Consultation in Corona Period-262 Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
Consultation in Corona Period-262
Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"मेरी पोती की उम्र मात्र 4 साल है पर अभी से उसे हृदय की गंभीर समस्या हो गई है। इसी की जांच के लिए मैं दिल्ली आया हुआ हूँ। कल जो जांच हुई उससे पता चला कि यह अनुवांशिक कारण से हो रहा है और इसकी कोई चिकित्सा नहीं है। अब इसके साथ ही जीना होगा। हम बड़े निराश है। आज फिर चिकित्सक एक नई जांच करेंगे और बताएंगे कि हृदय की समस्या के साथ ही हाथ पैर की मांसपेशियां क्यों कमजोर होती जा रही है और क्या इसका भी कोई इलाज है या यह भी लाइलाज है?" दिल्ली से जब मेरे एक वैज्ञानिक मित्र का यह फोन आया तो उनके स्वर में बड़ी निराशा थी। उन्होंने संपर्क करने का उद्देश्य बताया कि दिल्ली के बाद वे सीधे ही रायपुर आना चाहते हैं ताकि मैं अपनी राय बिटिया की समस्या के लिए व्यक्त कर सकूं। मैंने उनका स्वागत किया और उन्हें एक निश्चित समय दे दिया।
इस बीच मैंने उनसे कहा कि यदि आप चाहें तो बिटिया से संबंधित सभी रिपोर्ट भेज सकते हैं। मैंने यह भी कहा कि मुझे बिटिया से बात करने में बहुत खुशी होगी तब वैज्ञानिक मित्र ने कहा कि वह तो ठीक से बात भी नहीं कर पाती है क्योंकि उसे जन्मजात ऑटिज्म की शिकायत है और उसके शब्द स्पष्ट नहीं हैं। वह एक जगह ठहरती भी नहीं है। वह तो अपने हृदय की समस्या के बारे में बता भी नहीं पा रही थी। बार-बार हृदय में हाथ रखती थी और गहरी सांसे लेती थी तब हमें ऐसा लगा कि एक बार चिकित्सक से मिलना चाहिए और ह्रदय की जांच करानी चाहिए। Autism से प्रभावित बच्चे अपनी व्यथा को बता नहीं पाते हैं इसलिए बहुत ही व्याकुल रहते हैं। उनको समझना एक कठिन पहेली के समान है।
उस दिन जब उन वैज्ञानिक महोदय ने अपनी पोती की जांच कराई तो दिल्ली के चिकित्सक ने कहा कि मांसपेशियों की समस्या भी लाइलाज है। उन्होंने कई तरह के अभ्यास बताए और कहा कि यह सभी समस्याएं दिमाग से जुड़ी हुई हैं और इसका कोई स्थाई समाधान नहीं है।
कुछ दिनों बाद निश्चित समय में मेरे वैज्ञानिक मित्र मुझसे मिलने आ गए। उनके साथ में उनकी पोती भी थी जो कि बहुत मासूम थी और चंचल भी। वैज्ञानिक मित्र ने बताया कि मौसम बदलने के कारण उसे हल्का सा बुखार आ गया है पर आज का अपॉइंटमेंट है इसलिए हम उसे कैसे भी लेकर आ गए हैं। मैंने पहले से तैयार रखा हुआ एक चॉकलेट का डिब्बा उस बच्ची को दिया और उसके पिता को अनुरोध किया कि वे वापस लौट जाएं। अब मुझे बच्ची की जांच करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं वैज्ञानिक मित्र से ही पूरी जानकारी ले लूंगा और मुझे लगता है कि उसी में ही समस्या का कारण छिपा होगा।
