बबूल की फलियों के साथ पंकज अवधिया के अनुभव

बबूल की फलियों के साथ पंकज अवधिया के अनुभव

चिकित्सा से संबंधित विश्व साहित्य बताते हैं कि पूर्वी सूडान में पारंपरिक चिकित्सक तेज ज्वर की चिकित्सा के लिए बबूल की फलियों से तैयार काढ़े का प्रयोग करते हैं।

बबूल की फलियों का इस तरह प्रयोग हमारे देश में भी किया जाता है।

हमारे देश के छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिकित्सक इस काढ़े के प्रभावीपन को बढ़ाने के लिए इसके साथ में बबूल की छाल का भी प्रयोग करते है।

कर्नाटक के धारवाड़ क्षेत्र के पारंपरिक चिकित्सक एक विशेष प्रकार का काढ़ा तैयार करते हैं।

इस काढ़े में 20 प्रकार की जड़ी बूटियों डाली जाती हैं।

इनमें बबूल की फलियां भी शामिल है।

इसका प्रयोग ज्वर की चिकित्सा में सफलतापूर्वक किया जाता है।

मध्य भारत के पारंपरिक चिकित्सक एक विशेष प्रकार की हर्बल चाय का प्रयोग करते हैं.

इस हर्बल चाय की सहायता से विभिन्न प्रकार के ज्वरों की चिकित्सा की जाती है.

इस हर्बल चाय में बबूल की फलों का उपयोग किया जाता है पर पकी हुई फली  लेने की बजाए कच्ची फली का उपयोग ज्यादा लाभदायक माना जाता है

मैंने अपने अनुभव से यह जाना है कि बबूल की फली के साथ ज्वर के लिए उपयोग की जाने वाली लोकप्रिय दवा पेरासिटामोल का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

इन दोनों के बीच में नकारात्मक प्रतिक्रिया होती है जिससे कि पेट में दर्द जैसी समस्याओं का सामना रोगियों को करना पड़ता है.

राजस्थान के पारंपरिक चिकित्सक बबूल की फली के साथ डायबिटीस की प्रचलित दवा मेटफार्मिन के प्रयोग के पक्षधर नहीं है.

उनका मानना है कि इसे डायबिटीज की समस्या बढ़ जाती है।

बस्तर के पारंपरिक चिकित्सक भी नीम जैसी वनस्पतियों के साथ मलेरिया के ज्वर की चिकित्सा के लिए बबूल की फली का उपयोग करते हैं,

झारखंड के पारंपरिक चिकित्सक भी इसी तरह इन फलियों का उपयोग करते हैं.

पारंपरिक चिकित्सक बहुत सी वनस्पतियों के साथ बबूल की फली के उपयोग के पक्षधर नहीं है जैसे कि बस्तर के पारंपरिक चिकित्सक कव्वा गोडी नमक वनस्पति के साथ इसका प्रयोग नहीं करते हैं.

वे रानीजाड़ा नामक वनस्पति के साथ भी इसका प्रयोग नहीं करते हैं.

झारखंड के पारंपरिक चिकित्सक नीम की जड़ के साथ इसका प्रयोग नहीं करते हैं.

जबकि बंगाल के पारंपरिक चिकित्सक नारियल के साथ इसका प्रयोग नहीं करते हैं.

आंध्रप्रदेश के पारंपरिक चिकित्सक जंगली धान के साथ इसका प्रयोग नहीं करते हैं

इसी तरह कोंकण क्षेत्र के पारंपरिक चिकित्सक दही के साथ इसका प्रयोग नहीं करते हैं.

केरल के पारंपरिक चिकित्सक विदारीकंद के साथ इसका प्रयोग नहीं करते हैं.

उड़ीसा के पारंपरिक चिकित्सक तीतर के मांस के साथ इसके प्रयोग के पक्षधर नहीं है जबकि छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिकित्सक इस तरह का प्रतिबंध नहीं लगाते हैं.

हरियाणा के पारंपरिक चिकित्सक इसके साथ दूध का प्रयोग रोक देते हैं।


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