Consultation in Corona Period-261 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया

Consultation in Corona Period-261 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया "दो बार सर्जरी हो जाने के बावजूद मेरे प्रोस्टेट का कैंसर बहुत तेजी से फैलता जा रहा है और अब यह लाइलाज हो रहा है। सभी पद्धति के चिकित्सक अब अपने हाथ खड़े कर चुके हैं और मुझे अस्पताल से घर भेज दिया गया है। अब मुझे हर्बल फॉर्मूलेशन का ही भरोसा है जिन्हें मैं लंबे समय से प्रयोग कर रहा हूँ और जिनके कारण मैं इतने लंबे समय से जीवित हूँ। कैंसर की अंतिम अवस्था में मैं आपकी मदद चाहता हूँ। क्या आपके पास ऐसे मेडिसिनल राइस की जानकारी है जिनका प्रयोग इस अवस्था में किया जा सकता है और फिर से पूरी तरह से स्वस्थ हुआ जा सकता है? मैं अपनी सारी रिपोर्ट आपको भेज रहा हूँ और यदि आप कहेंगे तो मैं रायपुर आ कर भी मिलने को तैयार हूँ ताकि आप मेरे ऊपर किसी तरह का परीक्षण करना चाहे तो कर सकते हैं। मेरी उम्मीद पूरी तरह से खत्म हो चुकी है पर मुझे लगता है कि एक बार आपसे मिलने से कुछ समाधान तो अवश्य निकलेगा। मुझे मालूम है कि आप चिकित्सक नहीं है और आपने केवल भारत के पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान का डाक्यूमेंटेशन किया है पर इस आधार पर भी आप मेरी बहुत मदद कर सकते हैं।" उत्तर पश्चिम भारत से आए एक सज्जन ने मुझसे संपर्क किया और जब मैंने उनसे कहा कि आप रायपुर में आकर मिले तो वे कुछ ही दिनों में समय लेकर मुझसे मिलने आ गए। इससे पहले उन्होंने अपने द्वारा प्रयोग की जा रही है सभी दवाओं के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि वे 5 तरह के हर्बल फॉर्मूलेशन का प्रयोग कर रहे हैं जो कि उन्हें पांच विभिन्न तरह के वैद्य दे रहे थे। इनमें से तीन फॉर्मूलेशन तो प्रोस्टेट के लिए थे जबकि दो फॉर्मूलेशन उनकी डायबिटीज की समस्या के लिए थे। इसके अलावा वे बहुत सी ऐसी खाद्य सामग्रियों का प्रयोग कर रहे थे जोकि कैंसर को फैलने से रोकने में मददगार थी। उनके शरीर से खून की कमी होती जा रही थी जिससे वे बहुत ज्यादा दुबले हो गए थे। इसके लिए भी वे कई प्रकार के टॉनिक का प्रयोग कर रहे थे। अपनी दो बार हुई सर्जरी के बारे में भी उन्होंने रिपोर्ट भेजी और उन दवाओं के बारे में भी बताया जिन्हें कि सर्जरी के बाद दिया गया था। मैंने इतनी सारी जानकारियों के लिए उन्हें धन्यवाद दिया और उनसे पूछा कि क्या किसी तरह की जानकारी आपके पास बची रह गई है? यदि हां तो आप बिना किसी संकोच के उन्हें भी मुझे बताएं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा उनके पास किसी भी प्रकार की जानकारी नहीं है। उनकी रिपोर्ट के आधार पर मैंने एक छोटा सा परीक्षण किया और उन्हें 5 तरह की जड़ी बूटियों को चखकर बताने का अनुरोध किया। इस आधार पर मैंने 10 और परीक्षण किए जो कि अलग-अलग जड़ी बूटियों के प्रयोग पर आधारित थे। इस आधार पर जो निष्कर्ष निकले वे चौंकाने वाले थे। मैंने उनके वैद्यों द्वारा दिए जा रहे सभी नुस्खों की गहनता से जांच की पर मुझे उनमे वह घटक नहीं दिखाई दिया जिसकी उपस्थिति शरीर में परीक्षणों के माध्यम से दिख रही थी। इसका मतलब यही था कि वे सज्जन किसी प्रकार की जानकारी मुझसे छुपा रहे थे या बताना नहीं चाह रहे थे पर परीक्षण से सब कुछ साफ हो चुका था। मैंने उन्हें स्पष्ट शब्दों में कहा कि आप टर्मिनेलिया नामक वनस्पति की किसी प्रजाति की छाल का उपयोग कर रहे हैं तब उन्होंने कहा कि उन्होंने टर्मिनेलिया नाम कभी भी नहीं सुना है तो वे भला इसकी छाल का कैसे उपयोग कर सकते हैं तब मैंने उनसे कहा कि टर्मिनेलिया प्रजाति में हर्रा, बहेड़ा, अर्जुन, साजा यह सब वनस्पति आती है तब उन्होंने तपाक से कहा कि वे हर्रा की छाल का प्रयोग कर रहे हैं काढ़े के रूप में। उनके मित्र ने बहुत पहले बताया था कि यदि इस छाल के काढ़े का उपयोग लंबे समय तक किया जाए तो प्रोस्टेट की किसी भी तरह की समस्या नहीं होगी और प्रोस्टेट कैंसर में यह बहुत उपयोगी है इसलिए मैं शुरू से इस काढ़े का प्रयोग कर रहा हूँ। मैंने उनसे कहा कि क्या मैं आपके मित्र से बात कर सकता हूँ? क्या वे किसी प्रकार के चिकित्सक