Consultation in Corona Period-46

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया



"उन्होंने रात का खाना खाया और उसके बाद हमेशा की तरह त्रिफला का प्रयोग किया। 


कुछ ही देर बाद उनको खून की उल्टियां होने लगी और देखते ही देखते उनकी मृत्यु हो गई। 


मुझे यह हत्या का केस लगता है इसलिए मैं आपको सारी तस्वीरें भेज रहा हूँ। 


अगर आपको यह हत्या लगती है तो आप तुरंत रायपुर से निकल जाइए और 8 घंटों का सफर करके यहां आ जाइए। आपकी फीस और आने-जाने की सारी व्यवस्था हमारा विभाग करेगा।"


 मेरे फॉरेंसिक विशेषज्ञ मित्र का जब यह संदेश आया तो मैं सोने की तैयारी कर रहा था। मैंने तस्वीरों को ठीक से देखा तो मुझे किसी भी प्रकार के विष की गुंजाइश नहीं दिखी। 


मैंने उनसे कहा कि वे त्रिफला का सैंपल इकट्ठा कर ले और नाखूनों का क्लोज अप मुझे भेजें बिना किसी फिल्टर के लिया गया क्लोज अप। 


नाखूनों की फोटो आई तब मैंने निश्चय किया कि यह केस मुझे लेना है और मैं 1 घंटे के अंदर उस स्थान के लिए रवाना हो गया। 


जब सुबह मैं उस स्थान पर पहुंचा तो मैंने देखा कि वह एक बहुत बड़ा फार्म हाउस है। मुझे बताया गया कि यहाँ ऑर्गेनिक खेती होती है और यहां से पैदा किए हुए अन्न को पूरी दुनिया में भेजा जाता है। 


फार्महाउस के मालिक के पिता ही त्रिफला के सेवन के बाद मृत हो गए थे। मृतक के पोते-पोती विदेश में रहते थे इसीलिए उनके अंतिम संस्कार में अभी 3 से 4 दिनों का समय था। 


फॉरेंसिक विशेषज्ञ मित्र ने मेरा स्वागत किया। 


उन्हें लग रहा था कि मैंने तस्वीर से ही सब कुछ जान लिया है पर मैंने उन्हें कहा कि पूरे केस की छानबीन करने के बाद ही कुछ तस्वीर साफ हो पाएगी। अभी तो कुछ भी नहीं समझ में आ रहा है।


 नाश्ता और चाय के बाद मुझे बताया गया कि मृतक फार्म में ही रहते थे और यहीं से उत्पादित सामग्रियों का प्रयोग भोजन के रूप में करते थे। 


वे जिंदगी भर त्रिफला का प्रयोग करते रहे हैं क्योंकि उन्हें पुराने कब्ज की शिकायत थी पर पिछले कुछ समय से वे जब भी त्रिफला का सेवन करते थे उनके पेट में गड़बड़ी होने लग जाती थी और खून की उल्टियां शुरू हो जाती थी। 


उन्हें लगा कि जिस ब्रांड का त्रिफला वे इस्तेमाल कर रहे हैं उसमें यह दोष है पर जब उन्होंने दूसरे ब्रांड के त्रिफला का उपयोग किया तब भी स्थिति जस की तस रही। 


उन्होंने चिकित्सकों से बात की तो उन्होंने कहा कि वे त्रिफला का प्रयोग बंद कर दें। हो सकता है इसका कोई बुरा प्रभाव पड़ रहा हो। 


उन्होंने त्रिफला का प्रयोग पूरी तरह से बंद कर दिया। 


बीती रात जब कब्ज की समस्या बहुत विकट हो गई तो उन्होंने फिर से त्रिफला का प्रयोग किया और यह दुर्घटना हो गई। 


त्रिफला एक नामी कंपनी का था और मेरे विशेषज्ञ मित्र ने उसकी जांच की तो उसमें किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं पाई गई। 


हममें लंबे समय तक चर्चा चलती रही। 


मैंने मृतक द्वारा ली जा रही दवाओं के बारे में विस्तार से जानकारी ली। इस बीच खबर आई कि खाना तैयार हो गया है। 


