Consultation in Corona Period-161

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"मेरे 25 वर्षीय बेटे को पेट का कैंसर है और यह कैंसर की अंतिम अवस्था है। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है। हम उसे अस्पताल से घर ले आए हैं और यहीं उसकी चिकित्सा चल रही है। आपने कैंसर पर बहुत अधिक शोध किया है इसलिए हम आपकी सेवाएं लेना चाहते हैं। हम आपकी फीस देने को तैयार हैं। आप जितनी जल्दी हो सके हमारे शहर आ जाइए और एक बार मेरे बेटे को देख लीजिए। यह मेरे एक मजबूर बाप की विनम्र विनती है।" 

उत्तर भारत से जब एक सज्जन का ऐसा फोन आया तो मैंने उनसे कहा कि आप मुझे सारी रिपोर्ट भेजें। उन रिपोर्टों का अध्ययन करने के बाद ही मैं बता पाऊंगा कि मेरे आने से आपके बेटे को किसी तरह का लाभ होगा कि नहीं। जब उन्होंने रिपोर्ट भेजी और मैंने उन रिपोर्टों का अध्ययन किया तो मुझे पता चला कि सचमुच उस लड़के की हालत बहुत खराब थी। उन्होंने दुनियाभर के चिकित्सकों से उसकी चिकित्सा कराने की कोशिश की थी पर कैंसर शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैल चुका था और स्थिति काबू से बाहर हो गई थी। कीमोथेरेपी करने वाले विशेषज्ञों ने भी हाथ खड़े कर दिए थे और वे अब किसी भी तरह का नया प्रयोग नहीं करना चाहते थे। रायपुर से बाहर की यात्रा करने पर न केवल मेरा शोध कार्य प्रभावित होता है बल्कि यात्रा में बहुत अधिक समय चला जाता है और वापस लौटने पर फिर सब कुछ सामान्य होने में कई दिनों का समय लग जाता है। फिर बहुत सारे लोग महीनों से अपॉइंटमेंट लेकर रायपुर आने की तैयारी करते रहते हैं और उन्हें अचानक से यह कह देना कि मुझे जरूरी काम से बाहर जाना है, बड़ा ही अजीब लगता है क्योंकि वे भी जरूरी काम के लिए ही रायपुर आना चाहते हैं।

 उत्तर भारत के उन सज्जन के बेटे की हालत ऐसी नहीं थी कि वह रायपुर आ सके इसलिए मैंने निर्णय लिया कि जितनी जल्दी हो सके मैं उसके शहर पहुँच जाऊँ और जल्दी से परामर्श देकर वापस रायपुर आ जाऊं। इस प्रक्रिया में फिर भी 2 दिनों का समय लग जाना था। मैंने टैक्सी से जाने की योजना बनाई। जब मैं टैक्सी से उस शहर पहुंचा तो रास्ते में कुछ पुलिस वालों ने मेरा रास्ता रोक लिया और कहा कि एक आला अधिकारी आपसे मिलना चाहते हैं जो कि सामने वाली गाड़ी में बैठे हुए हैं। यह मेरे लिए अजीब-सी बात थी। 

मैंने गाड़ी से उतरते हुए उन आला अधिकारी को ध्यान से देखा तब तक आला अधिकारी खुद ही गाड़ी से उतर कर मेरे पास आ गये और उन्होंने आते ही मेरे चरण छुए और बताया कि वे मेरे जूनियर रहे हैं। उन्होंने आने का कारण पूछा और जब मैंने उन्हें पूरी जानकारी दी तो उन्होंने बताया कि वे अब इस शहर के पुलिस प्रमुख हैं और चाहते हैं कि शाम का डिनर मैं उनके साथ करूं। मैंने उन्हें धन्यवाद दिया और कहा कि मेरा दिन का अंतिम भोजन चार बजे से पहले हो जाता है इसलिए मैं डिनर में साथ जरूर दूंगा पर डिनर नहीं करूंगा। वे इस बात के लिए तैयार हो गए और फिर उन्होंने एक गाड़ी की व्यवस्था कर दी जो मार्गदर्शक के रुप में मुझे उन सज्जन के बंगले तक लेकर गई। बंगले में इतने सारे लोग पहरे पर थे कि ऐसा लगता था कि यह बंगला न होकर कोई किला हो।

