Consultation in Corona Period-44

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया



"हमें चीन और कोरोना दोनों से लड़ना है। वह भी एक साथ। 


हम चीन से तो निपट लेंगे पर कोरोना के लिए अगर आप हमें कुछ औषधियां सुझा सके तो अच्छा होगा।


 मुझे अगले हफ्ते ही लद्दाख के लिए निकलना है।" 


लद्दाख में तैनाती के लिए जा रहे हैं मेरे एक मित्र ने मुझे यह संदेश भेजा। 


वे सेना में उच्च पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।


 मैंने उनसे कहा कि मैं उनकी मदद करूंगा। 


मैंने उन्हें विस्तार से बताया कि मेरे द्वारा सुझाए गए बहुत सारी वनस्पतियों पर आधारित फॉर्मूलेशंस का क्लीनिकल ट्रायल देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहा है पर अभी अंतिम निष्कर्ष आना बाकी है इसलिए मैं उन औषधियों के नाम नहीं सुझा सकता।


पर हां मैं आपको लद्दाख में पाई जाने वाली जड़ी बूटियों की सूची दे सकता हूं जो कि आपको इस संकटकाल में कोरोना से पूरी तरह से सुरक्षा प्रदान कर सकती हैं। 


मैंने उन्हें लद्दाख की जड़ी बूटियों पर केंद्रित एक वीडियो दिया जो मैंने कुछ सालों पहले देश के रक्षा विभाग के लिए बनाया था। 


इसमें लद्दाख में पाई जाने वाली जड़ी बूटियों की पहचान, उनके उपयोग और लद्दाख में अपनी सेवाएं दे रहे दे रहे पारंपरिक चिकित्सकों के बारे में विस्तार से बताया गया था। 


मैंने उनसे कहा कि आप जड़ी बूटियों के सरल प्रयोग से सीमा पर हर तरह के रोग से लड़ सकते हैं। 


पर इनके उपयोग से पहले आप अपने फौज के डॉक्टर से जरूर परामर्श ले लीजिएगा और उनकी अनुमति के बाद ही इनका प्रयोग करिएगा। 


यदि आवश्यक हो तो आप मेरी उनसे बात भी करा सकते हैं।


 उन्होंने धन्यवाद दिया।


 भारत की पारंपरिक चिकित्सा में यह साफ साफ कहा गया है कि जो व्यक्ति जिस स्थान पर है वह उसी स्थान पर उग  रही जड़ी बूटियों से अधिक कुशलता से रोगों से बच सकता है यानी कि हिमालय की जड़ी बूटियां छत्तीसगढ़ के मैदान में उतनी अधिक काम नहीं करेंगी जितनी कि वे हिमालय में करती हैं और इसी तरह छत्तीसगढ़ के मैदान में उगने वाली जड़ी बूटियां हिमालय के ठंडे इलाकों में वैसा काम नहीं करेंगी जैसा कि वे छत्तीसगढ़ में करती हैं। 


इसी सिद्धांत पर मैंने देश भर के अलग-अलग स्थानों में उगने वाली आपातकालीन जड़ी बूटियों की सूची बनाई और उनके उपयोग के बारे में सरल भाषा में लिखा। 


जब कुछ वर्षों पहले रक्षा विभाग के एक वैज्ञानिक मुझसे मिलने आए तो उन्हें यह भेंट स्वरूप दिया था ताकि वे भारतीय सेना के लिए इसे इस्तेमाल कर सकें। 


उस समय वे Appetite Suppressant Herbs (ASH) वर्ग की जड़ी बूटियों की तलाश कर रहे थे और इस बारे में मेरे बहुत से शोध पत्रों को लेकर वे मुझसे मिलने आए थे।


 इस वर्ग की जड़ी बूटियों का उपयोग करने वाला व्यक्ति कई महीनों तक बिना भूख के जीवित रह सकता है जबकि उसकी शक्ति बिल्कुल भी कम नहीं होती है। 


इस बारे में हमारे देश में समृद्ध पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान है।


 उसी के आधार पर मैंने शोध पत्र तैयार किए थे जो कि दुनिया भर में सराहे गए थे। रक्षा विभाग के वैज्ञानिक जड़ी-बूटियों की खेती भी देखना चाहते थे। 


मैं उन्हें अपने साथ लेकर छत्तीसगढ़ के विभिन्न किसानों के पास गया जो कि हर्बल फार्मिंग कर रहे थे। वे हर्बल फार्मिंग में छत्तीसगढ़ की पहल से बहुत प्रभावित थे।


 मुझे याद आता है कि जब लद्दाख से आईटीबीपी की फौज छत्तीसगढ़ आई थी तब उनके लिए छत्तीसगढ़ के जंगल पूरी तरह से नए थे। 