वैज्ञानिक मित्र से विस्तार से चर्चा होने लगी। उन्होंने बताया कि वे अपने शहर के प्रसिद्ध होम्योपैथिक चिकित्सक से ऑटिज्म के लिए दवाएं ले रहे हैं जो कि पिछले कई सालों से बिटिया को राहत पहुंचाने में लगे हुए हैं। ये होम्योपैथिक चिकित्सक 5 तरह की दवाओं का 1 दिन में प्रयोग करते हैं और दूसरे चिकित्सकों की तरह इन दवाओं के बारे में किसी भी तरह की जानकारी नहीं देते हैं। इसके अलावा Autism के लिए वे बनारस के वैद्य से भी दवा ले रहे थे। जब उन्होंने बनारस के उन वैद्य का नाम बताया तो मैंने उन्हें झट से पहचान लिया और अपने डेटाबेस को खंगालने पर मुझे जल्दी ही उनके द्वारा प्रयोग किए जा रहे फॉर्मूलेशन के बारे में जानकारी मिल गई। फिर भी मैंने सोचा कि एक बार क्यों न उन वैद्य से बात कर ली जाए क्योंकि वे जिस फॉर्मूलेशन का प्रयोग करते हैं उसमें किसी भी प्रकार का दोष नहीं है।
जब मैंने उन वैद्य से बात की तो उन्होंने कहा कि बच्चों के मामले मैं नहीं देखता हूँ। मेरा बेटा देखता है जो कि खुद एक वैद्य है। इसका मतलब था कि मैंने जिस फॉर्मूलेशन का अनुमान किया था उस फॉर्मूलेशन का प्रयोग वैद्य जी नहीं कर रहे थे। उनका बेटा किसी और फॉर्मूलेशन का उपयोग कर रहा था। बेटे से बात करने से यह बात स्पष्ट भी हो गई। विस्तार से बेटे से बात करने के बाद मैंने निश्चय किया कि एक बार मैं उन होम्योपैथी चिकित्सक से भी बात करूंगा। हो सकता है कि मेरा परिचय जानकर वे अपनी दवाओं के बारे में कुछ जानकारी दे दें ताकि मैं पता लगा सकूं कि इन दवाओं के कारण तो किसी तरह की समस्या नहीं हो रही है। यही मेरे काम करने का क्षेत्र है यानी बिना किसी दवा के यदि समस्या का समाधान निकल जाता है तो इससे अच्छी कोई बात हो नहीं सकती है। जब मैंने उन होम्योपैथी चिकित्सक से बात की तो उन्होंने कहा कि वे मुझे जानते हैं और उन्होंने मेरे एग्रो होम्योपैथी के शोध के आधार पर अपने बगीचे में कई तरह के प्रयोग किए हैं और उन्हें अच्छी सफलता मिली है। बात लंबी चलती रही पर वे उन दवाओं के नाम बताने के लिए तैयार नहीं हुए जिनका प्रयोग वे बिटिया पर कर रहे थे।
मैंने उल्टा प्रश्न करना शुरू किया और उनसे पूछा कि क्या उन दवाओं में यह दवा है या नहीं? मैंने 5 तरह की दवाओं के नाम लिए तो उन्होंने बताया कि हां, उनमें से एक दवा का उपयोग वे कर रहे हैं और इसमें किसी भी तरह की कोई गलत चीज नहीं है क्योंकि होम्योपैथी के साहित्य में इस दवा के प्रयोग के बारे में लिखा है और यह भी लिखा है कि इसके सही प्रयोग से अच्छी सफलता मिलती है।
बिटिया को पांच में से एक दवा के रूप में Tarantula नामक दवा दे रहे थे जो कि एक तरह की विषैली मकड़ी से तैयार की जाती है और Autism की एक अच्छी दवा मानी जाती है। होम्योपैथिक चिकित्सक और वैद्य से बात करने के बाद मैंने वैज्ञानिक मित्र से कहा कि आपके होम्योपैथी के चिकित्सक Tarantula का प्रयोग कर रहे हैं और वैद्य खुरासानी अजवायन पर आधारित एक नुस्खे का प्रयोग कर रहे हैं। खुरासानी अजवायन का प्रयोग छोटे बच्चों पर बहुत संभलकर किया जाता है क्योंकि यह एक जहरीली वनस्पति है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि Tarantula और खुरासानी अजवायन दोनों की ही दिमागी रोगों में अहम भूमिका है पर दोनों को एक साथ नहीं दिया जाता है। इनके बीच आपस में विपरीत प्रतिक्रिया होती है जिससे कि बहुत घातक लक्षण आते हैं और लंबे समय तक अधिक मात्रा में इन दोनों का प्रयोग करने से जान पर भी बना सकती है।
