Consultation in Corona Period-38

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Pankaj Oudhia पंकज अवधिया



"मारपीट कर किसी का कभी कोई इलाज होता है विशेषकर बुजुर्गों का। अगर हम समय पर नहीं पहुंचते तो यह तांत्रिक इनकी जान ही ले लेता।"


 महाराष्ट्र की एक संस्था ने मुझसे संपर्क किया और मुझे बताया कि उन्होंने एक तांत्रिक के पास से एक वयोवृद्ध को रेस्क्यू किया है बहुत बुरी हालत में।


 ये वयोवृद्ध एक तरह के मानसिक रोग से परेशान थे और डॉक्टरों के पास सीधे जाने के बजाय तांत्रिक के पास जा पहुंचे।


तांत्रिक ने उनसे खूब पैसे वसूले। जब उनके पास पैसे खत्म हो गए तो फिर मारपीट शुरू की पर उनकी बीमारी किसी भी तरह से ठीक नहीं हुई। 


हमें जब इसकी सूचना मिली तो हमने उन्हें रेस्क्यू किया और एक मनोचिकित्सक के पास लेकर गए।


 वहां 6 महीनों तक उनका उपचार होता रहा फिर कुछ दवाओं के साथ चिकित्सक ने उन्हें वापस घर भेज दिया। 


मुश्किल यह है कि उनकी समस्या जस की तस है और किसी भी तरह का सुधार नहीं दिखाई पड़ रहा है। 


क्या आप कुछ ऐसा भोजन बता सकते हैं जिसे करने से उनकी बाकी तकलीफों के अलावा यह मुख्य तकलीफ भी पूरी तरह से ठीक हो जाए। 


हमने पढ़ा है कि आप मेडिसिनल राइस पर शोध कर रहे हैं। 


क्या आप हमें कोई ऐसा मेडिसनल राइस बता सकते हैं जो इन बुजुर्ग की हालत को पूरी तरह से ठीक कर सके? जो भी खर्च होगा हम देने को तैयार है।


 मुझे यह भी बताया गया कि बुजुर्ग को चौबीसों घंटे ऐसा लगता है कि जैसे कोई उनका गला दबा रहा है। पूरे समय वे बेचैन रहते हैं।


उनसे बात करने पर मुझे पता चला कि उन्हें आंखों के सामने तरह तरह के सांप दिखते हैं जिससे वे भयभीत रहते हैं।


 मैंने पूछा कि सांप दिखते हैं या सांप जैसी आकृतियां दिखती है। 


उन्होंने सोच कर कहा कि सांप जैसी आकृतियां दिखती है पर उन्हें वे सांप ही समझते हैं।


 मैंने संस्था के सदस्यों से कहा कि बहुत सारे होम्योपैथ इस तरह की समस्या का समाधान जानते हैं। आप चाहे तो उनसे संपर्क कर सकते हैं। 


होम्योपैथी में एक नहीं बहुत सारी ऐसी दवाएं हैं जो उन मानसिक रोगियों के काम आती है जिन्हें इस प्रकार के लक्षण आते हैं। 


संस्था के सदस्यों ने बताया कि वे होम्योपैथी को भी आजमा चुके हैं पर किसी भी तरह का लाभ नहीं हुआ है। 


मैंने अपने पहचान के एक पारंपरिक चिकित्सक से अनुरोध किया कि वे उस बुजुर्ग से मिलने जाए और रोग की जड़ का पता लगा कर आए।


 समय निकालकर पारंपरिक चिकित्सक उन बुजुर्ग के पास पहुंचे और चार दिनों तक उनके साथ रहे पर उन्हें रोग की जड़ का पता नहीं चला।


 हां एक महत्वपूर्ण जानकारी उन्होंने दी कि बुजुर्ग बहुत अधिक मात्रा में पहले गांजे का सेवन करते थे पर डॉक्टरी इलाज के बाद हफ्ते में तीन-चार दिन ही बहुत थोड़ी मात्रा में गांजे का प्रयोग करते हैं। 


मुझे सूत्र मिल गया था। 


मैंने उनसे फिर से बात की और उनसे पूछा कि आपको गांजा कहां से मिलता है?


 तो उन्होंने कहा कि यह तो अवैध व्यापार है और संपर्क सूत्रों से ही मिलता है। 


मैंने कहा कि मैं केवल जानकारी के लिए यह जानना चाहता हूं कि आप के संपर्क सूत्र गांजा कहां से लेकर आते हैं। मेरा पुलिस से कोई संबंध नहीं है। 


मैं अपनी जानकारी के लिए यह पूछ रहा हूं। यह अच्छा होगा कि आप मुझे उस संपर्क सूत्र से एक बार बात करवा दे। 


बड़ी मुश्किल से वे तैयार हुए। 


संपर्क सूत्र ने जब मुझसे बात की तो उसने बताया कि गांजा देश के पूर्वी क्षेत्रों से आता है।


 अब समस्या का समाधान मिल गया था। 


मैंने संस्था के सदस्यों को बताया कि अगर वे गांजे का प्रयोग बंद कर दें तो उनकी समस्या का पूरी तरह से समाधान हो जाएगा।


 वे जिस स्थान से प्राप्त गांजा का उपयोग करते हैं उसमें बड़ी मात्रा में गाजर घास (Parthenium) की पत्तियों की मिलावट की जाती है और जब गाजर घास की पत्तियां और गांजा आपस में प्रतिक्रिया करते है तो इस प्रकार के लक्षण आते हैं।


 उड़ीसा के कृषि वैज्ञानिकों ने गांजे में गाजर घास की मिलावट के बारे में खबर कुछ सालों पहले प्रकाशित की थी। 


उनका कहना था कि जहां गांजे की अवैध खेती होती है वहां गाजर घास इतनी अधिक मात्रा में होती है कि वह अपने आप ही मिल जाती है क्योंकि उसकी पत्तियाँ गांजे की पत्तियों की तरह ही दिखती है पर उन्हें यह नहीं मालूम था कि मिलावट अभिशाप सिद्ध हो सकती है।


 मुझे अपने सूत्रों से पता चला कि यह मिलावट जानबूझकर की जाती है और खेत के स्तर पर होती है क्योंकि गाजर घास की पत्तियां मिलती-जुलती होती है। 


इससे पहले भी कई मामलों में मैंने इस तरह के मानसिक लक्षण देखे हैं जो इस मिलावट के कारण होते हैं।


 कम या अधिक मात्रा में और भी दूसरी उसी तरह दिखाई देने वाली वनस्पतियों का भी प्रयोग होता है। इस बारे में अधिक जानकारी नहीं है।


 संस्था के सदस्यों ने धन्यवाद दिया और कहा कि गांजा छोड़ना उनके बस की बात नहीं है। 


हम यही कर सकते हैं कि देश के पूर्वी क्षेत्रों की बजाय दूसरे क्षेत्रों में होने वाला गांजा उन्हें दे ताकि इस समस्या का समाधान हो जाए। 


उन्होंने मेरी बात जांचने के लिए देश के उन हिस्सों में अवैध रूप से होने वाले गांजे का प्रयोग किया जहां कि गाजर घास नहीं पाई जाती है या कम पाई जाती है और जहां इसकी मिलावट नहीं की जाती है तो बुजुर्ग की हालत में धीरे-धीरे सुधार होने लगा।


यह एक अच्छी खबर थी।


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