Consultation in Corona Period-150

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"आपने दूसरों का भला कभी नहीं सोचा तो दूसरा आपका भला क्यों सोचेगा?" मैं एक सज्जन को यह बात उस समय कह रहा था जब वे अपनी बेटी की समस्या लेकर मेरे पास आए थे।

 इन सज्जन से मेरी पहली मुलाकात 90 के दशक में हुई थी जब उन्हें हाइड्रोसील की समस्या थी। वे अपनी चिकित्सा के लिए झारखंड के एक पारंपरिक चिकित्सक के पास गए थे जहां मैं उन पारंपरिक चिकित्सक से ज्ञान अर्जन कर रहा था।

 पारम्परिक चिकित्सक ने बताया कि यह सज्जन लंबे समय से उनके पास आ रहे हैं पर उनकी हाइड्रोसील की समस्या किसी भी तरह से ठीक नहीं हो रही है। डॉक्टर कहते हैं कि अब ऑपरेशन की जरूरत है। 

उस समय मैंने पारंपरिक चिकित्सक से कहा था कि छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिकित्सक इस समस्या के लिए जोगी छाल नामक एक वनस्पति का प्रयोग करते हैं। इसका लेप बनाकर घी के साथ प्रभावित अंग में लगा दिया जाता है और कुछ समय बाद ही हाइड्रोसील की जटिल से जटिल समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाता है।

 यह जानकारी झारखंड के पारंपरिक चिकित्सक के लिए नई थी। उन्होंने धन्यवाद दिया। कुछ समय बाद जब मैंने उनसे संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि उनकी हालत अब पूरी तरह से ठीक है और उनकी समस्या का समाधान हो गया है। 

अगली बार ये सज्जन मुझे वर्ष 2005 के आसपास मिले। वे सफेद मूसली की खेती करना चाहते थे और मेरी सेवाएं लेना चाहते थे। वे मुझे लेकर विदर्भ के एक ऐसे स्थान पर गए जहां पर बहुत सारे केमिकल प्लांट थे। वे ऐसे स्थान पर सफेद मूसली की खेती करना चाहते थे जहां पर इन केमिकल प्लांट के कचरे को डम्प किया जाता था। 

उन्होंने 20 एकड़ का क्षेत्र चुना था और उसमें वे सफेद मूसली की खेती करते करना चाहते थे। मैंने वहाँ की मिट्टी की जांच की और फिर उन्हें बताया कि यह प्रॉब्लमैटिक सॉइल है और अगर इसमें सफेद मूसली की खेती की गई तो उसमें कई तरह के विकार उत्पन्न हो सकते हैं। इससे उन्हें सफेद मूसली को बेचने में दिक्कत हो सकती है।

 मैंने उन्हें खेती की पूरी विधि समझाई और साथ ही छत्तीसगढ़ से प्लांटिंग मटेरियल भी उन्हें उपलब्ध करवाया। जब उन्होंने उसी जमीन में खेती करने का निर्णय लिया तो मैंने उन्हें एक बार फिर से मना किया पर उसके बाद उन्होंने मुझसे संपर्क नहीं किया। 

जब सफेद मूसली की फसल तैयार हो गई तो उनका फिर से फोन आया कि मैं इसकी मार्केटिंग में उनकी मदद करूं। मैंने कहा कि आप मुझे सफेद मूसली का सैंपल भेजे। मैं उसका परीक्षण करूंगा और उसके बाद ही बता पाऊंगा कि इसमें किसी प्रकार का दोष तो नहीं है। 

उन्होंने जब सैंपल भेजा और मैंने उसका रासायनिक विश्लेषण करवाया तो उसमें मुझे बहुत सारे घातक रसायनों की उपस्थिति दिखी। ऐसी सफेद मूसली का प्रयोग करने से हृदय के कई प्रकार के रोग हो सकते थे। मैंने उनसे कहा कि मैं इस दिशा में आपकी कोई मदद नहीं कर सकता हूं। उन्होंने कई दिनों तक फोन नहीं किया। फिर अचानक उनका फोन आया कि एक फार्मास्यूटिकल कंपनी सफेद मूसली लेने के लिए तैयार हो गई है। 

एक हफ्ते बाद ही फार्मास्यूटिकल कंपनी ने दोषयुक्त सफेद मूसली लेने से पूरी तरह से इनकार कर दिया। उन्होंने मुझसे फिर से संपर्क किया कि आप ज्यादा पैसे ले ले पर इस दोषपूर्ण मूसली को कैसे भी कहीं पर भी खपा दें। मैंने कहा कि इस दिशा में मैं आपकी कोई मदद नहीं कर पाऊंगा। एक तो आपको ऐसी जमीन में सफेद मूसली की खेती नहीं करनी चाहिए थी और अब जब सफेद मूसली में दोष साफ नजर आ रहे हैं तो आपको इस सफेद मूसली को फेंक देना चाहिए। किसी को उपयोग करने के लिए नहीं देना चाहिए।

 झुंझलाकर उन्होंने फोन रख दिया। कुछ महीनों बाद उन्होंने फिर नई फसल के लिए मुझसे संपर्क किया और बातों ही बातों में बताया कि उन्होंने राजस्थान के बड़े आध्यात्मिक संगठन के वृद्ध आश्रम में उस सफेद मूसली को खपा दिया है।