हैं या विशेषज्ञ तब उन्होंने कहा कि वे कॉलेज में प्रोफेसर है और शौकिया तौर पर होम्योपैथी की दवा देते हैं। मैंने जब उन प्रोफेसर महोदय से बात की तो उन्होंने कहा कि होम्योपैथी के ग्रंथों में लिखा है कि यदि हर्रा का प्रयोग लंबे समय तक नियमित रूप से किया जाए तो प्रोस्टेट की समस्या आजीवन नहीं होती है और शरीर की विभिन्न समस्याएं भी ठीक रहती हैं। मैंने उनसे पूछा कि क्या आप डॉक्टर सत्यव्रत विद्यालंकार की पुस्तक से पढ़कर यह बात कह रहे हैं तब उन्होंने इस बात की पुष्टि की। मैंने उनसे कहा कि उन्होंने तो सिर्फ हर्रा के फल के बारे में लिखा है। उन्होंने तो कहीं भी नहीं लिखा कि हर्रा की छाल का वह भी काढ़े के रूप में प्रयोग किया जाए। उन्होंने साधारण विधि लिखी है कि हर्रा का एक फल लेकर रात को पानी में भिगो देना है और सुबह फिर उस पानी को पी लेना है। आपने तो अपने मन से हर्रा की छाल लेने का अनुमोदन कर दिया। वह भी काढ़े के रूप में। हर्रा की छाल का इस तरह का उपयोग प्रोस्टेट के कैंसर को बहुत तेजी से फैलने में मदद करता है। यह विज्ञान सम्मत नहीं है और इस दुष्प्रभाव को वे सभी विशेषज्ञ जानते हैं जो कि हर्रा को जानते हैं। प्रोफेसर महोदय ने कहा कि फल को पानी में भीगा कर उसका पानी पीने से भला क्या लाभ होगा इसलिए मैंने उसे स्ट्रांग कर दिया। मुझे क्या मालूम था कि इससे प्रोस्टेट का कैंसर फैलने लग जाता है। मैंने होम्योपैथी थोड़े न पढ़ी है। मैं तो प्रोफ़ेसर हूँ तब मैंने उनसे कहा कि यदि आप प्रोफेसर हैं तो फिर आप लोगों को बिना चिकित्सा विज्ञान जाने दवाई क्यों दे रहे हैं? मैंने उन्हें आगे बताया कि डॉक्टर सत्यव्रत विद्यालंकार ने यह जानकारी जहां से एकत्र की है वह भी मूल रूप में एकत्र नहीं की है। यह जानकारी आयुर्वेद के उन पुराने ग्रंथों में है जो कि अब प्रकाशित ग्रंथों के रूप में उपलब्ध नहीं है। उनमें यह लिखा गया है कि एक विशेष प्रकार का हर्रा जिसे कि चेतकी हर्रा कहा जाता है, का प्रयोग साल में 2 महीने करने से प्रोस्टेट की समस्या से कुछ समय तक बचा जा सकता है। उनमें यह कहीं भी नहीं लिखा है कि इससे प्रोस्टेट के कैंसर की चिकित्सा की जाती है। हां, यह अवश्य लिखा है कि यदि रोगी की पित्त की स्थिति ठीक नहीं है यानी पित्त कुपित है तब उस समय इसका प्रयोग करने से बात बिगड़ सकती है और प्रोस्टेट की समस्या उग्र हो सकती है। बाजार में अलग से चेतकी नाम का हर्रा नहीं मिलता है। इसे स्वयं जंगल में जाकर एकत्र करना होता है जोकि बहुत मेहनत का कार्य है। शायद इसीलिए डॉक्टर विद्यालंकार ने इस बात को पूरी तरह से नहीं लिखा। ऐसा लगता है कि भले ही उन्होंने किताब में लिखा कि यह उनका अनुभूत प्रयोग है पर उन्होंने यह करके नहीं देखा। अगर उन्होंने इसे आजमा कर देखा होता तो जरूर उन्हें इसके नुकसानो के बारे में पता होता और वे इस बारे में नहीं लिखते। फिर मैंने प्रोफेसर साहब को कहा कि आपने अपने अर्ध ज्ञान से अपने मित्र की जान को खतरे में डाल दिया अन्यथा पहली सर्जरी के बाद उन्हें किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं होती और वे खुशहाल जीवन जीते होते। मैंने प्रोस्टेट कैंसर से प्रभावित सज्जन से कहा कि आप तुरंत ही हर्रा की छाल का प्रयोग इस तरह करना बंद करें। मुझे लगता है इससे आपकी आधी से ज्यादा समस्या पूरी तरह से हल हो जाएगी। पारंपरिक चिकित्सा में बहुत सारे नुस्खे ऐसे हैं जो कि हर्रा की छाल के दुष्प्रभाव को पूरी तरह से ठीक करते हैं पर इन नुस्खों को असर करने में कई सालों का समय लगता है। मैं आपको एक पारंपरिक चिकित्सक का पता देता हूँ जो आपके शहर के पास में ही रहते हैं। आप उनके पास जाकर मदद लें। हो सकता है वे आपको इस मकड़जाल से बाहर निकाल सके। सारे नंगे सत्यों को जानकर उन सज्जन ने अपना सिर पकड़ लिया और पछताने लगे कि क्यों उन्होंने अपने मित्र पर विश्वास किया जो कि पेशे से चिकित्सक नहीं है और जिन्हें आधा अधूरा ही ज्ञान है पर अब बहुत देर हो चुकी थी। उन्होंने पारंपरिक चिकित्सक से मिलने का मन बनाया और मुझे धन्यवाद देकर वापस लौट गए। मैंने उन्हें शुभकामनाएं दीं। सर्वाधिकार सुरक्षित

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