Consultation in Corona Period-49
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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"जैसे ही भगंदर की समस्या ठीक होने लगती है वैसे ही मेरी सोरायसिस की समस्या बढ़ जाती। वैद्य जी की दवा भगंदर के लिए है।
मेरा आपसे अनुरोध है कि आप वैद्य जी से बात करें और उन्हें समझाएं कि वे अपने नुस्खे में थोड़ा परिवर्तन करें ताकि मेरा भगंदर ठीक हो जाए और सोरायसिस की समस्या भी न बढ़े।"
यह संदेश उत्तर प्रदेश के 50 वर्षीय सज्जन का था जिन्होंने परामर्श के लिए मुझसे समय लिया था।
मैंने उनसे कहा कि मैं आपकी मदद करूंगा।
आप मेरी बात उन वैद्य जी से करा दें। अगर वे अपना फार्मूला मुझे बताएंगे तो मैं उसमें सुधार कर दूंगा और आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि वैद्य जी किसी से फोन पर बात नहीं करते हैं। यदि कोरोना का समय नहीं होता तो मैं आपको खुद उन वैद्य जी के पास ले चलता और सीधे बात करवा देता।
मैंने अपनी मजबूरी बताई कि बिना फार्मूला जाने मैं कैसे उसमें सुधार कर सकता हूँ? फिर भी मैं प्रयास करता हूँ।
मैंने उन्हें बताया कि भगंदर की समस्या के लिए अधिकतर भारतीय वैद्य तेज कंद का प्रयोग करते हैं और इस तेज कंद की दूध के साथ विपरीत प्रतिक्रिया होती है।
क्या आप दूध का सेवन कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि हाँ, मैं दूध का सेवन कर रहा हूँ।
दिन में दो बार 1 लीटर तक दूध पी जाता हूँ।
मैंने कहा कि आप उस दूध का प्रयोग कुछ दिनों के लिए रोके और अगर फार्मूले में तेज कन्द होगा तो यह प्रतिक्रिया रुक जाएगी और आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा।
उन्होंने ऐसा ही किया और फिर एक हफ्ते बाद फिर से परामर्श के लिए समय मांगा।
उन्होंने बताया कि कुछ हद तक तो समस्या का समाधान हो गया है पर पूरी तरह से समस्या ठीक नहीं हुई है।
वे दूध का सेवन अभी भी कर रहे हैं पर बहुत थोड़ी मात्रा में और जैसे ही दूध का प्रयोग करते है उनकी समस्या बढ़ जाती है।
मैंने उनसे पूछा कि यह तो तय हो गया कि फार्मूले में तेज कन्द है जो दूध के साथ नकारात्मक प्रतिक्रिया करता है।
अब आप यह बताइए कि क्या आप गिर की गाय के दूध का प्रयोग करते हैं तो उन्होंने कहा कि हाँ।
मैंने कहा कि आप गिर की गाय के दूध की जगह पर दूसरी गाय के दूध का प्रयोग करेंगे तो आप की बची खुची समस्या का भी समाधान हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि गिर की गाय का दूध सबसे अच्छा कहा जाता है इसलिए मैं उसका प्रयोग करता हूँ।
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मैं यह दूध लेता रहूँ और समस्या भी न हो।
मैंने उन्हें समझाया कि समस्या गिर की गाय की नहीं है। आजकल बहुत से गो पालक गिर की गाय रखते हैं और उसे चारे के रूप में गन्ना देते हैं।
गाय को गन्ना खिलाने से यह दोष उत्पन्न हो जाता है। आप अपने डेरी वाले से पूछिए कि क्या वह गिर की गाय को गन्ने खिलाता है पशु चारे के रूप में।
जब उन्होंने अपने डेरी वाले से पूछा तो उसने कहा कि हाँ, हम अपनी गाय को गन्ना खिलाते हैं।
मैंने उनसे कहा कि गिर की गाय का दूध अगर कहीं और से भी मिलता है जहाँ कि गाय को गन्ना नहीं खिलाया जाता है तो आप उसका प्रयोग कर सकते हैं। इससे आपकी समस्या का भी समाधान हो जाएगा।