वैज्ञानिक मित्र से मैंने आगे कहा कि उनकी पोती को होने वाली हृदय की समस्या के लिए और साथ ही मांसपेशियों में दर्द के लिए यह ड्रग इंटरेक्शन ही जिम्मेदार है। संभवत: आपने होम्योपैथी के चिकित्सक को यह नहीं बताया होगा कि आप वैद्य से किसी तरह की दवा ले रहे हैं और इसी तरह वैद्य को भी नहीं बताया होगा कि आप होम्योपैथी की किसी दवा का प्रयोग कर रहे हैं। वैसे अगर आप यह बता भी देते तो आमतौर पर इन दोनों दवाओं को या कहें कि इन दोनों पद्धतियों की दवाओं को सुरक्षित मान लिया जाता है और यह भी मान लिया जाता है कि इनके बीच किसी भी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है। प्रतिक्रिया तो होती है। यह अलग बात है कि इस पर कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया है और इस पर सही ढंग से शोध नहीं हुआ है। कायदे से तो ड्रग इंटरेक्शन पर पूरी दुनिया में अभी अभी गम्भीर शोथ होने शुरू हुए हैं और वे भी आधुनिक दवाओं पर केंद्रित हैं। वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में उपयोग होने वाली दवाओं के बीच में किस तरह का इंटरेक्शन होता है। इस बारे में किसी भी तरह की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
मैंने वैज्ञानिक महोदय से कहा कि आप इन दोनों में से एक दवा का प्रयोग यदि बंद कर देंगे तो बिटिया की समस्या का समाधान हो जाएगा। अच्छा तो यही होगा कि इन दोनों दवाओं को बंद किया जाए क्योंकि इतनी घातक दवाओं का प्रयोग इतनी छोटी बच्ची के ऊपर करना ठीक नहीं है। आप चाहे तो दूसरे होम्योपैथिक चिकित्सक से बात कर सकते हैं सेकंड ओपिनियन लेने के लिए।
मुझे विश्वास है कि कोई दूसरे चिकित्सक जो कि इस दवा के बुरे प्रभाव को जानते होंगे वे कभी भी आपको इसका अनुमोदन नहीं करेंगे। यही हाल वैद्य महोदय का भी है। वे युवा है और उन्होंने अभी ज्यादा अनुभव प्राप्त नहीं किया है। यही कारण है कि उनसे इस तरह की गलती हो रही है।
वैज्ञानिक मित्र ने फैसला लेने में किसी भी तरह की देरी नहीं दिखाई और कहा कि वे कुछ महीनों तक इन दोनों दवाओं का प्रयोग रोक कर के देखेंगे फिर उसके बाद यदि मेरी बात सही निकली तो इन दोनों दवाओं को बंद कर देंगे हमेशा के लिए।
कई महीनों बाद जब उन्होंने फिर से दिल्ली का रुख किया और बिटिया की जांच कराई तो चिकित्सकों ने कह दिया कि अब बिटिया को हृदय की किसी भी तरह की समस्या नहीं है और साथ ही मांसपेशियां भी ठीक से काम कर रही हैं।
वैज्ञानिक मित्र ने कहा कि यह बात तो बिना किसी परीक्षण के बिटिया ने ही बता दी थी। अब उसने हृदय के ऊपर हाथ रखना बंद कर दिया है और उसकी समस्या का समाधान होने के बाद अब वह बहुत खुश रहने लगी है।
इस तरह ड्रग इंटरेक्शन पर किए गए शोध ने एक और जटिल समस्या का सरल समाधान कर दिया।
सभी ने राहत की सांस ली।
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