Consultation in Corona Period-247 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया

Consultation in Corona Period-247



Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"सबसे पहले मुझे गर्दन में अकड़न महसूस हुई। मैंने घरेलू उपाय किए फिर फिजियोथैरेपिस्ट के पास गया जिन्होंने मुझे कई तरह के अभ्यास करने को कहा। 15 दिनों तक जब समस्या का हल नहीं निकला और पेन किलर खाते-खाते मैं थक गया तो मैंने चिकित्सक से मिलने का मन बनाया। उन्होंने मेरी पूरी तरह से जांच की और फिर कई तरह की दवाई दी जिससे कि इस समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाए। फिजियोथेरेपी के लिए मैं जिस सेंटर में जाता था वहां मेरी समस्या को बढ़ता देख कर साथियों ने कई तरह के तेल सुझाए जिन्हें खरीदकर मैं मालिश करने लगा। यह समस्या ठीक नहीं हुई उससे पहले ही मुझे मांसपेशियों में बहुत दर्द होने लगा। रात को यह दर्द बढ़ जाता था पर दिन में अन्य कार्यों में व्यस्त होने के कारण इस ओर कम ध्यान जाता था। 

अपने मित्रों की सलाह पर मैंने होम्योपैथी का सहारा लिया और उन्होंने मुझे मैग फास नामक एक बायोकेमिक दवा के प्रयोग की सलाह दी। बाद में जब मैं होम्योपैथी के चिकित्सक से मिला तो उन्होंने इस दवा को बदलकर मैग फास की जगह मैग कार्ब कर दिया पर समस्या का हल नहीं निकला। उसके बाद मुझे सांस की समस्या हो गई। थोड़ा सा भी काम करने के बाद बहुत अधिक थकान हो जाती थी और सांस फूलने लगती थी। पहले इसे धूल की एलर्जी माना गया। उसके बाद फूलों की एलर्जी। फिर चिकित्सकों ने कहा कि यह किसी गंभीर बीमारी के कारण हो रहा है और उन्होंने तरह तरह के टेस्ट करवाए पर किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सके। इतनी सारी तकलीफ होने के कारण मैं बहुत चिड़चिड़ा हो गया तब घरवालों ने कहा कि मुझे मेडिटेशन की जरूरत है। 

मैंने विपश्यना का शिविर जाने का मन बनाया पर जल्दी ही वहां से वापस लौट आया क्योंकि मेरा दर्द फैलता जा रहा था और असहनीय होता जा रहा था। लगातार परेशानियां सहन करने के कारण मैं बहुत कमजोर हो गया और दिन भर थका थका रहने लगा। फिर मैंने धर्मशाला का रुख किया जहां एक तिब्बती विशेषज्ञ ने मुझे कीड़ा जड़ी नामक एक टॉनिक दिया और कहा कि इससे सभी समस्याएं एक बार में ही ठीक हो जाएंगी पर ऐसा न हो सका। उसके बाद मैंने पारंपरिक चिकित्सकों की सलाह लेने का मन बनाया और महाराष्ट्र के एक पारंपरिक चिकित्सक से मिलने गया। उन्होंने मेरी कमजोरी देखकर एक बड़ा सा कंद दिया और कहा कि इसे रोज थोड़ी थोड़ी मात्रा में खाना है। इससे बहुत अधिक ताकत आएगी और एक बार ताकत आ जाने के बाद सभी स्वास्थ समस्याएं ठीक हो जाएंगी। मैंने कंद का प्रयोग करना शुरू ही किया था कि मुझे किडनी की समस्या होने लगी और पेशाब की तरह तरह की परेशानियां होने लगी। मैं समझ गया कि मुझे कोई बड़ा रोग हो गया है जिसकी अब कोई चिकित्सा नहीं है। 

मैं गहरे डिप्रेशन में चला गया तब घर वाले मुझे मनोचिकित्सक के पास लेकर गए। उन्होंने मुझे बहुत समझाया और निराशा से बाहर निकलने को कहा। अच्छी नींद के लिए उन्होंने कई तरह की दवाएं दी। इसके बाद घर वाले मुझे आयुर्वेद के विशेषज्ञ के पास भी ले कर गए जिन्होंने मेरा नाड़ी परीक्षण किया और बताया कि च्यवनप्राश का लगातार प्रयोग करने से मुझे लाभ हो सकता है। वे विशेषज्ञ अपने घर में ही च्यवनप्राश का निर्माण करते हैं और अपने मरीजों को देते हैं। मैंने च्यवनप्राश का प्रयोग करना शुरू कर दिया। सुबह से शाम तक मैं जैसे दवाओं का ही भोजन के रूप में प्रयोग करता था क्योंकि सभी तरह की पद्धतियों को मिलाकर मेरी 25 से अधिक प्रकार की दवाई चल रही थी पर एक भी समस्या पूरी तरह से ठीक नहीं हो रही थी। 

