Consultation in Corona Period-63

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया


"Tight Vagina का जुनून तुम्हारे लिए अभिशाप बन गया। सात वर्ष पूर्व जब तुमने मुझसे संपर्क किया था और इस क्रीम के बारे में पूछा था तो मैंने साफ-साफ कहा था कि इसके अच्छे परिणाम नहीं होते हैं और हो सकता है कि तुम्हें आगे जाकर वैजाइना का कैंसर हो जाए। 


मेरी बात सच निकली और अब जब तुम अपने प्रोफेशन के पीक में हो तब अचानक कैंसर का हो जाना किसी सदमे से कम नहीं है।" 


मैं थाईलैंड के एक लड़की से बात कर रहा था जो कि वहाँ के सुप्रसिद्ध गरम बाजार में अपना व्यवसाय करती है। 


 सात वर्षों पूर्व उसने मुझसे फोन पर बात की थी और पूछा था कि वह एक तरह की क्रीम का प्रयोग कर रही है टाइट वैजाइना के लिए।


 मैंने उस समय उस क्रीम के घटकों के बारे में उससे जानकारी मांगी थी। जब मुझे उसमें ओक गाल का नाम दिखा तो मैंने उसी समय उसे चेताया था कि इसका असर स्थाई नहीं होगा और जिस उद्देश्य के लिए तुम इस क्रीम का प्रयोग कर रही हो वह उद्देश्य भी पूरा नहीं होगा। 


उल्टे तुम्हें कई तरह की स्वास्थ समस्याएं हो सकती हैं। हो सकता है कि तुम्हें वैजाइना का कैंसर भी अगले कुछ सालों में हो जाए। 


उसने मेरी बात को अनसुना किया और आज इस कोरोना काल में जबकि उसका व्यवसाय पूरी तरह से ठप्प है और आर्थिक तंगी चल रही है तब उसे कैंसर ने जकड़ लिया। 


मैंने उससे कहा कि वह लॉकडाउन के बाद भारत आए और फिर यहाँ के पारंपरिक चिकित्सकों की सहायता से इस कैंसर की पूरी तरह से चिकित्सा करवाये। 


उसने बताया कि यह कैंसर इतना अधिक बढ़ चुका है कि वहां के डॉक्टर जवाब दे चुके हैं। तीन सर्जरी के बाद भी स्थिति नियंत्रण से बाहर है। 


मैंने उसे समझाया कि यदि इस कैंसर का मूल कारण ओक गाल की क्रीम है तो निश्चित ही इसकी काट हमारे भारतीय पारंपरिक चिकित्सकों के पास है पर यदि यह कैंसर किसी दूसरे कारण से हुआ है तो फिर यह मुश्किल वाली बात होगी।


 थाईलैंड के अलावा दुनिया के बहुत से देशों में इस क्रीम का प्रचलन है और यह गरम बाजारों से जुड़ी हुई लड़कियों के बीच बहुत लोकप्रिय है। 


थाईलैंड में इन लड़कियों के बीच काम करने वाली एक गैर सरकारी संस्था ने मुझसे संपर्क कर कहा कि आप स्थाई तौर पर थाईलैंड में बस जाइए और यहाँ इन पीड़ित बच्चियों का उपचार करिए क्योंकि यह कैंसर नासूर की तरह युवा पीढ़ी में फैलता जा रहा है और इसका एक मात्र कारण जैसा कि आप बताते हैं ओक गाल से बनने वाली क्रीम है।


 दरअसल ओक गाल में टैनिन बहुत अधिक मात्रा होता है और इससे जो क्रीम बनाई जाती है उसको लेकर यह दावा किया जाता है कि उससे वैजाइना बहुत अधिक टाइट हो जाती है और गरम बाजार में इसकी बहुत अधिक मांग है जबकि वास्तविकता कुछ और ही है। 


इस क्रीम का प्रयोग करने से वैजाइना में बहुत ज्यादा जलन होने लग जाती है। टैनिन होने के कारण उसका Astringent इफेक्ट होता है और वैजाइना पूरी तरह से सूख जाती है।


 ऐसे में सेक्स और ज्यादा मुश्किल हो जाता है और इस क्रीम का उपयोग करने वाली लड़की को एचआईवी एड्स का संक्रमण होने की संभावना रहती है। 


आधुनिक विज्ञान इस बारे में यह नहीं कहता है कि इसके लंबे प्रयोग से वैजाइनल कैंसर हो सकता है पर मैंने अपने अनुभव से यह जाना है।


 थाईलैंड से वैजाइनल कैंसर के इतने सारे मामले आते हैं कि उनकी गिनती करना भी मुश्किल है। ओक गाल के कारण होने वाले वैजाइनल कैंसर के लिए जब थाईलैंड और उसके आसपास के देशों की लड़कियाँ मुझसे संपर्क करती हैं तो मैं उनसे कहता हूँ कि उन्हें भारतीय विकल्प अपनाना चाहिए। 


