Consultation in Corona Period-89
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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"कैंसर की चिकित्सा में हम प्रयोग तो कर रहे हैं संजीवनी पर हमें परिणाम मिल रहे हैं विष के। यह कैसा ड्रग इंटरेक्शन है?"
देश के जाने-माने कैंसर इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर मुझसे फोन पर बात कर रहे थे।
वे इन दिनों Checkpoint Inhibitors के ऊपर काम कर रहे हैं जो कि कैंसर की नई तरह की चिकित्सा है और कैंसर की बढ़ी हुई अवस्था में ही जब सारे इलाज बेकार साबित होते हैं तब इसका प्रयोग किया जाता है।
इस नई तकनीक में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता की सहायता से कैंसर की पहचान की जाती है और फिर उसे नष्ट किया जाता है।
डायरेक्टर साहब ने मुझे पांच ऐसे केस दिए जिनमें इस तरह के लक्षण आ रहे थे।
वे जानना चाहते थे कि ऐसे लक्षण उनकी दवाओं के कारण आ रहे हैं या किसी और कारण से। मैंने कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।
आप एक के बाद एक केस मेरे पास भेजते जाइए। मैं आपको अपने अनुभव के अनुसार मदद करता रहूंगा।
पहला केस एक 30 वर्षीय युवक का था जिसके बारे में डायरेक्टर साहब ने बताया कि वह पेट के कैंसर की अंतिम अवस्था में हैं और उसके सारे लक्षण है ऐसे आ रहे हैं जैसे कि उसने पारे का सेवन कर लिया हो। पूरे शरीर में फोड़े निकल रहे हैं और बदबू आ रही है।
मैंने डायरेक्टर साहब को बताया कि संभवत: वह युवक किसी वैद्य से भी दवा ले रहा है। इसकी आपकी दवा के साथ नकारात्मक प्रतिक्रिया हो रही है।
इसकी पूरी संभावना है कि उसे दवा के रूप में बिना शोधित पारा दिया जा रहा है जिसका बुरा प्रभाव उसके शरीर में दिख रहा है।
हमारे देश में बहुत सारे वैद्य कैंसर के अंतिम अवस्था में शोधित पारा का उपयोग करते हैं पर यदि शोधन में किसी भी तरह की चूक होती है तो पारा सीधे ही शरीर में पहुंच जाता है और कैंसर के कारण नहीं बल्कि पारा के कारण रोगी की मृत्यु हो जाती है।
आप उस युवक और उसके परिजनों से दृढ़ता पूर्वक पूछिए कि क्या वह आपकी दवाओं के अलावा कोई और दवा भी ले रहा है?
अधिकतर मध्यप्रदेश के वैद्य इस तरह के प्रयोग करते हैं। नई पीढ़ी के वैद्यों को पारा की शोधन के बारे में ठीक से नहीं मालूम होता है। इसलिए ऐसी समस्या आजकल आम हो गई है।
कैंसर ऊपर से पारा की विषाक्तता से रोगी की बहुत बुरी हालत होती है और उसका जीवन नर्क तुल्य हो जाता है।
रोगी की हालत के लिए आपकी दवायें कतई जिम्मेदार नहीं हैं।
डायरेक्टर साहब ने धन्यवाद दिया और कहा कि वे जल्दी ही पता करके बताएंगे कि युवक को और भी किस तरह की दवा दी जा रही है।
एक हफ्ते बाद उन्होंने इस बात की सूचना दी कि मध्यप्रदेश के एक वैद्य से उसकी चिकित्सा चल रही है और वे उसे पारा के नाम पर अपूर्ण शोधित पारा दे रहे हैं जिसके कारण यह समस्या हो रही थी।
अब उसने यह दवाई बंद कर दी है जिससे उसकी हालत में काफी हद तक सुधार हुआ है।
दूसरे केस के बारे में उन्होंने बताया कि यह केस 20 वर्षीय एक युवक का है जिसे कि धूम्रपान की बहुत आदत थी और उसे फेफड़े का कैंसर हो गया है।
यह कैंसर की अंतिम अवस्था है और इसके लिए Checkpoint Inhibitors उसे दिए जा रहे हैं।
मैंने पूरी रिपोर्ट पढ़ने के बाद उनसे कहा कि आपकी दवाओं से तो मानसिक रोगी जैसे लक्षण नहीं आ सकते हैं जैसे कि इस युवक को आ रहे हैं।
संभवत: यह अधिक मात्रा में दूध का सेवन कर रहा है। वह भी बीमार गाय के दूध का जिसके कारण ऐसे लक्षण आते हैं।
ऐसे दूध की आपकी दवाओं से नकारात्मक प्रतिक्रिया होती है और रोगी का मानसिक संतुलन पूरी तरह से बिगड़ जाता है।
मैने उन्हें यह भी बताया कि पारंपरिक चिकित्सा में फेफड़े के कैंसर की अंतिम अवस्था में अधिकतर पारंपरिक चिकित्सक दूध का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर देते हैं और यदि बहुत जरूरी हो तो बकरी का दूध पीने को कहते हैं।
पर इसके लिए जरूरी है कि बकरी पूरी तरह से स्वस्थ हो और उसे किसी भी तरह की बीमारी न हो।
रोगी के परिजन से कहिए कि वे बीमार गाय के दूध का प्रयोग न करें। इससे यह जो नकारात्मक प्रतिक्रिया मानसिक लक्षणों के रूप में दिख रही है वह पूरी तरह से ठीक हो जाएगी।
