Consultation in Corona Period-96

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"उन्हें योगाचार्य कहना ठीक नहीं होगा। दरअसल वे एक सेक्स गुरु है और ऐसे सेक्स गुरु जिन्होंने असंख्य युवाओं का जीवन बर्बाद किया है। 


आप भी उनमें से एक है।"


 मैं उत्तर भारत से आए एक युवक से बात कर रहा था जिसे कि टेस्टिस का कैंसर था। यह कैंसर की अंतिम अवस्था थी और कैंसर शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल चुका था। 


उसकी कई बार सर्जरी हो चुकी थी पर फिर भी समस्या का पूरी तरह से समाधान नहीं हुआ था। अंतिम विकल्प के रूप में वह मेरे पास आया था।


 जब उसने उत्तर भारत के एक योगाचार्य का नाम लिया तो मुझे उसके बारे में पूरी जानकारी पता चल गई उसके बिना बताए ही। 


मैंने उससे कहा कि मैं तुम्हारी समस्याओं के बारे में एक एक कर के बताता जाऊंगा। यदि मैं कहीं गलत हो जाऊँ तो मुझे टोकना अन्यथा चुपचाप सुनते रहना।


 जब तुम सबसे पहले उस योगाचार्य के पास गए होगे तो तुम्हें किसी भी तरह की स्वास्थ समस्या नहीं रही होगी। अपने मित्रों के कहने पर तुमने 15 दिनों का शिविर करने का मन बनाया होगा। 


इस शिविर में तुम्हें कई तरह की योगिक क्रियाओं के बारे में बताया गया होगा। 


जो सबसे आकर्षण का केंद्र होता है इन शिविरों में वह ऐसी योगिक क्रिया के बारे में जानकारी है जिससे कि कोई युवक लंबे समय तक सेक्स कर सकता है। 


तुम्हें बताया गया होगा कि वीर्य का जब स्खलन होने लगे तब कैसे अपने पैरों के प्रयोग से शुक्र वाहिका को रोक देना है ताकि वीर्य किसी भी हालत में बाहर न निकले।


 ऐसा करने से सेक्स के बाद भी तुम्हारे लिंग का कड़ापन बिल्कुल भी खत्म नहीं हुआ होगा। 


शुरू में तुम्हें दिक्कत हुई होगी। पर बाद में अभ्यास के द्वारा तुम पारंगत हो गए होगे। 


तुमने महसूस किया होगा कि यह योगिक क्रिया करने के बाद तुम्हें बहुत ज्यादा थकान होती है और ऐसा लगता है कि जैसे तुम महीनों से सोए हुए नहीं हो पर इससे तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि इससे तुम्हारी महिला मित्र या पत्नी बहुत अधिक प्रभावित होती है और तुम्हारे दोस्तों के ऊपर तुम्हारा सिक्का जमता है। 


जो तुमने योगाचार्य से शिकायत की होगी कि तुम्हे इस क्रिया को करने के बाद बहुत अधिक थकान होती है विशेषकर जब तुम इस क्रिया को एक ही दिन में कई बार दोहराते हो। 


यानी कि हर बार उत्तेजना होती है पर वीर्य का स्खलन नहीं होता है तब योगाचार्य ने तो एक नशीली बूटी दी होगी जिसके प्रयोग से सारी थकान पूरी तरह से गायब हो जाती है।


 युवक चुपचाप सुनता रहा और उससे रहा नहीं गया। उसने कहा कि यह सब आपको किसने बताया? शिविर में ऐसा ही होता है। 


मैंने कहा कि वह चुपचाप मेरी बात सुनता रहे। अगर मैं कहीं गलत कह दूँ तो मुझे जरूर टोके। 


मैंने आगे कहना शुरू किया कि शुरू में तो सब कुछ ठीक से चलता रहा और तुम इस योग क्रिया को अपने दैनिक जीवन में उपयोग करते रहे फिर अचानक ही तुम्हें ह्रदय की समस्या हुई।


 थोड़ा सा भी काम करने पर बहुत ज्यादा थकान होने लगी। नशीली बूटी का असर अब ज्यादा नहीं होता था इसलिए तुमने अपने डॉक्टर से मिलने का प्रयास किया। 


डॉक्टर को इस बारे में कुछ भी नहीं बताया। डॉक्टर ने इसे साधारण कमजोरी समझ कर तो तुम्हे बहुत सारे टॉनिक लिखकर दे दिए जो कि जल्दी ही बेअसर साबित हुए। 


