Consultation in Corona Period-64
Consultation in Corona Period-64
Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"6 में से 4 युवकों की हालत बहुत खराब है और ऐसा लगता है कि वे अब एक से दो घंटे से अधिक नहीं जी पाएंगे।
दो युवकों की हालत ठीक है पर हमें यह नहीं पता चल पा रहा है कि उनको ये लक्षण क्यों आ रहे हैं।
अगर हमें यह बात पता चल जाए कि इन लक्षणों का कारण क्या है तो हम बहुत तेज गति से उनकी चिकित्सा कर पाएंगे और सम्भव है कि उन सभी को बचा पाएंगे।"
मुंबई के एक जाने-माने अस्पताल के डायरेक्टर मुझसे फोन पर बात कर रहे थे।
उन्होंने बताया कि 6 युवकों को अर्ध बेहोशी की अवस्था में उत्तराखंड से एअरलिफ्ट किया गया है और उन्हें मुंबई के उनके अस्पताल में भर्ती किया गया है।
उनके शरीर का तापक्रम तेजी से घटता जा रहा है और उनके गले की मांसपेशियां संकुचित होती जा रही है जिससे उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही है।
उन्होंने सभी युवकों का वीडियो बनाकर मुझे भेजा।
मुझे बताया गया कि सभी युवक ट्रैकिंग में गए थे और वे सभी बेस कैंप में बेसुध पाए गए।
गांव वालों ने उन्हें देखा और फिर आनन-फानन में उन्हें मुंबई एयर लिफ्ट किया गया।
मैंने डायरेक्टर साहब से कहा कि मैं उनकी मदद करूंगा।
मैंने पूछा कि जो दो युवक थोड़ी कम गंभीर अवस्था में है उनसे आप पूछें कि क्या उन्होंने जंगल में किसी प्रकार की वनस्पति का सेवन किया था या किसी ने उन्हें जानबूझकर कुछ खिला दिया है?
अगर वे कुछ बता सके तो बहुत ज्यादा मदद होगी। उन्होंने इस बात की कोशिश की और उसके अच्छे परिणाम निकले।
उनमें से एक युवक ने बताया कि वे एक दुर्लभ जड़ी बूटी की तलाश में ट्रैकिंग में गए थे। जड़ी बूटी के बारे में एक साधु ने बताया था और उन्हें आश्वासन दिया था कि अगर वे इसका प्रयोग करेंगे तो उनके बाल कभी नहीं झड़ेंगे।
उसने आगे बताया कि हम लोग बहुत देर तक उस दुर्लभ जड़ी बूटी की तलाश करते रहे फिर जब हमें वह मिली तो हम लोगों ने उसकी खुदाई शुरू की।
उसकी जड़ें बहुत गहरी थी और पहाड़ बहुत पथरीला था। काफी मशक्कत के बाद जब कंद हमें मिले तो सबसे पहले खुदाई करने वाले दो साथियों ने इसका स्वाद चखा।
उसके बाद दो और साथियों ने इसका स्वाद लिया। हम दोनो ने उस कंद को रख लिया यह सोच कर कि हम बेस कैंप में लौट कर इसका प्रयोग करेंगे।
बेस कैंप आते तक उन चारों साथियों की हालत बिगड़ने लगी थी। वे बता रहे थे कि उनकी नाक, मुंह, गले में झनझनाहट हो रही है और तेज जलन हो रही है।
उन्हें तब तक इस बात की खबर नहीं थी कि यह उसी कंद को खाने के कारण हो रहा है या किसी दूसरे कारण से।
उनके मुंह से बहुत अधिक लार निकल रही थी और गले में जकड़न महसूस हो रही थी।
बेस कैंप में पहुंचने के बाद उन्होंने एंटी एलर्जी मेडिसिन का प्रयोग किया जबकि हम दोनों ने हर्बल टी के साथ लाए हुए कंद का स्वाद लिया।
