Consultation in Corona Period-74

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"शुरुआत लिंग (Penis) में बहुत अधिक खुजली से हुई फिर लिंग का चमड़ा इतना अधिक कड़ा हो गया कि उसका खुलना पूरी तरह से बंद हो गया। 


डॉक्टरों ने ऐसे फाइमोसिस का नाम दिया और कहा कि आप सर्जरी करवा लीजिए पर मैं इस सर्जरी के लिए तैयार नहीं था। 


मैंने इसका विकल्प उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि आप लिंग की लगातार सफाई करें और हर बार पेशाब जाने के बाद ऐसी व्यवस्था करें कि उसमें किसी भी प्रकार से नमी न रहे। 


इसके लिए मैंने एक विशेष व्यवस्था की। हमेशा अपने पास टिशू पेपर रखा करता था और हर बार पेशाब करने के बाद लिंग को उस टिशू पेपर से पूरी तरह से साफ कर लिया करता था। 


फाइमोसिस की समस्या धीरे-धीरे समाप्त होती गई फिर अचानक ही लिंग में एक गठान उभरने लगी।


 जब मैंने फिर डॉक्टरों की शरण ली तो उन्होंने कहा कि यह कैंसर हो सकता है इसलिए इसकी जांच आवश्यक है। 


जब बायोप्सी कराई गई तो यह कैंसर ही निकला पर यह बहुत ही आरंभिक अवस्था में था।


 डॉक्टरों की सलाह पर मैंने सर्जरी के लिए हां कर दी और सर्जरी के बाद वह गठान पूरी तरह से निकाल दी गई।


सर्जरी के 6 महीने बाद फिर से गठान हो गई। डॉक्टरों ने सर्जरी की सलाह दी तो मैंने साफ इंकार कर दिया।


 तब उन्होंने बहुत सारी दवायें दी जिससे कि यह गठान बैठ जाए पर उनसे गठान बैठी नहीं बल्कि और अधिक बढ़ने लगी।


 मैं बहुत असमंजस में था। मैंने बहुत सारे डॉक्टरों की सलाह ली।


 आयुर्वेदिक चिकित्सकों से भी सलाह ली और अंत में पारंपरिक चिकित्सकों के पास गया।


 उन्होंने कई तरह के लेप दिए पर किसी से भी पूरी तरह से लाभ नहीं हुआ और गठान का बढ़ना जारी रहा।


 डॉक्टर लगातार सर्जरी के लिए कहते रहे और कहा कि इसके अलावा इसका कोई विकल्प नहीं है।


 जब मैं इतने सारे डॉक्टरों से मिला हूं तो मुझे लगता है कि मुझे आपसे भी परामर्श लेना चाहिए। 


हो सकता है कि आप कुछ बता सकें।"


 उत्तर प्रदेश से आए 20 वर्षीय युवक ने जब अपनी समस्या बताई तो मैंने उससे कहा कि वह सारी रिपोर्ट मुझे दिखाये। 


रिपोर्टों का अध्ययन करने के बाद मुझे लगा कि यह वास्तव में कैंसर नहीं है और यदि है तो यह किसी कारण से पैदा हुआ कैंसर है और यह स्थाई नहीं है अर्थात इसका समाधान है।


 मैंने उसके द्वारा ली जा रही दवाओं पर अपना ध्यान केंद्रित किया और उन दवाओं में आपस में होने वाली सकारात्मक और नकारात्मक प्रतिक्रिया के विषय मे अध्ययन शुरू किया। 


इस अध्ययन के आधार पर मैंने उसे सलाह दी कि वह कुछ दवाओं को बंद करके देखे।


 हो सकता है कि इससे गठान अपने आप कम होने लगे या कम से कम बढ़ना रुक जाए। उसने मेरी सलाह मानी पर नतीजा सिफर ही रहा।


 जब उसने बताया कि वह अपनी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए च्यवनप्राश का उपयोग कर रहा है तो सारा ध्यान च्यवनप्राश पर केंद्रित हो गया।