हृदय की समस्या बढ़ती जा रही थी। थोड़ा सा भी परिश्रम करने से दम फूलने लगता था। तब किसी की सलाह पर तुमने हृदय विशेषज्ञ से मुलाकात की। 


बीच में ही युवक बोल पड़ा कि फिर हृदय विशेषज्ञ ने मुझे बहुत सारी जांच करवाने को कहा पर उस जांच में कुछ भी नहीं निकला। तब हृदय विशेषज्ञ ने कहा कि यह अनुवांशिक रोग लगता है और उन्होंने बहुत सारी दवाईयाँ लिख कर दी।


 मैंने उसे शांत रहने को कहा और आगे कहना शुरू किया कि थोड़े दिनों तक सब कुछ चल ठीक चलता रहा। उसके बाद अचानक से आंखों की रोशनी कम होने लगी और एक मोटा सा चश्मा आंखों से जा टिका।


 उसके बाद रातों की नींद गायब हो गई और रातों की नींद गायब होने के कारण दिन के काम बिगड़ने लगे। 


ऑफिस में चिड़चिड़ाहट होने लगी और तुमने मनोचिकित्सक का सहारा लिया। उन्होंने तुम्हें अच्छी नींद के लिए बहुत सारी दवाएं दी। 


फिर कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक चलता रहा। उसके बाद अचानक ही पाचन की समस्या उत्पन्न हो गई। बहुत ज्यादा गैस बनने लगी। तुमने घरेलू औषधीयों का उपयोग किया पर समस्या का समाधान नहीं हुआ।


 फिर उसके बाद बवासीर की समस्या हो गई। पहले रोज पेट साफ होता था। अब हफ्ते में एक या दो बार पेट साफ होने लगा। 


तुम्हें एक बार भी नहीं लगा कि यह सब तुम्हारे द्वारा की जा रही उस योगिक क्रिया का परिणाम है।


 फिर तुम्हें पेशाब करने में दिक्कत होने लगी। रात में कई बार उठकर पेशाब जाना पड़ता था। मल त्याग के समय जोर लगाने पर अपने आप से वीर्य निकलने लगा।


 लिंग में दर्द होना शुरू हुआ। तुमने जांच कराई तो डॉक्टर ने उसकी दवा लिखकर दे दी और कहा कि यह प्रोस्टेट का प्रॉब्लम है। 


अब तक तुम्हारी 15 दवाएं शुरू हो चुकी होंगी पर किसी भी समस्या का पूरी तरह से समाधान नहीं हो रहा होगा। 


इसके बाद पेशाब को किसी भी हालत में न रोक पाने की समस्या उत्पन्न हो गई होगी और लिंग के अगले हिस्से में कालापन आना शुरू हो गया होगा।


 लिंग पूरी तरह से सक्रिय नहीं हो पाता होगा। इतनी सारी परेशानियों की वजह से तुमने सेक्स से दूर रहना शुरू कर दिया होगा और घोर निराशा में डूब गए होगे। 


लिंग का दर्द किसी भी तरह से ठीक होता नहीं दिखाई देने पर अपने मित्र की सलाह पर या किसी रिश्तेदार की सलाह पर तुम कैंसर विशेषज्ञ के पास पहुंचे होंगे जिन्होंने बायोप्सी की सलाह दी होगी और जब रिपोर्ट आई होगी तो पता चला होगा कि यह जननांग के किसी भाग का कैंसर है संभवत: टेस्टिस का कैंसर है जो कि बहुत अधिक बढ़ चुका है और पूरे शरीर में फैल चुका है। 


संभवतया गले तक भी पहुंच चुका है और कई मामलों में हड्डी तक।


 मेरी बात पूरी होते-होते तक वह युवक रोने लगा और उसने कहा कि उसके साथ यही सब हुआ पर उसे एक बार भी इस बात का अहसास नहीं हुआ कि यह सब उस योगिक क्रिया के कारण हो रहा है जिसके बारे में बताया गया था कि यह पूर्ण रूप से सुरक्षित है और पीढ़ियों से राजा महाराजा इसका सफल प्रयोग कर रहे हैं।


 उन्हें किसी भी प्रकार से कभी भी कोई तकलीफ नहीं हुई है। मैंने उस युवक को शांत करते हुए कहा कि इस योगिक क्रिया के बारे में भारत के पारंपरिक चिकित्सक अच्छे से जानते हैं।


