Consultation in Corona Period-91

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"मेरे पास सिर्फ 3 महीने हैं और इन 3 महीनों को मैं सेक्स के सहारे गुजारना चाहता हूँ। 


आप तो जानते ही हैं कि मुझे पेट का कैंसर है और डॉक्टरों ने मुझे 3 महीने का समय दिया है। उसके बाद मैं इस दुनिया से विदा हो जाऊंगा-ऐसा उन्होंने कहा है।


 क्या पता अगला जन्म मनुष्य का मिले या न मिले इसीलिए इस बचे हुए समय में मैं असीम पीड़ा और कमजोरी झेलते हुए भी सेक्स में व्यस्त हूँ। 


आप इसे मेरा पागलपन समझ सकते हैं या दीवानापन पर हकीकत यही है। 


जैसे मेरे पास 3 महीने है वैसे ही आपके पास भी 3 महीने हैं। यदि आप चाहे तो इन तीन महीनों को मेरे लिए कष्ट मुक्त कर सकते हैं।


 मुझे यह मालूम है कि यह लाइलाज कैंसर है। इसकी कोई चिकित्सा नहीं है और आपके पास भी इसका कोई समाधान नहीं है इसीलिए आपसे अनुरोध है कि आप मेरे कष्टों को जिस हद तक दूर कर सकें करने का प्रयास करिए। 


मेरी आपसे यही हाथ जोड़कर विनती है।"


 उत्तर भारत से आए 40 वर्षीय सज्जन ऐसा कह रहे थे। उन्हें पेट का कैंसर था और वह कैंसर की अंतिम अवस्था थी। 


उनकी दो बार सर्जरी हो चुकी थी और सारी कीमोथेरेपी की दवाएं नाकाम साबित हुई थी। उसके बाद उन्होंने होम्योपैथी का सहारा लिया, फिर पारंपरिक चिकित्सकों का।


 उसके बाद यूनानी दवाओं का और अंत में गोमूत्र जैसे साधनों का पर कैंसर इतना अधिक उग्र हो चुका था कि किसी तरह से काबू में नहीं आ रहा था। 


मेडिसिनल राइस पर मेरे शोध कार्यों को देख कर वे सज्जन मेरे पास आ गए थे। इस उम्मीद में कि शायद इन मेडिसिनल राइस से उनकी वर्तमान समस्याओं का कुछ हद तक समाधान हो सकता है। 


मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि मैं आपकी मदद करूंगा। 


वैसे मुझे इस बात की बहुत कम उम्मीद है कि पारंपरिक मेडिसिनल राइस इस उग्र अवस्था में किसी तरह से आपकी मदद कर पाएंगे।


 फिर भी कोशिश करना मेरा कर्तव्य है और वह मैं जरूर करूंगा। यह कह कर मैंने उन्हें 8 किस्म के मेडिसिनल राइस दिए और उनकी प्रयोग विधि के बारे में उन्हें विस्तार से बताया। 


उनकी पत्नी साथ में आई थी। उन्होंने सारी जानकारी को दर्ज किया और मुझसे अनुरोध किया कि उन्हें इस बात की छूट दी जाए कि दिन हो या रात कभी भी फोन पर मुझसे बात कर सकते हैं। 


मैंने उन्हें अनुमति प्रदान कर दी और कहा कि हर हफ्ते मुझे इन सज्जन की हालत के बारे में बताया जाए। उन्हें आने की जरूरत नहीं है।


 यदि उनकी पत्नी और उनके बेटे उनकी एक छोटी सी वीडियो फिल्म बनाकर ले आए तो भी बात बन सकती है। 


उनकी पत्नी इस बात के लिए तैयार हो गई और सारे मेडिसिनल राइस लेकर चली गई। 


मैंने एक बात विशेष रूप से देखी कि जब वे सज्जन मुझे अपनी तकलीफ के बारे में बता रहे थे तो उनके बाएं हाथ की कई अंगुलियाँ विशेषकर तर्जनी बुरी तरह से कांप रही थी। 


इसे देखकर मैंने उनसे बार-बार पूछा कि क्या आप अभी किसी प्रकार की दूसरी दवा का भी प्रयोग कर रहे हैं तो उन्होंने बार-बार यही कहा कि उनकी सारी दवाएं पूरी तरह से बंद हो चुकी है।


 मैंने उनकी बात मान ली। 


1 हफ्ते के बाद जब उनकी पत्नी आई तो साथ में उनका बेटा भी था। उन्होंने मुझे वीडियो फिल्म दिखाई और बताया कि उनकी हालत तेजी से बिगड़ती जा रही है। 


