Consultation in Corona Period-145

Consultation in Corona Period-145



Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"पिछले 1 साल से जब भी वे खाना खाते हैं तो तुरंत ही खाना उनके मुंह से बाहर निकल जाता है। पेट तक तो जाता है पर उल्टी जैसे लक्षण बिल्कुल भी नहीं आते हैं और मांसपेशियों के प्रभाव से भोजन फिर से मुंह में आ जाता है।

 जब वे फिर से उसे चबाने की कोशिश करते हैं तो वह नीचे चला जाता है और कुछ ही क्षणों में मांसपेशियों के प्रभाव से फिर से मुंह में आ जाता है। यह एक तरह से जुगाली की तरह है जो कि पशुओं में देखी जाती है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के लिए यह बीमारी नई नहीं है। इसे Merycism or Rumination syndrome के नामों से जाना जाता है। इसकी कोई चिकित्सा नहीं है। इसके मरीजों को एक विशेष तरीके से सांस लेने को कहा जाता है ताकि उनकी मांसपेशियां उत्तेजित न हो और खाना बाहर न फेंके पर यह तकनीक उतनी कारगर नहीं है विशेषकर अधिक उम्र के मरीजों के लिए। 

पति की इस समस्या के कारण पिछले 1 साल से वे बहुत अधिक कमजोर हो गए हैं और कुछ भी खाने से डरने लगे हैं। उन्होंने इंटरनेट पर पढ़ लिया है कि इसकी अब कोई चिकित्सा नहीं है।

 हम संपन्न परिवार के हैं इसलिए हमने उनकी चिकित्सा कराने में किसी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ी। इस समस्या का कारण अलग-अलग चिकित्सकों ने अलग-अलग बताया है। 

अधिकतर लोगों ने कहा है कि यह अनुवांशिक समस्या है और अब इसका कोई इलाज नहीं है। जब उन्हें मुंह से दवाई दी जाती है तो उसका भी वही हाल होता है जो कि भोजन का होता है। 

हमने अपने घर को एक छोटा सा अस्पताल बना कर रखा है जहां 24 घंटे हम उनकी देखभाल करते हैं। मेरे तीन बेटे हैं और तीनों ही साथ में रहते हैं। हम सभी व्यापारिक घराने के हैं इसलिए नौकर चाकरों की कोई कमी नहीं है। हम चाहते हैं कि कैसे भी इनकी हालत में सुधार हो जाए और वे ठीक से खाना खाने लगे।" 

उत्तर भारत से एक महिला का जब यह संदेश आया तो मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।

 मैंने उनसे पूछा कि उन्हें और किस तरह की स्वास्थ समस्याएं हैं तो उनकी पत्नी ने बताया कि वे डायबिटीज के पुराने रोगी हैं और डायबिटीज के लिए वे कई तरह की दवाओं का प्रयोग कर रहे हैं।

 दक्षिण भारत के एक प्रसिद्ध वैद्य से एक दवा ले रहे हैं और उनसे पूछ कर महाराष्ट्र के एक दूसरे वैद्य से भी डायबिटीज की दवा ले रहे हैं। क्योंकि वे बहुत अधिक कमजोर हो गए हैं और उन्हें लगातार बिस्तर पर रहना होता है, किसी तरह का व्यायाम नहीं होता है इसलिए डायबिटीज की समस्या के उग्र होने की प्रबल संभावना रहती है। वे अपने खान-पान में विशेष ध्यान रखते हैं और इन दोनों वैद्यों की दवाओं से डायबिटीज पूरी तरह से नियंत्रण में रहता है।

 दूसरी किसी भी तरह की दवा उनकी नहीं चल रही है। जब इस समस्या की शुरुआत हुई थी तब मध्यप्रदेश के एक वैद्य ने इस विशेष समस्या के लिए एक दवा दी थी पर उससे उन्हें एलर्जी हो गई इसलिए उन्होंने इसका प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दिया। उन वैद्य ने कहा था कि उनके लिए भी यह बीमारी नई है इसलिए वे प्रयोग कर रहे हैं पर उन्हें भी इस बात का पूरा विश्वास नहीं है कि इनकी समस्या का समाधान हो जाएगा। 

मैंने उन सज्जन के खान पान के बारे में विस्तार से जानकारी ली और फिर उन वैद्यों की दवाओं के बारे में पता किया। 

मुझे बताया गया कि दक्षिण भारत के वैद्य के फार्मूले में 32 प्रकार की जड़ी बूटियों का प्रयोग किया जाता है जो कि अति दुर्लभ है। इनमें से कई जड़ी बूटियां जहरीली हैं। इन्हें गहन शोधन के बाद वे प्रयोग करते हैं। इन जड़ी-बूटियों के शोधन में कई वर्षों का समय लग जाता है। डायबिटीज की चिकित्सा के लिए दुनिया भर में उनका नाम है। 

