Consultation in Corona Period-71
Consultation in Corona Period-71
Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"आप सुबह-शाम रबड़ी और जलेबी खाइए। आपकी समस्या पूरी तरह से ठीक हो जाएगी।
आपको किसी भी प्रकार की दवा की जरूरत नहीं है। यह आधासीसी अर्थात अधकपारी का दर्द है जो पित्त के भड़कने के कारण हो गया है। जैसे ही यह शांत होगा वैसे ही आपकी समस्या पूरी तरह से ठीक हो जाएगी।"
वाराणसी के एक वैद्य ने मध्य प्रदेश के एक सज्जन से कहा जब वे अपने सिरदर्द की चिकित्सा कराने के लिए उनके पास गए।
उस समय उन सज्जन को डायबिटीज की समस्या उतनी नहीं थी इसलिए उन्होंने बड़े मजे से यह मीठा इलाज कराया पर उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ बल्कि पहले जो महीने में दो दिन यह समस्या होती थी वह बढ़कर 4 से 5 दिनों की हो गई।
जिस दिन उनका सिर दर्द होता था उस दिन उनका सभी काम रुक जाता था और वे दिन भर बिस्तर में पड़े तड़पते रहते थे।
पेन किलर से ही कुछ हद तक उनके सिर दर्द में कमी आती थी। वाराणसी के वैद्य जी से कोई फायदा न होता देखकर उन्होंने दिल्ली की ओर निगाह की और जब उनकी पूरी जांच हुई तो उन्हें बताया गया कि उन्हें साइनस की समस्या है।
इसके लिए वे लंबे समय तक के दवाई खाते रहे पर उनकी समस्या का किसी भी तरह से समाधान नहीं हुआ।
इसके बाद उन्होंने मुंबई का रुख किया जहां उन्हें बताया गया कि यह माइग्रेन की समस्या है और इसका इलाज बहुत कठिन है लेकिन संभव है।
इस तरह माइग्रेन के लिए उनकी लंबी चिकित्सा चलती रही पर उससे लाभ न होता देखकर उन्होंने दंत चिकित्सक से सलाह लेनी शुरू की क्योंकि इस सिरदर्द के साथ में उनके दाँतों में भी दर्द होने लगा था।
दंत चिकित्सक ने उन्हें ओपिआइड पेनकिलर दिया जिससे उनका दर्द तो कम हो गया लेकिन स्थाई रूप से कम नहीं हुआ। जब भी दर्द होता था तब इसे लेना पड़ता था।
जब दर्द थोड़ा कम हुआ तो चिकित्सक ने कहा कि अगर दो दाँतो को उखाड़ दिया जाए तो इस समस्या का समाधान हो सकता है क्योंकि इन दोनों दाँतों के कारण ही पूरे चेहरे में और सिर में दर्द हो रहा है।
उन्होंने दोनों दाँतों को उखाड़ दिया। यह एक कष्टप्रद प्रक्रिया रही पर इससे उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ।
बीबीसी हिंदी में मेरे मेडिसिनल राइस पर लिखे लेख को पढ़कर बहुत वर्षों पहले उन्होंने मुझसे संपर्क किया और कहा कि क्या ऐसा कोई मेडिसिनल राइस है छत्तीसगढ़ की पारंपरिक चिकित्सा में जिसके प्रयोग से इस दर्द को कम किया जा सकता है?