 जब मेरी गाड़ी अंदर गई तब भी इतने सारे लोग हथियार लेकर खड़े हुए थे कि लगता था कि कोई बड़ी घटना हो गई है। अंदर पहुंचते ही सीधे मैं उस बालक तक पहुंच गया जो कि कैंसर से लड़ाई लड़ रहा था। उसके परिवार के लोगों से मुलाकात हुई। उसके पिताजी से भी। उन्होंने धन्यवाद दिया कि मैं इतनी लंबी यात्रा करके उनके बेटे को देखने आया। 

मैंने जड़ी बूटियों का लेप लगाकर जब उनके बेटे का परीक्षण किया तो परीक्षण बहुत ही निराशाजनक था। ऐसा लग रहा था कि अब उनके बेटे की आयु ज्यादा नहीं है और कभी भी उसकी मृत्यु हो सकती है।

 परीक्षण के बाद उसके पिता मुझे एक अलग से कमरे में लेकर गए और मुझसे पूछा कि क्या कुछ उम्मीद है तो मैंने कहा कि उम्मीद तो बहुत कम है पर मैं हिम्मत नहीं हारता हूं और अंतिम समय तक कोशिश करता रहता हूं। 

जैसे ही मैंने कहा कि उम्मीद तो बहुत कम है तो वे नाराज हो गए और उन्होंने कहा कि आपने कैंसर पर इतना अधिक शोध किया है। आपको इस रोग की चिकित्सा मालूम है पर आप जानबूझकर हमें नहीं बताना चाहते हैं। आपको जितने भी पैसे चाहिए हम देने को तैयार हैं पर मुझे किसी भी हालत में अपना बेटा ठीक दिखाई देना चाहिए।

 मैं इससे पहले कि कुछ कहता उन्होंने मेरी कनपटी पर अपनी रिवाल्वर तान दी और उनके सहायक ने कहा कि आप इनका गुस्सा नहीं जानते हैं। ये अपने दो सगे भाईयों की हत्या कर चुके हैं और अभी तक इन्हें दुनिया की कोई अदालत सजा नहीं दे सकी है। यह मेरे लिए अजीब सी घटना थी। मैंने ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोचा था। 

पहले मुझे लगा कि हालात नाजुक है फिर जब उनके सहायक ने डराना शुरू किया तब मुझे वेलकम मूवी के एक पात्र की याद आ गई जो कि बार-बार यह कहता था कि मेरी एक टांग नकली है और यह इनके कारण हुआ है।

 मैंने हिम्मत करके उनसे कहा कि यदि मुझे गोली मारने से आपके बेटे की जान बच सकती है तो आप अवश्य मारे। राम में जो रच रखा होगा वही होगा इसमें बेकार तर्क करने से कोई भी लाभ नहीं है।

 कुछ देर बाद उन्होंने कनपटी से रिवाल्वर हटा ली है और कहा कि अब आप हमारे मेहमान हैं और हमारे साथ ही रहेंगे। जब तक मेरे बेटे की तबीयत ठीक नहीं होती तब तक आपको हमारे घर पर ही रहना होगा। यदि इस घर से बेटे की अर्थी उठेगी तो तीन अर्थियां और उठेंगी। मैं चौका। 

मेरे चेहरे पर आश्चर्य के भाव को देखकर उन्होंने कहा कि मैंने दो वैद्यों को भी बंधक बनाकर रखा है जो कि मेरे बेटे की चिकित्सा करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने ने भी आपके जैसे कहा था कि मेरे बेटे के बचने की उम्मीद नहीं है इसलिए मैंने उन्हें कैद करके रखा है। उनकी ऐसी बातें सुनकर मैंने उनसे कहा कि यहां के पुलिस प्रमुख ने शाम को मुझे डिनर के लिए बुलाया है। यदि मैं शाम तक उनके घर नहीं पहुंचा तो आप बड़ी मुश्किल में फंस सकते हैं।