महाराष्ट्र के वैद्य जो दवाएं दे रहे हैं उनमें 16 प्रकार के घटक है और ये सामान्य घटक है अर्थात ऐसी औषधीयां है जिसके बारे में आम लोग जानते हैं। बस वे अलग-अलग अनुपात में मिला दी गई हैं। 

मैंने उन महिला से अनुरोध किया कि आप अपने पति को लेकर रायपुर आ जाए ताकि मैं उनके पैरों में जड़ी बूटियों का लेप लगाकर समस्या का मूल कारण जान सकूं। 

उन्होंने कहा कि यह संभव नहीं है क्योंकि उनकी हालत बहुत खराब है। उन्होंने कहा कि यदि आप चाहे तो आप हमारे शहर आ सकते हैं। हम आपकी यात्रा का पूरी तरह से प्रबंध कर देंगे। 

मैंने उन्हें बताया कि अमेरिका से एक टीम विशेष शोध के लिए भारत आ रही है और उस टीम ने मुझसे मिलने के लिए महीनों पहले से समय ले रखा है इसलिए अभी यह संभव नहीं होगा कि मैं आपके शहर की यात्रा करूं। वैकल्पिक उपाय के रूप में मैंने उनसे कहा कि वे अपने पति के 24 घंटे तक पहने हुए कपड़े और उनके बिस्तर पर बिछी हुई चादर को सील बंद करके पार्सल के माध्यम से मेरे पास भेजें। हो सकता है कि मैं उन कपड़ों के वैज्ञानिक परीक्षण से कुछ निष्कर्ष निकाल सकूं। वे इस बात के लिए तैयार हो गई और जल्दी ही मुझे  पार्सल प्राप्त हो गया। 

उन कपड़ों के वैज्ञानिक परीक्षण के बाद मैंने एक प्रश्नावली तैयार की और उन्हें उन महिला के पास भेजा। मैंने उस प्रश्नावली में पूछा था कि क्या उन्हें पेशाब करते समय जलन होती है तो उनका जवाब था कि हां, होती है। 

मैंने उनसे पूछा कि क्या जब वे भोजन का प्रयोग करते हैं और उनका भोजन अपने आप बाहर आने लग जाता है तब उन्हें बहुत अधिक पसीना आता है तो उन्होंने इसका जवाब दिया कि हां, बहुत पसीना आता है। 

मेरा अगला प्रश्न था कि क्या उनके कांख के बाल पूरी तरह से झड़ गए हैं और ऐसा हाल ही में हुआ है तो उन्होंने कहा कि हां, ऐसा तो हुआ है। 

मेरा अगला प्रश्न था कि क्या उनकी पिंडलियों में रात में बहुत अधिक दर्द होता है। इतना दर्द जो कि नींद को पूरी तरह से बर्बाद कर देता है तो उन्होंने कहा कि हां, ऐसा होता है। वे इसके लिए तरह-तरह के बाम का उपयोग करते हैं। कई तरह के दर्द शामक तेल का भी पर दर्द पूरी तरह से नहीं जाता है।

 मेरा अगला प्रश्न था कि क्या उनके अंडकोष में बहुत अधिक खुजली होती है विशेषकर सुबह के समय। इसका भी उन्होंने सकारात्मक जवाब दिया। इस तरह इस प्रश्नावली में 100 से अधिक प्रश्न थे। उनके उत्तर जब आए तो समस्या का समाधान होता दिखा। 

मैंने उनकी पत्नी से कहा कि आपके पति बहुत अधिक मात्रा में कॉफी का प्रयोग करते हैं। यदि वे कॉफी का प्रयोग पूरी तरह से रोक दें तो मुझे लगता है कि उनकी भोजन को उलट देने वाली समस्या का कुछ हद तक समाधान हो जाएगा।

 उनकी पत्नी ने इस बात की पुष्टि की कि उनके पति लगातार कई कप कॉफी पी जाते हैं और वह बहुत स्ट्रांग कॉफी होती है। 

मैंने उनसे कहा कि वे कॉफी को धीरे-धीरे करके बंद करें। एकदम से बंद न करें। 

20 दिनों बाद उन्होंने फिर से संपर्क किया और बताया कि उनकी हालत में काफी सुधार हुआ है और पहले 4 बार में भोजन अंदर जाता था अब उसे अंदर जाने में दो बार ही कोशिश करनी पड़ती है। कई बार तो एक बार में ही चला जाता है।