 मैंने राजस्थान में अपने संपर्कों की तलाश की तो उस शहर के कलेक्टर से पहचान निकल गई। मैंने उन्हें यह मामला पूरी तरह से बताया और उनसे अनुरोध किया कि वे उस वृद्ध आश्रम पर विशेष नजर रखें और अपने चीफ मेडिकल ऑफिसर से इस बात की जानकारी लेते रहे कि वहाँ ह्रदय रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ तो नहीं रही है। 

कलेक्टर साहब ने धन्यवाद दिया और जल्दी ही उन्होंने बताया कि नुकसान तो काफी कुछ हो ही चुका है। उस वृद्ध आश्रम से पिछले कुछ सप्ताह में 100 से अधिक हृदय रोगियों के मामले आए हैं जिससे चीफ मेडिकल ऑफिसर बहुत अधिक चिंतित है। 

कलेक्टर साहब ने तुरंत छापेमारी की और पूरी सफेद मूसली को जब्त कर लिया। उन्होंने उन सज्जन पर केस किया पर अध्यात्मिक संगठन से संपर्क होने के कारण वे पूरी तरह से बच गए। इसके बाद कई सालों तक उन्होंने किसी भी प्रकार का कोई संपर्क मुझसे नहीं रखा। 

1 साल पहले उन्होंने फिर से मुझे संपर्क किया और बताया कि इस बार वे अपनी निजी समस्या के लिए मुझसे परामर्श चाहते हैं। उन्होंने बताया कि उनकी बिटिया को बवासीर की समस्या है जो कि कई बार ऑपरेशन कराने के बाद भी पूरी तरह से ठीक नहीं हो रही है इसलिए वे मुझसे परामर्श लेना चाहते हैं। मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा। 

मैंने उनकी बिटिया द्वारा प्रयोग की जा रही खाद्य सामग्रियों के बारे में विस्तार से जानकारी ली फिर उन दवाओं के बारे में भी जानने की कोशिश की जिसका प्रयोग वह लंबे समय से कर रही थी। 

काफी मशक्कत के बाद चंद्रशूर का नाम सामने आया जिसका प्रयोग वह दूध के साथ कर रही थी। पिछले 10 सालों से उत्तर प्रदेश के किसी वैद्य ने उसे चंद्रशूर के प्रयोग की सलाह दी थी और कहा था कि अगर वह इसका आजीवन प्रयोग करती रहेगी तो उसे किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होगी। 

उसने एक बार में ही 10-15 सालों के लिए बड़ी मात्रा में चंद्रशूर को खरीद लिया था और उसका लगातार प्रयोग कर रही थी। जब मैंने इस चंद्रशूर के स्रोत के बारे में उन सज्जन से पूछा तो उन्होंने बताया कि उनका एक संगठन है जो कि किसानों से मिलकर औषधीय फसलों की खेती करता है। 

उसी संगठन में एक किसान चंद्रशूर की बड़े पैमाने पर खेती करते हैं। उन्होंने चंद्रशूर वहीं से प्राप्त किया है। उन्हें इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि उनकी बेटी की समस्या का कारण यह औषधि वनस्पति है। जब मैंने उनकी बेटी से कहा कि वह इसका प्रयोग कुछ समय के लिए रोक कर देखें फिर मुझे बताएं तो उन्होंने ऐसा ही किया और फिर मुझे बताया कि चंद्रशूर का प्रयोग पूरी तरह से रोक देने से 15 दिनों के भीतर ही उसकी बवासीर की समस्या धीरे-धीरे ठीक होने लगी है और 2 महीनों के अंदर ही उसकी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो गया। 

बाद में उन सज्जन को मैंने खुलासा किया है कि चंद्रशूर की फसल में एफिड नमक कीट का आक्रमण होता है जिन्हें कि आधुनिक रसायनों की सहायता से दूर किया जा सकता है पर इनका प्रयोग करने से चंद्रशूर की फसल में विषाक्त गुण आ जाते हैं और उसके प्रयोग से नाना प्रकार की स्वास्थ समस्याएं हो जाती हैं। 

उसकी आधुनिक दवाओं से भी विपरीत प्रतिक्रिया होने लग जाती है इसलिए चंद्रशूर की फसल में कभी भी आधुनिक रसायनों का प्रयोग विशेषकर कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह बात सुनकर सज्जन चौके और उन्होंने कहा कि हमारे संगठन में सभी ऑर्गेनिक फार्मिंग करते हैं और किसी भी प्रकार के रसायन का प्रयोग नहीं होता है।

 उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि वे इस बात की जांच करेंगे और पता करेंगे कि उनके संगठन के किसी सदस्य ने नियम का उल्लंघन किया है या नहीं। जल्दी ही उन्हें पता चल गया कि चंद्रशूर की खेती करने वाले किसान चोरी-छिपे कृषि रसायनों का बड़ी मात्रा में प्रयोग करते हैं। इससे उनकी फसल का उत्पादन तो बहुत बढ़ जाता है और उसकी गुणवत्ता पूरी तरह से प्रभावित होती है। जब वे मेरे पास फिर से आए तो उन्होंने कहा कि आपकी बात सही थी। वे बहुत क्रोध में थे और उन्होंने कहा कि लोग जानबूझकर ऐसा काम क्यों करते हैं? वे दूसरे के स्वास्थ से खिलवाड़ क्यों करते हैं? शायद कलयुग के कारण ऐसा हो रहा है।

 तब मैंने उनसे वही बात कही जो इस लेख के आरंभ में मैंने कही थी कि जब आपको किसी के स्वास्थ की चिंता नहीं है तो कोई आपके स्वास्थ की चिंता भला क्यों करेगा?

 उन्होंने अपना सिर पकड़ लिया। 


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