 इस बीच उस लड़के के बड़े भाई ने मुझसे अनुरोध किया कि आप पिताजी की बात पर ध्यान न दें। पर यदि कुछ भी हो सकता है तो मेरे भाई के लिए अवश्य करें। मैंने उन दोनों कैदी वैद्यों को भी बुला लिया और उनसे पूछा कि वे किस तरह की चिकित्सा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं है। यह केस हाथ से निकल चुका है इसलिए वे न चाहते हुए भी चिकित्सा करने को मजबूर हैं। मैंने कैंसर प्रभावित बेटे से विस्तार में बात की। उसके द्वारा ली जा रही दवाओं की जानकारी ली और उस के खान-पान के बारे में भी विस्तार से पूछा। 

उन सज्जन की पत्नी बहुत उत्सुक थी और मेरे सभी प्रश्नों का सही जवाब दे रही थी। इस बीच बेटे के लिए एक प्लेट भेजी गई जिसमें गरम चावल परोसा गया था। उसमें कुछ दवाएं डाली गई और उसके बाद उन दवाओं को चावल में अच्छी तरह से मिला लेने के बाद बेटे को उसे खाने के लिए कहा गया। 

जब मैंने उत्सुकता दिखाई तो उनकी पत्नी ने बताया कि उत्तर भारत के ही एक वैद्य ने कैंसर की अंतिम अवस्था के लिए चावल में मिलाकर दी जाने वाली यह दवा दी है। मैंने उनसे कहा कि मुझे भी एक प्लेट से थोड़ा सा चावल और दवा दी जाए ताकि मैं पता कर सकूं कि यह किस तरह की दवा है?

 एक कौर खाते ही मेरे मुंह में छाले होने लगे। जब वैद्यों ने इसे चखा तो उनके मुंह में भी छाले होने लगे। सज्जन की पत्नी ने बताया कि ऐसे छाले तो उनके बेटे को भी हो जाते हैं पर वैद्य जी ने कहा है कि इससे डरने की जरूरत नहीं है। छाले होने का मतलब है कि रोग धीरे -धीरे ठीक हो रहा है। यह बड़ी अजीब बात थी।

 उनकी पत्नी ने यह भी बताया कि गुजरात से एक कंपनी ने हमें मेडिसिनल राइस दिया है। उसका प्रयोग हम वैद्य जी की दवा के साथ करते हैं। मैंने उस कंपनी के बारे में विस्तार से जानकारी मांगी और उस मेडिसिनल राइस के बारे में भी। जानकारी चौंकाने वाली थी।

 उस जानकारी के आधार पर मैंने पहले उनसे शहद मांगा फिर उससे कुल्ला किया। इससे कुछ ही देर में मेरे छाले पूरी तरह से ठीक हो गए। 

उसके बाद मैंने कहा कि आप बिना दवा के उस चावल को मुझे दें। मैं उसे चखकर देखना चाहता हूं। जब हम तीनों ने फिर से चावल को चखा तो फिर से हमारे मुंह में छाले हो गए अर्थात दोष दवा का नहीं था बल्कि चावल का था। 

मैंने उस कंपनी के डायरेक्टर से बात की और उनसे पूछा कि आपने कौन-सा चावल इन्हें दिया है और इसमें जो औषधि गुण है उसके बारे में जानकारी आपको कहां से मिली?

