Consultation in Corona Period-23
Consultation in Corona Period-23
Pankaj Oudhia पंकज अवधिया
"देखिए यह तो मुझे भी मालूम है कि इसकी जान नहीं बचने वाली है और इसकी मृत्यु तय है पर हम चाहते थे कि यह मृत्यु शांतिपूर्ण तरीके से आए न कि तड़प तड़प कर यह अपनी जान दे।"
फोन पर कनाडा के प्रसिद्ध कैंसर सर्जन थे।
यह उस समय की बात है जब आदरणीय प्रधानमंत्री पूरे देश को संबोधित कर रहे थे और सबसे अपील कर रहे थे कि वे अपने घरों की रोशनी बंद करके मोमबत्ती जलाएं ताकि फ्रंट लाइन में कोरोनावायरस के विरुद्ध काम कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों को नया उत्साह मिले और उन्हें ऐसा महसूस हो कि पूरा देश उनके साथ है।
कैंसर सर्जन के 27 वर्षीय बेटे को मेटास्टैटिक ब्रेन कैंसर था और वह इस कठिन परिस्थिति में उड़ीसा में अपने पिता से दूर एक भारतीय परिवार के साथ रुका हुआ था।
दरअसल जब उसे पता चला कि अब उसके बचने की उम्मीद बहुत कम है तो उसने अपने पिता से अनुरोध किया कि वह एक बार पुरी के दर्शन करना चाहता है और फिर अनुमति मिलने पर अपनी मां और बहनों के साथ पुरी आया और लॉकडाउन के कारण भारत में फंसा रह गया।
चूँकि यह कैंसर की अंतिम अवस्था थी इसलिए भारतीय चिकित्सकों ने कुछ दवाएं देकर उसे घर पर ही आराम करने को कहा पर उसकी हालत तेजी से बिगड़ती जा रही थी।
कैंसर सर्जन पिता ने इंटरनेट के माध्यम से मुझे खोजा और अनुरोध किया कि मैं जल्दी से जल्दी उनके लड़के के पास पहुंच जाऊं और जो भी मदद हो सकती है, मैं करूं।
उस समय छत्तीसगढ़ सरकार ने अंतरराजयीय बस सेवाओं को प्रतिबंधित कर दिया था। एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश जाना संभव नहीं था।
कैंसर सर्जन पिता ने अपने संपर्कों के आधार पर मुझसे कहा कि आप चिंता न करें। आपके लिए विशेष गाड़ी का प्रबंध हो जाएगा और साथ ही विशेष पास का भी।
अगर आप चाहेंगे तो एक सरकारी अधिकारी भी आपके साथ वहां चला जाएगा या फिर आप चाहे तो वहां से कोई व्यक्ति आपके पास आ सकता है और आपसे दवा लेकर वापस जा सकता है।
मैंने उन्हें स्पष्ट कहा कि मैं शोधकर्ता हूं न कि चिकित्सक इसलिए दवाएं मेरे पास नहीं रहती हैं और न ही इन्हें बड़े पैमाने पर मैं बनाता हूं।
मैं शोध को अधिक प्राथमिकता देता हूं और परामर्श को बहुत कम। वे मेरी बात समझ गए पर अनुरोध करने लगे कि मैं कैसे भी उनके बेटे की मदद करूं।
मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि मैं अपनी तरफ से पूरी मदद करूंगा। मैंने उसकी सारी रिपोर्ट मंगाई और फिर बेटे का वीडियो भी मंगाया जिससे कि मैं जान सकूं कि उसकी हालत वास्तव में कैसी है और यहां रायपुर से कैसे मदद की जा सकती है।
रिपोर्ट और वीडियो देखने के बाद लगा कि लड़के की हालत बहुत खराब है।
वह लड़का जहां ठहरा था उस परिवार से मैंने कहा कि यदि संभव हो तो किसी व्यक्ति को वहां से 40 किलोमीटर दूर एक किसान के पास भेजें।
जब व्यक्ति वहां किसान के पास पहुंच जाए तो मुझसे संपर्क करे। मैं उसे उपयुक्त मार्गदर्शन दे दूंगा।
वे इसके लिए तैयार हो गए और शाम तक एक व्यक्ति किसान तक जा पहुंचा और वहां से मुझे फोन किया कि आप मार्गदर्शन करें कि आगे क्या करना है।
मैंने कहा कि वह किसान से यह पूछे कि क्या उसने इस वर्ष नारद भोग नामक औषधीय धान की खेती की है। यदि की है तो फिर आप वहां रात भर रुक जाइए।
उस किसान का खेत पहाड़ी के पास है और रात भर पहरा देने के लिए किसान को वहां रुकना होता है।
आप किसान के साथ रात को खेतों की रखवाली के लिए चले जाइए और मचान में ही रात बिताइए। आप दोनों ही मचान पर रूकिये है और महुआ को अपने से दूर रखिए ताकि आप सुबह चार बजे उठ सके और खेत से सीधे ही 50 धान के पौधों को उखाड़कर उनकी जड़ों को एकत्र कर सकें।