उन्होंने धन्यवाद दिया और एक हफ्ते बाद उनका फिर से फोन आया कि समस्या का पूरी तरह से समाधान हो गया है और उन्होंने वैद्य जी से भी बात की है।
वैद्य जी ने इस बात की पुष्टि की है कि वे अपने फार्मूले में तेज कन्द का प्रयोग करते हैं पर उन्हें यह नहीं मालूम था कि तेज कन्द का प्रयोग दूध के साथ करने से विपरीत प्रतिक्रिया होती है विशेषकर गिर की गाय के दूध का प्रयोग जबकि गाय को गन्ना दिया जाता है चारे के रूप में।
यह उनके लिए सर्वथा नयी जानकारी थी।
आजकल बहुत से पशुपालक आयुर्वेद की रीति से अपने पशुओं को विशेषकर गाय को मूंग भी पशु चारे के रूप में देते हैं।
अपने 30 वर्षों के अनुभव में मैंने देखा है कि गाय को मूंग खिलाने से उसके दूध में कुछ ऐसे परिवर्तन होते हैं जिससे वह 300 से अधिक प्रकार की आधुनिक और पारंपरिक दवाओं के साथ में सकारात्मक और नकारात्मक प्रतिक्रिया करने लग जाता हैं।
इस पर सही ढंग से अनुसंधान नहीं हुए हैं पर हम लोग अपने अनुभव के आधार पर डायबिटीज की आधुनिक दवाएं ले रहे लोगों से यह अनुरोध करते हैं कि वे ऐसी गिर की गाय का दूध नहीं लें जिन्हें कि चारे के रूप में मूंग खिलाया जाता है।
डायबिटीज वालों को तो विशेष तौर पर यह हिदायत देते हैं कि जब मूंग खाने वाली गाय खेत से या चारागाह से घूम कर आए उसके बाद ही अगर दूध निकाला गया है तो वे दूध इस्तेमाल करें न कि ऐसी गाय के दूध का इस्तेमाल करें जो कि दिनभर एक ही स्थान पर बंधी रहती है।
देशभर के पारंपरिक चिकित्सकों का भी ऐसा ही अनुभव रहा है।
गिर की गाय के दूध के साथ बहुत सी देसी जड़ी बूटियां विपरीत प्रतिक्रिया करती हैं विशेषकर कैंसर में।
इसीलिए कैंसर के रोगियों को विशेष हिदायत दी जाती है कि वे गिर की गाय का दूध का प्रयोग न करें। समस्या सिर्फ गिर की गाय के साथ में नहीं है बल्कि भारत की दूसरी नस्ल की गायों के साथ भी है।
भारत के पारंपरिक चिकित्सक बहुत से नुस्खों में उग्र गंधा नामक बूटी का प्रयोग करते हैं। जब इस बूटी का प्रयोग किया जाता है तो रोगियों को स्पष्ट तौर पर कहा जाता है कि वे किसी भी रूप में साहिवाल गाय के दूध का प्रयोग न करें।
उग्र गन्धा का प्रयोग ज्यादातर मानसिक रोगों के चिकित्सा में किया जाता है और यदि इसकी जरूरत आजीवन होती है तो पूरी जिंदगी रोगियों को साहिवाल गाय का दूध पीने के लिए मना किया जाता है।
इसी तरह छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिकित्सक जब लता पलाश का उपयोग मूत्र रोगों के चिकित्सा में करते हैं तो वे अपने रोगियों को साफ शब्दों में कह देते हैं कि उन्हें किसी भी हालत में कांकरेज नस्ल की गाय के दूध का प्रयोग नहीं करना है।
साहिवाल नस्ल की गाय के दूध का उपयोग वे कर सकते हैं पर बहुत थोड़ी मात्रा में।
वे लाल रंग की गाय के दूध को लता पलाश के साथ उपयोगी मानते हैं।
प्राचीन काल में दूध का प्रयोग अकेले ही किया जाता था।
आज के युग में कई तरह की आधुनिक दवाएं हैं जो कि दैनिक जीवन की अभिन्न अंग हैं और जो दूध के साथ प्रतिक्रिया करती हैं।
इसलिए यह जरूरी है कि इन प्रतिक्रियाओं पर विस्तार से अनुसंधान किया जाए और लोगों को जागरूक किया जाए ताकि आम लोगों को विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से बचाया जा सके।
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