Consultation in Corona Period-72

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"मेरे 55 वर्षीय पिता जी को जब पार्किंसन का पता चला तो मैं सबसे पहले उन्हें हरिद्वार लेकर गया और वहां के चिकित्सकों को पूरी रिपोर्ट दिखाई।


 वहां हमारे परिचित के एक वैज्ञानिक थे जो कि वहां के चिकित्सालय में अनुसंधान कर रहे थे।


 उन्होंने सलाह दी कि आप रायपुर में पंकज अवधिया से मिलें। उन्होंने पार्किंसन के विषय में विस्तार से शोध किया है और वही सही दिशा में मार्गदर्शन कर सकते हैं। क्योंकि आधुनिक चिकित्सा पद्धति में इसके लिए बहुत कम दवाएं उपलब्ध है।


 उनकी सलाह मानकर हम आपसे मिलने जब रायपुर आए तो आपने कहा कि लक्षणों के आधार पर भले ही यह पार्किंसन लगता हो पर आपको लगता था कि यह वास्तव में पार्किंसन रोग नहीं है।


 आपने अपने परिचित के एक पारंपरिक चिकित्सक के पास यह पता लगाने के लिए भेजा कि क्या वास्तव में यह पार्किंसन है या पार्किंसन जैसे लक्षणों वाला रोग। 


बस्तर के पारंपरिक चिकित्सक ने पिताजी के पैरों में कई तरह के लेप लगाए।


 दो दिनों तक वे परीक्षण करते रहे और उसके बाद उन्होंने साफ कह दिया कि यह पार्किंसन रोग नहीं है बल्कि पार्किंसन रोग जैसे लक्षण वाला दूसरा रोग है जो कि स्थाई न होकर अस्थाई है। 


हम फिर जब आपके पास वापस आए तो आपने अपने न्यूरोलॉजिस्ट दोस्त के पास भेजा जिन्होंने जांच करके इस बात की पुष्टि की कि यह वास्तव में पार्किंसन नहीं है और फिर उन्होंने सारी रिपोर्ट देखने के बाद बताया कि पिताजी को जो पेट के अल्सर के लिए दवा दी जा रही है उसके कारण ही पार्किंसन जैसे लक्षण आ रहे हैं।


 उन्होंने सलाह दी कि अगर इस दवा को बंद कर दिया जाए और इस दवा के विकल्प के रूप में दूसरी दवा का प्रयोग किया जाए तो पार्किंसन जैसे लक्षण पूरी तरह से समाप्त हो सकते हैं।


 न्यूरोलॉजिस्ट की सलाह मानकर हमने दिल्ली के उस डॉक्टर से संपर्क किया है जो कि पिताजी के पेट के अल्सर का इलाज कर रहे थे। 


उन्होंने दवा बदल दी और 15 से 20 दिनों में पार्किंसन जैसे लक्षण कम होने लगे पर पूरी तरह से नहीं गए।


 इसके एक महीने बाद फिर से पूरे लक्षण वापस आ गए और उनकी स्थिति वैसी ही हो गई।


 दिल्ली के डॉक्टरों ने बताया कि इन्हें वास्तव में पार्किंसन है न कि दवाओं के कारण अस्थाई रूप से हुआ पार्किंसन।


 उनकी बात मान कर हम लम्बे समय तक पार्किंसन की चिकित्सा कराते रहे पर किसी भी तरह का कोई लाभ नहीं होने पर हमने फिर से आप से सलाह लेने का मन बनाया है। क्या आप हमारा मार्गदर्शन करेंगे?"


 दिल्ली से आए इस संदेश को मैंने गंभीरता से लिया। 


मुझे इस केस में विशेष रूचि थी क्योंकि मुझे भी न्यूरोलॉजिस्ट की तरह ही लग रहा था कि यह पेट के अल्सर की दवा के कारण उत्पन्न हुआ अस्थाई पार्किंसन रोग है पर जब दवा बंद कर देने के बाद भी यह रोग उग्र रूप धारण किए हुए था तो यह हमारे लिए आश्चर्य का विषय था और एक तरह से चैलेंज भी।


 मैंने अपने न्यूरोलॉजिस्ट दोस्त से इस बारे में बात की और उन्हें कहा कि जब दिल्ली के सज्जन मुझसे मिलने आएंगे तो आप भी मेरे घर पधारें ताकि इस केस पर विस्तार से चर्चा हो सके।


 उन्होंने मेरी बात मानी और नियत समय पर घर पर आ गए। दिल्ली के सज्जन के पिताजी की हालत सचमुच बड़ी गंभीर थी।


 उनकी पार्किंसन की समस्या पहले से अधिक बढ़ गई थी। 


सज्जन ने बताया कि उत्तर प्रदेश के एक वैद्य से वे कुछ दवाएं ले रहे हैं पर इससे भी अधिक लाभ नहीं हो रहा है और स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है।


 मैंने उन सज्जन से पूछा कि आपके पिताजी को कौन-कौन से रोग हैं और किस तरह की दवाएं चल रही है उसके बारे में विस्तार से बताएं और यह भी बताएं कि वे लंबे समय से किस तरह की खाद्य सामग्रियों का प्रयोग कर रहे हैं। 


क्या अभी दूध का लंबे समय से प्रयोग कर रहे हैं? क्या घर में ग्रेनाइट और मार्बल बहुत अधिक मात्रा में लगा हुआ है विशेषकर बेडरूम में? क्या वे किसी विशेष प्रकार के रत्नों का प्रयोग कर रहे हैं? आदि आदि।


 चार घंटों की लंबी चर्चा के बाद मैंने उनसे कहा कि आपके पिताजी पिछले 10 वर्षों से लगातार हर मौसम में च्यवनप्राश का उपयोग कर रहे हैं। आप इस च्यवनप्राश का ब्रांड बदल कर देखें और फिर 20 दिनों के बाद मुझे बताएं। 


उन्होंने पूछा कि क्या आप हमें किसी प्रकार की दवा नहीं देंगे?