इसके लिए पहले से आप किसान की अनुमति ले ले। मुझे विश्वास है कि वे मना नहीं करेंगे।
उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया और फिर सुबह सुबह मुझे फोन किया कि उसने धान की जड़ें एकत्रित कर ली है। मैंने उससे कहा कि अब वापस आ जाओ।
जब वह वापस आ गया तो मैंने उसे पुनः निर्देशित किया कि वह दूसरी दिशा में 20 किलोमीटर की दूरी पर एक पारंपरिक चिकित्सक से मिलने जाए और वहां जाकर मुझसे फोन पर बात करें।
उसने ऐसा ही किया और जब पारंपरिक चिकित्सक से बात हुई तो मैंने उनसे अनुरोध किया कि वे इन जड़ों में 45 और जड़ी बूटियां मिलाकर एक विशेष तेल बना दें और उस व्यक्ति को दे दे।
पारंपरिक चिकित्सक ने बताया कि इस प्रक्रिया में 2 से 3 दिन लगेंगे। वह व्यक्ति वहीं रुकने को तैयार हो गया।
जब तेल तैयार हो गया तो मैंने कैंसर सर्जन के बेटे के परिवार को निर्देशित किया कि पैरों के अंगूठे में दिन में 3 बार इस तेल को लगाएं और किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया होने पर मुझे सूचित करें।
उन्होंने ऐसा ही किया और बताया कि इससे बेटे की तकलीफ में किसी भी प्रकार से सुधार नहीं हुआ है।
फिर मैंने उन्हें निर्देशित किया कि वे ड्रॉपर की सहायता से दो-दो बूंद तेल लड़के की नाक में डालें और फिर 12 घंटों के बाद मुझे बताएं।
12 घंटों के बाद सुकून भरा फोन आया कि महीनों से आधी नींद ले रहा लड़का पिछले 12 घंटों से गहरी नींद में है।
कैंसर के कारण शाम को आ जाने वाला हल्का बुखार भी अब नहीं है।
यह एक अच्छी खबर थी। मैंने हर 12 घंटे में इस प्रयोग को दोहराने के लिए कहा।
लड़का लगातार गहरी नींद में सोता रहा। बीच में खाने के लिए उठता था उसके बाद फिर सो जाता था।
कैंसर में मैंने हजारों मामलों में यह देखा है कि यदि कैंसर के मरीज को प्राकृतिक नींद आने लगे तो उसकी आधी समस्या अपने आप दूर हो जाती है पर कैंसर की अंतिम अवस्था में अच्छी नींद आना लगभग असंभव सा है।
रोगी जितनी अधिक अच्छी नींद लेता है उतनी ही जल्दी शरीर कैंसर से लड़ने के लिए फिर से तैयार हो जाता है और दवाओं का असर विशेष रूप से बढ़ जाता है।
जब लड़के की हालत में सुधार हुआ और उसकी तकलीफ कम हुई तो उसके परिवार ने हिम्मत जुटाकर कनाडा लौटने का मन बनाया और विशेष विमान से वे सब कनाडा लौट गए।
कैंसर सर्जन पिता ने वहां से मुझे धन्यवाद दिया और कहा कि अब मेरा लड़का चैन से मर सकेगा। आपने उसकी सारी तकलीफों को दूर कर दिया है।
मैंने उनसे अनुरोध किया कि वे बार-बार निराशाजनक बातें न करें।
हमारे भारत की पारंपरिक चिकित्सा में हम मरने की भविष्यवाणी नहीं करते हैं और अंतिम समय तक रोगियों की सेवा करते रहते हैं।
अगर आपका लड़का भारत में रुकता तो मैं निश्चित ही ऐसा प्रबंध करता कि उसका जीवन बच सके। कैंसर सर्जन ने अपनी इस बात के लिए क्षमा मांगी।
इस पूरी भागदौड़ में कुल 18 घंटों का समय लग गया। इन 18 घंटों में मैं न जाने कितने शोध दस्तावेजों को तैयार कर लेता। यह मेरे लिए असमंजस की स्थिति होती है कि मैं शोध पर अधिक ध्यान दूं या परामर्श पर।
इंटरनेट में उपस्थिति होने के कारण ईमेल और व्हाट्सएप संदेशों का अंबार लगा रहता है।
अगर मैं सबको उत्तर दूँ तो शोध का कार्य बुरी तरह प्रभावित होता है। इसलिए मैंने अभी शोध पर अधिक ध्यान देने के लिए अपनी फीस में वृद्धि कर दी है ताकि जिन्हें सही मायनों में जरूरत हो वही लोग मुझसे संपर्क करें और व्यर्थ के प्रश्नों का उत्तर देने में मैं अपना वक्त जाया नहीं करूं।
मुझे उम्मीद है कि यह व्यवस्था लंबे समय तक कायम रहेगी।
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