वे मेडिसिनल राइस का प्रयोग पूरे विश्वास से कर रहे हैं पर इससे किसी भी तरह का कोई लाभ नहीं हो रहा है। 


मैंने जब फिल्म देखी तो फिर मेरा ध्यान उनकी अंगुलियों की तरफ गया जो कि बुरी तरह से कांप रही थी। 


मैंने उन्हें फोन कर पूछा कि क्या आप और किसी प्रकार की दवा ले रहे हैं तो उन्होंने कहा कि मरता हुआ आदमी कभी झूठ नहीं बोलता है। मैने कहा न, मैं किसी भी प्रकार की दवा नहीं ले रहा हूँ। 


मैंने उनकी पत्नी को भी अंगुलियों के कांपने की बात बताई और उनसे पूछा कि क्या वे किसी तरह की दवा ले रहे हैं और मुझसे यह बात छुपा रहे हैं तो पत्नी ने खुलकर कुछ नहीं बताया। 


अगले सप्ताह जब उनकी पत्नी फिर से मिलने आई तो इस बार अपने बेटे को लेकर नहीं आई। पत्नी ने बताया कि शादी के तुरंत बाद उन्हें आभास हुआ कि उनके पति नपुंसकता के शिकार हैं इसलिए उन्होंने झांसी के एक वैद्य से एक विशेष प्रकार की जड़ी ली। 


उस जड़ी को रात भर पानी में भिगो कर मुंह में सेक्स करते समय रखना होता था। इससे उनके पति की स्तंभन शक्ति बहुत अधिक बढ़ जाएगी-ऐसा वैद्य ने कहा था। 


उनकी पत्नी ने खुलासा किया कि वे जीवन पर्यंत इस जड़ी का उपयोग करते रहे और झांसी के वैद्य से इसे खरीदते रहे। 


अब जब मौत के मुंह में जाने को तैयार है उसके बाद भी इसका प्रयोग कर रहे हैं और कह रहे हैं कि अंतिम सांस तक वह सेक्स करना चाहते हैं। 


अब उनकी हालत ऐसी नहीं है। फिर भी उनकी जिद के सामने सभी हार गए हैं। 


वे जिस जड़ी का प्रयोग कर रहे हैं उसे वैद्य जी काले केवाँच की जड़ कहते हैं और यह बहुत अधिक दुर्लभ है। 


झांसी के वैद्य जी झांसी की ही एक दुकान से इसे खरीदते हैं और कई बार तो हमें सीधे ही उस दुकान से खरीद लेने को कहते हैं। 


मैंने उनकी पत्नी से पूछा कि क्या इस जड़ी के प्रयोग से उन्हें किसी प्रकार का लाभ हो रहा था तो पत्नी ने अनमने ढंग से जवाब दिया कि किसी भी तरह का लाभ नहीं हो रहा था। 


इसकी शिकायत उन्होंने वैद्यजी से भी की थी और अपने पति को भी कहा था कि जब इससे फायदा नहीं हो रहा है तो ऐसी जड़ को रात भर मुंह में रखने से क्या फायदा?


 मैंने उनकी पत्नी को बताया कि काले केवाँच की जड़ निश्चित ही स्तम्भन का कार्य करती है पर उसे पानी की बजाय जड़ी बूटियों के घोल में रात भर भिगो कर रखना पड़ता है तब इसका सही असर दिखाई देता है। 


केवल पानी में डुबोकर रखने से यह असरहीन होती है।


 मैंने उनसे झांसी के उस जड़ी बूटी वाले का नंबर मांगा जो कि उन्हें कई वर्षों से इस जड़ की आपूर्ति कर रहा था। 


जब मैंने उससे बात की तो जड़ी बूटी वाले ने बताया कि वह छत्तीसगढ़ के इस परिवार को कई वर्षों से निर्बाध रूप से विलास की जड़ उपलब्ध करवा रहा है।


 मैंने उसे सुधारते हुए कहा कि केवाँच की जड़ न कि विलास की जड़। 


उसने कहा कि केवाँच की जड़ नहीं विलास की जड़। 


मैंने कहा कि वह जिस विलास की बात कर रहा है क्या वह उत्तर भारत में पाए जाने वाला एक जंगली वृक्ष है तो उसने कहा कि हां, उसी जंगली वृक्ष की जड़ का उपयोग इस कार्य के लिए किया जाता है। 


जब मैंने वैद्यजी से बात तो उन्होंने बताया कि मैंने तो जड़ी बूटी वाले से केवाँच की जड़ कहा था न कि विलास की जड़।