 उन्होंने बताया कि यह जंगली चावल है और पास के जंगलों से उन्होंने इसे एकत्र किया है। वे यह बताने में असमर्थ रहे कि इसके औषधीय गुणों के बारे में उन्हें कहां से जानकारी मिली अर्थात उन्होंने किसी भी चावल को मेडीसीनल राइस बताकर बेचने का व्यापार शुरू कर दिया था।

 मैंने उनसे बात पूरी करके उन सज्जन की पत्नी से कहा कि क्या आपके घर में गिलोय का चूर्ण है तो उन्होंने तुरंत ही गिलोय का चूर्ण लाकर दे दिया। जब मैंने उसे चावल में मिलाकर खाया तो मेरे पेट में बहुत जलन होने लगी। वैद्यों को भी ऐसा ही महसूस हुआ। मैंने उनकी पत्नी को विस्तार से समझाया कि यह चावल बहुत घातक है। इसमें अम्ल बहुत अधिक है और इसी कारण हो सकता है कि आपके बेटे को कैंसर की इस अवस्था में बहुत अधिक शारीरिक तकलीफ हो रही हो। कंपनी ने इसे जो भी नाम बता कर आपको बेचा हो पर मध्य भारत के पारंपरिक चिकित्सा इसे तुंग प्रसाद नाम से जानते हैं और इसका प्रयोग कभी भी नहीं करते हैं। इससे पेट की कई तरह की समस्याएं हो जाती हैं। 

इस चावल का प्रयोग कुछ पारंपरिक चिकित्सक मूत्र रोगों की चिकित्सा में करते हैं पर जब इसका प्रयोग किया जाता है तो इसके साथ में 8 और प्रकार के मेडिसिनल राइस को शामिल किया जाता है ताकि इसके बुरे प्रभाव को पूरी तरह से खत्म किया जा सके। मुझे लगता है कि आप अगर इसका प्रयोग बंद कर देंगे कि तो बहुत संभावना है कि बेटे की हालत में धीरे-धीरे ही सही पर कुछ सुधार हो। बेटे को किसी भी प्रकार की दवा की जरूरत नहीं है।

 उन सज्जन का गुस्सा अभी तक शांत हो चुका था। उन्होंने बताया कि हम तो पिछले 10 सालों से यह चावल अपने बेटे को दे रहे हैं उस समय से जबकि पहली बार हमें इस कैंसर के बारे में पता चला था। अब समस्या का समाधान स्पष्ट होने लगा था। 

मैंने उनसे कहा कि मैं कल सुबह तक आपके शहर में हूं जब भी जरूरत होगी तो मैं फिर से आ जाऊंगा मैंने आपकी बात का बुरा नहीं माना है। अक्सर क्रोध में ऐसी गलतियां हो जाती हैं। 

आप इस चावल का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दें और फिर मुझे बताएं कि अब बेटे की हालत में किसी प्रकार का सुधार हुआ है कि नहीं। मैंने उन्हें यह भी आश्वस्त किया कि वापस लौट कर मैं उन्हें कुछ तरह के मेडिसनल राइस भेजूंगा। इनका भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में पेट के कैंसर के लिए उपयोग होता रहा है। हम तीनों ने उनसे विदा ली। हम तीनों मतलब मैं और दोनों वैद्यों ने। उन्हें भी अब इस बंधन से मुक्ति मिल गई थी। 

मैंने अपने जूनियर को डिनर के समय इस बात की जानकारी नहीं दी अन्यथा बात बिगड़ सकती थी। मैंने उनसे कहा कि सब कुछ अच्छा रहा और दूसरे दिन सुबह फिर मैं वापस रायपुर लौट गया।

 पिछले 3 सालों से उन सज्जन के बेटे से लगातार संपर्क बना हुआ है। अब उसकी स्थिति में काफी सुधार हुआ है। उस चावल का उपयोग बंद कर देने से कैंसर की उग्र अवस्था शांत हो गई और धीरे-धीरे खान-पान में सुधार करने से उसकी हालत में सुधार होने लगा।

 जब उसकी हालत सुधरने लगी तब कीमोथेरेपी विशेषज्ञों ने तय किया कि वे एक बार फिर से अपनी दवाओं को आजमाएंगे और इस तरह उसका फिर से इलाज शुरू हो गया। 

आज 3 वर्ष बाद वह न केवल जीवित है बल्कि अपने पिता के साथ राजनीतिक जीवन में भी भाग लेने लगा है। ये अच्छे संकेत हैं। 


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