 मैंने न केवल उससे च्यवनप्राश का सैंपल मंगाया बल्कि उसकी जांच भी की और सारे घटकों को पारंपरिक चिकित्सा की कड़ी कसौटी में कसा पर मुझे च्यवनप्राश में किसी भी प्रकार का दोष नजर नहीं आया।


 प्रयोग के लिए मैंने उसे सलाह दी कि वह इस च्यवनप्राश का सेवन कुछ समय के लिए रोक दें। 


जब उसने ऐसा किया तो गठान का बढ़ना कुछ समय के लिए रुक गया पर उसके बाद वह तेजी से बढ़ने लगी।


 इसका साफ अर्थ यही था कि च्यवनप्राश से किसी भी प्रकार की हानि नहीं हो रही थी।


 काफी सिर खपाने के बाद एक बात मन में आई और मैंने उस युवक से कहा कि वह जिस टिशू पेपर का इस्तेमाल करता है उसके नमूने मुझे भेजे।


 जब मैंने उस नमूने की स्थानीय लेबोरेटरी में जांच कराई तो सारा रहस्य खुल गया।


जांच में पता चला कि टिशू पेपर के निर्माण के समय उसमें Epichlorohydrin जैसे रसायनों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया गया था।


 विज्ञान इस बात को जानता है कि ऐसे रसायनों का अधिक मात्रा में प्रयोग टिशू पेपर को हानिकारक बना देता है। 


चूँकि लिंग की सतह बहुत ज्यादा कोमल होती है इसलिए टिशू को बार-बार यानी दिन में कई बार लिंग में लगाने से उन रसायनों का असर लिंग पर पड़ने लग जाता है और उससे कैंसर जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।


 मैंने उसी वक्त उसे कहा कि वह टिशू पेपर का प्रयोग कुछ समय तक करना छोड़ दें और उसके स्थान पर अच्छी गुणवत्ता के टिशू पेपर का इस्तेमाल करें। 


उसे यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ पर उसने मेरी बात मानने का फैसला किया।


 जल्दी ही इसके परिणाम सामने आने लगे। 


गठान का बढ़ना रुक गया और पांच से छह महीनों में ही बिना किसी दवा के गठान अपने आप गायब हो गई।


 मैंने उसे आगे सलाह दी कि वह भविष्य में टिशू पेपर का इस्तेमाल न करे और इसके स्थान पर कपास से बने हुए कपड़े का उपयोग करें और जब नमी को लिंग से पोछे तो उसमें किसी भी तरह की कड़ाई न बरते। 


साथ में यह भी हिदायत दी कि जब वह उस कपड़े को धोये तो किसी तेज डिटर्जेंट का इस्तेमाल न करे।


आधुनिक विज्ञान लिंग के कैंसर को लाइलाज मानता है और यह उस युवक के चिकित्सकों के लिए भी आश्चर्य की बात थी कि बिना किसी दवा के कैसे यह तथाकथित कैंसर पूरी तरह से समाप्त हो गया था।


 मैं सोचता हूँ कि ऐसे न जाने कितने बेकसूर लोग जो टिशू पेपर का इस तरह से उपयोग करते हैं अनजाने ही घातक रोगों के शिकार हो जाते होंगे।


नियम से हर टिशू पेपर के डब्बे पर लिखा जाना चाहिए कि इसमें Epichlorohydrin जैसे हानिकारक रसायन कितनी मात्रा में है और उनकी प्रोसेसिंग ठीक से की गई है या नहीं की गई है।


 पिछले 20 सालों में टिशू पेपर के कारण होने वाले इस तथाकथित लिंग कैंसर का यह मेरा 3220 वां मामला था।


 यह अच्छी बात रही कि इस ओर समय पर ध्यान चला गया और उसकी समस्या का समाधान हो गया। 


सर्वाधिकार सुरक्षित

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