 वे यह भी जानते हैं कि इसका प्रयोग जिंदगी में एक या दो बार ही करना चाहिए वह भी बहुत जरूरी हो तो ही। 


हमारे प्राचीन ग्रंथों में यह साफ-साफ लिखा है कि किसी भी प्रकार के प्राकृतिक वेग को रोकना स्वास्थ के लिए हानिकारक है। फिर शुक्र का वेग रोकना तो प्राणघातक है। यह प्राकृतिक क्रिया नहीं अप्राकृतिक क्रिया है। 


थोड़े से यौन सुख के लिए अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारना भला कहां की समझदारी है। 


मैंने उसे यह भी बताया कि भारत की पारंपरिक चिकित्सा में सांसों के माध्यम से वीर्य स्खलन की अवधि बढ़ाने की कई विधियां है जो कि पूर्णता प्राकृतिक है और जिन्हें लंबे समय तक किया जा सकता है बिना किसी नुकसान के। 


पर यह एक तरह का गुप्त ज्ञान है और इसके बारे में न कोई ज्यादा जानता है न ही जानकार इसे किसी को बताते हैं। 


मैंने 90 के दशक में कामसूत्र पर जो ग्रंथ लिखा था उसमें मैंने इन विधियों का विस्तार से वर्णन किया था पर जब मैंने देखा कि पश्चिम में इन विधियों का दुरुपयोग हो रहा है और इस दुरुपयोग से युवाओं की जिंदगी बर्बाद हो रही है। तब मैंने उस ऑनलाइन ग्रंथ को इंटरनेट से हटा लिया था।


 युवक ने कहा कि जो गलती होनी थी वह तो हो गई है अब आप ही बताइए कि क्या इस अवस्था का कैंसर आपकी किसी दवा से ठीक हो सकता है?


मैंने उसे साफ शब्दों में कहा कि कोई दवा की उम्मीद मुझसे न करें क्योंकि मैं चिकित्सक नहीं हूं बल्कि एक वैज्ञानिक हूं जो कि भारतीय पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान पर शोध कर रहा है।


 मैंने उसे सलाह दी कि वह छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिकित्सक से मिले। वे चिकित्सक भी उसे किसी भी प्रकार की दवा नहीं देंगे बल्कि एक योगिक क्रिया बताएंगे जो योगाचार्य द्वारा बताई गई योगिक क्रिया से होने वाले नुकसान को कम करने में सक्षम होगी।


 यदि उन पारंपरिक चिकित्सक पर वह विश्वास करता है तो कई महीनों से लेकर कई सालों तक के लगातार अभ्यास से उसका यह कैंसर पूरी तरह से दूर हो सकता है पर यह एक श्रम साध्य कार्य है और अपार धैर्य की आवश्यकता है।


 हो सकता है कि पारंपरिक चिकित्सक उसे यह सलाह दें कि वह इन दवाओं का प्रयोग न करे। इससे योगिक क्रिया पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा तो उसे यह फैसला करना होगा कि वह चिकित्सक की बात माने या पारंपरिक चिकित्सक की। 


मैंने उसे बहुत सारे किस्म के पारंपरिक Functional foods का सुझाव दिया और कहा कि वह इन खाद्य सामग्रियों को अपने दैनिक जीवन में शामिल करे।


 इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी और शरीर कैंसर से लड़ने में सक्षम हो पाएगा। 


उस युवक ने मुझे धन्यवाद दिया और उस पारंपरिक चिकित्सक का पता मांगा। 


उसने कहा कि कैंसर की इस बढ़ी हुई अवस्था में कोई भी चिकित्सक किसी भी तरह की चिकित्सा करने में सक्षम नहीं है इसलिए मेरे पास और कोई रास्ता नहीं है। 


मैं आपके द्वारा सुझाए गए Functional foods का प्रयोग करूँगा और पारंपरिक चिकित्सक के साथ रहकर उनके गांव में ही इस योगिक क्रिया का अभ्यास करूँगा। 


अब मेरे पास समय ही समय है क्योंकि मुझे मालूम है कि इस बार मैं किसी तरह की चूक करूँगा तो मुझे इस दुनिया को अलविदा कहना होगा।


 सर्वाधिकार सुरक्षित

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