तब मैंने उन्हें बस्तर के एक पारंपरिक चिकित्सक के पास भेजा था। इनसे भी वे लंबे समय तक चिकित्सा करवाते रहें और धीरे-धीरे उनकी समस्या का समाधान हो गया।
वे जानना चाहते थे कि उनके रोग का कारण क्या था? क्या कहीं दवाओं के प्रयोग से वह कारण दब तो नहीं गया और कालांतर में फिर से प्रगट हो जाये- ऐसा तो नहीं है। पारंपरिक चिकित्सक ने इस बारे में उन्हें कुछ भी नहीं बताया।
जब उनकी समस्या का समाधान हो गया तो पारम्परिक चिकित्सक ने कहा कि दवाएं बंद कर दें और अब आने की जरूरत नहीं है।
जनवरी में उनको फिर से वैसा ही दर्द होने लगा और जब एक बार शुरू हुआ तो दो महीने तक लगातार दर्द होता रहा।
उन्होंने पारंपरिक चिकित्सक से फिर से संपर्क किया तो पता चला कि वे अब इस दुनिया में नहीं है इसलिए उन्होंने मुझसे संपर्क किया ताकि मैं उन्हें किसी दूसरे पारंपरिक चिकित्सक के पास भेज सकूँ।
मैंने झारखंड के एक पारंपरिक चिकित्सक के पास भेजा पर उन्हें आशातीत लाभ नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने मुझसे परामर्श लेने का निश्चय किया क्योंकि उनका दर्द किसी भी तरह से समाप्त नहीं हो रहा था।
वे मुझसे दवाओं की आशा कर रहे थे पर मैंने कहा कि मैं चिकित्सक नहीं हूँ।
ड्रग इंटरेक्शन पर मेरा शोध कार्य है। अगर आपके द्वारा ली गई खाद्य सामग्रियों या दवाओं के बीच किसी प्रकार का इंटरेक्शन हो रहा होगा तो मैं आपको समझा सकता हूँ कि अमुक सामग्रियों को या दवाओं को आप बंद कर दें या बदल दें। मेरी सीमा यही तक है।
दवा देना मेरे अधिकार क्षेत्र के बाहर है।
उन्होंने कहा कि इसके लिए उन्हें क्या करना होगा?
मैंने उन्हें कहा कि आप लंबे समय से जिन खाद्य सामग्रियों का प्रयोग कर रहे हैं उसके बारे में मुझे विस्तार से बताएं और यह भी बताएं कि आपको कौन-कौन से दूसरे रोग हैं और उनके लिए आप कौन कौन सी दूसरी दवाई ले रहे हैं।
उन्होंने बताया कि करीब 20 वर्षों से उन्हें डायबिटीज की समस्या है और वे लगातार मेटफॉर्मिन ले रहे हैं।
मेटफॉर्मिन का नाम सुनकर मुझे राहत महसूस हुई क्योंकि मैंने इसकी खाद्य सामग्रियों के साथ होने वाली प्रतिक्रिया के बारे में विस्तार से शोध किया है और काफी कुछ लिखा है।
मुझे उम्मीद जगी कि इनसे अगर विस्तार से सारी जानकारी ली जाए तो समस्या का समाधान सामने आ सकता है।
लंबे समय से ले रहे खाद्य सामग्रियों के बारे में जब उन्होंने जानकारी भेजी तो मैंने उनसे कहा कि आप चाय का प्रयोग कैसे करते हैं?
उन्होंने बताया कि वे नाश्ते के बाद चाय लेते हैं और चाय के बाद में मेटफॉर्मिन लेते हैं। ऐसा वे दिन में दो बार करते हैं पर चाय दिन में 5 से 6 बार लेते हैं और वे चाय के बिना रह नहीं सकते हैं।
मैंने उन्हें कहा कि आप कुछ समय के लिए चाय का प्रयोग बंद कर दें या ऐसा करें कि मेटफॉर्मिन जब लेते हैं उस समय चाय का प्रयोग न करें और फिर 20 दिनों के बाद मुझे बताएं।
मैंने उनसे यह भी कहा कि वे जिस चाय का प्रयोग कर रहे हैं उसका एक सैंपल मुझे कुरियर कर दें ताकि मैं उसे स्थानीय लैब की सहायता से जांच करवा लूँ।
इस बात के लिए वे तैयार हो गए और उन्होंने मुझे सैंपल भेज दिया। जब सैंपल की मैंने जांच कराई तो जिसका अंदेशा था वही परिणाम आया।
20 दिनों बाद जब उन्होंने परामर्श के लिए फिर से समय लिया तो उन्होंने बताया कि उनका दर्द काफी कम हो गया है।
उन्होंने पूछा कि वे तो मेटफॉर्मिन और चाय लंबे समय से ले रहे हैं क्या इन दोनों की प्रतिक्रियाओं के कारण ही दर्द हो रहा था?