 उन्होंने यह भी बताया कि उनके पति ने कॉफी का प्रयोग अब पूरी तरह से बंद कर दिया है विकल्प के रूप में मैंने उन्हें चाय पीने का सुझाव दिया पर उन्होंने अब किसी भी प्रकार का उत्तेजक पेय लेने से परहेज करने का मन बना लिया है। 

मैंने उन्हें विस्तार से बताया कि उनकी समस्या का मूल कारण कॉफी का बहुत ही अधिक मात्रा में सेवन नहीं था बल्कि एक प्रकार का कंद है जिसका प्रयोग दक्षिण भारत के वैद्य अपने नुस्खे में कर रहे हैं। उस कन्द को हिंदी में पाषाण कंद कहा जाता है। 

आपके पति को जो विशेष तरह के लक्षण आ रहे हैं, जिनके बारे में प्रश्नावली में उन्होंने साफ-साफ जवाब दिया है जैसे कि कांख के बाल झड़ना, पेशाब करते समय जलन होना, पिंडलियों में रात को बहुत अधिक दर्द होना, ये सब लक्षण कंद के दुष्प्रभाव के कारण है। कंद का अधिक मात्रा में उपयोग करने से भोजन लेने के बाद उसके पलट जाने अर्थात Merycism or Rumination syndrome जैसे लक्षण आते हैं और जब कोई व्यक्ति इस कंद के प्रयोग के साथ में कॉफी का प्रयोग करता है तो ये लक्षण बहुत अधिक उग्र हो जाते हैं और लोगों का जीना हराम हो जाता है जैसा कि आपके पति को हो रहा था।

 इस कंद को नुस्खे में बहुत संभल के डाला जाता है। इस कंद का प्रयोग दक्षिण भारत के वैद्य पीढ़ियों से कर रहे हैं पर उस समय उनके पास कम मरीज जाते थे। अभी उनके पास मरीजों का इतना अधिक दबाव है और उनकी दवा की इतनी अधिक मांग है कि वे ठीक से सावधानी नहीं रख पाते हैं और अक्सर इस तरह की समस्या हो जाती है। 

पिछली पीढ़ी के वैद्य खुद दवा तैयार करते थे। अब उनके कर्मचारी दवा तैयार करते हैं जिन्हें इस बात का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है कि यदि कंद की मात्रा बढ़ जाए चाहे वह रत्ती भर भी क्यों न बढ़े उस फार्मूले में दोष उत्पन्न हो जाता है और इस तरह के बहुत से लक्षण आने लग जाते हैं। 

मैंने आपके दक्षिण भारत के वैद्य से बात की और उन्होंने मुझे आश्वासन दिया है कि वे इस बात पर विशेष ध्यान रखेंगे और यदि संभव होगा तो इस कंद के स्थान पर दूसरे कंद का प्रयोग करने लगेंगे ताकि डायबिटीज की समस्या का भी समाधान हो जाए और किसी तरह की गड़बड़ी की गुंजाइश ही न रहे। 

उन महिला ने मुझे धन्यवाद दिया और कहा कि वे कुछ समय तक दक्षिण भारत के वैद्य की दवा बंद करके देखेंगी। कॉफी का प्रयोग तो वैसे ही बंद है फिर 15 दिनों के बाद मुझे बतायेंगी। 

अगली बार जब उनका फोन आया तो उन्होंने बताया कि समस्या का पूरी तरह से समाधान हो गया है। मैंने उनसे कहा कि उन्हें आजीवन इस बात का ध्यान रखना होगा और जब भी ऐसी समस्या हो तो उनके द्वारा ली जा रही खानपान की सामग्री और दवाओं पर विशेष ध्यान देना होगा।

 विशेषज्ञों की इस बात को अनदेखा करना होगा कि इस तरह की समस्या अनुवांशिक है। विशेषज्ञ किसी रोग को ठीक से न जान पाने के बहाने के रूप में यह कह देते हैं कि यह अनुवांशिक है और इसकी कोई चिकित्सा नहीं है।

 उनके परिवार ने मुझे एक बार फिर से धन्यवाद ज्ञापित किया। 

मैंने उन्हें शुभकामनाएं दी। 


सर्वाधिकार सुरक्षित


Comments

Popular posts from this blog

गुलसकरी के साथ प्रयोग की जाने वाली अमरकंटक की जड़ी-बूटियाँ:कुछ उपयोगी कड़ियाँ

कैंसर में कामराज, भोजराज और तेजराज, Paclitaxel के साथ प्रयोग करने से आयें बाज

भटवास का प्रयोग - किडनी के रोगों (Diseases of Kidneys) की पारम्परिक चिकित्सा (Traditional Healing)