Consultation in Corona Period-68
Consultation in Corona Period-68
Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"पिछले 10 सालों से मेरा शरीर बहुत अधिक कमजोर होता जा रहा है। तरह-तरह के रोग पकड़ रहे हैं।
मेरे चिकित्सक कहते हैं कि ऐसा डायबिटीज के कारण हो रहा है।
डायबिटीज जब बहुत ज्यादा बढ़ जाता है तो शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करता है और ऐसी कमजोरी आती है।
20 साल पहले जब मुझे पहली बार डायबिटीज का पता चला था तो मैंने अपने शरीर को बहुत अच्छे से रखना शुरू कर दिया था।
मैं नियमित व्यायाम करता था और दवा के नाम पर केवल एक गुड़मार का शास्त्रीय फार्मूला उपयोग करता था। इससे कभी भी मेरा ब्लड शुगर नहीं बढ़ा।
हमेशा ही सीमा में रहा पर आज 20 वर्षों बाद मुझे बताया जा रहा है कि डायबिटीज के कारण मेरे शरीर की ऐसी बुरी हालत हो रही है जबकि मैंने पूरे समय डायबिटीज को नियंत्रण में रखा। फिर क्यों मेरे शरीर की ऐसी हालत हो रही है?
यह कोई नहीं बता पा रहा है। मैंने आपसे परामर्श के लिए इसलिए समय लिया है।"
मध्य प्रदेश के एक सज्जन ने कुछ वर्षों पहले मुझसे परामर्श के लिए समय मांगा तो मैंने कहा कि मैं उनकी मदद करूंगा।
उनकी आयु 50 वर्ष थी और उनको बहुत सारी शारीरिक तकलीफें थी। दवा के नाम पर वे केवल गुड़मार के फार्मूले का उपयोग कर रहे थे और जैसा कि उन्होंने बताया कि पिछले 20 वर्षों से वे इस फार्मूले का उपयोग कर रहे थे।
उन्होंने यह भी बताया कि उनके चिकित्सक कहते हैं कि एजिंग के कारण उन्हें तरह-तरह की समस्याएं हो रही है और 50 के बाद जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाएगी वैसे-वैसे नई समस्याएं आती जाएंगी।
मैंने उनसे कहा कि मैं चिकित्सक नहीं हूं पर अपने अनुभव के आधार पर आपको यह बता सकता हूं कि आप किस तरह की भोजन सामग्री का प्रयोग करें जिससे आपकी सेहत ठीक हो सके।
मैंने उनसे कहा कि हो सकता है कि गुड़मार के नुस्खे से ऐसी समस्या हो रही हो। इसलिए बेहतर यह होगा कि आप जहाँ से गुड़मार का नुस्खा लेते हैं वही नुस्खा आप दूसरी जगह से लें।
हो सकता है कि इससे आपकी समस्या का समाधान हो जाए।
भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में कई प्रकार के मेडिसनल राइस का प्रयोग किया जाता है उन लक्षणों के लिए जिस प्रकार के लक्षण आपको आ रहे हैं।
मैं आपको बस्तर के कुछ पारंपरिक चिकित्सकों के पते देता हूं। आप उनसे जाकर मिलें।
वे आपकी जांच करके यह बतायेंगे कि कौन सा मेडिसिनल राइस आपके लिए उपयुक्त है। फिर आप उनके परामर्श अनुसार उनका प्रयोग शुरु कर दीजियेगा।
उन्होंने मेरी बात मानी और फिर पारंपरिक चिकित्सकों से मिलने बस्तर चले गए।
कुछ महीनों बाद उन्होंने फिर से संपर्क किया और कहा कि उनकी समस्या का किसी भी प्रकार से समाधान नहीं हुआ है।
उसके बाद मैंने उन्हें महाराष्ट्र के पारंपरिक चिकित्सकों के पास भेजा पर उनसे भी उन्हें किसी प्रकार का लाभ नहीं हुआ।
इस बार जब उन्होंने फोन किया तो वे बहुत ज्यादा अशक्त हो चुके थे।
