नी से कहा कि वह आज ही यह प्रयोग करके देखें और फिर मुझे बताएं।

 उसकी पत्नी इस बात के लिए तैयार हो गई और उसने पूरी प्रक्रिया ध्यान से समझ ली। अब पूरा परिवार रात का इंतजार करने लगा।

नौ बजे उस युवक ने दूध पिया और अपने कमरे में चला गया। परिवार कमरे से आने वाली आवाज के इंतजार में दम साधे बैठा रहा। रात दो बजे तक किसी तरह की कोई आवाज नहीं आई और जब धीरे से उन सज्जन ने अपनी बहू से बात की तो उसने खुशी भरे स्वर में बताया कि सब कुछ ठीक-ठाक रहा और वे अब गहरी नींद में है। 

सज्जन से रहा नहीं गया और उन्होंने अल सुबह साढ़े तीन बजे ही मुझे फोन किया। उस समय मैं मेडिटेशन कर रहा था। 

मैंने जब उनका राहत भरा स्वर सुना तो उन्हें शुभकामनाएं दी और ईश्वर को भी धन्यवाद दिया कि उन्होंने मुझे ऐसे दुर्लभ और अति कारगर पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान के डाक्यूमेंटेशन का कार्य करने का अवसर प्रदान किया।


 सर्वाधिकार सुरक्षित




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