 इसका मतलब यह था कि पेट के कैंसर से प्रभावित सज्जन लंबे समय से गलतफहमी के कारण केवाँच की जगह विलास की जड़ का प्रयोग कर रहे थे। 


अब सारी स्थिति स्पष्ट होती जा रही थी और अंगुलियों के कंपन की वजह भी साफ नजर आ रही थी। 


अगले सप्ताह मैंने उनकी पत्नी से कहा कि आपको आने की जरूरत नहीं है। मैं खुद उन सज्जन से मिलने उनके घर आऊंगा।


 उनके घर पहुंच कर मैंने उनसे कहा कि आपके पेट के कैंसर की संभावित वजह विलास की जड़ का इतने लंबे समय तक इस तरह से उपयोग करना है। 


उन्होंने मुझे सुधारते हुए कहा कि विलास की जड़ नहीं बल्कि केवाँच की जड़। 


मैंने उन्हें गलतफहमी का सारा किस्सा सुनाया तो वे भी आश्चर्यचकित रह गए और उन्होंने कहा कि तभी मुझे उस तरह का असर नहीं हुआ जिंदगी भर जिस तरह का असर होना चाहिए था पर मैंने वैद्य जी के ऊपर विश्वास किया और यह मानता रहा कि मैं केवाँच की वजह से ही बिस्तर पर अच्छे से सफल हो रहा हूँ जबकि मैं वास्तव में विलास का प्रयोग कर रहा था।


 मैंने उन्हें विस्तार से बताया कि विलास की जड़ बहुत अधिक जहरीली होती है और उससे शरीर में कई तरह के कैंसर का फैलाव तेजी से होने लग जाता है। उनके पेट के कैंसर का कारण भी यही जड़ रही होगी। 


वे रोने लगे और कहने लगे कि उनसे बहुत बड़ी गलती हो गई और उन्होंने अपने ही पैर पर जबरदस्ती कुल्हाड़ी मार ली पर अब पछताने से क्या होगा क्योंकि कैंसर अब अंतिम अवस्था में पहुंच चुका है।


 मैंने उन्हें कहा कि निराश होने की जरूरत नहीं है। 


यदि आप इसका प्रयोग अभी भी रोक देंगे तो हो सकता है कि मेरे मेडिसिनल राइस अच्छा असर दिखाने लगे और इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले कुछ वर्षों में अगर आप जीवित बच गए तो आपकी स्थिति में काफी सुधार हो सकता है। 


आप मौत के मुंह से वापस आ सकते हैं। 


वे कुछ देर तक शांत बैठे रहे।


 फिर उन्होंने कहा कि मुझे अभी अपने बेटे की शादी करवानी है और पोते का मुंह देखना है इसीलिए आपकी बात पर विश्वास न होते हुए भी मैं विश्वास करने को तैयार हूँ और आप जैसा कहेंगे मैं वैसा मानने को पूरी तरह से प्रतिबद्ध हूँ। 


अगले 1 वर्ष का समय उनके लिए बहुत कठिन रहा। उन्हें बहुत अधिक दर्द सहना पड़ा पर यह अच्छी बात हुई कि उनके कैंसर का फैलना अचानक से रुक गया। 


इस बीच मैंने बस्तर के बहुत से पारंपरिक चिकित्सकों से इस गलतफहमी के बारे में विस्तार से चर्चा की तो उन्होंने बताया कि भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में एक ऐसा नुस्खा है जो कि विलास की जड़ की काट के रूप में प्रयोग किया जाता है। 


जब उस नुस्खे का प्रयोग इन सज्जन पर शुरू किया गया तो धीरे-धीरे कैंसर की उग्रता समाप्त होने लगी और 5 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद वे कैंसर से पूरी तरह मुक्त हो गए। 


पूरी तरह कहना यहां सही नहीं होगा क्योंकि कैंसर की बहुत सारी कोशिकाएं अभी भी उनके शरीर में थी और इस बात के इंतजार में थी कि जैसे ही शरीर कमजोर हो और वे भी फैलना शुरू करें इसलिए उन्हें आजीवन बहुत संभल कर रहने की आवश्यकता थी। 


मैंने उनके लिए विशेष भोजन सामग्रियों की व्यवस्था की और इस तरह धीरे-धीरे उनके स्वास्थ्य में सुधार होने लगा।


 आज इस कोरोना वायरस काल मे कुछ दिनों पहले उनका फोन आया और उन्होंने बताया कि उनके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी अधिक मजबूत हो गई है कि उनके पूरे मोहल्ले में इस वायरस के कारण लोग प्रभावित हुए पर वे पूरी तरह से अप्रभावित रहे।


 उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित किया। 


सर्वाधिकार सुरक्षित



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