भारत की पारंपरिक चिकित्सा में कमरकस जैसी बहुत सारी जड़ी बूटियां है जो कि पूरी तरह से साइड इफेक्ट से मुक्त हैं और जिस उद्देश्य के लिए इनका प्रयोग किया जा रहा है उन उद्देश्यों में ये खरी उतरती हैं। 


पर फिर भी ओक गाल की इस क्रीम का इतना क्रेज है कि सारी समझाइश के बावजूद भी बच्चियां इसका प्रयोग करना नहीं छोड़ती हैं। 


पिछले 20 सालों में 3000 से भी ऐसे मामले मेरे पास आए हैं जिनमें थाईलैंड से आई कम उम्र की बच्चियों में वैजाइनल कैंसर की समस्या थी और उसका कारण  ओक गाल क्रीम थी। 


जिन बच्चियों को फर्स्ट स्टेज का कैंसर था उनको जब यह सलाह दी गई कि वे तुरंत ही इस क्रीम का प्रयोग करना बंद करें तो कैंसर का फैलना रुक गया और इसका एंटीडोट देने पर धीरे-धीरे वह कैंसर ठीक भी हो गया। 


भारत में इस क्रीम का प्रचलन अधिक नहीं है पर ओक गाल पर आधारित बहुत सारे नुस्खे बाजार में है और समय-समय पर वैद्य और तांत्रिकों द्वारा बताए जाते हैं। 


आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में बनने वाले बहुत सारे टूथ पेस्टों में ओक गाल का प्रयोग किया जाता है ताकि मसूड़े कसे हुए रहे और पेस्ट करने के बाद उपयोगकर्ता को मुँह में लंबे समय तक कसावट बनी हुई महसूस हो।


 पर यह ओक गाल मुँह को पूरी तरह से सुखा देता है। जिससे मुँह की भीतरी सतह को बहुत अधिक नुकसान पहुंचता है और लंबे समय में यह मुँह के कैंसर जैसे रोगों के रूप में प्रगट होता है। 


भारत में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा ओक गाल युक्त पेस्ट का प्रयोग कर रहा है। यह अनुसंधान करने का एक अच्छा अवसर है कि क्या ओक गाल से युक्त पेस्ट करने से मुँह का कैंसर होता है?


मैंने अपने अनुभव से जाना है कि ओक गाल युक्त पेस्ट का प्रयोग करने से मुँह का कैंसर तेजी से फैलने लग जाता है इसलिए मैं प्रभावित लोगों को साफ शब्दों में कह देता हूँ कि वे ओक गाल युक्त पेस्ट का किसी भी कीमत पर उपयोग न करें अन्यथा बड़ी हानि हो सकती हैं।


 ओक गाल का प्रयोग भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में पीढ़ियों से होता रहा है पर इसका प्रयोग मसूड़ों के रोगों में ही होता है और वह भी कुछ समय के लिए। 


सभी वर्ग के लोगों को ओक गाल युक्त नुस्खों का प्रयोग नहीं करने की सलाह दी जाती है और लंबे समय तक तो बिल्कुल भी नहीं। 


आधुनिक टूथ पेस्ट में इसकी उपस्थिति इस शास्त्रीय नियम की अवहेलना करती है और यही कारण है कि ऐसे टूथपेस्ट आम भारतीयों के लिए अभिशाप बनते जा रहे हैं और उन्हें बार-बार दाँत के डॉक्टरों के पास जाना पड़ जाता है। 


वे यह बिल्कुल नहीं समझ पाते कि जड़ी बूटियों से भरे किसी पेस्ट से ऐसे भी नुकसान हो सकते हैं। 


चूंकि भारतीय पारंपरिक चिकित्सा में ओक गाल का पीढीयों से प्रयोग होता रहा है इसलिए इसकी काट के बारे में समृद्ध पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान है। 


मैंने 10,000 से अधिक ऐसे नुस्खों के बारे में लिखा है जिनके प्रयोग से ओक गाल से होने वाली नाना प्रकार की बीमारियों जिसमें कि कैंसर भी शामिल है, की चिकित्सा सफलतापूर्वक की जा सकती है। 


इन्हीं नुस्खों के सहारे पारंपरिक चिकित्सक सफलतापूर्वक वैजाइनल कैंसर से प्रभावित थाईलैंड की लड़कियों की चिकित्सा करते रहे हैं। यह पारम्परिक ज्ञान भारत तक ही सीमित है। 


यही कारण है कि अंतिम विकल्प के रूप में प्रभावित भारत का ही रुख करते हैं।


 यह सौभाग्य की बात है कि ओक गाल के कारण होने वाले ओरल कैंसर के लिए भी हमारे देश में बहुत सारे पारंपरिक नुस्खे हैं पर यह बात पहले स्पष्ट हो जानी चाहिए कि ओरल कैंसर का कारण ओक गाल ही है।


सर्वाधिकार सुरक्षित


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