खाना खाने के बाद हम लोगों ने फॉर्म हाउस घूमने की तैयारी की। 


यह फॉर्म ऑर्गेनिकली सर्टिफाइड था और यहां तरह-तरह की खाद्यान फसले उगाई जाती थी पूरी तरह से जैविक विधियों से। 


अभी वहाँ पर धान की खेती की जा रही थी। धान की फसल पकने की अवस्था में थी और उसमें कीड़ों का जबरदस्त आक्रमण हुआ था। 


मृतक के पुत्र ने मुझसे कहा कि आप मेडिसिनल राइस पर शोध करते हैं। यदि आप चाहें तो आपके राइस हम यहां उगा कर दे सकते हैं ताकि आप दुनिया भर में इन्हें जिन्हें देना चाहे हमारे माध्यम से दे सकते हैं।


 आप जैसी वैदिक विधि बताएंगे हम उसी विधि से इनकी खेती करेंगे। किसी भी प्रकार के रसायन का प्रयोग नहीं करेंगे। 


हमने देखा कि धान के खेत में कीड़ों को भगाने के लिए एक विशेष तरह के स्प्रे का प्रयोग किया जा रहा था। 


मृतक के पुत्र ने बताया कि वे खेत में होने वाले खरपतवारों का प्रयोग कीटों के नाश के लिए करते हैं। वे सात प्रकार के खरपतवारों को पानी में रात को भिगो देते हैं और फिर सुबह उनके सत्व को खड़ी फसल में डालते हैं। 


इससे बहुत से कीड़े तो मर जाते हैं और बहुत सारे भाग जाते हैं। 


मैंने जब उनसे पूछा कि वे किन 7 प्रकार के खरपतवारों का प्रयोग इस हेतु करते हैं तो उन्होंने पूरी सूची मुझे दे दी।


इस सूची में धतूरा, आइपोमिया, आक आदि खरपतवारों की सूची थी जो आमतौर पर खेतों में पाए जाते हैं।


 मैंने उनसे प्रश्न किया कि आपको यह विधि किसने बताई?


 उन्होंने कहा कि यह विधि तो उन्होंने खेती करते करते सीखी है और जब यह कारगर हो गई तो इसे बड़े पैमाने पर अपनाने लगे। 


मेरा अगला प्रश्न था कि इन खरपतवारो से तैयार किया गया यह स्प्रे जब धान की फसल पर डाला जाता है तो चावल पर इसका क्या असर पड़ता है आप जानते हैं? 


तो उन्होंने जवाब दिया कि यह पूर्णतया प्राकृतिक है इसीलिए चावल पर किसी भी प्रकार का कोई असर नहीं पड़ता है। 


मैंने पूछा कि क्या ऑर्गेनिक फार्म का सर्टिफिकेट देने वाले लोग चावल की गुणवत्ता की जांच करते हैं? 


क्या इस बात की जांच करते हैं कि इस तरह के चावल में कहीं कोई हानिकारक गुण तो नहीं उत्पन्न हो जाते हैं? 


उन्होंने कहा कि नहीं। सर्टिफिकेट देने वाली कंपनियां इस तरह का कोई टेस्ट नहीं करती हैं क्योंकि यह पूरी तरह से ऑर्गेनिक है इसलिए चावल पूरी तरह से सुरक्षित रहते हैं। 


मैंने उन्हें बताया कि जब मैं पहले एक शोध संस्थान में डायरेक्टर रिसर्च एंड डेवलपमेंट के पद पर था तब हम लोगों ने इस पर विस्तार से प्रयोग किया कि जब किसी वनस्पति का सत्व खाद्यान्न फसलों में डाला जाता है तो उनकी गुणवत्ता पर क्या प्रभाव पड़ता है? 