वे लद्दाख की जड़ी बूटियों को और दूसरे पौधों को अच्छे से पहचानते थे और उनके उपयोग भी जानते थे पर छत्तीसगढ़ में उन्हें बिल्कुल नई प्रकार की जड़ी बूटियां मिली। 


जब उनके माननीय डीआईजी के आमंत्रण पर मैं उनके कैंप में व्याख्यान देने गया तो एक कमांडर ने पूछा कि यदि हम सघन जंगल में फंस जाते हैं तो वहां की वनस्पतियों के बल पर हम ज्यादा से ज्यादा कितने दिनों तक जीवित रह सकते हैं?


 तब मैंने विनम्रता से उन्हें जवाब दिया था कि आप आजीवन छत्तीसगढ़ के जंगलों में बिना किसी बाहरी भोजन की व्यवस्था के रह सकते हैं। 


आपको चिकित्सा के लिए भी जंगल से बाहर आने की आवश्यकता नहीं है। 


सारे रोगों की दवा जंगल में ही है। बस इन वनस्पतियों के बारे में जानने की आवश्यकता है। 


बाद में मैंने उन्हें स्थानीय वनस्पतियों से परिचित कराया। 


उनमें से कुछ ऐसी वनस्पतियां थी जिनमें कि गर्मी के दिनों में जबकि सारे जलस्रोत सूख जाते हैं तब भी पानी भरा होता है और आपातकालीन परिस्थितियों में इन वनस्पतियों को काटकर अपनी प्यास बुझाई जा सकती है। 


मैंने उन्हें यह भी बताया कि कैसे वे आसानी से जड़ी बूटियों की सहायता से कुछ ही पलों में किसी छोटे से तालाब से मछलियां एकत्रित कर सकते हैं और उनका उपयोग कर सकते हैं। 


यह जानकारी उनके लिए बेहद कारगर साबित हुई।


 रक्षा विभाग के वैज्ञानिक से मैंने यह चर्चा की कि मेरे पास बहुत सारे ऐसे लोगों के संदेश आते हैं जो कि पहले सेना में काम कर चुके हैं या अभी सेना में काम करते हैं उन सबको एक रोग सामान्य रूप से होता है। 


और वह है वेरीकोज वेन की समस्या। 


वे बताते हैं कि उन्होंने कई तरह के इलाज अपनाएं पर यह समस्या पूरी तरह से ठीक नहीं हुई। 


मैंने वैज्ञानिक महोदय को सलाह दी कि आपके विभाग को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि हमारे सैनिकों को वेरीकोज वेन की समस्या क्या किसी विशेष अभ्यास के कारण हो रही है या भोजन में किसी तत्व की कमी होने के कारण।


 मैंने उन्हें बताया कि बहुत सारे ऐसे पारंपरिक भोज्य पदार्थ छत्तीसगढ़ में हैं जिन्हें रोज के भोजन में शामिल करने से इस समस्या को जड़ से खत्म किया जा सकता है। 


आप इस पर अनुसंधान कीजिए। मैं अपनी ओर से पूरा सहयोग दूंगा ताकि यह समस्या हमारे जवानों को कभी न हो। 


उन्होंने इस पर अपनी सहमति जताई। 


छत्तीसगढ़ के बस्तर में तैनात सीआरपीएफ के अधिकारियों ने मुझसे सलाह ली थी कि मैं उन्हें ऐसे जंगली फलों के बारे में बताऊँ जिनके प्रयोग से उस क्षेत्र में तैनात उनकी फौज को बार-बार मलेरिया की समस्या न हो। 


मैंने उन्हें जंगली फलों की लंबी सूची दी थी और साथ में यह भी बताया था कि इनके प्रयोग से न केवल मलेरिया बल्कि सभी प्रकार के रोगों से आजीवन बचे रह सकते हैं।


छत्तीसगढ़ में युद्ध से संबंधित समृद्ध पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान है।


 ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि पुराने जमाने में युद्ध काल में छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पारम्परिक चिकित्सक पूरे देश का भ्रमण करते थे और राजा महाराजाओं की सेनाओं को स्वस्थ रखने में अपनी अहम भूमिका निभाते थे। 


अब तो न राजा महाराजा है और न ही वैसे पारंपरिक चिकित्सक पर अच्छी बात यह है कि उनका पारंपरिक चिकित्सकीय ज्ञान दस्तावेज के रूप में हमारे बीच उपलब्ध है।


 यह ज्ञान हमारी सेना के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है और आगे भी होता रहेगा।


 सर्वाधिकार सुरक्षित

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