मेरे बेटे ने इंटरनेट पर जब इस समस्या के बारे में खोजबीन करने शुरू की तो उसे आपके लेख दिखाई पड़े और इस आधार पर हम लोगों ने फैसला किया कि आप से मिलेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि क्या किसी फंक्शनल फूड की सहायता से मेरी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो सकता है।" पूर्वी भारत से आए एक सज्जन ने अपनी व्यथा कही तब मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा। 

मैंने उन्हें रायपुर बुलवा लिया और फिर उनकी अनुमति लेकर जड़ी बूटियों पर आधारित एक छोटा सा परीक्षण करने की योजना बनाई। यह योजना उनके द्वारा भेजी गई रिपोर्ट के आधार पर थी। उनके सामने छह प्रकार की खाद्य सामग्रियां रखी गई और उनकी पहचान छुपा दी गई फिर उनसे कहा गया कि वे एक-एक करके इन सामग्रियों को चखें और उनका स्वाद बताएं। जब उन्होंने अटपटे जवाब देने शुरू किए तब समस्या का कारण पता चलने लगा पर इसकी पुष्टि के लिए मैंने उनसे कहा कि आप अपने चिकित्सक से मिलें और अपने खून की पूरी तरह से जांच करवाएं। 

वे इस बात के लिए तैयार हो गए और रायपुर में ही मेरे एक मित्र चिकित्सक के पास चले गए जिन्होंने उनकी पूरी तरह से जांच की। रिपोर्ट में बताया गया कि उनके शरीर में आयरन, कैल्शियम और फास्फोरस की बेहद कमी हो गई है। यही बात मेरा परीक्षण बता रहा था पर इसकी पुष्टि करना आवश्यक था। जब मैंने इस रिपोर्ट की चर्चा उन सज्जन से की तो उन्होंने कहा कि उन्हें तो इस बात की जानकारी है और इसके लिए उनके चिकित्सक कई सालों से उन्हें एक विशेष तरह का टॉनिक दे रहे हैं जिसमें पर्याप्त मात्रा में आयरन, कैल्शियम और फास्फोरस है फिर उसके बाद भी कैसे इनकी मेरे शरीर में कमी हो रही है। यह आश्चर्य का विषय है। 

मैंने उनसे कहा कि आपने जो मुझे रिपोर्ट भेजी है उसमें तो इस रिपोर्ट का जिक्र ही नहीं है तब उन्होंने कहा कि उन्होंने इसे महत्वपूर्ण नहीं समझा और जब वे इसके लिए टॉनिक ले रहे हैं तो उन्हें लगा कि अब इस समस्या का समाधान हो गया होगा।

 मैंने उनके द्वारा ली जा रही दवाओं की जांच की फिर उनसे कहा कि आप ऐसी दवाओं के नाम बताएं जिनका प्रयोग आप गर्दन की समस्या शुरू होने से पहले से कर रहे हैं। उन्होंने कहा काफी सोचा और उसके बाद फिर उन्होंने बताया कि इन समस्याओं के शुरू होने के बहुत साल पहले उन्हें पेशाब में जलन की समस्या थी जिसके लिए उन्होंने एक वैद्य की दवा ली थी। उस दवा के बारे में जब मैंने विस्तार से जानकारी ली तो मुझे पता चला कि यह अपामार्ग पर आधारित एक फार्मूला था जिसमें कि 9 प्रकार की जड़ी बूटियों का इस्तेमाल किया गया था। 

मुझे बताया गया है कि वे सज्जन लंबे समय से इस फार्मूले का लगातार उपयोग कर रहे हैं। मुझे उस फार्मूले में किसी भी प्रकार का कोई दोष नहीं नजर आया। इस फार्मूले के बारे में आयुर्वेद के ग्रंथों में लिखा है और यह भी लिखा है कि लंबे समय तक इसका प्रयोग किया जा सकता है बिना किसी नुकसान के।