मैंने उन्हें समझाया कि मेटफार्मिन और चाय की नकारात्मक प्रतिक्रिया होती है पर सभी तरह के लोगों में नहीं होती है इसलिए जिन्हें इस प्रतिक्रिया से समस्या होती है उनकी जांच करके उन्हें कह दिया जाता है कि आप चाय और मेटफॉर्मिन का प्रयोग एक साथ न करें पर आपकी समस्या इससे बढ़कर है।
आपने जो चाय का सैंपल मुझे भेजा है उसमें बड़ी मात्रा में कीटनाशकों की उपस्थिति है जो कि चाय की खेती के समय डाले गए थे।
इसमें एक विशेष कीटनाशक है जिसका प्रयोग आजकल चाय के बागान में अधिकतर किया जाता है और जो कि चाय की पत्तियों में बहुत अधिक मात्रा में बचा रह जाता है।
ऐसी चाय की पत्तियों का जब प्रयोग किया जाता है तो न केवल मेटफार्मिन बल्कि ढेरों आधुनिक दवाओं के साथ उसकी नकारात्मक प्रतिक्रिया हो जाती है और कई बार तो लोगों की जान पर बन जाती है।
इसलिए मैं आपको सुझाव देना चाहूँगा कि आप जिस ब्रांड की चाय का उपयोग कर रहे हैं वह ब्रांड बदल कर देखें और यदि संभव हो तो उसका नमूना भी मुझे भेजें ताकि मैं जांच करवाकर यह बता सकूँ कि उसमें वह कीटनाशक है कि नहीं।
उन्होंने धन्यवाद दिया और वे इस बात के लिए तैयार हो गए।
उन्होंने 10 तरह की चाय के सैंपल मुझे भेजें जिनमें से तीन ऐसे सैंपल निकले जो कि पूरी तरह से सुरक्षित थे और जिनकी मेटफॉर्मिन से विपरीत प्रतिक्रिया नहीं होती है।
मैंने कहा कि आप इन तीन प्रकार की चाय का उपयोग लंबे समय तक कर सकते हैं मेटफॉर्मिन के साथ में बिना किसी नुकसान के।
उन्होंने पूछा कि क्या वे ऑर्गेनिक चाय का उपयोग कर सकते हैं?
मैंने कहा कि इसके लिए यह जानना जरूरी है कि चाय की ऑर्गेनिक खेती में किस प्रकार की वनस्पतियों का प्रयोग किया गया है?
यदि कीटनाशक के रूप में जहरीली वनस्पतियों का उपयोग किया जाता है तो आर्गेनिक चाय में भी विषैले तत्व आ जाते हैं जो कि आधुनिक दवाओं और पारंपरिक दवाओं के साथ विपरीत प्रतिक्रिया करते हैं।
चूंकि आम लोग चाय का उपयोग रोज करते हैं और अधिक मात्रा में करते हैं इसलिए यह विष उनके शरीर में अधिक मात्रा में एकत्र होता जाता है और दूसरी खाद्य सामग्रियों और दवाओं के साथ प्रतिक्रिया करता जाता है।
एक के बाद एक नए रोग आते जाते हैं और आम लोगों को यह नहीं पता चलता कि यह चाय और दवाओं की प्रतिक्रियाओं के कारण हो रहे हैं ।
इन नए रोगों के लिए वे नई दवाओं का प्रयोग करते हैं और इस तरह दवाओं की आपस की प्रतिक्रिया बढ़ती जाती है। आम लोग बिना मतलब के ड्रग इंटरेक्शन के मकड़जाल में फंस जाते हैं।
वर्षों पुरानी समस्या से मुक्त होकर उन्होंने राहत की सांस ली और मुझे धन्यवाद ज्ञापित किया।
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