 तो मैंने कहा कि मैं चिकित्सक नहीं हूं और दवा देना मेरे अधिकार क्षेत्र के बाहर है। 


आप मेरी सलाह अगर मानना चाहते हैं तो माने और यह छोटा सा प्रयोग करके देखें। उसके बाद फिर मुझे बताएं। 


 वे इस बात के लिए तैयार हो गए। 


एक महीने बाद जब उन्होंने फिर से मुझसे परामर्श लेने का समय लिया तो उन्होंने खुशखबरी बताई कि अब पार्किंसन जैसे लक्षण पूरी तरह से समाप्त होते जा रहे हैं और वे लंबे समय से जिस ब्रांड के च्यवनप्राश का उपयोग कर रहे थे अब इस ब्रांड के च्यवनप्राश का उपयोग नहीं कर रहे हैं। उसके स्थान पर दूसरे ब्रांड के च्यवनप्राश का उपयोग कर रहे हैं।


उन्होंने सीधा सवाल किया कि क्या च्यवनप्राश के कारण पार्किंसन जैसे लक्षण आ रहे थे?


 मैंने उन्हें विस्तार से बताया कि च्यवनप्राश में बेल को एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में डाला जाता है। 


जब बेल में एक विशेष प्रकार के रोग का आक्रमण होता है और उसका नियंत्रण नहीं किया जाता है तो बेल के फलों में एक तरह का विकार पैदा हो जाता है और ऐसे फलों को च्यवनप्राश में उपयोग करने से कई प्रकार के दिमागी रोग उत्पन्न हो जाते हैं। 


बेल के इस रोग का नाम है अल्टरनरिया लीफ ब्लाइट।


जब फलों को किसी बागीचे से लिया जाता है या ऐसी जगह से लिया जाता है जहां बेल की खेती की जाती है तो वहां किसान इस बीमारी को नियंत्रित कर लेते हैं और बेल के फलों में किसी प्रकार का दोष उत्पन्न नहीं होता है लेकिन जंगल में होने वाले बेल में जब इस बीमारी का प्रकोप होता है तो उसकी चिकित्सा किसी भी प्रकार से नहीं होती है।


जंगल से इसे एकत्र करने वाले वनवासी इस बात को नहीं जानते हैं कि ऐसे बेल के वृक्ष से फल नहीं एकत्र करने चाहिए। 


वे तो बस आंख मूंदकर सभी वृक्षों से फलों को एकत्र कर लेते हैं और उन्हें व्यापारियों के पास बेच देते हैं।


 जब फल च्यवनप्राश बनाने वाली कंपनियों के पास पहुंचते हैं तब उन्हें इस बात का बिल्कुल भी आभास नहीं होता कि ये रोगयुक्त वृक्ष से एकत्रित किये गए हैं और यहीं सब गड़बड़ हो जाती है।


 देश के कुछ इलाकों में पिछले कुछ सालों से लगातार यह बीमारी हो रही है और उन इलाकों से एकत्र बेल से तैयार किया गया च्यवनप्राश दोषयुक्त होता है।


दोषयुक्त बेल के फल का उपयोग करने से च्यवनप्राश के स्वाद में कोई परिवर्तन नहीं आता है न ही उसका रूप बदलता है पर जब इसे लोग लंबे समय तक प्रयोग करते हैं तब पार्किंसन जैसे लक्षण आते हैं।


मैंने उन्हें यह भी सलाह दी कि आगे से जब भी इस तरह के लक्षण आए तो आप तुरंत ही च्यवनप्राश का ब्रांड बदल दीजियेगा।


 मैं आपको यह सलाह नही दे सकता कि आप किस ब्रांड का च्यवनप्राश उपयोग करें क्योंकि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि कोई च्यवनप्राश इस तरह की गड़बड़ियों से पूरी तरह मुक्त हो। 


यह जानकारी मेरे न्यूरोलॉजिस्ट दोस्त के लिए भी पूरी तरह से नई थी। 


उन्होंने कहा कि इस बारे में आधुनिक विज्ञान कुछ भी नहीं जानता है इसलिए जरूरी है कि इस पूरे केस को शोध पत्र के रूप में प्रस्तुत किया जाए और पूरी दुनिया को बताया जाए कि दोषयुक्त बेल के फलों के सेवन से भी पार्किंसन जैसे रोग के लक्षण आ सकते हैं।


 इस तरह एक और जटिल मामले का पटाक्षेप हुआ।


 सर्वाधिकार सुरक्षित


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