हमें बड़े ही आश्चर्यजनक परिणाम मिले। 


बहुत सारे वानस्पतिक सत्व उत्पादों की गुणवत्ता को बढ़ा देते हैं जबकि बहुत सारे वनस्पतियों के सत्व उत्पादों को विषैला बना देते हैं। 


यह बड़े दुख की बात है कि पूरी दुनिया में इस तरह के प्रयोग किए जाते हैं पर उत्पादों का टेस्ट कभी नहीं किया जाता है। बस यह मान लिया जाता है कि यह आर्गेनिक है इसलिए इससे किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होगा। 


इस बातचीत के बाद हम लोग वापस अपने कमरे में आ गए। 


मैंने अपने मित्र से कहा कि यह स्वाभाविक मृत्यु नहीं बल्कि विष के कारण हुई मृत्यु है।


और फिर उन्हें विस्तार से समझाया कि धतूरे और आइपोमिया से तैयार सत्व जब फसलों पर डाला जाता है विशेषकर जब फसल पकने की अवस्था में होती है तो उसके उत्पाद में विष उत्पन्न हो जाता है। 


उसका स्वाद नहीं बदलता है। न ही उसे देखने से यह पता चलता है। 


केवल प्रयोगशाला में किए गए विश्लेषण से ही पता चलता है। 


मुझे यह जानना है कि मृतक क्या फार्म में उत्पादित इसी प्रकार के स्प्रे द्वारा तैयार की गई फसल का प्रयोग भोजन के रूप में करते थे?


 मित्र ने पूरी जानकारी एकत्र की और बताया कि वे फॉर्म में उत्पादित खाद्य सामग्रियों का ही प्रयोग करते थे। 


अब सूत्र मिल गया था। 


मैंने अपने मित्र को बताया कि इस तरह से इस स्प्रे के उपयोग से तैयार किया गया चावल ऐसे तो खाने में कोई नुकसान नहीं करता या कहे कि इसके नुकसान का पता नहीं चलता पर जब इस चावल से बने उत्पादों के साथ में टेनिन युक्त खाद्य सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है तो वही लक्षण आते हैं जो कि मृतक को आ रहे थे और ज्यादातर मामलों में जान पर बन आती है। 


त्रिफला में बहुत अधिक मात्रा में टेनिन होता है। संभवत जब उन्होंने भोजन में चावल खाया होगा और उसके बाद जब त्रिफला का प्रयोग किया होगा तो चावल में उपस्थित विष और त्रिफला के टेनिन की आपस में प्रतिक्रिया हुई होगी और इसके कारण खून की उल्टियां शुरू हो गई होंगी। 


 चाय के साथ भी ऐसा होता है। चाय में भी टेनिन होता है और इस तरह के चावल का उपयोग चाय के साथ करने से भी ऐसे लक्षण आते हैं पर वे मध्यम श्रेणी के लक्षण होते हैं। उनसे जान नहीं जाती है। 


अगर मृतक जीवित होते तो वे यह बता सकते थे कि इस चावल से बने पापड़ का उपयोग जब वे चाय के साथ करते थे तब भी क्या उन्हें इसी प्रकार के लक्षण आते थे। 


मैंने इस प्रकार के बहुत सारे केस पहले भी देखे हैं और जब मैं किसानों के साथ ऑर्गेनिक फार्मिंग का प्रयोग कर रहा था तब मैंने औषधीय फसलों पर इस तरह के प्रयोग के दुष्परिणाम देखे हैं।


 पर जैसा कि मैंने बताया कि इसकी कोई जांच नहीं होती इसलिए ऐसे उत्पाद बाजार में चले जाते हैं और जब लोगों को तकलीफ होती है तो दोष किसी और पर मढ़ दिया जाता है।


इस तरह इस मृत्यु की गुत्थी सुलझ गई थी।


 मित्र ने कहा कि इसका मतलब यह हत्या है? 


मैंने कहा कि हत्या तो है पर गैर इरादतन हत्या।


 मैंने मृतक के पुत्र से कहा कि आप इस तरह के स्प्रे का प्रयोग करना बंद करें और यदि संभव हो तो दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जो आपने चावल की आपूर्ति की है उसे तुरंत वापस मंगा लें ताकि लोगों को मरने से बचाया जा सके।


उन्होंने अपना सिर पकड़ लिया। 


सर्वाधिकार सुरक्षित




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