तीसरे केस में रोगी के मुंह में बड़े-बड़े छाले हो रहे थे। उनसे खून रिस रहा था और उसे बोलने में बहुत तकलीफ हो रही थी।
उसकी जीभ मोटी हो गई थी और मसूड़ों में सूजन हो गई थी।
डायरेक्टर साहब ने पूछा कि क्या यह सब उनकी दवाओं के कारण हो रहा है तो मैंने कहा कि आपकी दवाओं के साइड इफेक्ट ऐसे भी होते हैं पर मुझे लगता है कि इसका कारण दूसरा है।
संभवत: यह युवक जो कि 35 वर्ष का है किसी वैद्य से दवा ले रहा है।
उस वैद्य ने उससे कहा है कि पान की पत्ती में इस दवा को ले और किसी भी हालत में यह दवा मुंह के संपर्क में नहीं आए अर्थात इसे सीधे ही निगल लेना है।
यह युवक से ठीक से नहीं हो पा रहा है और किसी तरह से दवा उसके मुंह में रह जा रही है।
इसके कारण इस तरह के लक्षण आते हैं और कैंसर की अंतिम अवस्था में जो मरीज होते हैं उन्हें अधिकतर ऐसी दवा दी जाती है।
मैंने सैकड़ों मामले ऐसे देखे हैं जिसमें पान के साथ दी जाने वाली ऐसी दवाओं से मरीजों को अनावश्यक ही परेशानी हो जाती है।
बहुत सारे वैद्य पान के साथ विष कंद का प्रयोग करते हैं जिसके कारण ऐसे लक्षण आते हैं।
आप उस युवक से कहे कि वे आपकी दवाओं के साथ पान में ली जाने वाली दवाओं का प्रयोग बंद कर दें।
इससे उसके सारे लक्षण समाप्त हो जाएंगे। डायरेक्टर साहब ने इन तीनों केसों के समाधान बताने पर धन्यवाद ज्ञापित किया।
फिर उन्होंने एक युवती का केस दिया जो कि 25 वर्षीय थी और जिसे अंतिम अवस्था का ब्रेस्ट कैंसर था।
उसे भी Checkpoint Inhibitors दिया जा रहा था। डायरेक्टर साहब ने बताया कि युवती को लगातार दस्त हो रहे हैं और वे किसी भी तरह से रुक नहीं रहे हैं।
"क्या ये दस्त उनकी दवा के कारण हो रहे हैं?" उन्होंने पूछा।
मैंने बताया कि मुझे युवती के खान-पान के बारे में विस्तार से जानकारी चाहिए विशेषकर मसालों के बारे में जिनका प्रयोग वह कर रही है।
क्या उसे किसी ने बताया है कि विशेष मसालों का प्रयोग करने से ब्रेस्ट का कैंसर ठीक हो सकता है और इसलिए वह उस मसाले का प्रयोग अधिक मात्रा में कर रही है?
इसकी गहरी छानबीन करनी होगी तभी इस बात का पता चल सकेगा।
डायरेक्टर साहब में जब बहुत पूछताछ की और गहरी छानबीन की तो उन्हें पता चला कि युवती को किसी ने बताया था कि हींग का प्रयोग करने से इस अवस्था का ब्रेस्ट कैंसर ठीक हो जाता है इसलिए वह हर चीज में हींग का प्रयोग कर रही थी।
मैंने डायरेक्टर साहब को बताया कि वे जिस दवा का प्रयोग कर रहे हैं उसकी हींग के साथ नकारात्मक प्रतिक्रिया होती है और इसे दुनिया भर में देखा गया है।
आपसे उससे कहे कि हींग का प्रयोग कम करे। इससे कैंसर में किसी तरह का फायदा नहीं होने वाला।
ऐसा करने से उसकी समस्या का समाधान हो जाएगा और उसके दस्त रुक जाएंगे।
मैंने उन्हें यह भी कहा कि वह धीरे-धीरे इसका प्रयोग छोड़े अन्यथा दस्त के स्थान पर बहुत अधिक कब्ज की समस्या हो जाएगी।
अंतिम केस 70 वर्षीय बुजुर्ग का था जो कि प्रोस्टेट कैंसर की अंतिम अवस्था में थे। उन्हें बहुत अधिक कमजोरी हो रही थी और नाक से बार-बार खून निकल रहा था।
डायरेक्टर साहब ने दवा का नाम बताया और पूछा कि क्या इसके कारण ही इस तरह के लक्षण आ रहे हैं? उनके लिए यह नई बात थी।
मैंने कहा कि संभवत: वे बुजुर्ग डायबिटीज की समस्या से परेशान है और उसके लिए वे किसी कड़वी चीज का प्रयोग कर रहे हैं।
अगर वे इस कड़वी चीज का प्रयोग करना बंद कर दें तो इसकी आपकी दवा के साथ किसी भी प्रकार की नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं होगी और समस्या का समाधान हो जाएगा।
जब डायरेक्टर साहब ने पूछताछ की तो बुजुर्ग ने बताया कि वे रोज सुबह करेले के रस का प्रयोग अधिक मात्रा में करते हैं। इससे उनका डायबिटीज कंट्रोल में रहता है।
डायरेक्टर साहब को अब समाधान मिल गया था। उन्होंने बीच का रास्ता निकाला और बुजुर्ग से कहा कि वे कम मात्रा में करेले का प्रयोग करें।
इससे दोनों दवाओं की प्रतिक्रियाओं के कारण हो रहा बुरा प्रभाव काफी हद तक कम हो जाएगा।
इस तरह डायरेक्टर साहब को पाँचों केसों का समाधान मिल गया और उन्होंने मुझे धन्यवाद ज्ञापित किया।
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