एंटी एलर्जी मेडिसिन लेने के बाद भी उनकी हालत में किसी तरह का सुधार नहीं हुआ और उनका शरीर तेजी से ठंडा पड़ता गया तब हमें खतरे का एहसास हुआ।
हमारी हालत भी उस समय तक बिगड़ने लगी थी। हमारे ओंठ, मुंह और गले में वैसी ही जलन हो रही थी तब हमें लगा कि हो सकता है कि यह कंद के कारण हो।
पर साधु ने तो बताया था कि इसे खाने से किसी भी तरह की समस्या नहीं होगी बल्कि यह स्वाद में मीठा लगेगा और इससे बहुत अधिक शक्ति मिलेगी। सारी थकान पूरी तरह से ठीक हो जाएगी। पर यहाँ तो उल्टा हो रहा था। यह कहकर उसने अपनी बात खत्म की।
सभी युवक संपन्न घरों के थे। उनके घरों में जैसे ही सूचना मिली कि सब गंभीर हालत में है तो उन्होंने आनन-फानन में हेलीकॉप्टर की व्यवस्था करके उन्हें मुंबई बुलवा लिया।
युवक की बातों से मुझे बहुत ज्यादा मदद मिली और मैंने तुरंत ही डायरेक्टर साहब को कहा कि इस विष की पहचान हो गई है पर जिस मात्रा में इन्होंने इस विष को खाया है उससे तो 6 से 7 घंटों के अंदर इनकी मृत्यु हो जानी चाहिए थी।
यह सौभाग्य की बात है कि ये सभी अभी तक जीवित है जबकि इन्हें कंद का सेवन किए 12 से 13 घंटे हो चुके हैं।
डायरेक्टर साहब ने अपने अस्पताल के विशेषज्ञों से चर्चा की और फिर मुझे फोन किया कि हमारे पास इसका कोई भी एंटीडोट नहीं है।
हमें यह नहीं मालूम कि कैसे इस विष को इतने लंबे समय बाद निष्प्रभावी किया जा सकता है। आप इस बारे में अगर कोई मार्गदर्शन दे सकते हैं तो तुरंत दीजिए।
मैंने उन्हें बताया कि भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में अपान मणि नामक मेडिसिनल राइस का प्रयोग इस विष को खत्म करने के लिए किया जाता है। पर जिस अवधि तक यह मेडिसनल राइस प्रभावी होता है वह अवधि गुजर चुकी है इसलिए यह प्रभावी नहीं होगा।
अगर मैं किसी भी तरह से रायपुर से इसे भेजने की व्यवस्था करूं तो भी यह 6 से 7 घंटों के पहले मुंबई नहीं पहुंच पाएगा और तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
मेरे परिचित के एक बॉटेनिस्ट है मुंबई में। अगर आप उनकी सेवाएं ले सके तो वे आपको एक बूटी एकत्र करके दे देंगे जो इस अवस्था में इन युवकों की कुछ मदद कर सकती है।
यह बूटी गोरेगांव के अरेरा मिल्क कॉलोनी में आसानी से मिल जाएगी और मेरे बॉटेनिस्ट मित्र इसे जानते हैं।
डायरेक्टर साहब ने धन्यवाद दिया और उन्होंने तुरंत ही उस मित्र से संपर्क साधा पर लॉकडाउन के चलते वह मित्र उनकी मदद नहीं कर पाया।
डायरेक्टर साहब ने जब मुझसे फिर से संपर्क किया तो मैंने उन्हें सलाह दी कि आप हल्दी का प्रबंध करिए और मंजिष्ठ का भी।
ये आपको किसी भी आयुर्वेद फार्मेसी में मिल जाएगा। फिर उन्हें सलाह दी कि आप हल्दी और मंजिष्ठ का दूध के साथ अलग-अलग घोल बनाइए।