 बातों ही बातों में उन सज्जन ने बताया कि उन्हें कब्ज की समस्या रहती थी। इसके लिए वे आधुनिक रेचक का प्रयोग करते थे पर जब उन्हें बताया गया कि आधुनिक रेचक के प्रयोग से उन्हें स्थाई रूप से हानि हो सकती है तब उन्होंने इसका प्रयोग बंद कर दिया और इसबगोल का प्रयोग करने लगे। वह लंबे समय से इसबगोल का प्रयोग कर रहे हैं और जब मैंने उनसे पूछा कि आप किस मात्रा में इसबगोल का प्रयोग करते हैं तो उनकी बताई गई मात्रा को सुनकर में आश्चर्यचकित रह गया। मैंने उन्हें बताया कि इसबगोल या किसी भी रेचक का प्रयोग लंबे समय तक लगातार नहीं किया जाना चाहिए और वह भी इतनी अधिक मात्रा में। आधुनिक अनुसंधान से पता चला है कि इसबगोल का प्रयोग लंबे समय तक करने से पेशाब और मल के माध्यम से आयरन, फास्फोरस और कैल्शियम शरीर के बाहर निकलने लग जाता है और उसकी जितनी भी आपूर्ति की जाए यह दोष खत्म नहीं होता है। इस बारे में तो पारंपरिक चिकित्सा में भी काफी कुछ लिखा गया है और आयुर्वेद के ग्रंथों में भी। मैं आपको यह भी बताना चाहता हूं कि ईसबगोल की इस मात्रा का आपकी अपामार्ग पर आधारित दवा से विपरीत प्रतिक्रिया हो रही होगी जिससे यह समस्या उग्र हो गई होगी।

 मैंने उन्हें ठहरने के लिए कहा और फिर जब अपने डेटाबेस का अध्ययन किया तो मुझे ऐसे 100 से अधिक मामले दिखे जिनमें अपामार्ग और इसबगोल के आपस में होने वाले इंटरेक्शन के बारे में विस्तार से बताया गया था। मैंने उनसे कहा कि वे अपामार्ग पर आधारित फॉर्मूलेशन का प्रयोग कुछ समय के लिए रोक दें और फिर मुझे बताएं कि उनकी कितनी समस्याओं का समाधान हुआ?

 1 महीने के बाद जब उन्होंने फिर से संपर्क किया तो बताया कि अब उनकी आधी से अधिक समस्या का समाधान हो गया है तब मैंने उनसे कहा कि आप अब इन समस्याओं के लिए दी जा रही दवाओं को पूरी तरह से बंद कर दे और अपामार्ग पर आधारित फार्मूले का प्रयोग फिर से शुरू कर दें। साथ ही ईसबगोल का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दें। इसके बाद फिर मुझे 15 दिनों के बाद बताएं। 15 दिनों के बाद जब उनका फिर से फोन आया तो उन्होंने बताया कि अब उनकी पूरी समस्या का समाधान हो गया है और उनका जीवन फिर से खुशहाल हो गया है।

नियमित रूप से पेट साफ होने के लिए मैंने उन्हें कई तरह की हस्त मुद्राएं बताई थी जिनका प्रयोग करने से अब उन्हें इसबगोल की आवश्यकता नहीं हो रही थी। उन्होंने बची खुची दवाओं को भी बंद कर दिया था और वे किसी भी तरह का टॉनिक नहीं ले रहे थे। मेरे सुझाव पर उन्होंने जब फिर से खून की जांच कराई तो उसमें आयरन, कैल्शियम और फास्फोरस का स्तर सही पाया गया अर्थात अब उनकी समस्या पूरी तरह से सुलझ चुकी थी।

 जब यह मामला सुलझा तो मुझे बार बार उन पारंपरिक चिकित्सकों की याद आती रही जिनके साथ मैंने अपने जिंदगी के कई साल बिताए और जो हमेशा कहते थे कि किसी भी तरह की हड़बड़ी की जरूरत नहीं है। एकदम से किसी चिकित्सा को आरंभ नहीं करना चाहिए बल्कि पहले रोग के कारण को जानना चाहिए और एक बार रोग के कारण का पता चल जाने पर फिर अपने आप ही समाधान निकल आता है।

 भले ही इसमें कितना भी समय लगे पर धैर्य रखना बहुत जरूरी है।


 सर्वाधिकार सुरक्षित


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