बिस्तर से उठ भी नहीं पा रहे थे। उनका शरीर तेजी से कमजोर होता जा रहा था और उनकी चलने फिरने की शक्ति समाप्त हो चुकी थी।
इस बार उन्होंने कम बात की और उनके बेटे ने ज्यादा।
उनके बेटे ने कहा कि अगर संभव हो तो आप एक बार उनके गांव आ जाएं। वे आने जाने का पूरा प्रबंध कर देंगे और पिताजी को देख कर अच्छे से बतायें कि उनकी समस्या की जड़ क्या है।
मैंने उन्हें कहा कि अभी तो लाकडाउन है। लाकडाउन खुलने के बाद मैं कोशिश करूँगा कि आपके गांव आ सकूँ और आपके पिताजी को देख सकूँ।
उनके लड़के ने बताया कि उनका मुख्य व्यवसाय खेती है और वे पिछले 10-15 सालों से औषधीय फसलों की खेती कर रहे हैं।
उन्होंने जब इस खेती के बारे में विस्तार से बताया तो मुझे उत्सुकता हुई कि मैं जरूर एक बार उनके गांव जाऊँ उनके फार्म को भी देखूँ और साथ ही उनके पिताजी को भी। एक पंथ दो काज।
लाकडाउन खुलने के बाद जब मैं उनके पिताजी से मिलने गया तो उनकी हालत और अधिक बिगड़ चुकी थी। किसी भी तरह की दवा का असर नहीं हो रहा था।
दिल्ली में जब उन्होंने एक बड़े चिकित्सालय में दिखाया तो वहाँ बताया गया कि उन्हें नर्वस सिस्टम का कोई रोग हो गया है जिसके कारण उनकी ऐसी हालत हो गई है और इस रोग की किसी भी प्रकार की कोई चिकित्सा नहीं है।
गुड़मार के नुस्खे का प्रयोग वे अभी कर रहे थे और उसके कारण उनका डायबिटीज अभी भी नियंत्रण में था।
मैंने उन्हें सलाह दी कि आप कुछ समय तक इस नुस्खे का प्रयोग बंद करके देखे। हो सकता है कि आपकी समस्या का समाधान हो जाए।
गुड़मार के नुस्खे के विकल्प के रूप में मैंने एक दूसरा नुस्खा सुझाया जिसकी सहायता से वे अपने डायबिटीज को कंट्रोल कर सकते थे।
वे इस बात के लिए तैयार हो गए और जब उन्होंने एक महीने के लिए गुड़मार के नुस्खे का प्रयोग बंद किया तो उनकी स्थिति में सुधार होने लगा।
यह मेरे लिए भी आश्चर्य की बात थी और उनके लिए भी क्योंकि गुड़मार के नुस्खे से ऐसी कोई समस्या नहीं हो सकती थी।
यह हम दोनों जानते थे फिर उसे बंद करने से स्थिति में अचानक से सुधार होने लगा था। इसका कारण जानना जरूरी था।
दूसरी बार जब मैं उनके गांव गया और उनके फार्म का भ्रमण कर रहा था तब मुझे बताया गया कि वे यहां तरह-तरह के चावल की खेती करते हैं और चावल के साथ कई तरह के नए प्रयोग भी करते हैं।
उन्होंने बताया कि स्थानीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अनुमोदन पर उन्होंने धान के साथ एकोरस (बच) की खेती शुरू की और इससे उन्हें बहुत अधिक आर्थिक लाभ हो रहा है।
धान और एकोरस दोनों को एक ही तरह की परिस्थिति की जरूरत है और दोनों ही पानी वाले खेत में अच्छे से बढ़ते हैं इसलिए उन्होंने इस तरह की मिश्रित खेती आरंभ की और अब धान के खेतों से अधिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
उन्होंने मेरे एक शोध पत्र का जिक्र किया जो कि इंटरनेशनल राइस रिसर्च नोट्स में प्रकाशित हुआ था इस सदी की शुरुआत में।
इसमें बताया गया था कि धान के साथ एकोरस की खेती की जा सकती है।
मैंने उन्हें बताया कि वह शोध पत्र आरंभिक अनुसंधान निष्कर्षों के आधार पर तैयार किया गया था।
