बबूल के बीजों के साथ पंकज अवधिया के अनुभव

बबूल के बीजों के साथ पंकज अवधिया के अनुभव

चिकित्सा से संबंधित विश्व साहित्य यह बताते हैं कि मस्कट में बबूल के बीजों का प्रयोग खजूर के साथ शरीर से विष को हटाने के लिए किया जाता है.

बबूल के बीजों और खजूर को पानी में भिगोया जाता है फिर उस पानी को पीने के लिए कहा जाता है.

बबूल के बीजों का इस तरह का प्रयोग पूरी दुनिया में पारंपरिक चिकित्सक करते रहे हैं.

भारत के छत्तीसगढ़ में बबूल के बीजों को खेतों में उगने वाली वनस्पति जिल्लो के साथ इसी तरह दिया जाता है.

हमारे देश के पारंपरिक सर्प विशेषज्ञ सर्पदंश के बाद रोगी को विष से मुक्त करने के लिए बबूल के बीजों और सिरस के बीजों से तैयार एक विशेष प्रकार के पेय का प्रयोग करते हैं।

उनका दावा होता है कि इससे सर्प के विष का स्थाई प्रभाव हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है।

उड़ीसा के पारंपरिक चिकित्सक कैंसर के ऐसे रोगियों की चिकित्सा आरंभ करने से पहले बबूल के बीजों का प्रयोग सात प्रकार की दूसरी जड़ी बूटियों के साथ करते हैं जो कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति से निराश होकर उनकी शरण में आते हैं।

उनका कहना है कि यह विशेष पेय कीमोथैरेपी की दवाओं के बुरे असर को पूरी तरह से समाप्त कर देता है।

बंगाल के पारंपरिक चिकित्सक जंगली घासों के साथ बबूल के बीजों का प्रयोग करते हैं जिससे शरीर की सफाई हो जाती है।

शरीर की सफाई होने के बाद ही वह अपनी दवाओं का प्रयोग करते हैं.

मैंने अब तक 8000 से अधिक ऐसे पारंपरिक नुस्खों के बारे में जानकारी एकत्र की है जिसमें बबूल के बीजों को अहम घटक के रूप में डाला जाता है।

ये नुस्खे शरीर की सफाई के लिए काम आते हैं और आज भी देश की पारंपरिक चिकित्सा में इन नुस्खों का प्रयोग हो रहा है.

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