पहले हल्दी के घोल को युवकों के पैरों में विशेषकर तलवों में लेपित करिए। जब यह लेप सूख जाए तो तुरंत मंजिष्ठ के घोल का इसी तरह प्रयोग करिए। एकांतर क्रम में यह प्रयोग जारी रखिए। इससे विष धीमी गति से ही सही पर निष्प्रभावी होगा।
मैन ये भी कहा कि वे सभी युवकों की किडनी पर विशेष ध्यान दें और उनके पास यदि कोई Renoprotective मेडिसिन है तो उसका प्रयोग करें क्योंकि यह विष किडनी को बुरी तरह से प्रभावित करता है।
डायरेक्टर साहब ने आनन-फानन में हल्दी और मंजिष्ठ की खोज शुरू की। उनका फोन आया कि ये दोनों ही औषधीयाँ मिल गई है। पर तब तक छह में से चार युवकों की जान जा चुकी थी और दो बड़ी ही गंभीर अवस्था में थे।
दोनों के पैरों में इन्हें लगाने का क्रम लंबे समय तक अनवरत चलता रहा। धीरे-धीरे उन दो युवकों की तबीयत में सुधार होने लगा और दो दिनों के बाद वे खतरे से बाहर आ गए।
इस घटना के बाद फिर कई हफ्तों तक उनसे संपर्क नहीं हुआ। उसके बाद पुलिस ने मुझसे संपर्क किया।
चारों युवकों की मृत्यु को हत्या मानकर पुलिस उसकी जांच कर रही थी। उन्हें बताया गया था कि आपातकाल में मैंने अस्पताल की बहुत मदद की थी और मैंने विष की पहचान भी कर ली थी।
मैंने पुलिस को पूरी जानकारी दी और बताया कि ऑटोप्सी में कैसे सैंपल लेना है जिससे कि उस विष की पुष्टि हो सके।
पुलिस ने साधु को भी गिरफ्तार कर लिया था। मुझे बताया गया कि साधु लगातार यह कह रहे थे कि उन्होंने जिस कंद की जानकारी दी थी उससे ऐसे लक्षण कभी नहीं आ सकते।
और उन्होंने यह भी कहा कि कंद का उपयोग करने से पहले उन्होंने युवकों को कहा था कि एक बार उन्हें जरूर दिखा ले और युवकों ने ऐसा नहीं किया।
चूंकि सभी युवक संपन्न परिवारों के थे इसलिए यह माना जा रहा था कि साधु ने षडयंत्रपूर्वक उन्हें जहर दिया है।
इस सन्दर्भ में दोनों युवक से जब मैंने बात की तो सारी स्थिति का धीरे-धीरे खुलासा हुआ।
उन्होंने जिस कंद का उपयोग किया था वह दूसरा कंद था न कि वह कंद जिसकी सलाह साधु ने दी थी। वह एक बहुत जहरीला कंद था जिसके पर्याप्त शोधन के बाद ही उसका उपयोग किया जाता है।
वैज्ञानिक भाषा में उसे एकोनाइट कहा जाता है और यह एक तीव्र विष होता है। इससे बच पाना बड़ा मुश्किल होता है।
बालों के लिए साधु ने जो कंद बताया था वह वास्तव में बड़ा उपयोगी है- ऐसा मैंने युवकों को बताया।
"पर तुम लोगों को किसी विशेषज्ञ को दिखा लेने के बाद ही जंगली कंद का उपयोग करना था। अगर तुम ऐसा करते तो इस तरह का बड़ा हादसा नहीं होता और चार साथियों को बेमौत नहीं मरना पड़ता।" मैंने कहा।
पुलिस और फॉरेंसिक विशेषज्ञों ने धन्यवाद ज्ञापित किया। अस्पताल के डायरेक्टर साहब ने भी कहा कि हम आगे भी आपसे इसी तरह की सेवाएं लेते रहेंगे।
मुझे इस बात का अफसोस रहा कि अगर मुझे थोड़ा पहले इसके बारे में बताया गया होता तो निश्चित ही आज सभी युवक जीवित रहते।
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