बाद में हमने जब इस पर विस्तार से शोध किया और यह जानने की कोशिश की कि धान और एकोरस को एक साथ लगाने पर धान का एकोरस की गुणवत्ता पर क्या प्रभाव पड़ता है और इसी तरह एकोरस का धान की गुणवत्ता पर क्या प्रभाव पड़ता है तो हमें बहुत ही चौंकाने वाले नतीजे प्राप्त हुए।
हम उसे शोध पत्र के रुप मे प्रकाशित तो नहीं कर पाए पर बाद में मैंने अपने लेखों के माध्यम से किसानों को यह बताने की कोशिश की कि जब भी धान के साथ एकोरस की खेती की जाए तो बहुत संभलकर की जाए।
धान के खेत में एकोरस की अधिक संख्या होने पर चावल में एकोरस के रसायन आ सकते हैं और उससे नाना प्रकार की स्वास्थ समस्याएं हो सकती हैं।
मैंने विश्वविद्यालय को भी लिखा था कि वे इस प्रकार के अनुमोदन करना बंद करें अन्यथा जन स्वास्थ को बड़ी हानि हो सकती है।
फिर फार्म से वापस लौट कर मैंने उन्हें विस्तार से समझाया कि हो सकता है कि आपके पिताजी जो गुड़मार का नुस्खा इस्तेमाल कर रहे हैं उसकी एकोरस के रसायन से प्रभावित चावल के साथ नकारात्मक प्रतिक्रिया हो रही हो।
क्या आप इसी चावल का प्रयोग पिछले कई वर्षों से कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि हाँ, हमारा पूरा परिवार इसी चावल का उपयोग करता हैं। यह मानकर कि एकोरस के साथ उगाने पर इसके औषधीय गुणों में वृद्धि हो जाती है।
मैंने उनके पिताजी को सलाह दी कि वे फिर से गुड़मार का नुस्खा लेना शुरू करें पर इस बार चावल का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दें।
जब उन्होंने ऐसा किया तो उनके स्वास्थ में किसी भी प्रकार की कमी नहीं हुई और सब कुछ सामान्य चलता रहा। धीरे-धीरे वे पूरी तरह से स्वस्थ हो गए।
उनकी सारी समस्याएं डायबीटीज के कारण नही थी बल्कि एकोरस के साथ उगाए गए चावल और गुड़मार के नुस्खे के बीच होने वाली नकारात्मक प्रतिक्रिया थी।
इस तरह इस समस्या का समाधान मिल गया था।
उन्होंने पूछा कि कृषि विश्वविद्यालय इस तरह के अनुमोदनो से पहले खुद क्यों नहीं जांच करता कि दो फसलों को पास-पास लगाने से या मिश्रित फसल के रूप में लगाने से दोनों फसलों की गुणवत्ता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
मैंने कहा कि आपकी बात सही है कि कृषि वैज्ञानिक इस पर ध्यान नहीं देते हैं। उनका ध्यान केवल उत्पादन पर रहता है।
नियम से इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए और पूरी तरह से उत्पाद की गुणवत्ता की जांच करने के बाद ही उन्हें ऐसी पद्धतियों को किसानों को बताना चाहिए।
हर कृषि विश्वविद्यालय में एक मेडिकल अनुसंधान की शाखा भी होनी चाहिए जो कि उनके नए प्रयोगों के जन स्वास्थ पर पड़ने वाले प्रभाव का लगातार अध्ययन कर सकें।
मैंने कहा कि आप अभी से ही धान के साथ एकोरस की खेती करना छोड़ दें क्योंकि यह चावल आप बाजार में भी बेच रहे हैं और उससे न जाने कितने लोगों के स्वास्थ को नुकसान हो रहा होगा।
जब तक इस पर विस्तार से अनुसंधान न हो जाए तब तक इस तरह की खेती से बचा जाए।
इसी में ही सबकी भलाई है।
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